मंथन – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :   आंटी जी… प्लीज …अभी नव्या यहां नहीं है अपना पक्ष रखने के लिए …तो हम लोग उसके आचरण का  ” मंथन ” करके उसके बारे में कोई गलत धारणा ना बनाएं ..तो अच्छा रहेगा..!

सॉरी आंटी जी यदि मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो….

          स्वरा के बेबाकी पूर्ण जवाब से मोहल्ले की महिलाएं एक दूसरे का मुंह ताकने लगी थी… उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि….कल की आई बहू इस तरह जवाब देगी …  ।

           महिलाओं के जाने के बाद रागिनी बहू द्वारा इस तरह के जवाब दिए जाने से अंदर से तो खुश थी पर कहीं ना कहीं ये बात उसे सता भी रही थी कि मोहल्ले में अब मेरी बहू स्वरा की छवि खराब हो जाएगी ..अपनी सासू माँ की असमंजस की स्थिति भापँते हुए स्वरा ने बड़े प्यार से कहा….

 ” मम्मी जी आप टेंशन मत लीजिए वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी “

और वैसे भी अब जमाना बदल गया है आजकल लोग समझने लगे हैं …स्पष्ट और साफ बोलना कोई बुरी बात नहीं है …मम्मी जी देखिएगा… आंटी जी लोग मेरी तारीफ ही करेंगी ..आप चिंता मत करिए..।

       रोज की भांति अगले दिन…..

          देखी ना सुधा , तू कल रागिनी की बहू को ….कैसे जवाब दी हम सबको …वो तो हम लोग बैठे थे इसीलिए थोड़ा ही बोलकर चुप हो गई , वरना ना जाने और कितना कुछ कहा सुनी होती ….मीरा ने मजा लेते हुए अपनी पड़ोसन सुधा से कहा… हां यार मुझे भी आश्चर्य हुआ.. अभी नई-नई बहू है और इतनी हाजिर जवाबी ….!

  मीरा की हां मैं हां मिलाते हुए सुधा ने भी अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा …अरे यार ऐसा लगता है, उनके घर में भी रोज तू – तू , मैं – मैं  भी होता होगा …वो तो रागिनी है कि हमें बताती नहीं है …अपने घर की बात … बताए भी तो क्या बताएं और कैसे बताये…?

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              शाम 4:00 बजते ही मोहल्ले की महिलाओं की बैठकी लग जाती थी …चाय के प्यालों के बीच चुगली चपाती , इधर-उधर की बातों का आनंद ही कुछ और होता था…. जब तक किसी से किसी की चुगली ना हो कुछ लोगों की आदत होती है खाना ही हजम नहीं होता है. ..।

       इन्हीं गपशप के बीच रागिनी भी आ पहुंची …रागिनी को ऐसा लग रहा था …ये महिलाएं उसकी बहू की तारीफ करेंगी ….चाय तो अच्छी बनी ही थी …उसकी तारीफ के साथ-साथ स्वरा की भी तारीफ होगी ।

        पर यहां तो मामला बिल्कुल उल्टा था.. महिलाएं रागिनी की बहू की तारीफ तो छोड़िए …न जाने कितनी उजूल फिजूल की उपाधियों से विभूषित कर दिया था…

       बातों का सिलसिला आगे बढ़ा.. तो मीरा से रहा ना गया उसने चाय की चुस्की लेते हुए कहा… देख रागिनी बुरा मत मानना , पर तेरी बहू भी बहुत तेज है ….कैसे जवाब देती है… कल तो उसकी बातों से हम लोग दंग रह गए थे क्यों सुधा…? सुधा ने भी कुटिल मुस्कान देकर हां की स्वीकृति दे दी  …..तू उसे इतना मुंह लगाकर क्यों रखी है…?  देख भाई तू अपनी सहेली है ना इसीलिए सचेत कर दे रही हूं …इतना भी छूट नहीं देना चाहिए बहू को कि वो तेरे ही दोस्तों के सामने जवाब दे… बड़ों का कोई लिहाज है भी या नहीं…!

       अरे तुम लोग ये क्या बोल रहे हो …?   मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है ….

        मेरी बहू तो वो बाद में है..  जीती जागती एक इंसान पहले है , उसमें भी सोचने समझने की शक्ति है …उसका भी अपना विचार है , जिसे सबके समक्ष रखना आवश्यक है और इसमें जवाब देने वाली कौन सी बात हो गई…. आजकल की बहू  हमसे ज्यादा समझदार हैं ..मैं तो कितनी बार बहू से सलाह भी लेती हूं…!

 रागिनी ने सुधा और मीरा को समझाना चाहा.. पर सुधा और मीरा ने तो जैसे कसम ही खा ली थी कि… रागिनी की बहू को गलत और बददिमाग साबित करके ही दम लेंगी…।

    व्यंगात्मक मुस्कान के साथ मीरा ने कहा.. अरे हमें क्या पड़ी है हम तो तेरे ही भले के लिए बोल रहे हैं कि आगे से सावधान रहना.. थोड़ी बहू पर पाबंदी लगाना भी जरूरी है..।

      अब तक रागिनी बड़े धैर्य पूर्वक मीरा और सुधा की बातें सुनकर…उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी …!

       अब धैर्य का बांध टूट गया और रागिनी ने कड़े शब्दों में स्पष्ट बोला… अरे यार तुम सब चुप भी करो …

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       दूसरे के घरों की बहू बेटियों के आचरण का  ” मंथन ” करना बंद करो तुम्हारे सर्टिफिकेट की किसी को जरूरत नहीं है… यदि  “मंथन ” करना ही है तो खुद का करो… क्या जो तुम लोग रोज बैठकर …इसकी..उसकी..बातें  ( चुगली ) करते हो वो सही है..?

मैंने तो आज भी अपनी बहू के इस जवाब से कुछ सीखा ही है…।

ऐसा बोलकर रागिनी अपने घर की ओर चल पड़ी… सच में दोस्तों हमें किसी को भी इतना अधिकार देना ही नहीं चाहिए कि हमारे परिवार के बारे में हमसे ही भला बुरा कह सके… हर मनुष्य का स्वभाव और हर घर की परिस्थितियों अलग-अलग होती हैं…

फिर नाहक ही क्यों किसी के आचरण का मंथन करना…।

 ( स्वरचित, मौलिक , अप्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

 # वाक्य : आप टेंशन मत लीजिए वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी

   श्रीमती संध्या त्रिपाठी

VD

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