आदित्य उठते ही मानसी नज़र नहीं आई। तभी मां ने उसको मानसी का पत्र थमा दिया। पत्र को पढ़ते ही आदित्य यादों की गलियों में पहुंच गया। जहां मानसी और उसने अनगिनत खूबसूरत पल एक साथ बिताए थे। बहुत ही खूबसूरत और प्यारा साथ था दोनों का। एक साथ होते तो वक्त का पता ही ना चलता। आदित्य को याद आया कॉलेज का वो पहला दिन जब दोनों एक-दूसरे से मिले थे। दोनों ही स्वभाव से शर्मीले पर कक्षा ढूंढते-ढूंढते एक दूसरे से टकरा गए थे।
आस-पास किसी को भी ना देखकर एक दूसरे से बात करने को मजबूर हो गए थे। एक बार जो बात शुरू हुई फिर तो दोनों तरफ बातों का सिलसिला शुरू हो गया। कुछ तो था जो दोनों को एक दूसरे की तरफ खींच रहा था। देखते-देखते पहले बीबीबीए के तीन साल बीते और फिर दोनों ने एमबीए भी साथ किया।
एमबीए के पूरा होते होते दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब आ गए। दोनों ने एक-दूसरे के साथ पूरी जिंदगी बिताने का फैसला लिया। दोनों के घरवालें भी उनके रिश्तेंं के लिए तैयार हो गए थे। एमबीए करते ही आदित्य ने अपने घर के व्यवसाय को संभाल लिया। वैसे तो मानसी ने भी एमबीए किया था पर अभी वो थोड़ा समय अपनी होने वाली शादी और आदित्य के साथ अपनी नई गृहस्थी को देना चाहती थी। सब कुछ परियों की दुनिया सा सुंदर था।
कहां लोगों की प्रेम कहानियां किस्सा बन कर ही रह जाती हैं पर यहां उनकी पर तो उनके घर वालों की भी मोहर लग गई थी। विवाह की निर्धारित तिथि पर फेरे लेकर मानसी,आदित्य के घर आ गई।
मानसी के अपनत्व और प्रेम भरे व्यवहार ने सबका दिल जीत लिया था। आदित्य और मानसी के खिलखिलाने की आवाज़ों से पूरा घर गुलज़ार रहता था पर कहते हैं ना कि कई बार खुशियों को खुद की ही नज़र लग जाती है ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ। एक दिन जब आदित्य अपने माता पिता को मंदिर से दर्शन करवाकर वापिस आ रहा था तब गलत दिशा से तेज़ी से आ रहे ट्रक ने उनकी कार में टक्कर मार दी।
टक्कर इतनी तेज़ थी कि आदित्य के पिता की दुर्घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। आदित्य के भी काफ़ी चोट आई थी। उसकी माताजी चूंकि कार में पीछे बैठी थी इसलिए वो सुरक्षित थी। आदित्य को बेहोशी की हालत मे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। खबर मिलते ही मानसी हॉस्पिटल पहुंच गई। आदित्य बच तो गया था पर उसके एक पैर में काफ़ी चोट थी इसलिए डॉक्टर का कहना था कि अब शायद वो कभी सीधा नहीं चल पाएगा।
उनका ये भी कहना था कि दुर्घटना में उसके भविष्य में पिता बनने की क्षमता काफ़ी कम हो गई है। अभी ऐसी बातों को आदित्य को नहीं बताया गया था। आदित्य की मां अपने पति को तो खो ही चुकी थी पर बेटे के लिए बहुत चिंतित थी। इधर आदित्य की छोटी बहन सुमेधा की भी छः महीने बाद शादी होनी थी।
ज़िंदगी ने एक बहुत बड़ी और दुखद करवट ले ली थी। सब कुछ बदल गया था। ऐसे में मानसी ने सबको संभाला। एमबीए तो वो किए हुए ही थी। घर का व्यवसाय संभालने के लिए उसने कंपनी पर जाना शुरू किया।आदित्य को भी समय से दवाई देना और डॉक्टर ने जो भी पैरों के लिए एक्सरसाइज बताई थी उनका भी वो ध्यान रखती। इधर सास और ननद को भी संभाला क्योंकि जो चला गया है उसको वापिस लाना तो नामुमकिन है पर जो बचा है उसको समेटना बहुत ज़रूरी है।
आदित्य की दुर्घटना और उसके पिता के अचानक से चले जाने से व्यापार को बहुत नुकसान पहुंचा था पर मानसी ने अपनी दिन रात की मेहनत और काबिलियत से सब संभाल लिया था। ये सब तो चल ही रहा था पर ज़िंदगी के इस तरह दुखद करवट लेने से आदित्य बहुत ही चिड़चिड़ा हो गया था। वो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता था। अपने निजी कामों को करने में भी असमर्थ था,प्रतिक्रियास्वरूप इन सबका गुस्सा वो मानसी पर निकालता था।
मानसी अपनी दर्द को आंखों में समेटे हिम्मत से हर तकलीफ का सामना कर रही थी। वो हर बात झेल सकती थी पर आदित्य का इस तरह का व्यवहार उसे अंदर से तोड़ रहा था फिर भी उसकी तबियत को ध्यान में रखते हुए वो संयम बनाए रखती। इधर छः महीने भी बीत गए, ननद के होने वाले ससुराल के लोग अच्छे थे उन्होंने बिना किसी तामझाम के नियत तिथि पर शादी करने की बात कही पर मानसी को लगता था कि ननद की शादी को लेकर उसके ससुर के बहुत अरमान थे इसलिए वो इस शादी में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। सास भी अब पहले से संभल गई थी।
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मन्नत का धागा (भाग 2 ) – डॉ पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
डॉ पारुल अग्रवाल,
नोएडा
Very nice story