चारु की माँ का निधन पूरे परिवार के लिए एक गहरा आघात था। चारु और उसके भाई के लिए माँ का जाना एक ऐसा खालीपन था, जिसे कोई भर नहीं सकता था। अंतिम संस्कार और तेरहवीं के सारे संस्कार पूरे हो चुके थे। घर में अब सन्नाटा पसर चुका था। वह सन्नाटा जो हर किसी के दिलों में गूंज रहा था। चारु अपनी माँ के घर में बैठी, मायके की हर चीज को अपनी आंखों में समेट रही थी।
तेरहवीं के बाद, जब सब रिश्तेदार घर से विदा हो चुके थे, तो चारु ने भारी मन से अपने भाई से विदा लेने का निर्णय लिया।
“भैया, सब काम निपट गए। माँ चली गई… अब मैं चलती हूँ।”
उसके आंसू शब्दों को रोक रहे थे। उसकी आवाज कांप रही थी।
भाई ने अपनी छोटी बहन की आंखों में झांकते हुए कहा,
“रुक, चारु। अभी एक काम बाकी है। ये ले, माँ की अलमारी की चाबी। तू जो सामान चाहती है, ले जा। माँ की चीजों पर सबसे ज्यादा हक बेटी का होता है।”
वह चाबी चारु के हाथ में थमा देता है।
चारु ने चाबी को देखा और तुरंत उसे अपनी भाभी की ओर बढ़ा दिया।
“नहीं भाभी, ये आपका हक है। आप ही इसे खोलिये। माँ के सामान पर आपकी पहली जिम्मेदारी है।”
भाभी ने भाई की ओर देखा। भाई ने सहमति में सिर हिला दिया। भाभी ने भारी दिल से अलमारी खोली।
अलमारी में माँ के गहने, कीमती साड़ियां, और उनके जीवन की छोटी-छोटी यादें रखी हुई थीं। भैया ने कहा,
“चारु, ये देख, ये माँ के गहने और कपड़े हैं। तुझे जो चाहिए, ले जा। माँ की चीजों पर बेटी का हक सबसे ज्यादा होता है।”
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लेकिन चारु की नजरें गहनों या कपड़ों पर नहीं थीं। वह चुपचाप खड़ी रही। फिर उसने अपनी नजरें उठाईं और कहा,
“भैया, मैंने तो हमेशा यहाँ इन गहनों और कपड़ों से भी ज्यादा कीमती चीज देखी है। मुझे तो वही चाहिए।”
भाई और भाभी एक-दूसरे को देख रहे थे।
“चारु, हमने माँ की अलमारी को हाथ तक नहीं लगाया। जो कुछ भी है, वो तेरे सामने है। तू किस कीमती चीज की बात कर रही है?” भैया ने आश्चर्य से पूछा।
चारु ने उनकी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहा,
“भैया, इन गहनों और कपड़ों पर तो भाभी का हक है। उन्होंने माँ की सेवा बहू बनकर नहीं, बेटी बनकर की है। मुझे तो वो कीमती चीज चाहिए, जो हर बहन और बेटी अपने मायके से चाहती है।”
चारु की बात सुनकर भाभी की आंखों में आंसू आ गए। वह समझ गईं कि चारु को क्या चाहिए।
“दीदी, आप फिक्र मत कीजिये। माँ के जाने के बाद भी आपका मायका हमेशा सलामत रहेगा। भले ही माँ हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन यह घर हमेशा आपका है। लेकिन फिर भी माँ की निशानी के रूप में कुछ तो ले लीजिए।”
चारु उनकी बात सुनकर रो पड़ी। वह अपनी भाभी के गले लग गई और बोली,
“भाभी, जब मेरा मायका सलामत है, मेरे भाई और भाभी के रूप में, तो मुझे किसी निशानी की जरूरत नहीं है। फिर भी, अगर आप कहती हैं, तो मैं अपने मायके की हंसते-खेलते तस्वीर ले जाना चाहूंगी। यह तस्वीर मुझे हमेशा एहसास कराएगी कि माँ भले ही नहीं हैं, लेकिन मेरा मायका सलामत है।”
चारु ने पास रखी एक तस्वीर उठाई। उस तस्वीर में माँ, पापा, भैया, भाभी, और बच्चों के साथ चारु खुद भी थी। एक खुशहाल परिवार की वह तस्वीर अब उसके लिए किसी खजाने से कम नहीं थी।
माँ की अलमारी में रखा हर सामान एक कहानी कह रहा था। उनकी पसंदीदा साड़ी, जो त्योहारों पर वह पहनती थीं। उनकी चूड़ियां, जो हर सुबह उनके हाथों में खनकती थीं। उनकी डायरी, जिसमें उनकी लिखी कविताएं और बातें छिपी थीं।
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चारु ने अलमारी को देखा। उसमें सिर्फ सामान नहीं था, उसमें उसकी माँ की यादें थीं। लेकिन फिर भी, चारु को पता था कि असली निशानी गहने या कपड़े नहीं हो सकते। असली निशानी वह प्यार, अपनापन और मायका था, जो उसे अपने भाई और भाभी के रूप में मिला था।
चारु की भाभी ने न केवल माँ की सेवा की थी, बल्कि पूरे परिवार को जोड़कर रखा था। उन्होंने हर त्योहार, हर मुश्किल समय में घर को संभाला था। माँ के बीमार होने के बाद से भाभी ने उनका ख्याल इस तरह रखा था, जैसे वह उनकी अपनी माँ हों।
चारु ने भाभी के प्रति अपनी कृतज्ञता जताते हुए कहा,
“भाभी, आपने माँ की जितनी सेवा की, वह मैं कभी नहीं कर पाई। आप ही माँ की असली निशानी हैं। अगर माँ आज देख रही होंगी, तो वह आप पर गर्व कर रही होंगी।”
भाभी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा,
“दीदी, यह घर आपका है। मैं तो बस माँ की सेवा करके अपना फर्ज निभा रही थी। लेकिन आपने जो कहा, वह मेरे लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद है।”
चारु के भाई ने भी अपनी बहन से वादा किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, उसका मायका हमेशा सलामत रहेगा।
“चारु, माँ के जाने से कुछ नहीं बदलेगा। यह घर तुम्हारा है। तुम जब चाहो आ सकती हो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
चारु को अपने भाई की बातों में वही सुरक्षा महसूस हुई, जो माँ के रहते हुए महसूस होती थी।
विदाई की घड़ी आ गई थी। चारु ने सबके पैर छुए। जब वह अपनी भाभी के पास पहुंची, तो वह उनसे गले लग गई।
“भाभी, आप मेरी माँ जैसी हैं। मुझे पता है कि माँ की तरह आप भी मेरा मायका हमेशा संभालेंगी।”
भाभी ने उसे गले लगाते हुए कहा,
“दीदी, यह घर आपका है। माँ की तरह मैं हमेशा आपको अपना समझूंगी।”
चारु ने वह तस्वीर अपने बैग में रखी और नम आंखों से अपने मायके से विदा ली। लेकिन इस बार उसकी विदाई में दर्द के साथ-साथ सुकून भी था। उसे पता था कि उसका मायका हमेशा सलामत रहेगा।
मूल रचना: संगीता अग्रवाल