सुहानी के माता-पिता की मौत किसी दुर्घटना में हो गई थी । पूरा घर लोगों से भरा हुआ था । सब लोग बारहवीं ख़त्म होते ही अपने अपने घर जाने के लिए तैयार हो गए थे । किसी ने भी सुहानी के बारे में नहीं सोचा था कि इसे कौन ले जाएगा । जबकि वह सिर्फ़ छह साल की ही थी। उसी समय सुहानी के मामा की नज़र सुहानी पर पड़ी उन्होंने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए कहा कि अरे हम में से किसी ने भी सुहानी के बारे में नहीं सोचा है । इसे अपने साथ कौन ले जाएगा ।
सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे । मामा ने ही बात शुरू करते हुए कहा कि मैंअपने साथ इसे ले जा सकता था पर आप सबको मालूम है ना कि मेरी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि मैं एक लड़की को पाल पोसकर बड़ा करूँ। ऊपर से लड़की जात है खाना पीना दे देने से ही बात ख़त्म नहीं हो जाती है इसकी शादी भी तो करानी पड़ेगी इसलिए मैं इसे अपने साथ नहीं ले जा सकता हूँ ।
उनकी देखा देखी वहाँ उपस्थित रिश्तेदार कहलाने वाले सभी ने उसे अपने साथ ले जाने के लिए मना कर दिया था ।
कहते हैं कि “ जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों “ ईश्वर की कृपा से उनके एक दूर के रिश्तेदार वेंकट जी जो ज्योतिष शास्त्र में निपुण थे । वे बोब्बिलि नामक एक गाँव के राजा के पास कार्यरत थे । वे आगे आए और कहा कि मैं सुहानी की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हूँ । लोगों ने उनके इस औदार्य के लिए तारीफ़ों के पुल बाँध दिया था । सुहानी को लेकर वे अपने गाँव विजयनगर आ गए थे । उनकी पत्नी ने सुहानी को देखा और वेंकट जी की बात सुनकर कहा कि कोई बात नहीं है बिन माँ बाप की बच्ची है हमारे बच्चों के साथ ही पल जाएगी ।
छह साल की उम्र से ही सुहानी वेंकट जी के घर में रहने लगी थी ।
उनके घर में ही पलते हुए सुहानी घर के सारे काम कर देती थी । जब वह पंद्रह साल की हुई तो वेंकट जी ने सोचा था कि सुहानी को दूसरे घर में बहू बनाकर भेजने के बदले में अपने ही घर की बहू बना लूँ तो कितना अच्छा होगा । उन्होंने अपनी पत्नी से सलाह लिया तो वे भी खुश हो गई थी कि मेरे हाथ के नीचे पली बड़ी हुई लड़की है इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ।
वेंकट जी ने अपने बड़े बेटे से सुहानी के बारे में पूछा तो उसने उससे शादी के लिए हाँ कर दी । इस तरह से सुहानी की शादी भास्कर से हो गई और वह इस घर की बहू बन गई थी ।
उनका बड़ा बेटा कहीं नौकरी नहीं करता था । वह भी अपने पिता के समान ही ज्योतिष विद्या पर ही आधारित था ।
वह अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरे शहरों में लोगों के बुलाने पर उनके हाथ देख कर उनका भविष्य बताने जाता था । इस बीच सुहानी पूरे घर के लोगों की सेवा करती थी ।
इस बीच धीरे-धीरे उसके देवरों की शादियाँ होने लगी थी । उसके सारे देवर नौकरियाँ करते थे । कोई रेलवे में तो कोई पोर्ट ट्रस्ट में तो कोई वकील थे । इस तरह से उन सबके बीच भास्कर के पास ही अच्छी नौकरी नहीं थी । इसका नतीजा यह हुआ कि वह इस घर की नौकरानी बनकर रह गई थी । देवरों के लिए पहले भी काम कर दिया करती थी अब देवरानियों के लिए भी काम करती थी ।
अपने देवर देवरानियों की उनके बच्चों की सास ससुर की सेवा करना और पूरे घर का काम करते करते वह बहुत थक जाती थी ।
इतने सालों में उनके अपने बच्चे तो थे नहीं तो वह देवरानियों के बच्चों को ही अपना समझती थी पर क्या फ़ायदा उन लोगों को उसके काम की कद्र ही नहीं थी । उसकी तरफ़ तो किसी का ध्यान नहीं रहता था । भास्कर चार पाँच महीने में एक बार आता था और एक हफ़्ता या पंद्रह दिन रहकर चला जाता था । जो कुछ भी कमाकर लाता था पिताजी को दे देता था । इन कुछ सालों के बाद चार महीने के अंतराल में सास ससुर का देहांत हो गया था । जब तक वे थे तब तक सुहानी को कुछ कहने के लिए परिवार के लोग हिचकिचाते थे । अब उनके जाने के बाद सुहानी की हालत नौकरानी से भी बदतर होती जा रही थी । इस बीच उसकी ज़िंदगी ने ऐसी करवट बदली कि उसका ईश्वर और अपनी क़िस्मत से भरोसा ही उठ गया था । भास्कर अपने घर वापस आ रहे थे कि ट्रेन के बाथरूम में हार्ट अटैक से उनका देहांत हो गया था । रेल कर्मचारियों को उनके जेब से मिले मोबाइल फ़ोन से घर का नंबर मिला और उनसे ही पता चला कि भास्कर की मृत्यु हो गई है ।
सुहानी का इस दुनिया में कोई नहीं था । बड़े दो देवर भी अपनी नौकरियों की वजह से एक श्रीकाकुलम में बस गया और एक देवर वैजाग में बस गया था । जो दूसरे दो बचे थे वे घर में नहीं बसे परंतु विजयनगर में ही अलग अलग मुहल्ले में रहने लगे थे । बल्कि उन दोनों में से किसी ने भी नहीं सोचा था कि सुहानी अकेली कैसे रहेगी । सुहानी इतने बड़े भरे परिवार में रहती थी अब अकेले उसका मन नहीं लगता था । कभी खाना बनाकर खाती थी या कभी पानी पीकर सो जाती थी ।
आज सुबह से ही सुहानी को बहुत तेज बुख़ार था। वह सोच रही थी कि उसने अपना सारा जीवन दूसरों की सेवा में बिता दिया था और आज मेरे बीमार होने से किसी को फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है । काम वाली बाई ने शायद देवरों को बता दिया था कि सुहानी को बुख़ार है सबको मालूम है परंतु किसी ने भी उसकी ख़बर नहीं ली है।
उसके पड़ोसियों ने ही सुहानी को अस्पताल में भर्ती कराया और उसकी खूब देखभाल की थी क्योंकि वे उसे सालों से देख रहे थे और उसे अच्छे से जानते थे ।
जब वह पूरी तरह से ठीक होकर घर वापस आई तो उन्होंने उससे कहा कि तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो तुम्हारे हाथों में स्वाद है । हम चाहते हैं कि तुम हमारे साथ मिलकर हमारे साथ रहो और हम लोगों के लिए खाना बना दिया करो । हम रहने के लिए तुम्हें घर देंगे । बुरा मत मानना तुम अपने घर को किराए पर दे सकती हो । हम तुम्हें महीने में कुछ पैसे भी मिल जाएँगे । तुम उन पैसों को अपने लिए खर्च कर सकती हो । सुहानी को उनका यह प्रस्ताव अच्छा लगा । उसने सोचा कि दुखी होकर जीने से कुछ नहीं होने वाला है । इसलिए जो लोग मेरा अच्छा सोच रहे हैं उनकी बात मानकर उनके साथ रहने में ही भलाई है । अपनी आगे की ज़िंदगी को इनके साथ बिताने में ही समझदारी है ऐसा सोचकर उनके साथ चली गई ।
दोस्तों दुख के वक़्त जो हमारा साथ दे वही हमारे अपने होते हैं ।
के कामेश्वरी