अपने इकलौते बेटे को हल्दी लगते माथे पर सेहरा सजते और दूल्हा बनते हुए देखकर दिनेश जी की आंखें बार-बार भर आती, यह वही बेटा था जिसके होने पर इन्हीं परिवार वालों और रिश्तेदारों ने अफसोस जाहिर किया था और आज वही सब उनकी खुशी में शामिल होकर नाच गा रहे हैं खुशियां मना रहे हैं! कैसे भूल सकते हैं
आज से 28 साल पहले का दिन जब 8 साल के इंतजार के बाद उनके घर में बेटे दिव्यांश का जन्म हुआ उसकी किलकारी से पूरा घर खुशी से भर गया किंतु यह खुशी क्षणिक भर थी जब डॉक्टर ने कहा…. आपके बेटे के दोनों पैर कभी सही ढंग से काम नहीं कर पाएंगे वह कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा,
उनके ऊपर मानो वज्रपात तभी हो गया और दूसरे वज्रपात ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी जब साल भर बाद यह पता चला बेटा अपाहिज होने के साथ-साथ जबान से भी अपंग है वह बोल नहीं पाता, कहां-कहां किस-किस जगह वह उसे ले लेकर नहीं भटके, कोई डॉक्टर कोई साधु महात्मा कोई नीम हकीम जो जहां का पता बताता
बस वही उसे लिए दौड़ जाते किंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात, आखिरकार दोनों पति-पत्नी ने ईश्वर की मर्जी समझ कर उसे अपना लिया किंतु उसके बाद उन्होंने दूसरे बच्चे की इच्छा मन से त्याग दी, उन्होंने अपना सारा ध्यान केवल दिव्यांश के ऊपर लगाना शुरू कर दिया वह चाहते थे
दिव्यांश कुछ ऐसा करें जिसे देखकर उन्हें और समाज को गर्व हो सके, दिव्यांश जब स्कूल जाने लगा उसके सभी संगी साथी उसे हेय दृष्टि से देखते कोई भी उसका दोस्त नहीं बनना चाहता 10 साल का होने पर दिव्यांश ने पहली बार मां कहा तो शर्मिला जी को लगा जैसे कुबेर का खजाना मिल गया हो
और धीरे-धीरे दिव्यांश अटक अटक कर थोड़ा बहुत बोलने लगा ,एक दिन दिनेश जी और शर्मिला को किसी ने बताया की बहुत पहुंचे हुए एक महात्मा आए हैं उनके सत्संग में जाओ वह दिव्यांश को भी लेकर गए, उन्हें यह तो नहीं पता महात्मा जी ने 2 घंटे में क्या कहा किंतु एक लाइन उनके बेटे दिव्यांश के जीवन पर अमिट छाप छोड़ गई,
महाराज जी ने कहा “मन के हारे हारे है मन के जीते जीत” मन की ताकत से बड़ा कुछ नहीं होता और यह बात दिव्यांश के मन में घर कर गई, घर आकर उसने अपनी वह विकलांगता जिसे वह हेय दृष्टि से देखता था अब उसमें एक नई ऊर्जा का संचार हुआ उस ने सोचा मैं कुछ ऐसा करूं की जिससे मेरे माता-पिता और समाज मुझ पर गर्व कर सके
और उसने अपने आप को पढ़ाई में इस तरह झोंक दिया की ना उसे दिन का पता ना रात का, ना भूख का ना प्यास का और कई सालों के बाद उसने प्रशासनिक सेवा में अपना नाम रोशन किया, इस दौरान साथ पढ़ने वाली एक लड़की से उसे प्रेम भी हो गया, स्टेज पर सभी नई अधिकारियों का स्वागत किया जा रहा था
किंतु सबकी नज़रें सिर्फ दिव्यांश पर थी क्योंकि सिर्फ वही व्हीलचेयर पर वहां आया था, जब उसे सम्मानित किया जा रहा था माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे तभी एक लड़की दिशा उनके पास आई और बोली… अंकल आंटी अब रोने के दिन गए अब अच्छे दिन शुरू हो गए दिव्यांश ने पूरी दुनिया में आपका नाम रोशन किया है
शक की सुई हमेशा बहू पर आकर क्यों अटक जाती है!! – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi
मैं दिव्यांश के साथ ही पढ़ाई करती थी मैं और दिव्यांश एक दूसरे को बहुत चाहते हैं मैं भी अधिकारी बनी हूं किंतु मेरे मम्मी पापा इस दुनिया में नहीं है वरना आज वह भी अपनी बेटी को इस जगह देखकर बहुत खुश होते, अंकल आंटी मैं आपके बेटे से शादी करना चाहती हूं किंतु अगर आपकी इजाजत हो तो!
इतनी सुंदर और इतनी प्यारी लड़की उनकी बहू बनेगी इसकी तो कभी उन्होंने सपने में कल्पना भी नहीं की थी, थोड़ी देर बाद दिव्यांश वहां आया और उन्होंने सारी बातें दिव्यांश को बताइ! तब दिव्यांश ने शरमाते हुए कहा…. कि पापा मैंने सोचा एक बार में यहां तक पहुंच जाऊं फिर अपने मन की बात आपसे कहूंगा!
बेटा… तुमने जो खुशी आज हमें दी है उसके आगे तो दुनिया के सारे दुख खत्म हो गए किसी भी माता-पिता के लिए यह बहुत बड़ा दिन होता है कि उनका बेटा तरक्की के आसमान को छुए और वह भी ऐसी स्थिति में और गर्व है मुझे इस लड़की पर जिसने तुम्हारी शारीरिक विकलांगता नहीं
बल्कि तुम्हारे मन की मजबूती देखी तुम्हारा हकलाना नहीं दिल की आवाज सुनी, जिस लड़की ने तुम्हारा कदम कदम पर साथ दिया है उसे हम कैसे अपने घर की बहु ना बनाएंगे बल्कि मुझे तो नाज है तुम दोनों पर और ऐसा कहते उनकी आंखें बरबस बहने लगी! तब दिव्यांश ने कहा ….
पापा आज आपके आंसू मोती बन गए क्योंकि यह दुख के नहीं खुशी के आंसू है और आपके इंतजार और धैर्य का परिणाम है और कुछ दिनों बाद विवाह की बेला भी आ गई और आज दिनेश जी अपने बेटे को देखकर आनंदित हो रहे थे, जिस दिन की उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी वह दिन आज सचमुच साकार हो गया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (आंसू बन गए मोती)