शानदार घर की बेटी थी चंपा पर शान-ओ- शौकत नहीं मिली उसे कभी ।उसके पापा का शहर में बहुत नाम था पर ईश्वर ने रुप देने में कंजूसी कर दी थी जिसकी मार का शिकार हुई वो…।
गमले में पानी डालकर चंपा मंझली भाभी के आने का इंतज़ार कर रही थी । मंझली भाभी मायके गयी हुई थी और आज लौटने वाली थी ।दुःख की घड़ी में उसे सबसे पहले किसी की याद आती है तो वो है..मंझली भाभी । वैसे तो चंपा बहनों में इकलौती और दो भाइयों वाली है ।
लेकिन चंपा के पिताजी सूर्यमणि के भाई की दूसरे नम्बर वाली बहु है ये मंझली भाभी । नाम था उसका गौरी । लेकिन जब से उसके कदम पड़े उसने चंपा की ज़िंदगी में माँ के नाम का जो रिक्त स्थान था उसे भर दिया था । तब से कभी चंपा ने गौरी का नाम नहीं लिया ।
दोनों में शायद इसलिए ज्यादा बनती थी कि चंपा में गौरी को अपनी मरी हुई माँ के गुण नज़र आते थे । चंपा देखने में भद्दी शक्ल वाली और भारी बदन की लड़की थी । जब उसे कोई ताने उलाहने देता रुप पर तो वो जम कर खाती थी । सत्ताईस साल की थी चंपा जब उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी ।
माँ बहुत सपने बुना करती थी जीवित रहने पर चंपा के लिए की उसकी शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । पर चंपा के लिए जब लड़का देखने की बात चली उसे चार जगह से मना कर दिया लड़के वालों ने अपमान करके की आपकी लड़की तो बहुत बदसूरत है , कौन करेगा इससे शादी ?
और तो और चंपा के पिताजी ने भी इतने उलाहने दिए कि उसकी माँ ने बेबस होकर खुदकुशी कर ली । अब चंपा के परीक्षा की घड़ी शुरू हुई । पिताजी उसकी शक्ल देखना नहीं चाहते थे । उन्हें इतनी घृणा हो गयी थी उससे कि कोई उसका अपमान करे या कोई उसे बाहर फेंक दे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।
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दोनों भाभियों ने जैसे घर पर एकक्षत्र अधिकार जमा लिया था । सबने भाई के साथ मिलकर चंपा को घर से बाहर निकाल दिया तब गौरी ने उसे अपने घर में पनाह दिया । चंपा ने एक स्कूल ढूंढकर उसमें अध्यापिका बनकर पढ़ाना शुरू किया । खुद के खर्चे के लिए काफी था । गौरी पूरे खानदान में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी दबंग थी । उसकी बात को कोई नहीं नकारता था । साधारण नैन नक्श की थी पर दिल से बहुत अच्छी थी । दो साल बाद गौरी के पति राजमणि को ऑफिस वालों ने ऑस्ट्रेलिया का ऑफर दिया , पर वो सब सेट करके जाना चाहता था ।
सूर्यमणि जी (चंपा के चाचा ) की भी तीन बहुएँ थी बस बेटी नहीं थी । बड़ी छोटी दोनों विदेश में रहती थीं । मंझले बेटे राजमणि का ये मानना था कि ज़िन्दगी में अच्छी पढ़ी लिखी पत्नी और परिवार मिले ऊपर से पैसे भी अथाह हों तो इससे ज्यादा और तकदीर को क्या चाहिए । इसकी वजह से वह सुरेश बाबू की बेटी गौरी के साथ ब्याह करने को तैयार हो गया । गौरी के पिताजी सुंदर पढ़ा लिखा दामाद को देखकर रोक नहीं पाए । सुरेश जी की चाहत थी अच्छा दामाद पाने की और राजमणि की इच्छा थी मोटा रकम पाने की, इसलिए दोनों का मेल हो गया ।
काम से फ्री होकर बैठी ही थी चंपा की गौरी उससे चिपक कर बैठ गयी । गौरी ने एक आर्टिकल की कटिंग दिखाते हुए बताया कि शहर के जानेमाने बिजनेस मैन हैं अरुण जी, पैसों की कोई कमी नहीं, बड़ा बंगला, कई गाडियाँ और ढेर सारे नौकर – चाकर हैं । वो बहुत बीमार रहते हैं पर आवश्यकता है
उन्हें आत्मीयता से देखभाल करने वाली लड़की की । चंपा ये सब शानो – शौकत गौरी के मुँह से सुनकर सहम गयी । उसने विरोध करते हुए एक स्वर में कहा..”नहीं..नहीं ! मुझे नहीं करना वहाँ काम । अपने पापा के कटु स्वभाव को याद करके वह कहने लगी..” पैसे वाले लोग बहुत बुरे होते हैं । एक घर से धक्के खाई तब तुमने सम्भाल लिया मंझली भाभी । अब तो तुम भी विदेश जा रही हो, यहाँ से धक्के खाकर कहाँ जाऊँगी । गौरी ने प्यार से समझाते हुए कहा..”देख ! तू यहाँ से निकलेगी तभी दुनिया समझ पाएगी । हो सकता है हमारी चंपा की शादी किसी राजकुमार से हो जाए ।
चंपा ने बिदकते हुए कहा…” क्यों आशापूर्ण दिल को तोड़ने वाले सपने दिखाती हो भाभी ? अपने घर से जब विदा नहीं हुई तो अब क्या सोचना ? ईश्वर ने ही मेरी किस्मत में खोट लिखकर भेजा तो क्यों इतने सपने देखना ?
अभी भी आशाभरी उम्मीदों से गौरी समझाने में लगी हुई थी । जीवन जीने की चाह लिए चंपा की आँखें छलक आईं और मन मार कर उसने गौरी से कहा कि तुम्हें तो अभी दस दिन में निकलना है, मैं बता दूँगी ।
गौरी के जाते ही चीखते हुए फूट कर रोने लगी चंपा । अपने पर्स से उसने माँ की फोटो निकाली और डबडबाई आँखों से माँ का मुख चूमते हुए पूछा..”अपने रूप से मुझे इतनी शिकायत तो न थी माँ जो तुमने मुझे अपनी जान देकर ज़माने में मुझे गुनहगार साबित कर दिया । अब तुम्हीं बताओ मंझली भाभी तो अपने बच्चे और पति के साथ जीवन सँवारने के लिए बाहर शिफ्ट हो रही हैं । मैं कहाँ जाऊं ? यहाँ नजदीक रहकर भी तुम्हारे पति और मेरे पापा न तुम्हें जाने के बाद मुझे अकेला छोड़ दिया ।
आँखों को बंद करके माँ की फोटो को हृदय से लगाए हुए उसके दिमाग में एक अच्छे घर के स्वप्न आने लगे जब वो सबके साथ रहती थी । थोड़ा रोकर खुद को हल्का किया और उसे महसूस हुआ जैसे जीवन बढ़ने का नाम है और उसने सोचा दो दिन बाद मंझली भाभी को बोलूँगी कि मुझे जाकर साथ में उस पते पर पहुंचा दे ।
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स्कूल से आने के बाद चंपा गौरी को खोजने लगी । गौरी अपने बेटे को सुला रही थी । गैस पर चाय चढ़ाते हुए चंपा ने घर गौरी से कहा…”बाहर जाने से एक दिन पहले मुझे उस पते पर पहुंचा देना मंझली भाभी ! मैं जीवन मे आगे बढ़ने के लिए तैयार हूँ । गौरी ने चंपा के दोनो गाल दबाते हुए कहा..”मेरे दबाव में बोल रही है न चंपा ? अचानक से तू स्कूल से आते ही शुरू हो गयी । आज दिन भर यही सोच रही थी क्या ? बोलते बोलते गौरी की आँखें भर आईं । खूब तेज़ी से पकड़ कर चंपा गौरी के गले से लिपट कर सिसकते हुए बोलने लगी..
“कैसी बात कर रही हो भाभी ? जिन्होंने मुझे जन्म दिया उनके लिए तो मैं बोझ ही थी पर तुमने मुझे जीवन दिया है, मेरे जीवन में रंग भरे हैं । जन्म देने वाले से तुम्हारा रिश्ता ऊँचा है । तुमसे तो मेरे # मन का रिश्ता है । फिर भी तुमने मुझे जीवन दान दिया है । तब तक चंपा के भैया राजमणि कमरे में आ गए और दोनो ननद भाभी को देखकर माहौल हल्का करते हुए बोलने लगे..”चंपा ! कितना रुलाएगी भाभी को ? साल भर के अंदर तुमसे मिलाने लाऊंगा । जी भैया बोलते हुए चंपा चाय छानने में लग गयी । आखिर वो दिन आ गया
जब गौरी चंपा को उस घर मे छोड़ने के लिए तैयार हो गयी । बुझे मन से आँखों मे उदासी लिए एक बैग में उसने चार – पाँच जोड़ी कपड़े रखे और गौरी के साथ चल पड़ी । रास्ते भर नींद में डूबी रही चंपा । तेज़ झटके से गाड़ी रुकी तो आँखें जैसे चुंधिया सी गयी । घर नहीं महल था वो, गौरी विश्वास से भरी हुई थी और चंपा कभी खुद को निहारती तो कभी घर को । चौकीदार ने पूछा..”कहिए किससे मिलना है ? काँपते हाथों से चंपा ने आवश्यकता वाला आर्टिकल दिखाया । एक महिला चंपा को लेने आयी ।
चंपा भारी मन से गौरी से गले मिली और बिना मुड़ के देखे अंदर चली गयी । महिला वहीं काम करती थी । ममता नाम था उसका । उसने अपने साहब अरुण जी से चंपा को मिलवाया । अरुण जी की पत्नी सुगंधा जी एक कमरे में लाचार पड़ी थीं । छोटे बेटे ने जवानी में ही दम तोड़ दिया था तो वो अकेलेपन और पैरालाइसिस की शिकार हो गईं थी । अरुण जी खुद भी पैर से लाचार और दिल के मरीज भी थे । चंपा अपना काम समझ गयी थी । बहुत मेहनत से जिम्मेदारी के साथ वो अपने कर्तव्य निभा रही थी ।
तीन दिन के बाद चंपा ने देखा दूसरे ओर से छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी । उसने जाकर देखा तो छोटी सी प्यारी बच्ची करीब साल भर की, झूले में झूल रही थी । कमरे में कोई नहीं था वो बहुत रो रही थी । चंपा ने उसे प्यार से उठाया और उसका सिर सहलाया तो देखा एक पुरुष आता दिखाई दिया । ममता से पता चला उस बच्ची के पिता हैं । बच्ची धीरे धीरे शांत होने लगी । वह रसोई में जाकर खाना बनाने वाली ममता से पूछने लगी ..बच्ची कौन है ? इसकी माँ यहाँ नहीं रहती क्या ? ये दूध कैसे पीयेगी आदि ।
ममता ने कहा..ये अरुण साहब की पोती है । बड़ा बेटा जय है, इन्हीं की छोटी बच्ची है ।इनका छोटा बेटा अपनी भाभी के साथ शॉपिंग के लिए जा रहे थे और रास्ते मे दर्घटना से मृत्यु हो गयी । चंपा ने अफसोस जताते हुए जानने की आगे उत्सुकता जताई तो ममता ने कहा इसको देखभाल करने वाली दो दिन से छुट्टी पर है मेरे से चुप नहीं होती । आज बहुत रो रही है । चंपा ने दूध गर्म करके बोतल में भर के उसे पिलाया और अपनी गोद में बच्ची को सुला दिया ।
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देखते – देखते दो महीने बीत गए । जब रोती नन्हीं बच्ची उसके पापा उसे चंपा को दे आते । चंपा उसके साथ अठखेलियाँ करती तो बहुत खुश होता था जय । चंपा ने घर में सबका दिल जीत लिया था और बच्ची की तो चहेती बन गयी थी वो । धीरे – धीरे सुगंधा जी भी अपने पैरों पर वॉकर के सहारे चलने लगी थीं । सुगंधा जी को दवा खिलाने से लेकर स्पंज करना और उन्हें बगीचे में घुमाना , अरुण जी और सुगंधा जी को खिलाना साथ बैठ कर बातें करना सब चंपा की जिम्मेदारी थी । फ्री होकर वो बच्ची को खिला पिलाकर और नहलाकर अरुण जी के कमरे में ले आती । दूर से ही दोनो पति – पत्नी उसे खेलता देख खुश होते थे ।
छः महीने बाद…
अरुण जी ने चंपा को बोला..”बेटा ! तुम अपने परिवारजनों से मिलना चाहो तो जाकर मिल सकती हो । छह महीने से तुमने छुट्टी नहीं लिया ।
एक बार मे ही चंपा ने कह दिया..”मेरे माँ – बाप नहीं हैं इस दुनिया में ।एक भाभी हैं जिनसे # मन का रिश्ता था पर अब वो इस देश मे नहीं हैं। सुगंधा जी और अरुण जी बुदबुदाए फिर सुगंधा जी ने कहा..”अपनी भाभी से बात करा दो । चंपा ने बोला..”कोई गलती हुई है तो बताइए सर ! अरुण जी ने मुस्कुराते हुए कहा..”इतने अच्छे से हमारे घर की देखभाल कर रही हो, तुमसे क्या गलती होगी ?
घबराते हुए चंपा ने मंझली भाभी को फोन मिलाकर दिया । गौरी ने कहा…नमस्कार सर ! कहिए क्या बात है । अरुण जी ने कहा..”जैसा कि चंपा ने बताया होगा हमारे घर मे एक बच्ची है जिसे चंपा ने सिर आंखों पर बिठाकर अपना ममत्व लुटाया है । वो बिन माँ की बच्ची है । माँ के रूप में असल जिंदगी में भी चंपा आ जाए हमारे बड़े बेटे की पत्नी और इस घर की बहु बनकर तो हमारी पोती का सौभाग्य होगा और हम खुद को भी खुशकिस्मत समझेंगे ।
अब गौरी की आवाज़ बिल्कुल बंद हो चुकी थी । वो समझ नहीं पा रही थी क्या जवाब दे । उसे लगा मानो वह खुले आंखों से स्वप्न देख रही हो ।
सुगंधा जी ने अपना परिचय देते हुए हेलो..हेलो कहा तो नींद से मानो गौरी जागी हो । गौरी ने पूछा आपके बेटे को पसन्द है चंपा ? सुगंधा जी ने बोला..”कल बात किया था हमने उसे रूप से कोई लेना देना नहीं इतना देखभाल करने वाली और प्यार देने वाली माँ भला कहाँ मिलेगी ? जीवन सँवर जाएगा बच्ची का ।
पर आपको एक बात बता दूं चालीस साल की उम्र का है बेटा , उम्र में फासला तो बहुत है पर थोड़े से स्वार्थी हो गए हैं हम ।
गौरी के पति राजमणि ने आगे की सारी बातें करते हुए कहा कोई आपत्ति नहीं हमे और जल्दी से मुहूर्त निकलवाइये । चंपा नज़रें झुकाए हुए आँखों में अश्रुमिश्रित मुस्कान लिए चुपचाप खड़ी थी । फोन पर नसीहतें देकर गौरी ने दो महीने में चंपा को 70 किलो से 60 किलो का बना दिया था ।
दो महीने बाद का मुहूर्त निकला ।
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बंगले में फिर से वही पुरानी चार साल पहले वाली रौनक और चहल पहल दिख रही थी । राजमणि और गौरी कन्यादान के लिए आ चुके थे। मंझली भाभी के पास कुछ दिनों के लिए चंपा आ गयी थी । उसे शहर के सबसे महँगे पार्लर में ले जाकर सजवाया गया । सकरात्मकता से उसका व्यक्तित्व चमक रहा था । उसका रूप भी आज खुद पर इतरा रहा था ।
एक कमरे में चंपा चुपचाप माँ की फोटो देखकर बोलने लगी ..”क्यों ऐसा गलत फैसला ले लिया माँ ? आज तुम्हारी बेटी की ज़िंदगी का सबसे खुबसूरत दिन है । कितना तरस रही थी इस दिन को देखने के लिए । तुम्हारे आशीर्वाद के बगैर मैं कितनी अधूरी हूँ ।
गौरी मुस्कुराते हुए कमरे में घुसी और चंपा को पकड़ कर बाहर लायी । बाहर सोफे पर चंपा के पिताजी बैठे हुए थे । चंपा की हिम्मत नहीं हो रही थी आगे बढ़ने की पर पिताजी ने उसे पकड़ कर अपने हृदय से चिपका लिया और फूट कर रोते हुए बोलने लगे …”मैंने तुम्हें घर के सुख से, माता – पिता के सुख से वंचित रखा । खुद को कभी माफ नहीं करूँगा पर तुमसे माफी की उम्मीद है बच्ची ।
चंपा पापा के गले लगकर जी भर के रोई और कहने लगी ..”आपने जन्म दिया है पापा , आपकी हर गलती माफ है । कन्यादान करिए और आशीर्वाद दीजिए की आगे आपकी बेटी हमेशा सुखी रहे । चंपा के पिताजी ने राजमणि और गौरी का हाथ पकड़ते हुए कहा..”कन्यादान मैं नहीं करने के लायक हूँ तुम दोनों ने इसे नई ज़िन्दगी दी है इसलिए कन्यादान तुम ही करोगे ।
मंडप पर आकर ममता ने बच्ची को चंपा और उसके पति के गोद मे दे दिया । कन्यादान और फेरे सम्पन्न हुए । चंपा दुल्हन बनकर उस महल में आ चुकी थी ।घर – परिवार को लक्ष्मी और बच्ची को नवजीवन मिल गया था ।
#मन का रिश्ता
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह