रोहित और उसकी पत्नी भावना गाजियाबाद में रहते थे। रोहित का छोटा भाई मोहित अपनी पत्नी और माता-पिता के साथ उत्तर प्रदेश के एक दूर
गांव में रहता था।
एक दिन रोहित के पास मोहित का फोन आया। उसने कहा -” भैया, दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर आ जाओ और मां को शहर ले जाओ। उनकी तबीयत बहुत खराब है किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देना। मैं मां को लेकर आना चाहता था लेकिन फसल काटने को तैयार है। रात भर रखवाली करनी पड़ती है इसीलिए छोड़ नहीं सकता। कहीं कुछ हो गया तो पूरी मेहनत बेकार हो जाएगी। पिताजी भी अब इतनी मेहनत नहीं कर पाते हैं। ”
रोहित-” देखो मोहित, तुम नहीं आ सकते, तो मैं भी नहीं आ सकता, ऑफिस से छुट्टी लेना कोई खेल नहीं है। मां को वहीं किसी वैद्य को दिखा दो। छुट्टी के लिए अर्जी लगा दूंगा जैसे ही छुट्टी मिलेगी तब आऊंगा। ”
मोहित को ऐसा दो टूक जवाब सुनकर बहुत बुरा लगा लेकिन वह थोड़ी देर में सब कुछ भूल कर अपने काम में लग गया। भावना ने यह सब कुछ सुना, उसे भी अपने पति का जवाब बहुत बुरा लगा।
फिर किसी एक दिन मोहित का फोन आने पर, रोहित उससे फोन पर झगड़ने लगा। वह बहुत गुस्से वाला था और कभी रोहित से, कभी अपनी पत्नी से, यहां तक की अपने ऑफिस के लोगों से और माता-पिता से भी लड बैठता था।
मोहित से किसी बात पर झगड़ा करने के बाद रोहित ने अपनी पत्नी भावना से कहा-” देखा तुमने कैसे बोल रहा था, छोटा है मुझसे, मुझे ही ज्ञान देता रहता है,अब देखना 5- 6 महीने तक मैं इससे बात ही नहीं करूंगा, अपने आप लाइन पर आ जाएगा।
फिर बहुत दिनों बाद मोहित का फोन आया और उसने कहा- भैया, मुझे अपनी बेटी कमली का 11वीं कक्षा में एडमिशन करवाना है, कुछ रूपयों की जरूरत है, क्या आप मदद कर देंगे, मेरे पास जब पैसे होंगे, लौटा दूंगा। ”
रोहित-” हां हां छोटे क्यों नहीं, बोल कितने पैसे चाहिए, अभी तेरे अकाउंट में भिजवाता हूं। ”
भावना ने सुना और वह हैरान रह गई की कुछ दिन पहले तो यह अपने भाई से लड़ रहे थे और अब लड़ाई भूल कर मदद करने लगे। चलो अच्छी बात है।
कुछ दिन बीतने पर, भावना की छोटी बहन दीप्ति का फोन आया। वह कभी-कभी फोन करती रहती थी। उसने भावना से कहा,-दीदी, आपसे कुछ कहना है। ”
भावना-” दीप्ति इतना क्यों हिचक रही है, बोल ना क्या बात है? ”
दीप्ति -“दीदी,इन दोनों मेरे पति का काम धंधा ठीक नहीं चल रहा, और इधर मेरा बेटा पीयूष कंप्यूटर कोर्स सीखना चाहता है, जीजा जी से पूछिए क्या वह मेरी मदद कर पाएंगे? हम थोड़े समय बाद आपका उधार लौटा देंगे।”
भावना ने उसे दिलासा दिया और अपने पति से बात की। रोहित ने दीप्ति की मदद करने से साफ इनकार कर दिया। भावना को रोहित पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि रोहित ने कहा-” दीप्ति से कहो, अपने भाई या माँ से जाकर मांगे। “जबकि रोहित को भी अच्छी तरह पता था कि पिताजी के गुजर जाने के बाद मां के हाथ में पैसे नहीं थे और उसके भाई की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। भावना को रोहित से ऐसी उम्मीद नहीं थी।
भावना ने न चाहते हुए भी रोहित से कहा-” अपने अपने भाई को तो फौरन कमली की पढ़ाई के लिए पैसे दे दिए थे और आप दीप्ति को देने से मना कर रहे हो। वह उधार मांग रही है वापस कर देगी। आप अपने भाई और मेरी बहन में फर्क क्यों कर रहे हो? ”
रोहित-” इस घर में कमाकर मैं लाता हूं, इसीलिए मैं जिसे चाहूं उसे पैसे दूं। अगर तुम काम कर लाती, तो होती तुम्हारी मर्जी, तुम्हारा फैसला। अब मेरी मर्जी और मेरा फैसला चलेगा। ”
भावना-” मैंने तो कभी तेरा मेरा नहीं किया। आप हमेशा तेराभाई,तेरी बहन तेरी मां, जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी करते हो, लेकिन मैंने कभी भी किसी रिश्तेदार में फर्क नहीं किया।
मैं सास ससुर को हमेशा माता-पिता का दर्जा दिया और मोहित को छोटा देवर नहीं,भाई समझा और क्या आप यह भी भूल गए की दीप्ति ने हमारे दोनों बच्चों की पैदाइश के समय हमारा कितना साथ दिया था। अगर हमने उसकी मदद कर दी तो कौन सी बड़ी बात है। उसने अपना समझ कर ही तो हमसे कहा है। ”
फिर भी रोहित ने दो टूक जवाब दे दिया। तब भावना ने यह फैसला लिया कि मैं दीप्ति की मदद जरूर करूंगी। जब तुम लड़ाई होने के बावजूद अपने भाई की मदद से पीछे नहीं हटे तो मैं अपनी बहन की मदद क्यों नहीं कर सकती। तुम रुपए देना नहीं चाहते तो ना सही। उसने मन में सोचा कि शादी में मुझे मां ने सोने की झुमकियां दी थी
और जितना उसके बस में होता है उतना कुछ ना कुछ देती रहती है। वह पैसे मैं अलग रखती जाती थी, यही सोचकर कि ना जाने कब काम आ जाए, आज वही मेरा धन मुझे काम आएगा। तब भावना ने वो छोटी सी झुमकियां बेची और जो उसने ₹20000 जोड़े थे, सब कुछ मिलाकर 50000 हुआ, वह उसने अपनी बहन के बैंक अकाउंट में भिजवा दिया।
दीप्ति ने अपनी बहन को धन्यवाद के लिए फोन किया, तब रोहित ने उससे पूछा कि वह धन्यवाद क्यों बोल रही है। भावना ने उसे पूरी बात बताई, तो वह उसे पर चिल्लाने लगा,तुमने किस से पूछ कर यह सब किया।
भावना ने कहा-” मैंने जो कुछ भी दिया है, अपनी मां का दिया हुआ,अपनी बहन को दिया हैयह मेरा फैसला था, और उसमें आपका ₹1 भी नहीं था। आप अपने रिश्तेदारों के लिए मदद का हाथ बढ़ा सकते हो तो मैं क्यों नहीं, मैंने तो आपको कभी मन नहीं किया, तो आप कैसे मना कर सकते हो।
रोहित के पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि उसे लग रहा था किभावना सही कह रही है।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली