मेरा मकान तेरा घर  : hindi stories with moral

hindi stories with moral : अरे वाह…. तेरा तबादला इसी शहर में हो गया है…जब मुझे पता चला , तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा ….!  तेरे तबादले से मैं बहुत खुश हूं विशाल ….अच्छा बता कब आ रहा है मेरे घर ….भाभी को लेकर आना….. चल फिर मिलते हैं कह कर समीर ने फोन रख दिया…।

           जानती हो माध्वी ….विशाल मेरा बचपन का दोस्त है…. हम लोग काफी समय से मिले नहीं है…. मिले नहीं है का मतलब हम दोनों के बीच लंबे समय तक कोई कांटेक्ट ही नहीं था….. पढ़ाई लिखाई  , नौकरी के चक्कर में  हम सब दोस्त बिछड़ ही गए थे…. वो तो भला हो फेसबुक का…. जिसके कारण कई दोस्तों से दोबारा मिलने का मौका मिला…!

           समीर ने उत्साह से पत्नी माध्वी से दोस्त से मिलने की खुशी जाहिर की ….। अरे ये तो अच्छा है.. कभी बुलाओ ना अपने घर …माधवी ने भी अपने घर बुलाने के आग्रह पर स्वीकृति दी …।

            मन ही मन समीर और माध्वी खुश हो रहे थे , बचपन का दोस्त आएगा हमारी इतनी बड़ी कोठी देखकर खुश होगा …..मैं कहां से कहां पहुंच गया….इतना कामयाब हूं….. जिंदगी में अगर कामयाबी.. दोस्त ही ना देखें तो फिर कामयाब होने का मजा क्या है ….?? 

    माध्वी भी समीर की बड़ी-बड़ी गाड़ियां , बड़ा सा मकान ढेर सारी विलासिता की वस्तुएं पाकर बहुत खुश थी …।

           इधर विशाल ने अपनी पत्नी सौम्या से कहा …..आज शाम को तैयार रहना ….मैंने तुम्हें बताया था ना मेरा एक दोस्त समीर …इसी शहर में रहता है …तो आज हम उसके घर चलेंगे ….देखना ना , माँ हमारे साथ वहां जाकर कितनी खुश होंगी …।

           बचपन में.. जब हम साथ में खेलते थे तो , माँ के हाथों से बना आम का मीठा अचार और बेसन के लड्डू समीर को बहुत पसंद थे ।

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         अरे वाह ….लगता है ये ही घर समीर का है …अरे ये तो पूरी हवेली है भाई ….विशाल और सौम्या आंखें फाड़ कर समीर के घर को  निहारे जा रहे थे ….!

       अरे बेटा मुझे कहां ले आए …माँ ने भी विस्मय भरी नजरों से घर देखकर विशाल से पूछा…!

   माँ जितना बड़ा घर है ना इस घर में रहने वाले से जब  मिलेंगी ना  … तब उससे भी ज्यादा आप खुश होगी… विशाल ने भी माँ को आश्वस्त किया..।

     हालांकि मन ही मन विशाल स्वयं भी असमंजस की स्थिति में था ..मेरे और समीर के बीच आर्थिक स्तर में इतना अंतर है क्या वो इसे स्वीकार करेगा ….??  कहीं हमारी दोस्ती में ये अंतर दीवार न बन जाए..!

      कॉलबेल बजते ही …समीर और माध्वी दोनों दरवाजे पर आए …बड़े आत्मीय ढंग से औपचारिकताएं पूरी हुई ….समीर को देखते ही माँ ने गले लगा लिया और खुश होते हुए बोलीं… अरे समीर तू ….?  बेटा अब  तो मैं भी इसी शहर में आ गई हूं सो अब तुझे भी विशाल के साथ,  आम का मीठा अचार और बेसन के लड्डू जरूर मिलेंगे …और सभी हंसने लगे…।

   पर कहीं ना कहीं माँ की नजरे…. समीर की माँ को ढूंढती नजर आ रही थी …पर उन्होंने यहां पर चुप रहना ही उचित समझा…।

     मुलाकात काफी अच्छी रही …जाते समय विशाल ने कहा…

  ”  यार तू तो बहुत अमीर निकला इतनी बड़ी कोठी  “…..आगे विशाल कुछ कह पाता , समीर ने बात काट कर कहा ……

       ” अमीर तो तू है विशाल …माँ जो तेरे साथ है …ये तो सिर्फ एक मकान है  “…….अपने घर की ओर इशारा करते हुए समीर ने कहा….

     ”  घर तो तेरा है विशाल जहां माँ भी साथ में रहती हैं “

  मकान को घर तो तूने बनाया है मेरे दोस्त ……दोनों दोस्तों की बातें सुनकर मन ही मन माध्वी बहुत शर्मिंदा हो रही थी …..उसे अपनी पुरानी बातें….जो थोड़ी बहुत कहा सुनी होने के बाद सास ससुर से अलग रहने का फैसला…. और कभी उनकी तरफ ध्यान ना देना …काफी शर्मिंदगी महसूस करा रही थी…।

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     काफी देर तक दोनों दोस्तों की बातें सुनने के बाद माध्वी ने ही चुप्पी तोड़ी… 

      समीर …अभी देर नहीं हुआ है.. सासू मां और बाबूजी को फोन करिए और बोलिए….हम आ रहे हैं उन्हें लेने….  “अपने  घर ” …. ” हमारे घर ” अब हमारा घर भी सिर्फ मकान नहीं रहेगा…” घर ” बनेगा समीर … ” घर “

       माधवी के आंखों में पश्चाताप देख समीर ने कहा बिल्कुल माध्वी हम अपने मकान को  ” घर ” जरूर बनाएंगे…!

  आज विशाल , सौम्या और बुजुर्ग माँ बड़े इत्मीनान से अपने घर लौट रहे थे क्योंकि ..ईंट पत्थर से बना एक मकान आज घर बनने जो जा रहा था…।

 ( स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

     साप्ताहिक विषय

         # घर

   श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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