कमला देवी के2 बेटे थे, बड़ा बेटा अनिल, प्राइवेट कंपनी में टेक्नीशियन था और छोटा बेटा सुनील, बड़ी कंपनी में इंजीनियर था। अनिल का एक बेटा था अमन, जो कमला देवी का लाडला था। सुनील के घर जब बेटी पैदा हुई तो सुनील ओर कमला देवी दोनो नाखुश थे। लड़की पैदा होने के बाद, अनिल ओर अमन तो कमला देवी के ओर करीब आ गए। सुनील वैसे भी कम बोलता था, पर बेटी पैदा होने के बाद ओर भी गंभीर हो गया
अमन ओर सुमन भी समझदार होने लगे थे। सुमन के साथ हमेशा सौतेल व्यवहार होता था और वो अपने पिता और दादी के प्यार को तरसती थीं। सुमन को समझने और समझाने वाली सिर्फ उसकी मॉ थी।
सुनील भी अपनी पत्नी ओर बेटी से ज्यादा अपने भतीजे को प्यार करता था। कमला देवी के पति के निधन के समय सुनील10th स्टैंडर्ड में था और अनिल नोकरी करने लगा था। सारा परिवार पैतृक मकान में एक् साथ रहते थे. सुनील के नोकरी लगने के बाद घर के हालात सुधरने लगे।
सुनील ने लोन लेकर घर को तोड़कर, 5 कमरों का नया मकान बनाया, साइड में 4 दुकानें भी बनवाई। अमन ने 12th पास करली पर कहीं एडमिशन नही मिला। सुनील ने डोनेशन देकर इंजिनीरिंग कॉलिज में एडमिशन करवाया। अमन पढ़ाई में कुछ खास नही था, इसलिए हर साल बैक लगती रही
और वो अपनी डिग्री पूरी नही कर पाया। कुछ समय बाद सुनील का ट्रांसफर हो गया और वो सरिता ओर सुमन को लेकर दूसरे शहर चला गया ओर मॉ- भाई को बराबर पैसे भेजता रहता। 3 साल बाद सुमन ने भी 12th अच्छे नंबरों से पास कर ली और इंजीनियरिंग में सलेक्शन भी हो गया परन्तु सुनील ने मना कर दिया,
ये कहते हुए कि लड़की की पढ़ाई पर पैसा खर्च करना बेवकूफी है, शादी के लिये जमा करलो, यही बेहतर है। सुनील के आगे सुमन ओर सरिता की एक न चली। सुमन पढ़ाई में तेज थी, उसने बी कॉम में एडमिशन ले लिया। डिग्री के बाद एम बी ए में एडमिशन ले लिया और कॉम्पिटिशन की भी तैयारी शुरू कर दी।
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एम बी ए करते ही पहले अटेम्प्ट में बैंक में सेलेक्शन हो गया। नोकरी दूसरे शहर में थी, इसलिये सरिता भी साथ मे शिफ्ट हो गई। कुछ साल बाद सुमन की शादी हो गई और वो अपने पति के साथ चली गई। अनिल रिटायर हो चुका था और सुनील नोकरी पर था। उम्र के साथ अनिल की मॉ की सेहत बिगड़ने लगी ओर एक दिन वो दुनिया से चल बसी।
मॉ का किर्या कर्म करने के बाद सुनील वापस नोकरी पर चला गया। जब सुनील रिटायर हुआ तो अनिल को बताया कि मैं आ रहा हूँ, कमरे वगैरह में साफ सफाई करवा देना। अनिल ने साफ कह दिया कि ये मेरा घर है, तुम अपना कोई और इंतजाम कर लो, क्योंकि मॉ ने मकान मेरे नाम कर दिया है।
सुनील भाई से मिलने उसके घर गया, तो भाई से ज्यादा भतीजा अमन चिल्ला रहा था, आज तो यहाँ आ गए, दुबारा मत आना वरना बहुत बुरा होगा। सुनील परेशान रहने लगा, सारी जमा पूंजी मकान बनाने और भतीजे को पढ़ाने में लगा दी। अब दूसरा मकान बनाने की हिम्मत न थी अतः छोटे से किराये के मकान में रहने लगे।
सुनील को बहुत पछतावा हो रहा था, कि क्यों मैंने अपनी बेटी के भविष्य को नजर अंदाज करके भतीजे का भविष्य बनाने मे अपना सब कुछ लगा दिया, सिर्फ इसलिए कि वो लड़का है, घर का चिराग। आज सुनील को अपनी गलती का अहसास हुआ जब घर के चिराग से ही हाथ जल गए।
यही चिंता में सुनील की सेहत बिगड़ने लगी। बेटी सुमन ने अपने मॉ पिताजी को अपने पास रहने के लिये बुलाया पर सुनिल अपने किये पर बहुत शर्मिंदा था ओर नज़रे मिलाने से डर रहा था। उसकी हालत बिनो दिन बिगड़ती जा रही थी। फिर एक बिन बेटी दामाद आये और इलाज करवाने के बहाने मॉ पिता जी को साथ ले गए। इलाज ओर सेवा से उसकी सेहत में सुधार होने लगा। अब सुनील ओर सरिता, सुमन के साथ ही रहते है और बहुत खुश हैं।
उधर अनिल की भी उम्र हो गई थी, ओर वो भी एक दिन इस दुनिया को छोड़कर चला गया। अनिल के जाने की बाद अमन ओर उसकी पत्नी ने अपनी ही मॉ को घर में नोकरानी बना दिया।
कमला देवी ओर सुनील जैसे न जाने कितने मॉ बाप है जो बेटे के प्यार में अंधे होकर बेटियों को उनकी खुशियों से दूर रखते हैं, ओर यहीं बेटियां, हर अच्छे बुरे वक़्त में मॉ पिताजी से साथ खड़ी रहती है। वही अमन जैसे बेटे सारी उम्र अपने मॉ बाप के लाडले बनकर ऐश करते हैं ओर उनके बुरे वक्त में अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते है।
मेरी हर मॉ बाप से गुजारिश है कि बेटियो को भी उतना ही प्यार और मान सम्मान दे, जितना बेटो को देते हैं।
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
5 Apr.25