ट्रेन पटरी पर अनवरत भाग रही थी, और साथ ही भाग रही थी सुमन की सोच। खिड़की से बाहर देखते हुए याद आ रही थी माँ की। पिछले साल जब वो इसी तरह गर्मी की छुट्टियों मे मायके जा रही थी बच्चो के साथ तो क्या उत्साह और उमंग थी।
कितनी तैयारी…साल की सबसे लम्बी छुट्टी…बस समय जैसे कट ही नही रहा था……बच्चे भी नानी, मामा – मामी और उनके बच्चो से मिलने को चहक रहे थे,बच्चे तो आज भी उत्सुक थे….पर उसके मन मे डर और चिन्ता थी।
माँ अब गुज़र चुकी थी और इस बार पहली बार वो उनकी नामौजूदगी मे अपने मायके जा रही थी। पापा तो उसकी शादी के २ साल बाद ही गुज़र गए थे, पर माँ ने उसके मायके को संजो कर रखा था। पापा को हर बार मिस करती पर माँ के होते परायापन नही लगा कभी।
माँ भी महीनों पहले से उसका इन्तज़र करती
..मनुहार से बुलाती….कितनी तैयारी करती और उस थोड़े से दिनो मे साल भर की कसर निकाल देती। उसका छोटा भाई अमन और उसकी पत्नी रीति भी अच्छे थे पर क्या अब भी सब वैसा होगा जैसा हमेशा होता था……घर तो माँ के बिना सूना लगेगा ही कही वो हक…..वो अपनापन…वो उसके आने की चाह, मनुहार कम तो नही हो गई होगी।जब से उसकी सहेली ने उसे अपने माता पिता के बाद मायके का बदला हाल बताया था तभी से उसका मन इस अनजान डर से दुखी था…उसने यहाँ तक सोच लिया था की अगर अच्छा नही लगा तो वो जल्दी वापस आ जाएगी।
सोचते सोचते ही स्टेशन आ गया। अमन के साथ बच्चे भी लेने आए थे। घर पहुँची तो जैसे माँ बार बार गेट के चक्कर लगाती थी वैसे ही रीति को पाया।
घर के अंदर जाकर देखा तो उसका मनपसंद शर्बत तैयार था। कमरा साफ और सुन्दर फूलों से सजा था। नहाकर खाना खाने बैठी तो सब पसन्द की चीजे बनी थी। शाम को माँ की तस्वीर के पास बैठी थी तो रीति चाय ले आई उसकी बातों ने उसका मन बदल दिया।
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सच मे माँ के जाने से घर सूना हो गया था। हर कोने मे उनकी यादें बसी थी। रीती भी उन्ही को याद कर रही थी। रात को अमन उसकी पसंदीदा आइसक्रीम लाया था। उसने भी सबके लिए लाये हुए उपहार दिए थे।बस अगले ही दिन से कुछ दिन पंख लगाकर उड़ गए। सबके यहा मिलने जाना……थोड़ी शॉपिंग…..थोड़ा घूमना….और रीती तो उसे कितनी बार चाट खिलाने भी मनुहार करके ले गई थी। माँ के ना होते हुए भी सब कुछ पहले जैसा ही तो हो रहा था। वही दुलार…..वही हल्कापन..और तभी एक दिन उसने देखा की रीति आचार के डब्बो मे से आचार…..घर के पिसे मसाले और गाँव से आया गुड़ और बहुत सारा समान पैक कर रही है। यही तो माँ भी किया करती थी जब उसके वापस जाने का समय आता था।
उसने इस बारे मे पूछा तो रीति ने कहा , “दीदी आप अब कुछ दिन बाद चले जाओगे, मेरा तो मन ही नही लगेगा, माँ हमेशा आपको ये सब देती थी ना तो मैने भी सब पैक करने का सोचा”
गले ही लगा लिया था सुमन ने रीति को। सारा डर और शक ख़त्म हो गया था। इस एक महीने मे माँ की याद बहुत आई पर अमन और खासकर रीति ने उसे इतना प्यार…..सम्मान और अपनापन दिया था कि वो समझ गई थी की उसका मायका आज भी उसका था……और हमेशा रहेगा।
जब रीति को अपने मन के विचार वगैरा सब बताया तो वो बोली, “मैं समझती हूँ दीदी, एक लड़की के लिए शादी के बाद उसका मायका क्या मायने रखता है। आप तो जानती है की हम दो बहने ही है, आज तो मेरे मम्मी पापा है, पर उनके बाद हमारे मायके का क्या मतलब रह जाएगा ये सोचकर ही हम दोनो डर जाती है। किसके लिए जाएँगे हम वहाँ…….मैं तो आपसे आपका मायका छीनने की सोच भी नही सकती। लड़की ससुराल मे दुखी हो तब मायका वो जगह है जहाँ वो अपना दर्द बांटती है, कुछ सुकून मिलता है, और सुखी भी हो तो भी वही तो बचपन की यादें बस्ती है, जवानी के सपने, मस्ती ,अल्हड़पन याद आता है। माँ के आँचल मे वापस बच्ची बन जाती है , और पिता का लाड़ और भाई बहन का साथ सब दुख और थकान भुला देता है।”
सुमन स्तब्ध रह गई थी। सचमुच जिनकी ये स्थिति होती है उनका क्या होता होगा…..
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उसने रीती को गले लगाकर कहा, “किसने कहा तुम्हारा मायका नही रहेगा……मैं तुम्हारी ननद ही नही बड़ी बहन भी हूँ ना……भगवान करे अंकल आंटी का साया हमेशा बना रहे पर खुद को कभी अकेला मत समझना, माँ नही है तो क्या हुआ मैं तो हूँ ना……जब मन करे मेरे यहाँ बच्चो को लेकर आना….कभी अमन तंग करे तो भी मुझे बताना और कभी संकोच मत करना।”
अब वापस जाने का दिन आ गया था। उससे ज्यादा तो रीति रो रही थी। फ़िर आने और जल्दी मिलने और रोज़ फोन के वादे के साथ आज सुमन वैसे ही विदा हो रही थी जैसे माँ किया करती थी…..फ़िर आने के लिए।
सुमन भाग्यशाली है की उसकी माँ के बाद भी उसके मायके मे सब कुछ पहले जैसा ही था पर सबके साथ ऐसा नही हो पाता। कुछ की स्थिति रीति जैसी होती है जिनके लिए सब कुछ बदल जाता है ,पर अगर अमन और रीति जैसे सब अपने हों और सब प्यार देने वाले मिल जाए तो माँ की कमी जरूर रहेगी पर माँ बिन मायका भी कभी पराया नही होगा…..मायके की खुशबु हमेशा ताज़ी रहेगी। ।
इतिश्री
#जिम्मेदारी
नीलिमा सिंघल
Bahot badhiya kahani h.
Pr sbk sath aisa nhai ho pata.