भीषण बारिश हो रही थी। अचानक ही मौसम इतना बदल गया था…रह रह कर बिजली की गड़गड़ाहट उनके दुखी मन को बिलो देती थी। एक तूफान बाहर हलचल मचा रहा था, उस तूफ़ान से भी ज्यादा तीक्ष्ण तूफान उनके ह्रदयपटल को झंझोड़ रहा था। आज उनका जन्मदिन था। ठीक एक साल पहले आज ही के दिन दीपक…उनके घर का कुलदीपक… उनके घर का उजाला…उनके लिए केक लाने मोटरसाइकिल से निकला था…महज संयोग ही है कि उस दिन भी इसी तरह भीषण वर्षा हो रही थी। उन दोनों ने उसे बहुत रोका था..समझाया था इतने खराब मौसम में बाहर नही जाने के लिए पर वो जिद्दी कहाँ मानने वाला था,”ओह मम्मा! डोंट गैट पैनिकी! आज मेरी प्यारी मम्मा का जन्मदिन है। आपका स्पेशल डे है… मैं बस यूँ गया और यूँ आया।”
और आया था उसका खून से लथपथ शव…वो चेतनाशून्य होकर गिर ही पड़ी थी। होश आने पर स्वयं को रिश्तेदारों से घिरा पाया था। राजीव जी ने कलेजे पर पत्थर ही रख लिया था।
आज फिर उसी तरह बारिश हो रही है। उनका मन और शरीर भी रो रहा है। उनकी पीठ सहलाते हुए वो उनको धीरज रखने को समझा ही रहे थे…तभी कॉलबेल बजने लगी…इस मौसम में कौन हो सकता है…सोचते हुए जाकर देखा। एक सुदर्शन युवक रेनकोट में लिपटा खड़ा था। वो उनकी प्रश्नवाचक निगाहें देख कर बोला,”अंदर आ जाऊँ अंकल….आज आंटी का बर्थडे है ना …उनके लिए केक लाया हूँ।”
कहते हुए मीरा जी के पैर छू लिए। दोनों की हैरानी पढ़ कर बोला,” दीपक भैया का दिल मेरे अंदर है। मुझे बाद में सब मालूम हुआ…आपने इतने दुख में भी उनके ऑर्गन दान किए थे। उनका दिल मेरे अंदर धड़क रहा है।”
वो भी बहुत भावुक हो गया था। वो विह्वल होकर दौड़ीं और केक का एक टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया।
वो उनका दीपक ही तो था।
उन्होने उसे कलेजे से लगा लिया। अब बाहर भी तूफान थम गया था और शायद उनके अंदर का भी। धीरे से बोली,”वो तो चला गया पर तुम आ गए बेटा। कभी कभी इन अभागे माँ बाप के पास भी आते रहना।
नीरजा कृष्णा
पटना