मेरा घर आख़िर कौन सा… – रश्मि प्रकाश   : hindi stories with moral

hindi stories with moral : आख़िर आज केतकी इस घर से चली ही गई।उसको जाना ही था, कितने दिन तक सब के ताने सुनती। 

जब पति ही इज़्जत न करें तो घर के सदस्यों से क्या ही उम्मीद की जा सकती है….बस घर में सालों से काम करने वाली मुनिया ही केतकी के हर चोट पर मलहम लगा दिया करती थी चाहे वे बातों की चोट हो या फिर शरीर पर लगे नीले निशान।

केतकी घर छोड़ने से पहले बहुत बार सोचती रही कहाँ जाऊँ कैसे क्या करूँ पर जब हताश हो गई तो मुनिया ने कहा,“ बहूरानी कहे के तो ना चाहि पर अब कहें के पड़ी… जोउन मर्द पत्नी के इज़्ज़त ना कर सकें वैसन मर्द के होना ना होना एक बराबर…..हमहू हिया तब से ही काम करत रही जब से आपन पति के छोड़ देले रही….

उहे के बस बिछौना पर औरत चाही पत्नी का होला कभहू समझले नइखे हमरा….अब तोहरा भी आगे के सोचे के पड़ी… हियाँ से चली जा बहू…. पूरा परिवार शादी ख़ातिर शहर से बाहर गइल रहे …. तू कछु  ना सोचा बस इहे वक्त निकल जा … बाकी हम सब सँभाल लेब।”

केतकी मुनिया की बात सुन कर हिम्मत बटोर कर घर से निकल अपने मायके पहुँच गई ।

“ अरे केतकी तुम यहाँ अचानक कैसे … और दामाद जी कहाँ है… उपर से क्या हाल बना रखा है अपना।”घर का दरवाज़ा खोलते ही माँ के सवालों की झड़ी लग गई 

“ अरे दरवाज़े पर ही कहानी करोगी… बेटी को अंदर तो आने दो।” बैठक से  पिताजी की आवाज़ सुनाई दी 

“ बस माँ तुम सब की बहुत याद आ रही थी रहा नहीं गया तो सबसे मिलने आ गई।” केतकी लाख आवाज़ को सँभालने की कोशिश कर रही थी पर दर्द भरी आवाज़ सुन माता-पिता परेशान हो गए ।

“ बता बेटी क्या बात है लग रहा है कई दिनों से तू सोई नहीं है ?” परेशान पिता ने पूछा 

केतकी से अब रहा ना गया वो पिता को पकड़ कर बेतहाशा रो पड़ी ।

“ पिताजी आपने सब देख सुन कर ही मेरा ब्याह किया था….पर ना ससुराल वैसा है ना ही पति…एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा जब मैं बात और लात ना खाई हूँ…मेरी हर काम में नुक़्स निकालना तो जैसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार बन गया था…घर में कोई भी चीज़ चाहिए तो मुझसे कहते अपने पिता को बोल कर मँगवा…

मैं अपने घर की हर स्थिति से वाक़िफ़ थी कैसे आपको फ़ोन कर के कुछ कहती….रोहन तो बहुत घटिया इंसान हैं पिताजी… क्या बोलूँ… मैं चुप रहती तो भी मार खाती मुँह खोलती तो भी … मैं अंदर अंदर घुट रही थी…मुझे ना ठीक से खाने को देते ना मेरे लिये दवाइयाँ लाते…पेट में दो महीने का बच्चा है पर उन्हें जरा सी भी फ़िक्र नहीं…

उपर से किसी ने कह दिया इसके तो बेटी होगी… तब से तो वो लोग मेरे उपर और अत्याचार करने लगे…मैं बहुत कोशिश कर रही थी जिस घर से विदा होकर आई उस घर उल्टे पाँव लौट कर ना जाऊँगी…. माँ भी तो यही कह कर विदा की थी अब वही तेरा घर है केतकी… जो भी हो उस घर की बात इस घर तक मत आने देना…

बस मैं ख़ामोशी से सह रही थी पर उस घर में जो काम करती है ना मुनिया चाची वो ही मेरी हर तकलीफ़ को कम करने की कोशिश करती …आज उन्होंने ही मुझे उस घर … नहीं नहीं…नरक से निकल जाने की सलाह दी… मुझे अपने से ज़्यादा मेरे होने वाले बच्चे की फ़िक्र है इसलिए बिना कुछ सोचे थोड़े पैसे लेकर बस पकड़कर यहाँ आ गई ।” केतकी हिचकियों के साथ बात कहती जा रही थी 

“ और तेरे ससुराल वाले कुछ ना बोले… तुझे रोके ना?” माँ ने आश्चर्य से पूछा 

“ सब एक शादी में बाहर गए हुए थे तभी तो मैं निकल कर आ पाई।” केतकी ने कहा 

“ पर बेटा जब उन्हें पता चलेगा फिर?” पिता ने शंकित हो पूछा 

“ पिताजी अगर आप लोग भी मुझे अपने घर में नहीं रह सकते हैं तो बोल दीजिए…. मैं अब उस घर ना जाऊँगी… कहीं और अपने रहने का ठिकाना खोज कर उसे ही घर बना लूँगी ।” केतकी अब समझ रही थी कि बेटी की जगह माता-पिता समाज के लोगों की फ़िक्र ज़्यादा करेंगे ….. बेटी का कोई घर होता भी है ये सवाल केतकी के मन में चल रहा था 

“ अरे ना बेटी तू जब तक चाहे यहाँ रह सकती है… ये घर भी तेरा ही है।” पिताजी केतकी को गले लगा कर बोले 

“ पगला गए हो क्या… अरे बेटी ने तो नादानी की ही …अब आप भी कर रहे हो… इसके ससुराल वालों और समाज वालों के सवालों के जवाब कौन देगा?” माँ तमतमाते हुए बोली 

“ रमा तू केतकी की सगी माँ ही है ना…तनिक ठंडे दिमाग़ से सोच कर देख…आजकल एक से एक कांड हो रहे हैं ग़नीमत है हमारी बेटी सही सलामत घर आ गई.. अब ससुराल वाले जवाब मुझे नहीं समाज को देंगे… हमारी फूल सी बच्ची पर जो कहर ढाए है उसका हर्जाना तो उन्हें भुगतना ही पड़ेगा… और कान खोल कर सुन ले…. केतकी अब इस घर में ही रहेगी… हम बेटी को विदा करते वक्त कह तो देते है अब वो घर तेरा है पर क्यों भूल जाते हैं अपने बचपन से जवानी तक के दिन इसने इस घर में हमें ख़ुशियाँ देकर गुजारे है… दूजे घर भेज कर हम उसकी ख़ुशियाँ चाहते हैं ना कि बर्बादी।” कड़क स्वर में केतकी के पिता ने कहा 

“ मैं तो बस समाज का सोच रही थी जी… बेटी का दुख कैसे भूल गई … मैं भी ना कैसी माँ हूँ…अब हम इसे उस घर तब तक ना भेजेंगे जब तक वो हमसे वादा ना करें कि हमारी बेटी को खुश रखेंगे… नहीं तो केतकी इस घर में ही रहेगी ।” रमा ने कहा

उधर शादी से लौट कर जब सब आए तो उन्हें केतकी नहीं दिखी तब सबने मुनिया से पूछना शुरू किया…

मुनिया ने बात ऐसे कही जो इन लोगों के पक्ष में रहे और वो मान भी जाए ….

“साब बहुरानी की तबियत बहुते ख़राब होए रहे . …अस्पताल वालन ने महँगी दवाइयाँ लिख दियो…अब हमार पास तो रहे ना इतना पइसा….बहुरानी से कहनी अपन नैहर (मायके) चल जा हुऐ इलाज करा… बहुरानी के पिता आकर ले गइन…अच्छा है ना साब वो चल गइल……आपन सब बहुते परेशान रहे ऊहे से …अब आपन सब आपन घर में चैन से रहा ..ओकरा हुंआ रहे दा….इक बात और कहे के रहे साब हमरा गाँव जाए के पड़ी…ऊ घर से फोन आइल रहे …ज़मीन ख़ातिर सबन झगड़ा करत रहन इहें से हमरा जाना ज़रूरी… बस आपन सब के आवे के इंतज़ार करत रही… तनिक हमार पगार दे दें तो हमहू जल्दी बस पकड़ निकल जाइब।”

सब एक दूसरे को देखने लगे ख़ैर मुनिया को पहले से जानते थे इसलिए पैसे देकर उसे जाने दिया ।

“ रोहन जरा पता तो कर केतकी के घर फोन करके?” रोहन की माँ ने हुक्म बजाया

रोहन ने फ़ोन किया तो उसके पिता ने फ़ोन उठाया…,” क्या हाल है रोहन बाबू…पता चला है आप सब को जेल जाने का बड़ा शौक़ है … जो हमारी फूल सी बच्ची पर कहर बरपाते रहे इतने दिनों तक … वो तो उसकी हालत देख समझ आ गया कही ना कही कुछ गड़बड़ है… बिटिया हमारी कुछ नहीं कह रही थी जोर देने पर सब बता दी ….अब आप कान खोल कर सुन लीजिए… हमारी बेटी अपने घर पर है…..अगर आप चाहते हैं आप लोग हँसी ख़ुशी से रहे तो हमारी बेटी को प्यार और सम्मान से लेकर जाइएगा नहीं तो क़ानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहिएगा ।”

रोहन कुछ बोल ना पाया वो डर कर फ़ोन रख दिया… जब ये सब बात उसने अपने घर पर कहीं तो सब केतकी को भला बुरा कहने लगे ऐसे में रोहन के पिता ने कहा,” समधी जी सही कह रहे हैं… केतकी ने अपना मुँह पुलिस या समाज के सामने खोल दिया तो हम सब आफत में पड़ जाएँगे… इसलिए जो भी करना सोच समझ कर… वैसे बेटा अपनी माँ के पदचिह्नों पर चलना बंद कर …उसको तो गाली में ही बात करना आता है… कभी कुछ सोचती भी है बोलने से पहले ….मैं परिवार का भला सोच चुप रहता गया इसलिए इसकी ज़बान ज़्यादा चलने लगी…

वहीं हाल केतकी बहू का है वो चुप रही तभी तुम लोग उसपर अत्याचार करते रहे…अभी भी समय है सँभल जाओ और जाकर उसे इज़्ज़त सम्मान के साथ ले आओ…आइन्दा  अंजाम के लिए सब तैयार रहो।” 

विचार विमर्श के बाद सब केतकी के घर पहुँचे… सबने हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी और केतकी से चलने को कहा 

“ मैं अब उस घर नहीं जाना चाहती जहाँ ना तो मेरी परवाह करते ना मेरे होने वाले बच्चे की…ऐसे घर का क्या ही भविष्य जहाँ एक माँ अपने बेटे को बहू को मारने के लिए उकसातीं रहती है….बेटी होगी बस इस शंका के आधार पर ही तानों की भरमार…पहला बच्चा है जो भी हो स्वस्थ हो ये नहीं बस लड़की का सुन कर सब परेशान…अगर लड़की ही हुई तो आप लोग हमारा जीना हराम कर देंगे… नहीं मुझे नहीं जाना आपके घर आपके साथ ।” केतकी शायद माता-पिता के घर पर खुद को मज़बूत मान कर बोल पड़ी 

“ मुझे माफ कर दे बहू … चल वो घर भी तेरा है तेरा ही रहेगा… मेरी मति मारी गई थी जो मैं अपने आपको घर की मुखिया मान कर सब पर हुक्म बजाती रही….कही कोने में ये डर भी था कहीं मेरा बेटा बीबी के चक्कर में अपनी माँ को ही ना सुनाने लगे इसलिए ये सब कर रही थी अब से ऐसा नहीं होगा…चल अपने घर।” सास ने विनती करते हुए कहा 

“ देख बेटा जो भी फ़ैसला तू करना चाहे कर … ये घर भी तेरा है और हम तेरे ही माता-पिता है…अगर तू जाना चाहे तो उस घर जा सकती है…अब तो इन्हें भी पता चल गया है हम सब जानते हैं कल को कोई भी ऊँच नीच हुई तो  ये अंजाम को तैयार रहेंगे ।” केतकी के पिता ने कहा 

केतकी पल भर को सोची और साथ जाने को तैयार हो गई इस शर्त पर की अब अगर कोई कुछ बोलेगा या मारेगा… तो वो चुप नहीं रहेगी…एक पल में घर छोड़ देगी और फिर जो भी होगा वो भुगतने को सब तैयार रहे ।

सबने उसकी सहमति दे दी ।

केतकी पुनः अपने पति के साथ उस घर आ गई जहाँ उसे कभी चैन नहीं मिला … पर अब बदलाव दिख रहा था…रोहन के पिता ने बहुत पहले भी पत्नी और बेटे को समझाया था कि केतकी के साथ दुर्व्यवहार मत करो …पर दोनों सुनते ही नहीं थे…इस बार जब उन्हें पता चल ही गया कि केतकी के घर वाले  भी सब जान गए हैं तो उन्होंने पुलिस और समाज का भय दिखाकर पत्नी और बेटे को सचेत कर दिया।

कहीं ना कही ये भी सच है कि लोग कितनी बार अपने कृत्य जब तक छिपे रहते हैं करने से बाज नहीं आते और जब जगज़ाहिर होने का या सज़ा मिलने का भय दिखता है तो बदलाव भी आ ही जाता है ।

अब केतकी को अपना घर अपना सा लगने लगा था… मुनिया जब लौट कर आई केतकी के चेहरे की रौनक देख खुश थी ।

समय पर केतकी ने बेटी को ही जन्म दिया और उसकी सास ने अस्पताल में सबका मुँह मीठा भी करवाया…।

दोस्तों यूँ तो कहानी कहानी ही होती है… थोड़ा सच थोड़ी कल्पना…अंत सकारात्मक करने की कोशिश की नहीं तो आजकल अलगाव कोई बड़ी बात तो है नहीं….

अब बात करे घर की तो हम कहीं ना कही यही देखते हैं कि बेटी की शादी के बाद मायके का घर पहले सा घर नहीं रह पाता और ससुराल वाला घर कभी उसका हो नहीं पाता…. अगर सब समझदारी दिखाए तो हम बेटियों के दोनों घर सदा उसके रह सकते हैं बस मायके से विदा करते वक्त ये कहना छोड़ दे अब वो ही तेरा घर है।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा…

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# घर

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