रमा जी, भारती जी और नीलम जी तीनों अच्छी पड़ोसन तो थी ही साथ ही अच्छी सहेलियां भी| तीनों के बच्चे एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ते थे |वैसे तो घर में काम ही इतना होता कि मिलना-जुलना नही हो पाता था, हां बस मंगलवार और शुक्रवार को लगने वाले पीठ बाजार से सब्जी लेने तीनों हमेशा साथ ही जाती थी| इसी बहाने तीनों की सैर भी हो जाया करती थी| इन दो तीन घंटे के दरमियान तीनों सहेलियों के बीच खूब बातें हुआ करती थी| घर की, बाहर की,बच्चों के स्कूल की, उनकी पढाई की|
समय कब बीत जाता पता ही नही चलता| रमा जी और नीलम जी स्वभाव से काफी बातूनी थी परंतु भारती जी उन दोनों की अपेक्षा शांत स्वभाव की थी| या यूं कहें कि कभी-कभी परिस्थितियां हीं उन्हें चुप रहने को विवश कर देती थी क्या करें परिवार की आर्थिक स्थिति दोनों पड़ोसनों की अपेक्षा कुछ खास अच्छी नहीं थी खासतौर पर जब नीलम जी और रमा जी अपने हाई प्रोफाइल स्टेटस का बखान करती थकती नहीं थी ऐसे में भारती जी चुप रहना ही उचित समझती थी| बस हां हूं तक ही सीमित रह जाती थी वह|
बस ऐसे ही एक दिन वे तीनों शाम के समय पीठ बाज़ार से वापस लौट रही थी कि तभी नीलम जी का बेटा अपने कुछ दोस्तों के साथ बाइकों के झुंड में सड़क पर जोर-जोर से हुटिंग करता हुआ निकल गया.बस साथ की दोनों महिलायें नीलम जी की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहीं थी.फिर क्या था जिक्र छिड़ गया
बच्चों के करियर का, अहम्म-अहम्म नीलम जी गले की खराश को ठीक करते हुये- “अमन है ! अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट प्रैक्टिस के लिये जाता है शाम को, वही से लौट रहा होगा|” “लेकिन उसकी पढ़ाई ?” – रमा जी ने प्रश्न किया|क्या करें मुझे तो उसकी पढ़ाई की बहुत चिंता होती है पर क्रिकेट उसका पैशन है…….
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.इसलिये उसके पापा ने क्रिकेट एकेडमी में उसका एडमिशन करवाया है.पता है आप दोनों को पूरे पांच लाख का डोनेशन देकर एडमिशन करवाया हमने|” “सही कह रही है आप! बच्चों की इच्छाओं के आगे पैसे का क्या मोल……… कल के दिन कुछ बन जाएं, अपने पैरों पर खड़े हो जाए तो हमारा नाम ही तो रोशन होगा|” रमा जी नीलम जी के सुर में सुर मिला रही थी|
तभी तीनों महिलाओं को ठीक अपने पीछे एक्टिवा का जोरदार हार्न सुनाई दिया| घबराकर तीनों पीछे मुड़ी तो देखा ये तो राघव था| ” मम्मी चाबी दे दो| ” राघव से बड़े तैश में अपनी मां रमा जी से कहा| “हां बेटा ये लो” कहते हुये रमा जी ने चाभी राघव को थमा दी| “मैं निकलता हूं लेकिन आप भी जल्दी घर पहुंचो |
बहुत भूख लगी है| पता नहीं क्या करते रहते हो आप! आपकी तो गप्पे ही खत्म नहीं होती मम्मी”| कहते हुये राघव ने अपना एक्टिवा स्टार्ट किया…..”पर राघव सुन बेटा ये सब्जी भी तो लेता जा” जब तक रमा जी सब्जी का थैला आगे बढ़ाती तब तक राघव वहां से निकल चुका था” | दोनो ही महिलाओं को राघव का अपनी मां से बात करने का तरीका ज़रा भी पसंद नहीं आया
यह बात रमा जी भी भांप चुकी थी| फिर भी उन्होंने राघव की गलती पर पर्दा डालते हुए कहना शुरू किया “बहुत चिड़चिड़ा हो गया है आजकल! क्या करें एग्जाम सर पर है, पढ़ाई को लेकर कुछ ज्यादा ही कॉन्शियस है मेरा बेटा राघव |
घर से स्कूल, स्कूल से घर, फिर फिजिक्स , केमिस्ट्री और मैथ्स तीनों के अलग-अलग ट्यूशन|”
“जी ठीक कहती है आप आजकल बच्चों पर पढ़ाई का बहुत अधिक बोझ है |क्या करें बेचारे कंपटीशन जो इतना बढ़ गया है| आजकल के जमाने में बच्चों के ब्राइट फ्यूचर के लिए उनकी मेहनत और मां बाप की जेब ढीली होना दोनो ही ज़रुरी है|” नीलम जी ने अपनी सहमति जताई| दोनों महिलाएं जहां एक दूसरे का पक्ष ले रही थी वही भारती जी के पास कुछ बोलने के लिये नहीं था| बस हूं हां, जी सही कहा, आप ठीक कह रही है चंद लफजो के सिवा|
तभी भारती जी को अचानक ही नीलम जी ने पकड़ कर झकझोरा “भारती जी आपका बेटा”| श्रवण ज़ोर-ज़ोर से भागते हुए भारती जी की तरफ आ रहा था पूरा शरीर पसीने से लथपथ| किसी अनहोनी की आशंका से तीनों महिलायें डर गयी |”मां ये लो आपका फोन आप घर पर ही भूल आए थे और मौसी का फोन आ रहा था
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तो मैंने सोचा मैं खुद ही आ जाऊं आपको फोन देने” हांफते हुए श्रवण ने भारती जी से कहा|” भारती जी-“अरे मै घर ही तो आ रही थी”| श्रवण- “कोई बात नही मां इस बहाने मेरी एक्सरसाईज़ भी हो गयी”| “नमस्ते आंटी” कहते हुये श्रवण ने रमा जी और नीलम जी के चरण स्पर्श किये| अपनी मां के हाथ के सब्जी का थैला लिया और घर की ओर चल पड़ा|तभी रमा जी भारती जी के कंधे पर हाथ रखकर बोली-“भई मानना पड़ेगा भारती जी
आपने श्रवण को संस्कार बहुत अच्छे दिए हैं|” ” और क्या आजकल के बच्चों में इतने अच्छे संस्कार कहां होते हैं?”-नीलम जी ने कहा| मन ही मन अपनी परवरिश पर फूली नहीं समा रही भारती जी छलछलाई आंखों को छुपानो का प्रयास करते हुये केवल इतना ही कह पायी ” भविष्य में श्रवण आई. पी.एस. अॉफ़िसर बनना चाहता है,….बन पायेगा या नहीं इसका तो पता नहीं परंतु इतना तो मैं जरूर कह सकती हूं कि वो हमारे बुढ़ापे का सहारा जरूर बनेगा|”
निधि घर्ती भंडारी द्वारा लिखित|