मेरा अपना घर – डॉ संगीता अग्रवाल : hindi stories with moral

hindi stories with moral :

ये श्रेया को क्या हो गया है आजकल,बहुत उखड़ी सी रहती है..आपसे कोई बात हुई क्या भैया?

विनीता ने अपने देवर रोहित से पूछा।

हां…महसूस तो मैंने भी किया था पर फिर सोचा कि शायद डिपार्टमेंटल कोई टेंशन होगी उसे ..देखता हूं किसी दिन बात करूंगा।

रोहित और श्रेया की शादी हुए कुछ महीने ही बीते थे अभी,दोनो जॉब करते थे तो जैसे ही घूम कर लौटे ,अपनी अपनी सर्विस में बिजी हो गए लेकिन कुछ दिनो से श्रेया बहुत चिड़चिड़ी हो गई थी।

वो लोग संयुक्त परिवार में रहते थे,रोहित की दादी,मम्मी पापा और भाई भाभी सब साथ ही थे।बहुत अच्छा एडजस्टमेंट चल रहा था उनका पर अचानक न जाने क्या हुआ था श्रेया को।

एक दिन रात को खाने के बाद टहलते हुए,रोहित ने पूछा था श्रेया से…कुछ परेशान दिखती हो आजकल…कोई बात हुई किसी से?

नहीं तो…लेकिन हां…तुम कह रहे थे न एक ज्वाइंट अकाउंट खोलने को लेकिन मेरा विचार बदल गया है अब, मै अपना अकाउंट सिंगल ही रखूंगी।

क्या??क्या कह रही हो?हसबैंड वाइफ तो सभी ज्वाइंट अकाउंट रखते हैं…इसमें हर्ज़ क्या है?

जब अकाउंट एक हो सकते हैं तो एक का घर दूसरे का क्यों नहीं हो सकता…वो गुस्से से बोली।

खुल कर बताओ श्रेया…क्या हुआ?क्या घर में मम्मी पापा,दादी भाभी किसीने कुछ कहा तुमसे?प्लीज बताओ ना…।

थोड़ी देर में ही वो टूट गई,ये कैसा समाज है हमारा रोहित…लड़कियों का क्या कोई घर नहीं होता,उनके मां बाप उन्हें ये कह कर बड़ा करते हैं…अपने घर जायेगी तो ऐसा करेगी?तेरा घर वो ही है बेटी,ये नहीं,ये तो तेरे भाई का घर है…ससुराल आती है तो सब गुस्से में कहते हैं…तेरे बाप का घर नहीं है ये जो इतनी मौज चलेगी यहां…वैसा ही करना होगा यहां जैसा हम चाहते हैं…कल को बेटा होगा,उसका घर परिवार हो जायेगा।

लेकिन मेरा अपना घर कब होगा?कोई भाई का घर,कोई सास ससुर का,कोई पति का और कोई बेटे का लेकिन मेरा घर हमेशा उधारी का

ही होगा क्या?

अब समझ आया कि तुम अपना सिंगल अकाउंट क्यों चाह रही हो? ओह!तुम्हें मां ने कुछ कहा है?कितनी बार कहा है उनकी बात दिल पर न लिया करो।रोहित ने प्यार से उसे समझाया।

नहीं जी…अब तो मैंने उनकी बात दिल पर ले ही ली।श्रेया ने बच्चों की तरह जिद की।

देखो विनीता भाभी भी तो यहीं रहती हैं,मां उन्हें भी कुछ कुछ कहती रहती हैं पर वो तो बुरा नहीं मानती।

उनकी मजबूरी है इसलिए बाकी उनका वश चले तो आज आपकी मां का घर छोड़ कर चली जाएं वो।श्रेया ने विस्फोट किया ये बताकर।

क्या…?वो ऐसा कहती हैं?रोहित आश्चर्य से बोला।

वो कहती हैं,मेरे हाथ बंधे हुए हैं,न मैं कुछ कमाती हूं और न मेरे पति की अच्छी आय है नहीं तो मै इस नर्क में कभी नहीं रहती,अम्मा जी हर समय ताने देती हैं…मेरा घर!मेरा घर!चले जायेंगे यहां से तो भूत नाचेंगे इस घर में…फिर रह लेंगी वो अकेले।

तुमसे क्या कहा उन्होंने?मुझे बताओ,रोहित बोला।

नहीं..फिर मुझ पर आरोप लगाए जायेंगे कि मै आपके कान भरती  हूं इसलिए जो करना है, मै खुद करूंगी।श्रेया का गुदसाभी भी शांत नहीं हुआ था।

और तुम सिंगल अकाउंट रखकर घर खरीद लोगी क्या?जानती हो घर कितने मंहगे हैं आजकल…क्यों बच्चो जैसी जिद करती हो?

देखिए!ये पैंफलेट्स…मैंने कई ब्रोकरों से बात की है,वो हमें किश्तों पर सस्ते में मकान दिलवा देंगे…ऐसे माहौल में मेरा दम घुटता है रोहित…मै जॉब करती हूं,घर में भी खटती हूं,कल को हमारे बच्चे होंगे,उनके सामने इस तरह मेरा अपमान होगा तो वो क्या सीखेंगे?

तुम्हारी सब बातें सही हैं श्रेया पर ऐसे घर नहीं छोड़े जाते…मै बात करता हूं मां से,प्लीज मुझे एक मौका तो दो।

अगले दिन,रोहित ने अपनी मां और दादी से कहा कि वो और श्रेया एक मकान खरीद रहे हैं अगले नौ रात्रि तक वहां शिफ्ट कर लेंगे।

ऐसा क्यों बेटा? कमाऊ पूत और उसकी घरवाली जो कमाने के साथ घर के काम भी करती थी,के जाने के नाम,उनके पसीने छूट गए।

लेकिन तुम्हें यहां कोई समस्या है तो बताओ बेटा…उसकी मां ने विनती करते पूछा।

श्रेया को दूर पड़ती है ये जगह अपने ऑफिस से,बस इसलिए…

पर कल को परिवार बढ़ेगा तो उसकी देखभाल कौन करेगा?अपनी अहमियत दिखाती मां बोलीं।

भाभी,भैया भी साथ ही चलेंगे हमारे मां…भाभी देख लेंगी वो सब काम।

ओह!तो पूरा इंतजाम कर के आया है तू…दादी बोलीं,लेकिन रोहित की मां कुछ समझ गई थीं,वो ढीले पड़ते बोलीं…

कोई बात हुई है रोहित?कुछ नाराजगी लग रही है तेरी बातों में, बहू ने कान भरे हैं तेरे?

फिर बहू को दोष!!कब तक आप हर बात के लिए उसे जिम्मेदार ठहराती रहेंगी मां!मत भूलिए,आप भी किसी दिन यहां बहू बन के ही आई थीं,क्यों एक स्त्री,दूसरी स्त्री की इतनी दुश्मन हो जाती है?

ये तो जोरू का गुलाम हो गया रे बहू!दादी चिल्लाते हुए बोली।

बस करो अम्मा!तभी रोहित के पिता वहां आए,देख रहा हूं काफी समय से आपका व्यवहार न तो बड़ी बहू के साथ ठीक है और न छोटी के साथ…और  कमला तुम भी..

इनकी तरह ही बन गई?को तुमने जवानी में भुगता ,जरूरी है वो अपनी बहुओं को भी भुगतवाओ?

मेरी गलती थी,मुझे माफ कर दीजिए।कमला ने सिर झुका कर कहा।मुझे बहुओं को ऐसे नहीं कहना चाहिए था,आपने मेरी आंखें खोल दी,अगर ये बच्चे हमारे साथ न रहे तो इस घर का मैं क्या करूंगी?बच्चे हैं तभी रौनक है,हम हैं।

दूर खड़ी,श्रेया मुस्करा के विनीता को देख रही थी।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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