सरोज और रमा एक ही बिल्डिंग में रहती थीं।दोनों कभी-कभी वॉकिंग करते समय मिलती थीं फिर धीरे-धीरे अच्छी दोस्त बन गईं।बच्चों के मामले में शायद रमा सरोज से ज्यादा भग्यशाली थी।उसके दोनों बेटे संस्कारी और पढ़े लिखे थे।रमा से बहुत प्यार करते थे..और करते भी क्यों ना?वही तो थी जो उनके सुख दुख की साथी थी।
पति के जाने के बाद परिवार वाले और रिश्तेदारों ने तो रमा को बस अपने हाल पे छोड़ दिया था।एक बच्चे ही थे जो रमा का सहारा बने रहे।पति के यूँ अचानक चले जाने से रमा तो जैसे गम में डूब गई थी।इस गम से उभरने में बेटों ने ही उसका साथ दिया।उसकी खुशी के लिए बेटों ने साथ रहने का निर्णय लिया।और जैसी भी थी उसी शहर में रहकर नौकरी की।दोनों भाइयों का भी आपस में बहुत प्यार था।ये शायद रमा और उसके पति की परवरिश का ही नतीजा था।
रमा की बहुएं भी बहुत अच्छी थीं।उसके दुख को समझती थीं इसलिए कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा।रमा को बेटियों की तरह ही प्यार करती थीं।बेटों की शादियों में रमा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी खूब धूम धाम से की थी।ताकि बच्चों को पिता की कमी ना खले।उस समय किसी रिश्तेदार ने उसे टोक दिया था-“रमा,वैसे इतना खर्चा करने की जरूरत नहीं थी।अपने लिए भी कुछ सोचा कर।जब तक अपने पास पैसे हैं तब तक ही बच्चे पूछते हैं।” तब रमा ने उन्हें यही जवाब दिया था-“भाभी जी मैं भी इतनी खर्चीली नहीं हूँ पर बच्चों की खुशी के लिए इतना तो करना ही पड़ता है ना।वैसे मुझे अपने बच्चों पर पूरा भरोसा है।”
सरोज के पति रिटायर्ड हो चुके थे इसलिए दोनों पति पत्नी अब बेटे के पास ही रहने आ गए थे।जब तक उन्होंने मकान बेटे के नाम नहीं किया था तब तक बहु बेटा उनकी खूब खातिरदारी करते थे लेकिन जब सब कुछ बेटे के नाम कर दिया तो बहु बेटे को अखरने लगे।बात बात में दोनों अपनी मजबूरियों का पिटारा सरोज और उसके पति के सामने खोलकर रख देते थे।ना ही अब वो पहले जैसा उनका सम्मान करते थे।सरोज और उसके पति खून के घूँट पीकर रह जाते थे।सारी जिंदगी सम्मान से जी और अब उन्हें बेटे बहु के रहमों करम पर जीना पड़ रहा था।
एक दिन रमा वॉकिंग कर रही थी तो उसे सरोज मिल गई,वो उससे बोली-“कैसी है सरोज?आज बड़े दिनों बाद दिखाई दी है।भाईसाहब कैसे हैं?”रमा ने एक साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो सरोज से रहा नहीं गया,बोली-“क्या बताऊँ रमा आजकल मन बड़ा दुखी रहता है।कहीं जाने के मन नहीं करता।”
“क्या हुआ सब ठीक तो है ना?”
सरोज ने अपनी सारी व्यथा रमा को सुनाई और सलाह देते हुए कहा-“रमा मैं तो कहती हूँ,तू भी अभी जयदाद का बँटवारा मत करना।वैसे भी तेरे बाद तेरा सब कुछ बच्चों का ही तो है।क्योंकि जब तक माता-पिता के पास पैसा होता है तब तक ही बच्चे पूछते हैं।” रमा को सहेली की बात बुरी लग गई। बड़े गर्व से बोली-“सरोज मुझे अपने बच्चों पर पूरा विश्वास है।वो मेरे साथ कभी गलत नहीं करेंगे।वैसे भी पाँचों उँगलियाँ एक जैसी नहीं होतीं।जरूरी नहीं जो तेरे साथ हुआ वो मेरे साथ भी हो।”
“तू ऐसा इसलिए कह रही है..क्योंकि तेरे बच्चे तेरी कमजोरी बन गएं हैं।”
“सरोज..मेरे बच्चे मेरी कमजोरी नहीं ताकत हैं।उनका खिलता हुआ चेहरा देखकर ही तो मैं जीती हूँ। उनका साथ व प्यार मेरे निर्जीव से तन में भी प्राण फूक देता है।”
कुछ देर बातें करने के बाद दोनों अपने-अपने घर चली गईं।
रमा की बातें सुनकर सरोज को जहाँ आश्चर्य हुआ वहीं थोड़ी ईर्ष्या भी हुई।उसने सोचा,किसी दिन रमा के घर अचानक से जाकर इसकी असलियत देखूँगी।और फिर एक दिन सरोज रमा को बताए बिना उसके घर पहुँच गई।संयोग से रमा अपनी किसी रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी।
रमा की बहुओं ने सरोज की बहुत खातिरदारी की।सरोज को लगा,आज मौका भी है और दस्तूर भी तो उसने बातों ही बातों में सरोज की बहुओं से पूछ ही लिया-“तुम लोग साथ-साथ एक ही घर में कैसे रहती हो?बहुत काम करना पड़ता होगा ना?फिर सास भी तो है साथ में।उसकी भी सेवा करनी पड़ती होगी।तुम लोग दूसरे शहर में क्यों नहीं नौकरी देख लेते?”
सरोज को लगा था,कि रमा की बहुएं आज तो सारा राज उगल देंगी पर यहाँ तो सब उल्टा ही हो गया।आशा के विपरीत रमा की बहुएं चहकते हुए बोलीं-“आँटी जी,साथ-साथ रहते हैं तो खुश हैं।एक दूसरे का सुख दुख बाँट लेते हैं।और मम्मी जी (रमा)को छोड़कर कहाँ जाएं?उन्होंने तो पहले से ही जीवन में इतना अकेलापन देखा है।वैसे भी माता-पिता कभी बच्चों पे बोझ नहीं होते बल्कि उनका अभिमान होते हैं।हमारा सौभाग्य है कि हमें बड़ों का साथ व प्यार मिला।बड़ों से बड़कर कोई धन नहीं होता।” रमा की बहुओं का जवाब सुनकर सरोज की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई।तभी रमा के बेटे भी ऑफिस से आ गए।रमा भी उनके साथ आई।सरोज को देखकर बोली-“अरे,तू आज इतने दिनों बाद वो भी बिना बताए कैसे आ गई?”
“बस मैंने सोचा,तुझे सरप्राइज दूँगी। तू बता बेटों के साथ कहाँ से घूम फिरकर आ रही है?”सरोज मज़ाक करते हुए बोली।
“वो इनके दूर के रिश्तेदार के बेटे की शादी में जा नहीं पाई थी सो आज शगुन देने गई थी।सुबह ऑफिस जाते समय बेटों ने मुझे गाड़ी से छोड़ दिया था इसलिए शाम को भी लेने आ गए ये सोचकर कि कहीं मैं ऑटो से ना आ जाऊँ।क्योंकि ऑटो पर चढ़ने उतरने से मेरे घुटनों के दर्द बड़ जाता है।”
“तुझसे मिलना हो गया अब चलती हूँ।बहुत देर हो गई है।घर पे सब मेरा इंतजार कर रहे होंगे।”सरोज घड़ी की तरफ देखते हुए बोली।
“अरे थोड़ा तो और रुक,तेरे साथ मुझे भी तो बातें करनी हैं।”
“अंधेरा हो जाएगा रमा तो कोई सवारी नहीं मिलेगी जाने के लिए।”सरोज ने चिंता जताई तो रमा का बड़ा बेटा बोला-“आँटी जी चिंता मत करो।मैं छोड़ आऊँगा आपको।”
सरोज के पति का भी फोन आ गया,वो भी उसकी चिंता कर रहे थे।उसने पति को बोल दिया की रमा का बेटा छोड़ देगा।
सरोज ने देखा,कैसे रमा बाहर से आई तो उसकी बहुएं उसके लिए चाय नाश्ता बनाकर लाईं और बड़ी उत्सुकता से उससे नई दुल्हन के बारे में भी पूछ रहीं थीं।और वो अपने पति के साथ कहीं से घूमकर आती है तो उसकी बहु पानी पूछना तो दूर ठीक से बात भी नहीं करती।बेटा भी हर समय बहु और बच्चों के साथ अपने कमरे में ही घुसा रहता है।जबकि ऑफिस से थके हारे आने के बाद भी रमा के बेटे उसका पूरा ख्याल रखते हैं।
वैसे तो इतनी जल्दी किसी के लिए कोई राय नहीं बनाई जा सकती पर कहते हैं ना..पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं..!!
सरोज को भी रमा के बहु बेटों का व्यवहार और उनकी सोच देखकर रमा की ताकत का अहसास हो गया था।रमा को यही दुआ देते हुए,कि ईश्वर करे तेरे बच्चे सदा तेरी ताकत बने रहें..वो अपने घर को रवाना हो गई।
सच कभी भी किसी का अच्छा देखकर उससे ईर्ष्या नहीं करना चाहिए,क्योंकि सबका अपना अपना नसीब होता है।ईर्ष्या करने से दोस्ती और रिश्तों में खटास आती है।
कमलेश आहूजा