मन का रिश्ता – खुशी : Moral Stories in Hindi

दोस्तो कई बार हमारे घर के खून के रिश्ते हमारे साथ नहीं जुड़ पाते अपितु पराए हमारे अपने हो जाते है।जानकी अमेरिका के एयरपोर्ट पर खड़ी थी।आज पहली बार वो अमेरिका आई थीं।बहु रजनी की पहली डिलिवरी के लिए ।जानकी एक 50 वर्ष की महिला थी जिन्होंने अपने घर,पति और बच्चों में ही अपनी जिंदगी जी ली।

पति आदित्य यू तो बहुत अच्छे थे ।घर में किसी चीज की कमी ना थी।परंतु उनके पास जानकी को देने के लिए वक्त नहीं था। जानकी चाहती कि वो कुछ पल तो उसके साथ बिताए उसे समझे पर नहीं।बच्चे अपने में मशगूल बेटा वीर अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और उसकी पत्नी रजनी भी।बेटी कृति अहमदाबाद में

अपने पति रितेश के साथ रहती थीं।बेटे वीर की आवाज से वो वापिस लौट आई।वीर ने आदित्य के बारे में पूछा तो बोली उनका कुछ जरूरी काम था।क्या बताती वो यहां आकर बंधना नहीं चाहते।घर पहुंची तो बहु ने चाय नाश्ता करवाया।बेटा बोला मां अब आप अपना घर संभालो और मुझे आजाद करो।

जानकी बोली हा बेटा मै आगई हूं तू चिंता मत कर।बहु तू भी आराम कर ।जानकी अपने कमरे में आई और नहा कर गैलरी में आ गई।पड़ोस की गैलरी में एक आदमी बैठा था।

वो जानकी को देख मुस्कुराया और बोला हेलो ।जानकी ने भी औपचारिकता निभाई और कहा हेलो।उसने पूछा who are you? जानकी बोली मै वीर की मां वो बोला What you are not looking like a mother. जानकी बोली आपका नाम क्या है? उसने कहा मैं आर्नोल्ड यही आपका पड़ोसी हु।तभी वीर की आवाज आई मां खाना खाने आजाओ।

जानकी उसे बाय बोलकर चली गई।फिर हर दूसरे दिन वो कही न कही दिख जाता और दोनों में हेलो हो जाती।जानकी ने घर को अच्छे से संभाल लिया था।अगले महीने दूसरे शहर में वीर के ऑफिस की पार्टी थी वीर और  रजनी वहां जाने वाले थे।जानकी ने बहुत समझाया

बेटा छठा महीना है ट्रैवल करना सेफ नहीं है।पर उल्टा वो जानकी को ही दो बात सुना कर चले गए। इंडिया से आदित्य का फोन आया तो उसे भी वीर ने बताया कि मां कैसी बातें करती है।आदित्य ने कहा यू एंजॉय योर लाइफ और जानकी को भी कहा यहां भी वही दकियानूसी बाते वहां भी खुद भी चैन से रहो उन्हें भी रहने दो ।

बच्चे चले गए जानकी अकेली गैलरी में बैठी थीं।आर्नोल्ड आया उसने पूछा आप अकेली क्यों बैठी हैं उसने कहा घर पर कोई नहीं है।आर्नोल्ड बोला मेरे साथ शहर घूमने चलोगी।जानकी ने कहा ठीक है तीन महीने में किसी ने ना पूछा कि मां आपको भी कुछ देखना है।वो दोनों घर से निकले तीन दिनों में अर्नाल्ड ने न केवल उसे शहर घुमाया

बल्कि उसकी पसंद न पसंद का भी ध्यान रखा। अर्नाल्ड एक 47 साल का आदमी था जो देखने में भी बहुत अच्छा था और मन का भी साफ था वो  जानकी को उसकी कंपनी बहुत पसंद आई। जानकी ये तीन दिन भूल ही नहीं पाई।उसे लगा उसने अपनी जिंदगी जी ली। तीन दिन बाद बच्चे घर आए।रजनी की तबियत थोड़ी ना साज़ थी।

जानकी कुछ न बोली डॉक्टर को दिखाया तो बोला आपको ट्रैवल नहीं करना चाहिए था अब आप बेड रेस्ट पर रहेंगी।वीर मां से आंख नहीं मिला पा रहा था।धीरे धीरे रजनी का टाइम पूरा हुआ और उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।जानकी पूरे समय घर का काम करती और समय मिलते ही आर्नोल्ड से बात करती वो किताबें देता वो पढ़ती।

आर्नोल्ड उसकी मन की बात बिना कहे ही समझ जाता।दोनो के बीच एक मन  का रिश्ता था जिसका कोई नाम नहीं था। जानकी के जाने के दिन पास आ रहे थे।उसने वीर से कहा कि आदित्य को बुला इसका नाम करण संस्कार कर देते है। वीर बोला मैं पापा के साथ सब तय कर चुका हूं।वो परसो आ रहे हैं और शनिवार को बच्चे का नामकरण हो जाएगा।

जानकी को लगा कि इस जरूरी फैसले में भी मेरी मर्जी की  कोई जरूरत नही। नामकरण संस्कार अच्छे से हुआ जानकी अलग खड़ी थी क्योंकि उसकी कोई पूछ ही नही थी। अर्नाल्ड उसके पास आया और उसे एक पैकेट दे कर बोला तुम बहुत याद आओगी।जानकी की आखों में भी यही भाव थे।

अर्नाल्ड अगले दिन मिलने का वादा ले चला गया।अगला दिन आपा धापी वाला रहा निकलना जो था अगले दिन पर जानकी एक बार अर्नाल्ड से मिलना चाहती थी वो सामान का बहाना कर घर से निकली वहां आर्नोल्ड पहले से ही था।दोनो की आखों में आंसू थे।जानकी ने उपहार स्वरूप उसे एक स्वेटर दिया। आर्नोल्ड बोला जो मैने तुम्हे दिया है उसे घर जाकर खोलना और मेरा नम्बर भी है।

अगले दिन सुबह की फ्लाइट से जानकी इंडिया आ गई ।एक दो दिन बाद उसने आर्नोल्ड का दिया लिफाफा खोला उसमें एक खत एक चेन और नंबर था।जानकी ने खत खोलl उसमे लिखा था

प्रिय जानकी तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारे जैसे साथी की कल्पना मै सदैव करता था पर वो नहीं हुआ ।अब तुमसे मिलकर लगा मै पूरा हो गया।मेरा तुम्हारा मन का रिश्ता है।जब जी चाहे मुझे कॉल करना हम बाते करेंगे अपनी पेंटिंग जारी रखना और किताबें पढ़ना भी।खुद के लिए जियो।ये चैन मेरी तरफ से दोस्ती का तोहफा।

तुम्हारा

अर्नाल्ड

जानकी सोच रही थी जो 25 सालों में न मिला वो 8 महीने में मिल गया मेरे मन का साथी मुझे समझने वाला उसने वो चैन पहनी और अपने जीवन में फिर रंग भरने चल पड़ी।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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