राधिका पति सुमेश से एक महीने पहले से ही ज़िद कर रही हैँ…….बेचारा थका हुआ ऑफिस से आता पानी तो बाद में मिलता पहले फर्मान जारी हो जाता……
सुुन रहे हो……य़ा बहरे हो गए हो…..मेरे भाई की शादी हैँ…. मुझे एक भारी लहंगा बारात के लिए, हल्दी के लिए पीली साड़ी, मेहंदी के लिए हरे रंग की साड़ी, फिर विदाई के लिए कुछ और चाहिए… और महिला संगीत में कोई रखी हुई साड़ी पहन लूँगी…. थोड़ा कम करा दिया इस बार तुम्हारा खर्चा….तो कब चल रहे हैँ दिलवाने… उसका ब्लाऊज़ भी सिलवाना हैँ… साड़ी तैयार करनी हैँ…. मैंचिंग देखनी हैँ….
यार तुम मुझे कंगाल कर के छोड़ोगी …. अभी तो बच्चों के मेरे कपड़े भी तो हैँ…. मैं तो वैसे भी कुछ नहीं ले रहा अब…. 10 साल से जो कोट घिस रहा हूँ हर शादी ब्याह में वहीं पहन लूँगा… चाहे विदाई हो, बारात हो, सगाई हो…. तुम्हारे पास यार कितनी पीली हरी साड़ी हैं उन्हे पहन लेना…..
दो दो साल पुरानी हैँ सब…. हर साड़ी में फोटो हैँ मेरी… सब पहचान ज़ायेंगे…. इज्जत खराब मत कराओ ….
तुम भी कैसी बात करती हो राधिका …. पहचान ज़ायेंगे तो क्या तुम्हे शादी से भगा देंगे…. य़ा तुम्हे काले पानी की सजा दे देंगे….
अब ज्यादा मत बुलवाओ मुझ पर …. अकेला भाई हैँ मेरा…. ननद हूँ…. मैं ही सबसे ज्यादा छायी रहूँगी…. और हां छुटकी के लिए भी लहँगा लेना हैँ और शिब्बू के लिए गर्म सूट….. ज्यादा महंगा नहीं आयेगा… दोनों का दस हजार के अंदर आ जायेगा….
क्या दस हजार….. पहले गर्म सूट सिर्फ बड़े लोग पहनते थे… अब इस ज़माने में बच्चे भी पहन रहे हैँ……हम तो स्कूल की पैंट , जूते पहन बस स्वेटर अम्मा पे धुलवा के पहन लेते थे…… चमक जाता था …. चले ज़ाते थे बारात में चाहे मामा की हो, चाचा की…. आजकल तो लोग पगला गए हैँ… उसमें हमारी मैडम भी शामिल हैँ…. बेचारा सुमेश खर्चे का सोच बड़बड़ाता जा रहा हैँ….
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जब बीवी बच्चों का खर्चा उठा नहीं सकते थे तो ब्याह ही क्यूँ किया मुझसे… तब तो बड़ी बड़ी बातें करते थे फ़ोन पर … अब कहां गयी वो बातें … बड़े आयें…..
ठीक हैँ भाग्यवान ….. चलो शाम को… कपड़े दिला लाऊँ … नहीं तो रोज ऑफिस से आकर खाने की जगह तुम्हारी किच किच से पेट भरना पड़ेगा….
शाम को खड़े हैँ राधिका सुमेश और बच्चे सुरेश चन्द, महेश चन्द की दुकान पर …. राधिका बच्चों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं हैँ…. बेचारा सुमेश अपने पूरे साल के बिगड़ते बजट का सोच हाथों को मोड़कर खड़ा हुआ हैँ……इसके बाद महिला स्टोर मैंचिंग का सामान लेने, जूते चप्पल वाले की दुकान वालों की चांदी भी तो करानी हैँ… जो पैसे सुमेश ने पोलिसी के सोच रखे थे… पोलिसी को आगे खिसका दिया गया हैँ… भ्ई ये काम ज्यादा ज़रूरी हैँ… रात में जो दो चार प्यार भरी बातें होती हैँ सुमेश राधिका की …. वो भी शादी तक बंद जो हो ज़ाती…. सपनों में भी बेचारा सुमेश खुद को दुकान के काउंटर पर खड़ा पाता….
हर प्राईवेट नौकरी वालों और मध्यमवर्गीय परिवार की आपबीती ….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा