श्यामा प्रसाद जी के बंगले में खूब चहल-पहल है। खुशियों से सबके चेहरे चमक रहे हैं। वाद्य यंत्रों और बधाई गीतों की आवाज दूर-दूर तक जा रही है।
दादू-दादी आओ, पापा-मम्मी आओ….
मन्नत को झूला झुलाओ……..
गाओ सखियों मंगल गान…
जन्मी हमारी राजदुलारी…
मन्नतों से मांगी गई मन्नत आज 40 दिन की हो गई है। श्यामा प्रसाद जी हाथ जोड़कर, आए हुए सभी आगंतुकों से मन्नत को आशीर्वाद देने का अनुरोध करते हैं, “बेटियों के बिना घर संपूर्ण नहीं होता। मेरी कोई बहन नहीं है। संतान के रूप में भी मुझे इकलौता बेटा अनिल मिला। 7 साल पहले पोते अनिकेत का जन्म हुआ। तीन पीढ़ियों से अधूरे हमारे घर को अब मन्नत मिली है। हमारी मनौती को पूरा करने के लिए हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और आप सब से मन्नत को शुभाशीष देने का आग्रह करते हैं।”
बिटिया के जन्म की बधाई देकर बेशक मेहमान चले गए लेकिन अब घर की रौनक बढ़ाने के लिए मन्नत काफी है। श्यामा प्रसाद जी जितनी देर घर में रहते हैं, मन्नत को गोद में उठाकर कहते जाते हैं, “दादाजी हैं बड़े सयाने, पोती भी गुणवंती है।”
दादी भी अपनी पोती को रोज नहला कर काला टीका लगाकर उसे धीरे-धीरे बड़ा कर रही हैं। मन्नत के पापा अनिल हर दिन शाम को मन्नत को पुकारते हुए ही घर में दाखिल होते हैं, “देखो! पापा अपनी मन्नत के लिए क्या लाए हैं?”
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मन्नत की मम्मी संजना उसे रोज नए-नए फ्रॉक पहनाकर, उसके बालों को तरह-तरह से सजाकर, उसे खिलाती हैं। उसके पीछे-पीछे भागते हुए, “छोटी सी किशोरी मोरे अंगना में खेले रे।” गाते हुए फूली नहीं समाती।
भाई अनिकेत का मन्नत के लिए प्यार सबसे अलग है। वह हमेशा सबसे शिकायत करता, “सब मन्नत को ही प्यार करते हैं, मुझे कोई नहीं।” वह मन्नत को सताता, “तू तो बस सारा दिन चॉकलेट खाती रहती है।” पर अपने हिस्से की चॉकलेट भी उसके बैग में रख देता।
मन्नत अक्सर अनिकेत को चिढ़ाती, “भैया, जरा रक्षाबंधन आने दो। जब तक बड़ा सा गिफ्ट नहीं दोगे, राखी नहीं बांधूंगी।” अपने भैया से प्यार वाला झगड़ा करती, धमा-चौकड़ी मचाती, सबका मन बहलाती, छोटी सी मन्नत घर में सब की खुशियों का खजाना थी। समय के साथ धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी पर मन्नत का मन जल्दी से बड़ा होने का करता।
श्यामा प्रसाद की बाल्टी भर पौधों को पानी देने जाते, तो मन्नत अपने दादू की मदद के लिए छोटे-छोटे हाथों से बाल्टी उठाने का प्रयास करती। अपनी दादी और मम्मी को रसोई में खाना बनाते देखती, तो बोलती, “अम्मा! मम्मा! बस मैं थोड़ी बड़ी हो जाऊं तो मैं रोज नई-नई डिशेज बनाया करूंगी।”
स्कूल में जैसे ही एक पीरियड के समाप्त होने पर शिक्षक कक्षा से बाहर जाता, खुद टीचर बनकर सारे बच्चों को कंट्रोल करने लगती। शाम को अनिकेत को क्रिकेट खेलते देखती, तो उसका बड़ा सा बैट उठाने की कोशिश करते हुए कहती, “भैया, बस मैं थोड़ी बड़ी हो जाऊं तो आपसे भी लंबे छक्के लगाऊंगी।”
मन्नत के पापा अनिल अपने टेक्सटाइल व्यवसाय में बहुत व्यस्त रहते थे। उनकी व्यस्तता मन्नत को सबसे अधिक परेशान करती। वह हमेशा कहती, “पापा, बस मैं जल्दी से बड़ी हो जाऊं तो आपके बिजनेस में मैं हेल्प करूंगी। आपको छुट्टी मिल जाया करेगी और फिर हम सब मिलकर घूमने जाया करेंगे। खूब मस्ती करेंगे।”
समय अपनी गति से चलता रहा। अनिकेत को लाॅ में रुचि थी तो वह वकील बन गया। उसकी शादी हुई तो प्यारी सी भाभी के रूप में मन्नत को एक दोस्त मिल गई। मन्नत ने हाई स्कूल के बाद कॉमर्स स्ट्रीम को चुना। कॉलेज में पहुंचते ही अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, वह अपने कहे अनुसार,अपने पापा की बिजनेस में हेल्प करने लगी और बिजनेस के गुरु सीखने लगी।
अब मन्नत MBA कर चुकी है। अपने पापा के बिजनेस को नए तरीके से मैनेज कर, पापा का दायां हाथ बनकर, उसका विस्तार करने में लगी है। मन्नत अब सच में बड़ी हो गई है।
जैसे कि हमारी परंपरा है, मन्नत के बड़े होते ही घर में उसकी शादी की चर्चा शुरू हो गई है। भाभी अक्सर मजाक करती हुई कहने लगी हैं, “अपनी शादी की मिठाई कब खिला रही हो?” भाई का प्यार तो अलग ही है, “चल जल्दी से दुल्हन बन और हमारा पीछा छोड़!” कुल मिलाकर दादू-दादी मम्मी-पापा, सब उसकी शादी के पीछे पड़ गए हैं।
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मन्नत के पापा अनिल उसे कहते हैं, “मन्नत बेटा, तुम हमारे बिजनेस सप्लायर मेहता जी के बेटे तुषार को तो जानती ही हो। उसने भी एमबीए किया है और उसने पिछले दो सालों में अपने पापा के बिजनेस को बुलंदियों तक पहुंचा दिया है। तुषार और उसके मम्मी-पापा को तुम बहुत पसंद हो। बिजनेस मीटिंग में तुम तुषार और उसके पापा से कई बार मिल चुकी हो। अब अगर तुम्हें भी तुषार पसंद है तो बात आगे बढ़ाएं।”
हमेशा जल्दी से बड़ा होने की चाहत रखने वाली मन्नत अपने पापा से यह सब सुनते ही बहुत भावुक हो गई, “#पापा, मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यूँ?”
पापा अनिल कहते हैं, “मन्नत बेटा, यह तो दुनिया की रीत है। आपकी भाभी भी तो हमारे घर आई हैं। अब तुम्हें भी अपनी भाभी की तरह, बहू के रूप में अपना कर्तव्य निभाना है।”
अपनी नम आंखों से मन्नत कहती है, “पापा, अगर शादी करना जरूरी है तो तुषार के लिए मना करने का कोई प्रश्न नहीं है। मैं उन्हें अच्छे से जानती हूं।” सबने एक साथ कहा, “अब किस चीज की देर!!”
सगाई के अवसर पर, तुषार और मन्नत दोनों ने एक दूसरे से वादा किया, “हम दोनों एक दूसरे की स्वतंत्रता का ख्याल रखते हुए, मिलकर आगे बढ़ेंगे। दोनों परिवारों को अपना परिवार मानेंगे। दोनों के मम्मी-पापा को अपने मम्मी-पापा मानेंगे।”
शहनाईयां फिर बजने लगीं, शादी का दिन जो आ गया। मन्नत और तुषार हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए।
दुल्हन बनी मन्नत विदा होते हुए फिर से भावुक होकर अपने पापा से कहती है, “#पापा, मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यूँ? सुन लीजिए, मैं बड़ी बनकर अर्थात समझदार बनकर ससुराल में अपना हर कर्तव्य निभाऊंगी। लेकिन हमेशा आपकी छोटी गुड़िया रहूंगी और जब-तब मैं बचपन की तरह शरारतें करने और नखरे दिखाने जरूर आऊंगी।”
-सीमा गुप्ता ( मौलिक व स्वरचित)
#वाक्य कहानी प्रतियोगिता
वाक्य: #पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यूँ