दीपिका (फ़ोन पर)-बताओ मम्मी क्या है ? अभी मैं मीटिंग में थी, आप बार बार फ़ोन कर रही हो।
सविता (दीपिका की माँ)-तूने आज ऑफिस जाते समय फ़ोन नहीं किया वैसे तो रोज़ करती है।
दीपिका-अरे मम्मी आज मीटिंग थी तो जल्दी आना था कल रात आपको बताया तो था। अच्छा अब रखो मैं काम देखूँ।
सविता (दीपिका की माँ)-मेरे बच्चे मुझसे प्यार नहीं करते, पीयूष (सविता जी का बेटा) तो कभी ख़ुद से फ़ोन ही नहीं करता, और रागिनी (सविता की कि बड़ी बेटी) को तो अपने बच्चों से ही फुर्सत नहीं, अब दीपिका भी ऐसे बात कर रही है। एक काम करती हूँ तीनों को अपनी बीमारी का बताकर बुलवाती हूँ देखती हूँ कि ये मुझसे प्यार करते है कि नहीं।
सविता जी अपने भैया से तीनों बच्चों को कॉल करवाती है कि मम्मी की तबियत ठीक नहीं है सबसे मिलना है मम्मी को।
पीयूष तुरंत फ्लाइट पकड़ता है और उधर रागिनी और दीपिका भी अपने बच्चों और पतियों के साथ रवाना होती है। तीनों बहुत परेशान है।
इधर सविता जी अपने भैया से कहती है देखना कोई नहीं आएगा सबको अपना घर बार और काम प्यारा है। किसी को मेरे बीमार होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उन्हें लगता है मामा तो पास है ही ध्यान रखेंगे। देखा भैया सब समय के साथ बदल जाते है।
रोशन ( सविता के भैया)-अरे थोड़ा रुको घर ऑफिस दूर है उन लोगो के कहो निकल गये है कल सुबह तक आ ही जाएँगे।
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दो घंटे बाद घर की घंटी बजती है रोशन जी दरवाज़ा खोलते है पीयूष खड़ा होता है। आते ही बैग दरवाज़े पर रख अंदर जाता है और पीछे से दीपिका और रागिनी भी मम्मी मम्मी कहते हुए अंदर प्रवेश करती है।
वहाँ सविता जी सोफ़े पर बैठे मुस्कुराती है और साथ ही साथ आंसुओं की प्रवाहमयी धारा बह रही है।
तीनों बच्चे और नाती-नातिन सविता जी के गले लग जाते है। सविता जी को स्वस्थ देख बच्चे भी खुश हो जाते है पर सविता जी को ख़ुशी के साथ आत्मग्लानि भी हो रही थी कि मैंने बच्चों को परेशान कर दिया वही दूसरी ओर बच्चे भी दुखी थे कि हम अपनी ज़िंदगी में इतना व्यस्त है कि ज़िंदगी देने वाली माँ को ही नज़रंदाज़ कार रहे थे।
तीनों बच्चों ने माँ से वादा किया कि अब आपको ऐसे बहाने बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी हम हर वीकेंड पर एक साथ इकट्ठे होंगे। ये सब सुन सबसे ज़्यादा खुश तो सविता जी के नाती-नातिन थे।
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धन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)।