हर रिश्ते में मतभेद और गलफहमियाँ होती हैं।कुछ लोग बीच में पड़कर उस मतभेद को बढ़ावा देते हैं,परन्तु अगर थोड़ी सूझ-बूझ से काम लिया जाएँ,तो मतभेद को दूर कर सम्बन्ध को फिर से सँवारा जा सकता है।
मीता और नीता जुड़वा बहनों में बचपन से ही मतभेद रहा है।थीं तो दोनों जुड़वाँ,परन्तु दोनों एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत। रुप-रंग, स्वभाव सभी चीजों में दोनों में अंतर था।बड़ी बहन मीता देखने में जितनी सुन्दर थी,उतनी ही चंचल और नटखट!छोटी बहन नीता देखने में साँवली-सलोनी,साधारण नैन-नख्श और शांत स्वभाव की थी।दोनों को देखकर कोई कह नहीं सकता था की दोनों जुड़वा बहनें हैं!
दोनों के पिता रामप्रसाद एक किसान थे और माता शान्ति देवी एक गृहिणी।दो लड़कों के बाद उनके घर में जुड़वा बेटियों का जन्म हुआ था।परिवार में खुशी का माहौल था।माता-पिता बेटा-बेटी में कोई भेद नहीं करते थे।दोनों बहनें बचपन में भी खूब झगड़ा करतीं,परन्तु एक पल भी अलग भी नहीं रहतीं।
गाँव के स्वछंद वातावरण में दोनों हिरणी- सी कुलाँचे भरतीं। दोनों कभी अमरूद के पेड़ पर चढ़तीं,तो कभी आम के बगीचे में जा धमकतीं।आम के बगीचे में बैठकर दोनों बहनें ध्यान लगाकर कभी कोयल की कूक में आवाजें मिलातीं,तो कभी गिलहरियों का पेड़ पर उछलना-कूदना मगन होकर देखतीं।
दोनों बहनें खुद गिलहरियों -सा उछलकर ताली बजातीं।फिर घर की याद आने पर दोनों वापस लौट जातीं। घर वापस लौटकर छोटी बहन नीता माँ से शिकायत करते हुए कहती -” माँ!बगीचे में मीता ने मुझे धक्का दे दिया था!”
माँ झूठी-मूठी डाँट लगाते हुए कहती -” मीता !अपनी बहन को धक्का नहीं देते।दोनों बहन प्यार से रहो।”
नीता खुश होकर माँ के गले में झूल जाती और मीता मुँह फुलाकर पिता के पास चली जाती।दोनोंबहनों में नोंक-झोंक चलती रहती।समय के साथ दोनों बहनें स्कूल जाने लगीं।मीता जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी,वैसे-वैसे उसका रूप-रंग खिलता जा रहा था।हिरणी-सी आँखें,दूधिया रंग,लम्बा कद उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे।
मीता को अपनी सुन्दरता पर घमंड होने लगा था,इस कारण दोनों बहनों में मतभेद शुरु हो चुके थे।नीता के रुप-रंग बड़ी बहन मीता के समक्ष फीके पड़ जाते।लोग नीता के समक्ष ही मीता की सुन्दरता की तारीफ कर देते,जिससे नीता के हृदय को ठेस पहुँचती।माता-पिता दोनों बेटियों का मतभेद दूर करने की कोशिश करते।पिता रामप्रसाद जब शहर जाते,तो दोनों बेटियों से पूछते -” शहर से तुम दोनों के लिए क्या-क्या लाना है?”
दोनों बहनें उत्साहित होकर पिता को सामान की लिस्ट पकड़ा देतीं।पिता के सामान लाने पर बड़ी बहन मीता पहले अपने पसंद का सामान चुन लेती,बाकी नीता के लिए छोड़ देती।नीता के गुस्साने पर मीता उसे चिढ़ाते हुए कहती -“तू कुछ भी पहन ले,परन्तु तेरे साँवले रंग पर कुछ भी नहीं खिलनेवाला है!”
नीता रुआँसी होकर माँ के पास मीता की शिकायत करने जाती।माँ उसे समझाते हुए कहती -” बेटी!लेने दो वह तुम्हारी बड़ी बहन है!”
नीता-“क्या माँ बड़ी बहन?वह तो मुझसे केवल दस मिनट ही बड़ी है न!”
माँ नीता को प्यार से गले लगा लेती। नोंक-झोंक के साथ दोनों बहनें शादी की दहलीज तक पहुँच चुकीं थीं।समय के साथ मीता की शादी शहर के ही अमीर घराने में राकेश के साथ हो गई। मीता की ससुराल में सास-ससुर और एक ननद थी।ससुराल में मीता काफी खुश थी।अमीर घराने और प्यार करनेवाला पति पाकर वह नीता के सामने इठलाती रहती थी।
कुछ दिनों बाद नीता की शादी भी उसी शहर में हो गई। उसके पति सूरज का अपना छोटा-सा व्यवसाय था।नीता भी अपने ससुराल में काफी खुश थी,परन्तु दोनों बहनों के ससुराल की आर्थिक स्थिति में काफी अंतर था,जिस कारण दोनों के आपसी वैमनस्य बढ़ चुके थे।एक शहर में रहकर भी दोनों बहनें कभी-कभार ही एक-दूसरे के घर जातीं।
शादी के कुछ दिनों बाद से मीता के पेट में अक्सर दर्द रहने लगा। सभी इसे मामूली गैस का दर्द समझकर कुछ देसी दवा दे देते।एक रात दर्द से कराहते हुए मीता ने अपनी सास से कहा -” माँ जी!मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है!”
परन्तु स्थिति की गंभीरता न समझते हुए सास ने कहा -“अरे बहू!कुछ नहीं है।आजवाइन खा लो ठीक हो जाएगा।जब राकेश बाहर से आएगा तो दिखला लेना।”
रात में मीता की स्थिति गंभीर हो गई। उसे लेकर सास-ससुर अस्पताल पहुँचे।मीता को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।अस्पताल में सभी जाँच के बाद डाॅक्टर ने कहा -” माता जी!मीता की फैलोपियन ट्यूब में ही बच्चा ठहर चुका था,आपने आने में देरी कर दी।एक फैलोपियन ट्यूब ब्रस्ट हो चुका है,दूसरा भी सिकुड़ चुका है।तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा।”
ऑपरेशन के बाद डाॅक्टर ने मीता की सास से कहा -” माताजी! मीता तो धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी,परन्तु कभी भी माँ नहीं बन पाएगी!”
डॉक्टर की बातें सुनकर मीता के सास-ससुर ने उसकी ओर से मुँह फेरकर लिया।मीता के लिए तो डाॅक्टर के कथन वज्रपात के समान थे।अस्पताल से घर आने के बाद से चंचल चुलबुली मीता गुमसुम-सी रहने लगी।उसकी मछली-सी तरल आँखों की नमी सूख चुकी थी।
हमेशा उसका मन उदास और आँखें खोई-खोई सी रहने लगीं।रह-रहकर डाॅक्टर की बातें -” अब मीता कभी भी माँ नहीं बन सकती”गूँजतीं रहतीं।सास-ननद के ताने उसके कानों में पिघले
शीशे के समान प्रतीत होते।उसके पति राकेश उसे सांत्वना देते हुए कहते -” मीता! तुम चिन्ता मत करो।दुनियाँ में बहुत सारे अनाथ बच्चे हैं।हम एक बच्चा गोद ले लेंगे।”
परन्तु मीता के आहत मन को किसी प्रकार सुकून नहीं मिलता।
कुछ समय पश्चात् मीता की छोटी बहन नीता ने एक बेटा और एक बेटी,जुड़वा बच्चों को जन्म दिया।मीता की सास नीता के बच्चों को देखने अस्पताल गईं थीं।उन्होंने दोनों बहनों के मतभेद की खाई को और गहरी करते हुए कहा -“नीता! तुम्हारी बहन ने कहा है कि वह दो बच्चों का खर्चा नहीं उठा सकेगी,इस कारण एक बच्चा मुझे दे दे।”
बड़ी बहन मीता का संदेश सुनते ही नीता आग-बबूला हो उठी और कहा -” माँ जी! मीता से जाकर कह दीजिए कि दो तो क्या,मैं चार बच्चों को भी पाल लूँगी,परन्तु उसे अपना बच्चा नहीं दूँगी।”
अस्पताल से आकर नमक-मिर्च लगाते हुए मीता की सास ने उसे सुनाते हुए कहा -“मैंने तो तुम्हारी खातिर एक बच्चे देने की बात की थी,परन्तु उसने कहा कि बाँझ बहन को मैं अपना बच्चा किसी हालत में नहीं दूँगी।”
बाँझ शब्द सुनकर मीता की आँखों से टप-टप आँसू बहने लगें।उसने मन-ही-मन में सोचा -“अगर मैं अपने अजन्मे बच्चे के लिए इतनी दुखी हूँ,तो नीता अपना बच्चा मुझे कैसे दे सकती है!”
मीता को उदास देखकर उसके पति एक दिन उसे जबरदस्ती नीता के बच्चों से मिलवाने लो गए।बच्चों को देखकर मीता के मन में छोटी बहन के प्रति नेह उत्पन्न होने लगा। आते समय नीता ने कहा -” मीता!बच्चों से मिलने आया करो।”
मीता ने हाँ कहकर सिर हिलाया।बहन की सूनी कोख का दर्द महसूस कर नीता का कलेजा दहल उठा।
समय के साथ दोनों बहनों के मतभेद रुपी शिला धीरे-धीरे पिघलने लगा था।
कुछ समय बाद नीता ने फिर जुड़वा बच्चों को जन्म दिया।इस बार भी एक बेटा और एक बेटी।अपने दोनों नवजात बच्चों को देखकर नीता काफी खुश थी।उसने अपने पति से कहा-“तुम मीता और जीजू को अभी अस्पताल में बुलवा दो।”
उसके पति ने कहा -” नीता! घर चलकर उन्हें बुलवा लूँगा।”
परन्तु नीता की जिद्द की वजह से उन्हें अस्पताल में ही बुलाना पड़ा।उनके आ जाने पर नीता ने एक बच्चे को मीता की गोद में और एक को राकेश की गोद में देते हुए कहा -“मीता!मेरा परिवार तो पहले ही पूरा हो चुका है,अब तुम इन्हें सँभालो।ये बच्चे तुम्हारी अमानत हैं।”
अचानक से वर्षों से जमी मतभेद की बर्फ पिघल उठी।मीता का बंजर हृदय ममत्व की बारिश से सराबोर हो उठा।दोनों बहनों के मन की गाँठ खुल चुकी थी।दोनों बहनें एक-दूसरे के आलिंगन में बद्ध पावन स्पर्श की गुदगुदाहट से भाव- विभोर हो रहीं थीं।देखनेवालों की आँखें भी इस मनोहारी दृश्य से नम थीं।
सचमुच सच्चे रिश्तों में मतभेद तो बस एक हवा का झोंका ही होता है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।(स्वरचित)