मायकेवालों को बुला लो!! –  कनार शर्मा 

बहू दिन चढ़े घंटो बीत गए एक कप चाय की प्याली ना मिली सो गई हो या भूल गई हो… घर में बूढ़े सास ससुर भी हैं और कॉलेज जाते ननंद, देवर भी सभी तुम्हारी राह देख रहे हैं जल्दी करो… विमला देवी बोलते हुए बहू पूजा के कमरे में दाखिल हुई।

आंखें मसलते हुए पूजा बोली “मांजी सिया को बहुत तेज बुखार चढ़ गया है” मैं रात भर सो नहीं पाई सर पर पट्टियां करती रही। अभी विवेक जी दवाइयां लेकर आए हैं एक ढक्कन पिला दी है। एक मदद चाहिए आप या निशा दीदी इसके पास बैठकर ठंडे पानी की पट्टी करें तब तक मैं रसोई का काम खत्म कर लेती हूं।

हैं!! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया क्या???? निशा यहां बैठेगी या आपने कॉलेज में जाकर पढ़ेगी लिखेगी और मैं यहां कमरे में बैठकर क्या करूंगी पूजन-पाठ, मंदिर कौन करेगा?? और तुम्हारे बाबूजी के सुबह-सुबह के प्रवचन कौन सुनेगा??? चलो छोटी बच्ची है सो रही है तुम अपना काम निपटा लो फिर आकर पट्टी करती रहना… ऐसे मां बेटी के बीमारी के बहाने आप जीवन में चलते ही रहेंगे।

 मांजी ये आपकी पोती है… आप कैसे अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेर सकती हैं थोड़ी दया कीजिए मैं जल्दी ही सारा काम निपटाकर आती हूं तब तक आप इसके पास बैठी है वरना डरकर चिल्लाने लगेगी…!!

बहु बच्चे हमने भी पाले हैं मेरी एक बात समझ में नहीं आती जरा सा सर्दी जुखाम, बुखार हुआ नहीं कि तुम घर, रसोई की जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करती हो…अरे बच्चे हैं हर चौथे पांचवें दिन कुछ ना कुछ होता ही रहता है। तो क्या हम इनके पास ही बैठ जाएंगे और ज्यादा है ना तो अपने मायके से अपनी बहन को बुला लो मगर हमसे कोई उम्मीद ना रखना। अब जाओ जाकर रसोई संभालो… पूजा की आंखों में आंसू आ गए आखिर वह भी एक मां थी अपने बच्चे को दर्द में तड़पता छोड़ कैसे चली जाती????? फिर भी ना चाहते हुए भी पूजा रसोई में काम निपटाने चली गई कहने को घर में इतने सारे लोग हैं मगर काम सिर्फ बहू के हिस्से में आता है क्यों??????

और जब भी मदद चाहिए हो तो अपने मायके वालों को बुला लो??? ऐसा नहीं है कितनी बार उससे बुलाना भी पड़ा है… पूजा के माता पिता पास के गांव में रहते है दो बहने और एक छोटा भाई है सभी पढ़ रहे हैं। जब भी उसे ससुराल से मायके जाना होता तो सास विमला जी कहती अपने पिताजी,भाई को बुला लो बेटियां मायके बिना लिवाए बुलाए नहीं जाती…मगर दूसरा पहलू यह था कि हमारा खर्चा नहीं होना चाहिए…ससुराल से मायके आने जाने का सारा खर्चा पिता और भाई ही उठाते साथ में जब भी लड़की की ससुराल आते गांव से ताजे फल, सब्जियां, दाल चावल फ्री में मिल जाते।

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सात माह की गर्भवती हुई तो बोल दिया अपनी बहन को बुला लो बेचारी अपनी बहन की देखभाल कम पूरे घर का काम करती रसोई बनाती सास और ननद दोनों मिलकर उस पर हुकुम जमाती चलाती।

सिया होने के चार महीने तक उसकी मां ने ससुराल आकर उसकी देखभाल की सिया की मालिश नहलाना उसकी लंगोटिया बदलती तो दूसरी तरफ सास बस अपने घुटनों को लेकर बैठी रहती… और उन्हीं की हमउम्र मेरी मां सुबह से शाम तक हम मां बेटी की देखरेख में लगी रहती।

जल्दी-जल्दी खाना बनाते हुए अचानक से मोबाइल की घंटी बजी उसने फोन उठाया तो देखा बहन वंदना थी जो बोली “दीदी रविवार को आरती और सुलभ की ओलंपियाड की परीक्षा है” हम लोग अगर आपके घर शनिवार की रात को आ जाए तो हमें बड़ी आसानी होगी सेंटर तक पहुंचने के लिए…!!

अपनी बहन की बात सुन अचानक आरती को कुछ ख्याल आया और वह बोली शनिवार को क्यों अभी 1 घंटे के अंदर तुम सब लोग मेरी ससुराल आ जाओ और सुन मां बाऊजी को भी लेकर आना उन्हें बहुत दिन हो गए छुटकी से मिले हुए… उसकी तबीयत भी ठीक नहीं है तुम सब आओगे तो उसे अच्छा लगेगा… अच्छा सुन एग्जाम वाली बात मेरे घर में किसी को पता ना चले!!

मायके में आरती की बहुत पूछ परख थी सभी भाई-बहन उसे बहुत मानते थे उसका आदेश कभी नहीं टालते इसीलिए वंदना ने हां में हां मिला कर फोन रख दिया और पहुंच गए सभी लोग उसकी ससुराल…..!!

अचानक अपनी बहू के मायके वालों को देख विमला देवी सकपका गई अरे आप लोग बिना बताए….??????

तभी पूजा रसोई से भागती हुई आई… आ गए आप लोग अच्छा हुआ अरे वंदना जा सिया को ठंडे पानी की पट्टियां आप तू रख ले आरती सुलभ तुम लोग निशा पूरब के कमरे में अपना सारा सामान रख लो पढ़ना शुरू कर दो मैं तब तक चाय नाश्ता बनाती हूं…. और मां तुम आराम से टीवी पर आस्था चैनल पर भागवतजी सुनो!!!!

सबके सामने विमला देवी कुछ नहीं बोली मगर अपनी बहू के पीछे पीछे रसोई पर पहुंची और बोली “बहु ये क्या तमाशा है??? तुम्हारे मायकेवाले यहां क्यों आए हैं????

 मांजी थोड़ी देर पहले ही तो आपने कहा था कि अपनी बहन को बुला लो मैंने बुला लिया..!!!

 अरे मैंने तो ऐसे ही बोल दिया था और बहन को बुलाना था तो बहन आती यह पूरा खानदान क्यों आ गया?????

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अब मैं क्या जानू मांजी आ गए तो भगा तो सकती नहीं हूं कुछ ज्यादा ना बोल चुपचाप चाय, पकौड़े बनाने लगी…!!

शाम को सब खाना खा रहे थे तो देखा पूजा के पिता जी शंकर जी दाल चावल के बोरे, झोले भरी हरी ताजी सब्जियां,फल लिए चले आ रहे थे।

 बहु तुम्हारे बाबूजी भी आने वाले थे तुमने बताया नहीं???

 मांजी मुझे भी नहीं पता था अब आ गए हैं तो खाना खिला दूं !!

विमला जी बहुत ज्यादा परेशान थी मगर सबके सामने क्या कहती और फिर इतने सारे बोरे झोले देखकर कहीं ना कहीं लालच वश…. यह सोच चुप रह गई कल तो वापस लौट ही जाएंगे।

रात में पूजा विमला सासू मां के कमरे में आकर बोली “मांजी मेरी मां आपके साथ सो जाएंगी और बाबूजी का बिस्तर मैंने अपने पिताजी के साथ लगा दिया है वे लोग हॉल में सो जाएंगे”…!!

विमला जी के पति गुस्से से उनकी तरफ घूर रहे थे यह क्या लगा रखा है अब मैं अपने ही घर में हॉल में सोऊंगा????? यह लोग यहां क्यों आए हैं??????

अब कैसे बताएं कि इन्हीं के कहने पर आए हैं….जी…जी आज रात की बात है मना मत कीजिए डरती हुई अपने पति से बोली क्योंकि उन्हें पता था दिवाकर जी बहुत गुस्से वाले हैं मगर घर में समधी लोग होने के कारण चुप रह गए।

अगले दिन सभी आराम से टहल रहे थे जिसे देख विमला जी भुनभुनाते हुए पूजा से बोली बहू दोपहर होने आई तुम्हारे मायकेवाले जाते क्यों नहीं???????

तभी वंदना और आरती तैयार होकर आ गई पूजा दीदी हम जीजू के साथ शॉपिंग करने जा रहे हैं उन्होंने हमें मॉल में ले जाने का वादा किया है।

 पूजा तो बहुत खुश थी… हां जरूर जाओ मगर सासू मां का मुंह फूल गया इन्हें शर्म नहीं आती मेरे बेटे की जेब काटते हुए घर के दामाद से भला कोई पैसे खर्च करवाता है?????

रात को सूरज अपने साले और सालियों के साथ शॉपिंग कर लौटे तो विमला जी बोली “बहुत देर कर दी चलो सब लोग खाना खा लो”…!!

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 नहीं आंटी जी हम लोग तो खाना खाकर आए हैं आप लोग खा लीजिए बोल अपने अपने कमरे में चले गए।

सूरज बहुत गुस्से में था धीरे से अपनी मां से बोला मां जरा मेरे साथ चलिए तो… उन्हें अपने साथ छत पर बरसाती वाले कमरे में ले गया और चिल्लाते हुए बोला मां ये क्या लगा रखा है तुमने??? 

विमला जी आश्चर्यचकित होकर बोली बेटा मैंने क्या किया????? जो किया है तेरी बीवी ने किया है उसे जाकर बोल….!!

ऐसे कैसे आप ही तो पूजा को हमेशा कहती है ना अपने मायके वालों को बुला अपने मायकेवालों को बुला… इस बार भी आपके कहने पर ही सभी आए हैं… आपको पता है लड़कियों ने सूट, टॉप और साले ने शर्ट वो भी इतने बड़े शोरूम से… मैं तो बहाना बनाकर बाहर बैठा रहा कि मेरा सरदर्द कर रहा है मगर उन्होंने पेमेंट के लिए तो मुझे ही बुला लिया मालूम है पूरे 6000 का फटका लगा है मुझे…!!!

पीछे से दिवाकर जी भी आ गए सही कह रहा है तेरी मां की वजह से मेरा तो कमरा ही छिन गया है… समधी जी के खर्राटे तो तेरी मां की खर्राटों से भी बुरे हैं सारी रात करवट बदलते निकल जाती है। भाई और बहन भी गुस्से से बोले हमें भी प्राइवेसी नाम की चीज नहीं है सभी सहारा समय दखल देते रहते हैं।

मां सबसे पहले तो इन लोगों को रफा-दफा करो… आपके थोड़े से लालच के चलते हम सभी बहुत परेशान हैं… आप और निशा उसकी मदद कर सकते हैं फिर भी अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए उसकी बहन को बुलाते हैं भाई और पिता को बहाने से गांव से मिलने वाले चीजों के लालच में बार-बार बोल पाते हैं मगर अब और नहीं आगे से कुछ भी हो पूजा के मायकेवालों को यहां आने को ना कहना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा… रायता आपका फैलाया हुआ है और साफ़ भी आप करेंगी।

वाह तुम सब तो ऐसे बोल रहे हो जैसे मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा मैं जान रही हूं रसोई का सारा राशन खत्म हो रहा है, समधन जी सारा दिन आस्था चैनल देखती रहती हैं क्योंकि सास भी कभी बहू थी देखना तो दूबर हो गया है और तो और पूजा को ताने भी नहीं दे पा रही हूं… मुझसे बुरी स्थिति में तो कोई भी नहीं होगा लेकिन आज ही पूजा को बोलती हूं इन लोगों को वापस भेजने का…!!





रात में सबके सोने के बाद उन्होंने पूजा से कहा बहू इन सबका गांव जाने का कब का टिकट है…!!

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मांजी मेरी मां तो कह रही थी आरती और सुलभ का एडमिशन यही किसी कॉलेज में करवा रही है। वो दोनों मेरे साथ ही रहेंगे जिससे मुझे जब भी जरूरत पड़े तुरंत मेरी मदद करने के लिए हाज़िर रहेंगे..!!

 इतना सुनते ही विमला जी का माथा घूम गया… अरे हम क्या मर गए हैं तुम्हारी मदद करने के लिए??? माना पिछली कुछ गलतियां हो गई लेकिन देखो बहू हम तुम्हारे अपने हैं क्यों अपने मम्मी पापा और भाई बहनों को परेशान करना???? यहां पर भी तो तुम्हारी ननंद, देवर, मैं हूं ना आइंदा से अपने मायकेवालों को बिना बात के मत बुलवाना… मेरा मतलब है लड़की के माता-पिता को बेटी की ससुराल में आकर रहना शोभा नहीं देता बूढ़े पुराने लोग कहा करते थे!! हां मगर कोई शादी, फंक्शन, न्यौता हो तो खूब आए मनाई थोड़ी ना आखिर वह तुम्हारे घरवाले हैं…एक सांस में सब कुछ बोल गई..!!

जैसा आप ठीक समझें मांजी!! वही होगा जो आप चाहती हैं सुन विमला जी के कलेजे में ठंडक पड़ गई के समधी लोग वापस लौट जाएंगे।

असल में पूजा तो बस उन्हें सबक सिखाना था ताकि उसकी सास को अपनी गलती का एहसास हो आखिर बहू ससुरालवालों की जिम्मेदारी है फिर मायकेवाले आकर बार-बार उसकी मदद क्यों करेंगे…???? सभी लोग रविवार को परीक्षा के बाद वापस गांव चले गए उनका तो वैसे भी यहां बसने का कोई इरादा ही नहीं था सिर्फ अपनी बेटी पूजा के कहने पर किया था जिसमें मायके वालों ने बखूबी साथ दिया यह भी एक बहुत बड़ी बात है।

 जो की शायद ही संभव हो कई जगह मायकेवाले बेटियों की तकलीफ समझते कहां है…उन्हें तो अपना ही दुख इतना बड़ा लगता है कि लड़की की दुख तकलीफ दिखाई नहीं देती…!

आशा करती हूं मेरी काल्पनिक रचना आपको जरूर पसंद आएगी धन्यवाद!!

 आपकी सखी

 कनार शर्मा 

(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)

 

1 thought on “मायकेवालों को बुला लो!! –  कनार शर्मा ”

  1. कहानी तो अच्छी होती है मगर अंत मे कुछ खास नही होता जिससे ये पता नही लग पाता कि आखिर जिसके लिए कहानी लिखी गयी है उसको क्या सबक मिला या उसकी अपनी हरकतों में कुछ बदलाव हुआ या नहीं कुछ स्पष्ट नही होता है।

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