कुलकर्णी जी के बताये अनुसार कदम्ब और वीथिका सुबह ही वैदेही को लेकर डॉक्टर सौरभ के बंगले पर पहुॅच गये।
आज कुलकर्णी जी का गेट एक नौकर ने खोला। सामने वृद्ध कुलकर्णी जी एक कुर्सी पर बैठे थे।ऐसा लगता था कि जैसे वह उन दोनों की ही प्रतीक्षा कर रहे थे। भीतर जाकर कदम्ब और वीथिका ने उनके चरण स्पर्श किये तो उन्होंने दोनों के सिर पर हाथ रख दिया। फिर उन्होंने नौकर को संबोधित करते हुये कहा – ” इन लोगों को ले जाकर अन्दर कमरे में बैठा दो।”
कदम्ब और वीथिका की ओर देख कर उन्होंने कहा – ” तुम लोग अन्दर जाकर बैठो,अभी सौरभ आ जायेगा।” इतना कहकर वह टहलने के लिये चले गये।
उन दोनों को वहॉ बैठाकर नौकर चला गया। कदम्ब और वीथिका को बैठे अभी थोड़ी देर ही हुये थे कि उन्होंने देखा कि एक दूसरा नौकर एक ट्रे लेकर अन्दर आया। उसने दो कप चाय और एक प्लेट में बिस्किट उन दोनों के सामने रखकर कहा – “‘ साहब ने कहा है कि आप लोग चाय पी लीजिये। “
बिस्किट तो उन्होंने नहीं खाये लेकिन चाय जरूर पी ली। थोड़ी देर बाद डॉक्टर सौरभ कुलकर्णी आये और सबसे पहले वैदेही की फाइल देखी फिर वीथिका से वैदेही को लेकर एक दूसरे कमरे में चलने को कहा। वहॉ उन्होंने वैदेही का पूरी तरह से चेकअप किया।
जब डॉक्टर सौरभ कुलकर्णी वैदेही का चेकअप कर चुके तो वह बाहर आकर कदम्ब को लेकर अपने पापा के पास गये – ” पापा, मैंने बच्चे को अच्छी तरह से देख लिया है। इसका केस मुझसे सम्बन्धित नहीं है लेकिन कल इन दोनों को मेरे क्लीनिक भेज दीजिये, मैं रीढ़ की हड्डी वाले डॉक्टर नयन बंसल को बुला लूॅगा। वह जैसा कहेंगे, आगे वैसा करेंगे।”
फिर डॉक्टर सौरभ ने हॅसते हुये कदम्ब की ओर देखकर कहा – ” आप चिन्ता न करें। आपने सबसे ऊॅची अदालत में अपना मुकदमा लगा दिया है, जिसकी अवहेलना करने की शक्ति मुझमें तो है ही नहीं और मेरे किसी दोस्त में भी पापा की बात न मानने की क्षमता नहीं है। अब आप निश्चिंत रहें, उम्मीद करता हूॅ कि आपकी बेटी बिल्कुल ठीक हो जायेगी।”
कदम्ब और वीथिका तो जैसे मूक हो गये। उन्हें विश्वास नहीं था कि इतने प्रतिष्ठित और सुप्रसिद्ध डॉक्टर उनकी बेटी को इतने प्यार से देखकर आश्वासन देंगे। रेशमा न कहती तो उनकी तो इस आलीशान बंगले में घुसने की भी हिम्मत नहीं थी। ऑखों में कृतज्ञता के ऑसू लिये वे केवल हाथ जोड़े खड़े रह गये।
दूसरे दिन डॉक्टर नयन बंसल को सौरभ कुलकर्णी ने अपने नर्सिंग होम में ही बुला लिया। वैदेही का अच्छी तरह चेकअप करने के बाद डॉक्टर नयन ने कहा – ” सौरभ, मुझे लगता है कि इस बच्चे का ट्यूमर अभी अधिक बड़ा नहीं हुआ है। यदि जल्दी आपरेशन हो गया तो बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जायेगा। अधिक देर करने से बच्चा अपंग हो सकता है, मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकता है और अधिक देर हुई तो ट्यूमर के कैंसर बन जाने पर इसकी जान भी जा सकती है।”
” एक बात और जान लो कि यह पापा का केस है तो इस आपरेशन का तुम्हें एक भी पैसा तो नहीं ही मिलेगा साथ ही सैम्पल की दवाइयां और अधिक से अधिक सहायता भी करनी पड़ेगी, वरना पापा तुम्हें छोड़ेंगे नहीं।” डॉक्टर
सौरभ ने हॅसते हुये कहा।
” यदि अंकल ने आश्वासन दे दिया है तब तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है क्योंकि उनकी कही हुई बात टालने की हिम्मत तो मुझमें भी नहीं है। अपने नर्सिंग होम की व्यवस्था तुम देख लो मुझसे जो हो सकेगा, कर दूॅगा। अरे यार, कमाने के लिये इतने बड़े बड़े, मोटे मोटे लोग हैं, उनसे वसूल लेंगे। जिन्दगी भर नाम, यश और पैसा कमाया है। अब अंकल के कारण हम लोग मिलकर एक गरीब बच्ची की जिन्दगी बचाने का पुण्य कमा लेंगे।”
” फिर ठीक है, हम जल्दी से जल्दी इस बच्ची के आपरेशन की व्यवस्था करते हैं।”
तभी कुछ सोंचकर नयन बंसल ने कहा – ” सौरभ एक काम करते हैं। इसी हफ्ते अपने नर्सिंग होम में अपने डॉक्टर दोस्तों की एक मीटिंग रख लो, सबके सामने सारी बात रखते हैं और साथ में सबको यह भी बतायेंगे कि इस बच्ची के इलाज में अंकल में व्यक्तिगत रुचि है, इसलिये सबको इस बच्ची की सहायता करनी है। देखते हैं कि सब लोग मिलकर क्या कर सकते हैं?”
” तुम्हारी यह योजना तो बहुत बढ़िया है। मैं आज ही सभी मित्रों को सूचित कर देता हूॅ।”
” इस मीटिंग के बाद ही हम बच्ची के आपरेशन की तारीख निश्चित करेंगे। कोई कुछ नहीं भी करेगा तो हम दोनों तो हैं ही।”
” ठीक है, मैं इन लोगों को अगले हफ्ते आने के लिये बोल देता हूॅ।”
डॉ सौरभ कुलकर्णी ने कदम्ब को एक हफ्ते बाद आने के लिये बोल दिया।
अगला भाग
मंगला मुखी (भाग-10) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर