आज सुबह सुबह खबर मिली, आप नहीं रही। “यह कैसे हो सकता है?” मेरे मन को बहुत धक्का लगा ।आप तो मेरी बड़ी दीदी थी।मेरी सबकुछ ।पता नहीं कब से आपसे मन का रिश्ता जुड़ गया था ।आपसे सच कहा जाए तो कोई रिश्ता नहीं था । फिर भी एक मन का रिश्ता होता है ना वह तो था ही ।
हम दोनों पड़ोसी थे।हमारे पति भी एक ही कंपनी में काम करते थे ।तो आते जाते कभी बात चीत हो जाती थी।हमारा घर आमने-सामने ही था।कभी छत पर कपड़े फैलाते, कभी बड़ियां तोड़ते हम एक दूसरे को देख लेते ।फिर आपने एक दिन इशारा किया घर आने के लिए ।मैंने अपने पति को यह बात बताई तो उनहोंने कहा “चलो चलते हैं,
मिल भी लेंगे, पड़ोसी हैं दोस्ती भी हो जायेगी ” उसदिन शाम को हम दोनों आपके घर गये ।मिल कर बहुत अच्छा लगा ।कितना अपनापन था आपके स्वागत में ।चाय नाश्ता करने के बाद हमारी बात चीत शुरू हो गई ।जानकर बहुत अच्छा लगा कि हमारी रूचियों में कितनी समानता है ।मेरी साहित्य में बहुत रुचि रही ।
और आपको भी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ।फिर तो हमदोनों अपनी पुस्तकों को मिल बाँट कर पढ़ाई करते ।मेरे घर में, मैंने छोटी सी लाइब्रेरी बना रखी थी ।अच्छी पुस्तक पढ़ने का शौक था तो संग्रह करती थी।फिर हमारी दोस्ती इतनी बढ़ती गई की हम एक साथ पर्व त्योहार मनाते और एक साथ खाना खाते ।
एक ही थाली में ।एक साथ घूमने जाते ।हम दोनों की एक एक बेटी थी।वह दोनों भी एक साथ स्कूल जाने लगी थी ।दोनों के पतियों की भी आपस में खूब पटने लगी थी।पड़ोस से होता हुआ न जाने कब कैसे हमारा दिल का रिश्ता जुड़ गया ।उसदिन मेरी तबियत अचानक खराब हो गई थी ।
आपकों पता चला तो तुरंत दौड़ती आई और डांट दिया “क्या हम कोई नहीं हैं तुम्हारे?खबर भी नहीं की? और फिर आपने मेरे पूरे घर को संभाल लिया ।बेटी की देखभाल, पति का नाश्ता, खाना, मेरी सेवा ।सबकुछ ।आपने मेरी बहुत सेवा की पूनम दीदी ।समय पर हमारे बच्चे बढ़ते गये ।
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उनकी शिक्षा पूरी हुई तो शादी की चिंता होने लगी ।आपकी अनु तो दो साल की बड़ी थी मेरी शिखा से ।अनु की शादी पटना से हो रही थी ।मै भी अपने परिवार के साथ गयी ।आप बहुत खुश हो गई थी मेरे जाने से ।और शादी की देखभाल का पूरा जिम्मा मुझे सौंप दिया ।
फिर खुशी खुशी हम लौट आये थे।शिखा की शादी को लेकर मै बहुत चिंतित रहती थी।जहां जाती ,बात पैसे को लेकर अटक जाती ।हमारे पास आर्थिक मजबूती नहीं थी।फिर मै अकेले होती तो रोने लगती ” कैसे होगी बेटी की शादी?” आपने मुझे बहुत समझाया ” बेटी की शादी कहाँ रूकती है? समय पर सब हो जायेगा ।
और आपके ही अथक प्रयास से, आपके ही परिवार में आपने मेरी शिखा की शादी तय करा दी।बेटे की माँ से सीधे सवाल किया था ” कितना रेट रखा है बेटे का?”फिर मेरी बेटी की शादी धूम धाम से हो गई थी ।बिना लेनदेन के ।आपका सहयोग कैसे भूल जाऊं दीदी ।आपने बड़ी बहन की भूमिका निभाई थी
मेंरे लिए ।मन का रिश्ता खूब फलफूल रहा था ।समय सरपट भाग रहा था ।हमारे रिटायरमेनट का समय हो गया ।आप पटना चली गई ।मैं तब खूब रोयी थी ।पता नहीं आपका जाना मुझे बर्दाश्त के बाहर हो रहा था ।आपको जाना था ,आप चली गई ।अब मेरा मन नहीं लगता था ।
बीच बीच में हमलोग भी आपसे मिलने जाते तो आप मेरी और मेरे पति की पसंद का बना बना कर प्रेम से खिलाती ।जब मै चलने को होती तो आप मेरा बैग छीन लेती “अभी इतनी जल्दी जाने की क्या है ” और फिर हम रूक जाते दो चार दिन ।आपकी बात टाल नहीं सकती थी मै ।
सबकुछ ठीक चल रहा था कि मेरे पति दिल के दौरे से अचानक एक दिन चले गये ।आपको खबर मिली तो आप तुरंत दौड़ती आई और मुझे संभाल लिया ।कितना कठिन समय था आपके लिए ।आपकी भतीजी का एक्सीडेंट हो गया था ।पैर में राॅड लगा था ।पर आप वहां न जाकर मेरे पास आईं ।
कहा था।भतीजी तो ठीक हो जाएगी पर तुम्हारे पति लौट कर नहीं आयेंगे ।मुझे यहाँ आना जरूरी था।कितना प्यार करती थी आप मुझे दीदी ।और मै भी तो सारे सुख दुख आपसे साझा करती थी ।और एक साल के बाद अचानक आपके जाने की सूचना—अब मै किससे अपने मन की बात कहूँ ।
मै आपके श्राद्ध में पहुँची ।अनु मेरे गले लग गई ।देर तक रोती रही ।क्या कहती मै? कहने के लिए शब्द ही नहीं था।फिर खाली मन लिए लौट गई ।दो महीने के बाद आपके पति भी नहीं रहे ।और पाँच साल के बाद आपकी अनु भी चली गई ।कहानी खत्म हो गयी थी मेरे जीवन की ।
आपके अपनापन की।सच में आप बहुत अच्छी थी दीदी ।आपकी आज पुण्य तिथि है ।आपके लिए मेरी श्रद्धांजलि है दीदी ।बहुत से पाठकों को शायद बकवास लगे।मेरी रचना ।पर यह मेरे मन का उद्गार व्यक्त करने का तरीका है ।क्षमा प्रार्थी हूँ सभी से ।
उमा वर्मा,
नोएडा ।
स्वरचित, मौलिक ।