अरी मीणा, किन ख्यालों में खोई हो। जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ और जल्दी खाना बनाओ। चांद निकलने वाला है। सुबह से करवा चौथ के व्रत के कारण हम भूखे हैं। अब तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा। पर तुम्हें क्या? सुबह से भरपेट खाया है। मजे हैं तुम्हारे। न व्रत रखना, ना भूखे रहना, थोड़ा काम करने को कह दिया तो वह भी तुमसे नहीं हो रहा। मीणा आंसू भरी आंखों से अपनी भाभी सुमन को बोलते हुए सुन रही थी। यह वही भाभी थी जो कभी उसकी नजर उतारते ना थकती थी।
तभी रसोई में मीणा की मम्मी पुष्पा जी ने प्रवेश किया। मीणा को देखते ही उनकी भवें तन गईं। गुस्से से उबलते हुए बोली – क्यों यह चेहरा लटका कर खड़ी है। जरा सा भाभी ने काम करने को बोल दिया तो लगी रोने। ना दिन देखती है ना त्यौहार। चल काम खत्म करके प्रियांशु को संभाल। तेरे भैया, भाभी, पापा और मैं चांद को अर्घ्य देने छत पर जा रहे हैं। तूं वहां जाकर क्या करेगी। तो यहीं रहकर घर संभाल। हमारे आने तक खाना मेज पर लगा कर रखना। उसने धीमे से गर्दन हिला कर अपनी स्वीकृति दे दी और खाना बनाने लगी।
चावल बीनते हुए उसे अपने विवाह के बाद आने वाला पहला करवा चौथ का व्रत याद आया। वह अपनी सास सुधा जी के साथ रसोई में खाना बना रही थी। सुधा जी किसी काम से बाहर गई तभी उसका पति विनय रसोई में आया। अरे मेरा चांद तो यहां छुपा है, कहते हुए विनय ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसने घबरा कर स्वयं को छुड़ाया और शर्माती हुई बाहर भागी ।तभी उसका फोन बजा ।उसकी ननद कविता उसका फोन उठा कर लाई।
“लो भाभी आपकी मम्मी का फोन आ रहा है।“ उसने हाथ साफ कर फोन कान से लगाया । “अरे मेरी लाडो, तुम्हें पहले करवा चौथ की बधाई हो। उसकी मम्मी की आवाज थी। मीणा ने मुस्कुराते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। दो चार इधर-उधर की बातें करके उन्होंने पूछा,” अरी लाडो क्या कर रही थी?” मम्मी मैं खाना बना रही थी, मीणा ने जवाब दिया।
“क्या ! खाना बना रही थी। तेरी सास और ननद कहां है ? तू भूखी प्यासी खाना बना रही है और वह महारानियां आराम फरमा रही हैं।“ तेज आवाज में पुष्पा जी ने कहा। “अरे नहीं मम्मी, खाना तो मम्मी जी ने ही बनाया है। मैं तो बस उनकी थोड़ी मदद कर रही थी। कविता की कल परीक्षा है, इसलिए उसे नहीं कहा। नहीं तो कविता भी रसोई में पूरी मदद करती है ।“मीणा ने कहा। “अरे जाने दे, मुझे पता है तू बड़ी भोली है। तुझे तो कोई भी बेवकूफ बना दे।
“ कहकर पुष्पा जी ने फोन उसकी भाभी सुमन के हाथ में दे दिया। हाल-चाल पूछने के बाद सुमन ने कहा,” मीणा आज शाम को पहनने के लिए तेरी सास ने क्या दिलवाया है। भाभी अभी 4 महीने पहले ही तो मेरी शादी हुई है। सारी साड़ियां अभी वैसी ही रखी हैं। मम्मी जी ने उन में से एक बहुत सुंदर साड़ी दी है पहनने के लिए।“ मीणा ने धीमी आवाज में कहा।
“ अरे, यह क्या बात हुई। एक नई साड़ी दिलवा देती तो क्या बिगड़ जाता। चल छोड़, बताओ विनय जी ने तुझे क्या उपहार दिया है? तेरे भैया तो मेरे लिए सच्चे मोतियों का बड़ा सुंदर सैट लाए हैं। मम्मी जी ने नईं साड़ी दी है। तुझे भी जरूर कुछ ना कुछ तो मिला होगा।“ मीणा ने बात को टालते हुए पूछा,” भाभी, प्रियांशु कैसा है?
मुझे याद तो करता होगा।“ “हां- हां तुझे ही तो याद करता रहता है। एक ही तो बुआ है उसकी। अच्छा सुन मेरी बात, आज रात जब तक विनय जी तुम्हें कोई अच्छा सा उपहार ना दे दें, तब तक उनसे बात मत करना। अभी से रोब रखना शुरू कर दो ननद रानी जी। नहीं तो बाद में सब दबा कर रखेंगे तुम्हें।“ फोन रखकर मीणा उनकी बातों को सोचने लगी। उसके मन में एक कसैलापन भरने लगा। उसे अपनी मम्मी और भाभी की बातें सही लगने लगी।
शाम को तैयार होते समय उसने सास की पसंद की हुई साड़ी की बजाय दूसरी साड़ी निकाल कर पहन ली। वह साड़ी भी नईं ही थी। लेकिन वह अपनी सास के सामने अपने मन का विद्रोह प्रकट करना चाहती थी।
जब वह तैयार होकर नीचे आई तो ध्यान से सास का चेहरा देखने लगी। लेकिन सास के मुख पर कोई भाव न देखकर उसकी कड़वाहट बढ़ गई। अच्छा तो इन्हें मेरी परवाह ही नहीं, सोचते हुए वह छत पर चली गई। परिवार के सभी सदस्य छत पर आ गए और चांद का इंतजार करते हुए आपस में हंसी मजाक करने लगे।
मीणा के मन के भाव उसके चेहरे पर भी झलकने लगे। एक दो बार सुधा जी और कविता ने उसकी उदासी का कारण पूछा लेकिन उसने टाल दिया। शायद भूख के कारण ऐसी हालत हो रही होगी, ऐसा सोचकर सुधा जी ने भी कविता को नीचे जाकर खाना मेज पर लगाने को बोला। चांद को अर्घ्य देकर वे लोग नीचे आए। खाना खाकर वह सब अपने-अपने कमरे में चले गये ।
आज तो तुम बहुत सुंदर लग रही हो, कहकर विनय ने जैसे ही मीणा को अपनी बाहों में भरना चाहा वह छिटककर उससे दूर हो गई। और मुंह घुमाकर लेट गई। विनय ने उससे उस व्यवहार का कारण जानने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आंखों के आगे तो भाभी का मोतियों का सेट घूम रहा था। थोड़ी देर उसकी मिन्नतें करने के बाद विनय भी दूसरी ओर मुंह घूमाकर सो गया।
अचानक प्रियांशु की आवाज सुनकर मीणा की तंद्रा भंग हुई। बुआ, मुझे भी खाना दे दो। उसने देखा कि सबने खाना खा लिया है। लेकिन उसे किसी ने खाने को नहीं कहा। उसने अपना और प्रियांशु का खाना प्लेट में निकाला। एक कौर मुंह में डाला, लेकिन वह उसके गले में ही अटक गया। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी। खाना वहीं ढक कर और पानी पीकर वह सोने चली गई। नींद उसकी आंखों से दूर थी। उसे उसकी की हुई वह सब नादानियां याद आईं जो उसे विनय से दूर लेती चली गईं। उसकी मम्मी और भाभी की दखलअंदाजी ने उसे उस घर को मन से अपना मानने ही नहीं दिया।
उसकी सास सुधा जी एक सुलझी हुई महिला थीं। उन्होंने बातों बातों में उसे समझाने का बहुत प्रयास किया। उसे खुश रखने की कोशिश सब करते लेकिन फिर भी मीना वहां खुश ना रहती। सुधा जी द्वारा उसको समझाने का हर प्रयास उसकी मम्मी को उनकी जालसाजी या चतुराई लगती। उसकी ननद कविता को लेकर भी मम्मी और भाभी उसे इतना भड़काती कि वह चंचल प्यारी सी बच्ची उसे अब अपनी सबसे बड़ी दुश्मन लगने लगी।
मायका और ससुराल एक ही शहर में होने के कारण मीणा छोटी-छोटी बातों पर लड़ झगड़कर मायके पहुंच जाती। उसकी मम्मी उसे समझाने की बजाय उसे और भड़काती। उसकी गलत बातों का भी पक्ष लेती। मीणा पढ़ी लिखी थी और नौकरी करना चाहती थी। उसके सास ससुर ने उसे नौकरी करने के लिए प्रेरित किया।
उसके ससुर जी ने अपनी जान पहचान से एक बहुत अच्छी जगह उसे नौकरी भी लगवा दी। इस बात पर भी मीणा की मम्मी ने उससे कहा कि लगता है अब तेरे ससुराल वाले तेरी तनख्वाह पर ऐश करना चाहते हैं। जरा संभल कर रहना। उन पर कोई पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।
पहली तनख्वाह मिलते ही मीना बाजार से ढेर सारे उपहार खरीद कर सीधा अपने मायके पहुंच गई। वह सब उपहार उसने अपने घर वालों को दे दिए तथा खाली हाथ अपने ससुराल पहुंच गई। उसके ससुर जी ने पहले से ही घर पर मिठाई लाकर रखी थी। वह अपनी बहू को आत्मनिर्भर बनकर बहुत खुश थे। लेकिन मीणा को उनकी खुशी में भी उनकी चालाकी ही नजर आई। उसने सीधे मुंह किसी से बात तक नहीं की। वह सारा समय मोबाइल पर अपनी मम्मी से बात करती रही। विनय को यह सब देखकर बहुत दुख हुआ, लेकिन घर की शांति के लिए उसने चुप्पी साध ली।
अब तो मीणा और भी स्वच्छंद हो गई। सुबह देर से उठना, तैयार होकर सुधा जी द्वारा बनाए नाश्ते को खाकर दफ्तर चले जाना, शाम को वहीं से मायके पहुंच जाना, उसका रोज का काम हो गया। रात को उसके भैया उसे घर छोड़ जाते। मीणा अपने पैसे उन पर खर्च करने लगी। अगर उसके सास व ससुर सुधा जी वह आकाश जी उसे समझाने का प्रयास करते तो वह उनसे बोलना बंद कर देती। कविता से बात करना तो उसने कब का छोड़ दिया था।
विनय इन सब बातों से बहुत परेशान हो गया। दांपत्य जीवन से वह बुरी तरह उकता गया। एक दिन जब रात को मीणा जी अपने भैया के साथ वापस आई तो विनय उसे देखकर बोला कि अभी भी आने की क्या जरूरत थी। वहीं रह जाती। इतना बोलने पर मीणा के भैया उनसे लड़ने लगे। जब आकाश जी बीच बचाव करवाने आए तो मीणा के भैया ने उन्हें जोर से धक्का मारा। वह गिर गए। इतना सब होने पर भी मीणा के भैया उनसे लड़कर मीणा को अपने साथ ले गए। सुधा जी व आकाश जी ने मीणा को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मीणा नहीं मानी।
मीणा अपने मायके में रहने लगी। विनय ने किसी भी प्रकार के समझौते का प्रयास नहीं किया। वह भी अब मीना की नादानियां से छुटकारा पाना चाहता था।
मीणा को अपने माता-पिता के घर रहते हुए पांच महीने बीत गए। अब उसे महसूस होने लगा कि अब उसे घर में पहले जैसे अधिकार नहीं मिल रहे। भाभी पहले की तरह दौड़-दौड़ कर उसका काम नहीं करती। उन्हे यह उम्मीद थी कि मीणा ऑफिस जाने से पहले सारा खाना बनाकर जाए और रात को भी खाना बनाए। भाभी की टोका-टोकी भी बढ़ रही थी। मम्मी भी अब भाभी का ही साथ देती थी।
मीणा ने एक बात पर ध्यान दिया कि जब उसका वेतन मिलने का समय आता तो भाभी और भैया का स्वभाव बड़ा मीठा हो जाता। वे लोग तरह-तरह के बहाने गढ़कर उससे पैसे मांगते रहते। यहां तक की प्रियांशु की स्कूल फीस तथा अन्य खर्चों की जिम्मेदारी भी उन्होंने उस पर डाल दी थी। घर में सुख सुविधाओं की अनेक वस्तुएं उसके वेतन से आ रही। लेकिन वह अगर अपनी मर्जी से कुछ बनाने लगती तो भाभी महंगाई का रोना रो कर उसे मना कर दिया करती । इन सब बातों में उसकी मां भी उसकी भाभी का साथ देती। घर का सबसे छोटा और सीलन भरा कमरा उसे सोने को मिला था।
इतना सब सोचते सोचते मीणा की आंख लग गई। सुबह जब सोकर उठी तो उसका सिर भारी था और आंखें रोने के कारण लाल हो रही थीं। किसी तरह सबका नाश्ता बनाकर तथा दोपहर के लिए सब्जी बनाकर वह तैयार हुई तथा अपने दफ्तर पहुंची निराशा का एक घना बादल उसके मन पर छाया था। दोपहर को लंच समय में अपना टिफिन लेकर जैसे ही खाने बैठी तभी उसके दफ्तर का चपरासी उसके केबिन में आया और बोला,”मैडम आपसे मिलने कोई आया है।
अगर आप खाना खा रही हैं तो उन्हें बाहर इंतजार करने को बोल देता “ इतना कहकर वह उसके चेहरे की तरफ देखने लगा। “अरे नहीं जो भी है उसे अंदर ले आओ। वैसे भी मुझे अभी भूख नहीं है।“ इतना कहकर मीणा ने अपना टिफिन बंद कर दिया और उत्सुकता से बाहर देखने लगी तभी उसने कविता उसकी ननद को अंदर आते देखा। उसको देखते ही मीणा के हृदय में एक हलचल सी होने लगी। आश्चर्य भरी आंखों से वह कविता के चेहरे की ओर देखने लगी। “नमस्ते भाभी” कहकर कविता ने जोर से उसे गले लगा लिया। उसके प्यार की गर्माहट से मीणा के मन में जमी बर्फ पिघलने लगी। इतनी प्यारी मासूम सी बच्ची से वह नफरत कैसे कर सकती थी। उसने भी उसे ज़ोर से अपनी बाहों में भींच लिया।
उसकी बाहों की कसावट को महसूस कर कविता को भी हैरानी हुई। फिर नरम शब्दों में उसने पूछा, “कैसी हैं भाभी?” “ठीक हूं, तुम और घर में सब कैसे हैं?” झुकी निगाहों से मीणा ने जवाब दिया।
“कोई ठीक नहीं है भाभी। भैया का तो बहुत ही बुरा हाल है।“ आंसुओं से भरी आंखों से कविता ने कहा। “क्यों कहा हुआ सबको” मीणा ने हैरानी से पूछा।
“बस भाभी, आपके बिना घर-घर नहीं लगता। सभी उदास रहते हैं। पापा तो आपकी याद में बीमार रहने लगे हैं और भैया उनके बारे में क्या बताऊं। ना ढंग। से कुछ खाते पीते हैं, ना ढंग से कपड़े पहनने का होश। जिंदगी को जैसे ढो रहे हैं। भाभी, प्लीज घर आ जाइए। सब आपका बहुत इंतजार करते हैं और अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो मैं माफी मांगती हूं। इतना कहकर कविता जोर से रोने लगी। मीणा ने उसे उठाकर गले से लगाया। अब सब ठीक हो जाएगा कविता। ऐसा कहकर उसने उसके आंसू पोंछे। कुछ देर बाद कविता वहां से चली गई।
मीणा के चेहरे पर छाई निराशा की बदली छटने लगी। उसने मन में कुछ फैसला किया और उठकर खड़ी हो गई। उसका चेहरा एक नए ओज से चमक रहा था।
जैसे ही मीणा घर पहुंची भाभी और मम्मी की खिलखिलाहट उसके कानों में पड़ी। “मम्मी आजकल गर्मी बहुत तेज हो गई है। कूलर की हवा से कुछ फर्क नहीं पड़ता। दीदी को कहकर आप उनसे ए सी लगवा लीजिए।“ भाभी की आवाज सुनकर मीणा के कदम वहीं रुक गए।
हां- हां क्यों नहीं, वह यहां रह रही है तो उसका हमारे प्रति कुछ फर्ज भी हैं। मम्मी की आवाज उसके कानों से टकराई। उसने घर में प्रवेश किया। वे दोनों उसे देखकर सकपका गईं। वह भी जाकर उनके बीच बैठ गई। “अरे मीणा, आ गई तुम। तुमने सुना आज प्रियांशु क्या कह रहा था” मम्मी ने उसे कहा।
“हां- हां सुनूंगी, पहले एक गिलास पानी तो पिला दीजिए। भाभी, एक कप चाय का भी बना लेना।“ उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा। उसकी मम्मी और भाभी ने उसकी तरफ हैरानी से देखा। भाभी मुंह बनाती रसोई में चली गई और चाय बना कर लाई।
“हां तो बताइए भाभी, प्रियांशु क्या कह रहा था।“ उसने भाभी की ओर नजरें करते हुए पूछा। उसकी आवाज की खनक से भाभी की जुबान लड़खड़ानें लगी। “अरे ज्यादा कुछ नहीं बस, यूं ही।“ उसकी मां ने बात संभालते हुए कहा। “वह कह रहा था कि गर्मी बहुत हो गई है। बुआ को कहना कि इस बार वेतन मिलते ही हमारे कमरे में एसी लगवा दें। तेरा लाडला है ना तूने ही बिगाड़ रखा है।“ मम्मी ने बात पूरी की। मम्मी क्यों नहीं, यह भी कोई कहने की बात है। मैं तो खुद ही सोच रही थी कि इस बार एक एसी लगवा ही दूं” मीणा ने कहा। उसकी मम्मी और भाभी की आंखें एसी की ठंडक महसूस कर चमकने लगी।
“हम कल शाम ही एसी ले आएंगे। कल मैं मैकेनिक को भेजूंगी और आप उन्हें मेरा कमरा दिखा देना। वह एसी लगाने की जगह देख लेगा” मीणा ने दृढ़स्वर में कहा। क्या, तुम्हारा कमरा, दोनों एक साथ ऊंचे स्वर में बोलीं। “लेकिन तुम तो एसी प्रियांशु के लिए लगवा रही थी” उसकी मम्मी ने थोड़ा नरम होकर कहा। “हां, तो मैं कहां मना कर रही हूं। एसी मेरे कमरे में लगेगा और प्रियांशु भी वहीं सो जाएगा। वैसे अभी आपने कहा कि वह मेरा लाडला है।“
“लेकिन तुम्हारा कमरा तो बहुत छोटा है। वहां प्रियांशु को घुटन होती है” भाभी ने हैरानी से कहा। “कोई बात नहीं, हम कमरा बदल लेते हैं। आप और भैया अथवा पापा और मम्मी में से कोई भी मेरे कमरे में आ जाओ और मैं आपके कमरे में” मीणा ने दृढ़ता से कहा। “क्यों दें हम तुम्हें अपना बड़ा कमरा। यही क्या कम है कि तुम हमारे घर में रह रही हो।“ भाभी ने आंखें नाचते हुए कहा। “भाभी शायद आप भूल रहे हैं कि इस घर की बेटी होने के नाते इस घर पर मेरा भी अधिकार है
और इस घर में मौजूद ज्यादातर सुख सुविधा का सामान मेरी तनख्वाह में से आया है। लेकिन मैंने कभी इस बात को जताया नहीं। अगर आज मैंने कमरा मांग लिया तो आप मुझ पर एहसान जाता रही हैं।“ कहते-कहते मीणा का स्वर भीग गया। वह अपने कमरे में आ गई और दरवाजा बंद करके रोने लगी। रात में कोई उसे खाना खाने के लिए बुलाने भी नहीं आया। वह भूखी ही सो गई।
सुबह उठकर वह नहा धोकर तैयार हो गई। एक बैग में अपने कपड़े डालें और घर से निकल पड़ी। किसी ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की। मीणा अपने ससुराल के दरवाजे के बाहर खड़ी थी। उसने हाथ बढ़ा कर बेल बजाई। दरवाजा उसके ससुर आकाश जी ने खोला। वह उसे देखकर हैरान रह गए। उसने आगे बढ़कर उनके पैर छुए। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया। खुशी से उनकी आवाज में उन्होंने सुधा जी को आवाज लगाई।
एक कपड़े से हाथ पोंछती हुई वह रसोई से बाहर आई। मीणा भाग कर उनके गले लग गई। उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। रूंधे गले से उन्होंने कविता को आवाज़ लगाई। कविता अपने कमरे से निकल कर आई। भाभी को देखते ही वह खुशी से उछल पड़ी और भैया, भैया देखो कौन आया है, बोलती हुई विनय के कमरे की और दौड़ने लगी।
सुधा जी ने उसका हाथ पकड़ लिया और आंख के इशारे से उसे चुप करवा दिया। फिर मीणा की ओर देखती हुई उसे कमरे में जाने का इशारा करने लगी। मीणा ने शर्मा कर चेहरा झुका लिया और वह धीमे कदमों से अपने कमरे की ओर बढ़ चली। कमरे में घुसते ही उसे पुरानी यादों ने आगे धेरा। कितने खूबसूरत पल उसने विनय के साथ इस कमरे में बिताए थे।
लेकिन आज कमरे में विषाद छाया था। कमरा चाहे साफ सुथरा था लेकिन निराशा का कसैला धुआं उसमें छाया था। विनय दफ्तर के लिए तैयार हो रहा था। वह उसके पीछे जाकर खड़ी हो गई और उसे देखने लगी। उसे कविता की बातों में सच्चाई नजर आई। ऐसा लग रहा था जैसे विनय लंबे समय से बीमार था।
दाढ़ी बढ़ी हुई थी और वो पहले से कमजोर भी हो गया था। उसने आगे बढ़कर पीछे से उसकी कमर में बाहें डाल दी। विनय एकदम घबरा उठा। वह पीछे मुड़कर हैरानी से उसे देखने लगा। मीणा ने उसके पास आकर उसकी गाल को छुआ और पूछा “यह बिना पलक झपकाए क्या देख रहे हैं।“ “कहीं यह कोई हसीन ख्वाब तो नहीं, जो मेरे पलक झपकाते ही टूट जाए” विनय ने खुशी से हिलसते हुए उसे कहा।
“नहीं साहब, अब ख्वाबों से बाहर आइए ।अब तो खुशी का दिन शुरू हो गये हैं। कहीं अपनी मीणा को भूल तो नहीं गए आप” शर्माते हुए मीणा ने कहा।
“नहीं तुम तो मेरी जिंदगी हो। अपनी जिंदगी को भी कहीं कोई भूलता है। बस तुम्हें यहां अचानक देखकर हैरान हो गया था। अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था।“ विनय ने मुस्कुराते हुए कहा।
“वैसे मेरी गलती बहुत बड़ी है। क्या आप मुझे माफ…..” तभी विनय ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। “अब कुछ मत बोलो। जो समय खराब हो गया उसके बारे में बातें करके इस समय को खराब क्यों करें। कहकर विनय ने उसे गले लगा लिया। दोनों मुस्कुराते हुए अपने कमरे से बाहर आए।
कविता और आकाश जी बाहर हाल में बैठे थे और सुधा की रसोई में से हलवे की खुशबू रही थी। सुधा जी कटोरी में हलवा डालकर बाहर आई। मीणा के मुंह में हलवा डालकर बोली, “मुझे पता है मेरी बहू को हलवा बहुत पसंद है। जब से तुम गई हो तब से यहां पर हलवा नहीं बना। तभी मीणा का फोन बजने लगा।
उसने देखा उसकी मम्मी पुष्पा जी का फोन था। उसने कुछ सोचते हुए फोन काट दिया और मुस्कुरा कर बोली, “कोई बात नहीं मम्मी जी अब रोज आपके हाथ से हलवा बनवा कर खाऊंगी। आप मना तो नहीं करेंगी।“ हलवा खिलाते हुए सुधा जी ने उसे गले से लगा लिया। तभी विनय और कविता भी पास आकर बोले “मम्मी कहीं बहू के प्यार में हमें भूल तो नहीं जाओगी।“ कहकर वह भी उनसे लिपट गए। पूरा घर खुशियों की खिलखिलाहट से गूंज उठा। आकाश जी मुस्कुराते हुए उन्हें देख रहे थे। आसमान की तरफ देखते हुए उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद किया। मीणा को महसूस हुआ आज वह सही मायने में अपने घर आ गई थी। हां यही मेरा अपना घर है, उसने सोचा।
सुनीता संधु