कुछ दिनों पहले तक जिस ‘कमला निवास ‘ में खुशियों के गीत गूँजते थे, वहाँ आज मातम छाया हुआ था।आने-जाने वाले लोगों का ताँता लगा हुआ।
घर के बड़े हाॅल के फ़र्श पर एक आठ वर्ष का बालक चिरनिद्रा में सोया हुआ था और उसकी माँ मालिनी उससे लिपटकर रोये जा रही थी,” अंशु, मेरे लाल.. उठ जा..अपनी माँ के सीने-से लग जा…।” आसपास बैठी महिलाएँ उन्हें पकड़कर अलग करतीं लेकिन वो फिर से अपने बेटे से लिपट जा रही थी।उसकी अवस्था देखकर वहाँ बैठे सभी की आँखें नम हो गई थी।
कितना मुश्किल होता है एक माँ के लिये यह स्वीकार करना कि उसके बेटे की साँसें अब थम चुकी हैं।मालिनी के लिये तो और भी मुश्किल था क्योंकि…।तभी अंशु के पिता प्रकाश बेटे के पास आकर फूट-फूटकर रोने लगते हैं।उनका क्रंदन देखकर मालिनी तो चकित रह जाती है।
अचानक वो उठती है और उनके कुर्ते का काॅलर पकड़कर चीख पड़ती है,” आपने ही मेरे अंशु को मारा है..आप # पत्थर दिल हैं..आपके पास दिल नहीं है..आप…।” दो महिलाएँ बड़ी मुश्किल से उसे प्रकाश से अलग करतीं हैं और प्रकाश…वो तो जड़वत ही हो गये।
उनकी आँखों की पुतलियाँ भी नहीं झपक रहीं थीं।बस आँखों से बहते हुए आँसू ही उनके जीवित होने का प्रमाण दे रहें थें।
प्रकाश की माँ कमला जी उसके विवाह के बाद से दादी बनने के सपने देखने लगी थीं।लेकिन तीन वर्ष बाद भी जब मालिनी की गोद सूनी ही रही तब वो बहू मालिनी को अपने परिचित डाॅक्टर नेहा के पास ले गईं।डाॅक्टर नेहा ने मालिनी की पूरी जाँच की और बोली कि आँटी जी, सब कुछ नार्मल है, भगवान पर भरोसा रखो।
लेकिन कमला जी के पास धैर्य कहाँ था।आसपास की महिलाओं को जब वो अपने पोते-पोतियों के साथ देखतीं तो अपना मन मसोसकर रह जातीं।उनकी बेटी पूनम भी दूसरी बार माँ बन चुकी थी लेकिन बहू ही नहीं..।
धीरे-धीरे वो चिड़चिड़ी होने लगी..जिस बहू को वो पलकों पर बिठाए रखतीं थीं, अब उसे वो बात-बात पर ताने देने लगीं..।मालिनी चाय देती तो वो चीनी कम-अधिक होने की कमी निकालती..।मालिनी पैर दबाने जाती तो वो अपना पैर पीछे कर लेती।
सास के इस बर्ताव से मालिनी का मन बहुत आहत होता।अकेले में वो रो लेती लेकिन पति से कभी कुछ नहीं कहती।प्रकाश उसकी पीड़ा को अच्छी तरह से समझते थे।वो उसे समझाते कि भगवान पर भरोसा रखो।उनकी कृपा से एक दिन तुम्हें मातृत्व-एहसास अवश्य होगा।
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान के देर है अंधेर नहीं।एक दिन मालिनी रसोई में चने की दाल पर छौंक लगा रही थी कि अचानक उसे उबकाई आने लगी।वो बाथरूम की तरफ़ भागी।घर की नौकरानी चंदा वहीं खड़ी बर्तन धो रही थी,उसकी अनुभवी आँखों ने सब कुछ समझ लिया था।
वो दौड़ कर कमला जी के कमरे में गई और बोली कि बहू जी के पैर भारी हैं।सुनते ही वो तो उछल पड़ीं थीं।मालिनी जब मुँह धोकर आईं तब उन्होंने उसे बहुत प्यार किया और बेटे को फ़ोन करके जल्दी घर आने को कहा।
प्रकाश को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, वो मालिनी को लेकर डाॅक्टर नेहा के पास गया।उन्होंने चेकअप करके प्रकाश को खुशखबरी सुनाई।साथ ही, सावधानी बरतने को भी कहा।उसी दिन से कमला जी बहू की पसंद-नापसंद का ख्याल रखने लगीं।
प्रकाश भी दुकान से फ़ोन करके पत्नी से पूछते रहते कि कुछ चाहिए तो बता देना..अपना ख्याल रखना।मालिनी ने बेटे का नाम अंशु और प्रकाश ने बेटी का नाम वंशिका सोच लिया था।
देखते-देखते आठ महीने बीत गए।मालिनी को नौवाँ महीना चढ़े कुछ ही दिन हुए थे कि अचानक उसे दर्द होने लगा।कमला जी उसे लेकर डाॅक्टर के पास गईं।उसने एक बेटे को जनम दिया।
कमला जी के दिन अपने पोते को मालिश करने और उसके साथ सपने देखने में बीतने लगे।उधर प्रकाश की दुकान में भी मुनाफ़ा होने लगा।कुछ महीनों में ही उसकी दुकान ‘कुमार क्लाॅथ सेंटर ‘ से ‘ कुमार टेक्सटाइल शोरूम ‘ में बदल गई।उसने अपने घर को भी रिनोवेट कराकर उसका नाम ‘ कमला निवास’ रख दिया था।अंशु के पहले जन्मदिन पर उसने एक शानदार पार्टी दी थी।
नन्हा अंशु सभी की आँखों का तारा था।कभी वो दादी की गोद में बैठ जाता तो कभी अपनी माँ की आँचल में छुप जाता।अपनी तोतली बोली से सबको हँसाता रहता।प्रकाश भी घर जल्दी आ जाते और बेटे के साथ बच्चे बन जाते।
देखते-देखते अंशु तीन साल का हो गया।पहली बार वो स्कूल जाने लगा तो मालिनी उसे गले लगाकर रो पड़ी थी।स्कूल से आकर वो जूते इधर-उधर फेंककर सबको अपने दोस्तों के बारे में बताने लगता।प्रकाश से तरह-तरह के प्रश्न भी पूछता रहता।उसकी बौद्धिक क्षमता देखकर प्रकाश
मालिनी से कहते,” पापा मुझे खूब पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनका असमायिक निधन हो जाने के कारण मुझे अपनी पढ़ाई छोड़कर माँ और छोटी बहन की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी थी लेकिन अब अपने अंशु को पढ़ाऊँगा..उसे बड़ा अफ़सर बनाऊँगा…।
ईश्वर की लीला भी अजीब है।कभी तो बहुत दे देता है और कभी..।अंशु सात बरस का हो रहा था।एक दिन स्कूल में उसे चक्कर आ गया।मालिनी को पता चला तो वो उसे लेकर हाॅस्पीटल गई।डाॅक्टर ने कहा कि घबराने वाली कोई बात नहीं है।अधिक खेलने-कूदने के कारण कभी-कभी ऐसा हो जाता है।
कमला जी पर अब बढ़ती उम्र का असर होने लगा था।वो अस्वस्थ रहने लगी।दवा लेने के बाद भी उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ और एक दिन वो सोते-सोते ही इस दुनिया से चली गईं।
इसी बीच अंशु की एक-दो बार फिर से तबीयत खराब हुई थी और दवा से वो ठीक भी हो गया था।प्रकाश और मालिनी कमला जी की बीमारी की व्यस्तता के कारण उस पर ध्यान नहीं दे पाए थें।अंशु काफ़ी कमज़ोर हो गया था।
कुछ दिनों बाद वो फिर से जब बीमार पड़ा तब डाॅक्टर ने उसकी पूरी जाँच की, सभी तरह के टेस्ट किये और जब रिपोर्ट देखा तो दंग रह गये।उन्होंने प्रकाश को अकेले में बुलाया और उसे रिपोर्ट दिखाते हुए बोले,” प्रकाश..अंशु के दिल में छेद है जिसके कारण उसे बार-बार चक्कर आ रहें थें और…।”
” दिल में छेद! इसका इलाज तो है ना..।” प्रकाश ने बड़ी मुश्किल-से खुद को संभाला।
” इलाज तो है लेकिन कभी-कभी बीमारी के सिम्टम देर से दिखाई देते हैं जिसके कारण हम डाॅक्टर कुछ नहीं कर पाते हैं।अंशु के केस में भी बहुत देर हो चुकी है।”
” तो क्या मेरा बेटा अब..।” प्रकाश रोने लगा।
” खुद को संभालो प्रकाश..कुछ महीने हैं अंशु के पास..उसे समय पर दवा देते रहना.. तुम्हें मालिनी का भी ख्याल रखना होगा..।” उसके कंधे पर हाथ रखते हुए डाॅक्टर बोले।
थके कदमों से प्रकाश घर आ गया।बिस्तर पर लेटे अंशु को देखा तो बड़ी मुश्किल-से उसने अपने आँसू रोके।मालिनी से भी वो नज़र नहीं मिला सका।मालती जब भी पूछती कि रिपोर्ट में क्या निकला है..अंशु क्यों बार-बार बीमार पड़ रहा है तो कुछ नहीं..ठीक हो जाएगा’ कहकर वो टाल जाता।
अब प्रकाश दुकान पर अधिक रहने लगा।घर आता, अंशु से थोड़ा बात करता और फिर कमरे में बंद हो जाता।मालिनी उनसे कहती कि अंशु आपके साथ खेलना चाहता है तो कहता, तुम तो हो ना..और निकल जाता।
मालिनी दिन-भर अंशु के साथ रहती..उसकी सेहत संभालती तो वो पिता को याद करता।मालिनी उसे कहती कि आयेंगे..।बेटे के प्रति उदासीनता देखकर वो हैरत में थी।वो प्रकाश को निष्ठुर, संगदिल पिता..कहती रहती कि शायद इन शब्दों से प्रकाश का मन फिर से बेटे की तरफ़ हो जाए लेकिन..।
अंशु की कमज़ोरी बढ़ती जा रही थी।फिर भी वो ठीक होता तो स्कूल चला जाता था।दिन-सप्ताह गुज़रते गये।फिर एक दिन उसे साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी तब उसे हाॅस्पीटल में एडमिट कराना पड़ा।प्रकाश अंशु के सिर पर हाथ फेरते तो वो पूछता,” मैं ठीक हो जाऊँगा ना पापा..।” अपने आँसू छुपाकर मुस्कुरा कर प्रकाश कहते, हाँ बेटा..
और बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगते।बेटे की बिगड़ती हालत देखकर मालिनी डाॅक्टर पर चिल्ला पड़ी,” आप बताते क्यों नहीं..मेरे बेटे को क्या हुआ है..वो ठीक क्यों नहीं हो रहा है?” तब डाॅक्टर ने उसे अंशु की बीमारी बताई।”
बेटे की बीमारी सुनकर मालिनी का कलेजा फट गया था।उसकी आँखों से आँसू नहीं थम रहे थे और उधर प्रकाश निर्विकार थे।
आठ साल का नन्हा अंशु ज़िंदगी की जंग हार गया और अपने माता-पिता को रोते-बिलखते छोड़कर दुनिया से चला गया।इसीलिये कमला-निवास में मातम था..मालिनी को दुख था कि अंशु को जब पिता की ज़रूरत थी तब तो वो कठोर बने रहे और अब आँसू बहाने का दिखावा..।इसीलिये वो अपने पति पर चिल्लाई थी..।अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उसने अपने बेटे को अंतिम विदाई दी।
दो-दिनों के बाद प्रकाश दुकान पर जाने लगे और मालिनी बेटे की तस्वीर सीने-से लगाए रोती रहती थी। एक दिन दुकान के दो स्टाफ़ मालिनी के पास आये और बोले,” मैडम…साहब दुकान पर आकर फिर न जाने कहाँ चले जाते हैं..।”
” क्या मतलब?”
” पिछले तीन महीनों से हम लोग साहब को रोते देख रहें हैं।बड़ी मुश्किल-से एक रोटी उनके गले में जाती थी।अंशु बाबा के जाने के बाद से तो वो भी नहीं…।
” तीन महीनों से…।”
” जी मैडम…दो-तीन दिनों से तो दुकान आकर फिर कहीं चले जाते हैं।” दूसरा स्टाफ़ बोला तो मालिनी चकित रह गई।इसका मतलब है कि प्रकाश को अंशु के बारे में मालूम था।मैं कमज़ोर न पड़ जाऊँ, इसलिए मुझे बताया नहीं और अकेले-अकेले दुख सहते रहें।हे भगवान! मैं उन्हें..।तभी घर का माली आया।वो भी धीरे-से बोला,” मालकिन…हमने भी बाबू साहेब को बगीचे में अक्सर ही रोते देखा था…।”
उसी समय ड्राइवर आया और एक बैग रखकर जाने लगा तब मालिनी ने उससे पूछा,” साहब कहाँ जाते रहते हैं?” ड्राइवर नम आँखों से बोला,” कभी पार्क में जाकर बैठकर रोते रहते थे तो कभी अंशु बाबा के स्कूल के बाहर..।आज तो…।”
तभी एक हाथ से पाँच साल के बच्चे की ऊँगली और दूसरे हाथ से सात साल की बच्ची की ऊँगली पकड़े प्रकाश आते दिखाई दिये।पत्नी से बोले,” मालिनी..संभालो अपने अंशु- वंशिका को..।”
भीगी आँखों से मालिनी ने प्रकाश की ओर देखा जैसे कह रही हो, मुझे माफ़ करना मेरे देवता..अनजाने में मैंने आपको न जाने क्या-क्या कह दिया..।प्रकाश भी उसकी आँखों में देखकर मुस्कुराए जैसे कह रहें हो, मैं # पत्थर दिल नहीं हूँ कि तुम्हारे मातृत्व-एहसास को न समझूँ…।
तभी दोनों बच्चे उससे लिपट गये और मेरी मम्मी-मेरी मम्मी कहकर झगड़ने लगे तो उसकी तंद्रा टूटी।वो दोनों को अपनी भुजाओं में कसते हुए बोली,” मैं तुम दोनों की मम्मी हूँ..।” वो बेतहाशा उन्हें चूमने लगी।प्रकाश उसकी ममता और वात्सल्य को देखकर भावविभोर थे।
वहाँ खड़े घर के नौकर, स्टाफ़ और ड्राइवर की आँखें भी नम हो गईं।अपने आँसुओं को पोंछते हुए वे दीवार पर टँगी अंशु की तस्वीर को देखते हुए बोले,” अंशु बाबा..अब तो हम इन्हीं बच्चों में आपको देखेंगे..।” उसी दिन से उस घर में फिर से धमा-चौकड़ी मचने लगी।बच्चों के शोर से पूरा वातावरण गुंजायमान होने लगा।
विभा गुप्ता
# पत्थर दिल स्वरचित, बैंगलुरु