“लड़का होकर भी भूत से डरता है, ही ही ही ही….”
दोस्तों की वह हंसी कानों में आज भी गूंजती है…
मैं गली में खेलने नहीं जाता था… साथी लड़के मुझे चिढ़ाते थे,
अरे ये दब्बू है, अपनी बहनों के साथ खेलता है, लड़कियों वाले खेल, अपनी मम्मी के पीछे ही रहता है, डरपोक…
उनकी बातें मुस्कुराने पर मजबूर कर देती हैं, जब आज मेरी बेटी मुझे सुपर मैन बोलती है।
दरअसल मैं तीन बहनों का इकलौता भाई हूं, उसूलन तो मुझे बहुत ही मजबूत होना चाहिए, क्यूंकि मर्द हूं ना, ये हम मर्दों नियति है, हमे डरना नहीं है, हमें रोना नहीं है, हमें थकना नहीं है, हम टूट नहीं सकते, हमें सहारे की ज़रूरत नहीं…
क्योंकि हमें दर्द नहीं होता, रोना कमजोरों की निशानी है…
हम सिर्फ कंधा देने के लिए बने हैं… !
पर मैं मर्दों के इस कैटेगरी से जरा अलग हूं… दो बहनों के बाद दुनिया में आया तो मां और बहनों ने इतना संभाल के रखा मुझे की, कि मुझे नाज़ुक ही बना दिया…
बहनों से भूतों को की कहानियां सुन कर भूतों से खौफ आने लगा, शाम के साए गहराते ही, मां के पास दुबक जाता, हवा के सरसराहट पर भी लगता जैसे कोई भूत हो, मैं मन के साथ शरीर से भी नाज़ुक बन गया, और फ़िर यही चीज़ बड़े होने के साथ भी बढ़ती गई, बस थोड़ी दुनियादारी और समझदारी आ गई… तीन बहनों का भाई था थोड़ा चौकन्ना रहता।
उन्हीं दिनों बहन ने बताया कोई लड़का उसका पीछा करता है, उसे धमकाता है, मैंने लड़ाई करना उचित नहीं समझा मसलेहतन अपना मकान ही बदल लिया, अब भले ही इस बात को गैरत के खिलाफ़ समझा जायेगा, पर मुझे सही यही लगा क्योंकि हमारे उस मुहल्ले में बात बात पर पिस्तौल निकाल लेने की आदत थी लड़कों को…!
मुझ पर जिम्मेदारियां आती गईं, और मैंने अपने डर पर समझदारी का खोल चढ़ाता गया।
ऐसा भी नहीं है कि मैं भूत से नहीं डरता अब भी डरता हूं, पर मैं बता नहीं सकता ना, क्योंकि मुझे अपने बेटी के दिल में उस डर को नहीं बैठने देना है, मेरी बेटी के नज़र में मैं दुनिया का सबसे बहादुर इंसान हूं, उसका यह विश्वास ही मुझे डर पर काबू दिलाता है, मेरी पत्नी मेरे सीने के पर सर रख कर अपने आप को सबसे सुरक्षित जगह पर पाती है, उसका यह मान मुझे ताकत देता है, मैं हर परिस्थितियों से लड़ जाता हूं…!
कभी कभी सोचता हूं, मां बहनों ने मुझे मजबूत बनाया होता,
लेकिन फिर सोचता हूं, शायद हर मर्द मेरी तरह ना सही अंदर से थोड़ा नर्म, थोड़ा डरा हुआ, थोड़ा टूटा हुआ तो होता ही है, लेकिन उस की जिम्मेदारियां, उस पर उसके आस पास के लोगों का विश्वास, या उस के आस पास कमज़ोर कंधों की भीड़ उसे मजबूत बनने पर मजबूर कर देती है…!
सिर्फ़ मर्द ही नहीं कई ऐसी स्त्रियां भी जिस पर जिम्मेदारियां होती हैं, जिनके आस पास की नज़रे उन पर ही आसरे के लिए टिकी रहतीं हैं , वो भी डर से बेखौफ हो जाती है…!
पर मैं भी अंदर से डरपोक हूं, कभी कभी हालातों पर टूट जाता हूं, कभी कभी रो लेता हूं, कभी अपने लाइफ पार्टनर के पहलू से अपनी थकान बांट देता हूं, और ऐसा करते हुए मैं शर्मिंदा नहीं होता हूं, ना यह इकरार करते मैं शर्मिंदा हूं, क्यों कि हूं तो मैं भी एक इंसान! और अगर इंसानों वाले गुण ना रखूं तो मैं हैवान ना बन जाऊं, और कम से कम मैं हैवान नहीं बनना चाहता!
#दर्द
स्वरचित
सुल्ताना खातून
दोस्तों मेरी यह रचना आपको कैसी लगी, जरूर बताएं, धन्यवाद