मन का रिश्ता – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

अंकिता और आरव ने कभी नहीं सोचा था कि विपरीत स्वभाव  और विपरीत आर्थिक पारिवारिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद  दोनों में मन का रिश्ता अटूट  रुप से बँध जाएगा।अंकिता और आरव एक ही कम्पनी में काम करते थे,परन्तु दोनों के दफ्तर अलग-अलग थे।दोनों आरंभ से ही पढ़ाकू रहे थे,

दोनों के मन में कैरियर को लेकर  ऊँचे ख्वाब थे।दोनों आई.आई.टी.पास कर अच्छे संस्थान से मैनेजमेंट कर प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी कर रहे थे।कैरियर बनाने की व्यस्तता में दोनों की जिंदगी में अभी तक प्रेम की रसधारा नहीं फूटी थी,न ही किसी के साथ मन का रिश्ता जुड़ पाया था।इतना अवश्य था कि दोनों के घरवाले उनपर शादी का दबाव अवश्य बना रहे थे।

अंकिता देखने में बहुत खुबसूरत थी।गोरा रंग,लंबा कद,दुबली-पतली कमनीय काया,काफी आकर्षक थी।रुप और गुण का उसमें अद्भुत सम्मिश्रण था।उसके पिता सरकारी पदाधिकारी थे।माता-पिता की एकलौती संतान थी।बचपन से ही स्वतंत्र विचारों की थी।अच्छी नौकरी होने के कारण आत्मविश्वास उसमें कूट-कूटकर भरा हुआ था।

आरव भी लंबे कद का तीखे नैन-नख्श का साँवला स्मार्ट नवयुवक था।आरव निम्न मध्यवर्गीय परिवार का मेहनतकश लड़का था।उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।उसने काबिल बनकर माता-पिता को जिन्दगी की हर  खुशी देने का प्रण किया था।अपनी मेहनत के बल पर उसने आई.आई.टी.और आई.आई.एम जैसी कठिन परीक्षा पास की थी।

अब वह प्रतिष्ठित संस्थान में नौकरी कर रहा था।इसके विपरीत अंकिता परिवार की जिम्मेदारियों से बेफिक्र थी।अपनी मर्जी की खुद मालिक थी।कहने का अभिप्राय यह है कि दोनों की परिस्थितियाँ विपरीत थीं।

आरव और अंकिता के दफ्तर तो अलग-अलग थे,परन्तु कभी-कभार मीटिंग के दौरान  दोनों की मुलाकातें हो जाया करती थीं।आरव अंकिता पर पहले दिन ,पहली नजर में ही लट्टू हो गया था।अंकिता को देखते ही मानो उससे मन का रिश्ता जुड़-सा गया था।अंकिता उससे दो साल सीनियर थी,इस कारण उससे प्यार का इजहार करने में डरता था।यदा-कदा मीटिंग और पार्टियों  में दोनों की भेंट हो जाया करती थी।

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आरव मन-ही-मन अंकिता से बेपनाह मुहब्बत करने लगा था।,परन्तु उसे महसूस होता कि अंकिता का सीनियर होना और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कहीं उसके प्यार में बाधक न बन जाएँ!आरव की स्थिति साँप-छछून्दर की भाँति हो गई थी,वह न तो अंकिता से अपने प्यार का इजहार कर पा रहा था,न ही उसे भूल पा रहा था।आरव का दोस्त नीरज उसके प्यार की कशिश से वाकिफ था।नीरज ने चुटकी लेते हुए कहा -“आरव!एक बार  तो हिम्मत करअंकिता से अपने प्यार का इजहार करके देखो।क्या पता उसे भी तुमसे प्यार हो?”

नीरज की बातों से आरव के मन में हिम्मत बँधती है।उसने अपने दोस्त से कहा -” हाँ !नीरज, मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा हूँ।”

संयोग से कुछ दिनों बाद ही दफ्तर की मीटिंग में दोनों की भेंट  हो जाती है।मीटिंग समाप्त होने पर अंकिता जाने लगती है।अचानक से आरव उसके सामने आ जाता है और बिना समय गँवाए मजाक के मूड में पूछ बैठता है -” अंकिता!क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”

अंकिता अचानक से आश्चर्यचकित रह जाती है,फिर खिलखिलाकर हँसते हुए कहती है -” शादी,और तुमसे?कभी नहीं?”

आरव अंकिता के व्यवहार से खुश होकर सोचता है -” शायद,अंकिता के दिल में भी मेरे प्रति कुछ-न-कुछ जरुर है,वर्ना इतना खिलखिलाकर क्यों हँसती?”

धीरे-धीरे दोनों दोस्त बन जाते हैं।दफ्तर के काम से अंकिता कुछ दिनों के लिए  अमेरिका जाती है।दोनों एक-दूसरे को मिस करते हैं।कहीं न कहीं दोनों का मन का रिश्ता जुड़ चुका था। उसे उदास देखकर उसका दोस्त  नीरज पूछता है -” दोस्त!लगता है कि अंकिता को बहुत मिस कर रहे हो?”

 आरव कहता है -” हाँ!दोस्त,इस बार अंकिता के  अमेरिका से आने के बाद गंभीरता से उसे शादी के लिए  प्रपोज करुँगा।”

कुछ समय पश्चात् अंकिता के वापस लौटने पर आरव पूछता है -” सचमुच, तुमसे गंभीरतापूर्वक पूछ रहा हूँ,क्या तुम मुझसे शादी करोगी?तुमसे मेरा मन का रिश्ता जुड़-सा गया है!”

अंकिता -” आरव!मैं भी तुम्हें पसन्द करने लगी हूँ,परन्तु मैं तुमसे सीनियर हूँ और दो साल  बड़ी भी हूँ।क्या तुम्हारे माता-पिता शादी के लिए तैयार होंगे?”

आरव -” पहले तुम हाँ करो,फिर मैं माता-पिता को राजी कर लूँगा।”

अंकिता -” नहीं आरव!पहले तुम अपने माता-पिता को तैयार  करो,फिर मैं अपना निर्णय बताऊँगी।मैं नहीं चाहती हूँ कि हमारा मन का रिश्ता जुड़कर टूट जाएँ ।मुझे विश्वास है कि मेरे माता-पिता मेरी इच्छा को अवश्य स्वीकार करेंगे!”

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 शादी की बात करने आरव अपने घर जाता है। आरंभ में उसके माता-पिता उससे बड़ी लड़की से शादी करने को राजी नहीं होते हैं,परन्तु काफी मान-मनौवल के बाद  आरव अपने माता-पिता को मना ही लेता है।इधर अंकिता भी अपने माता-पिता को आरव के बारे में बताती है।वैसे तो अंकिता के निर्णय पर उसके माता-पिता को कोई ऐतराज नहीं था,परन्तु अंकिता की माँ कुछ सोच में डूब जाती है।उन्हें पता था कि उनकी बेटी स्वतंत्र विचारों आत्मनिर्भर लड़की है।उस पर कभी किसी बात का दबाव नहीं रहा है।आरव के ग्रामीण परिवेश  और ग्रामीण परिवार के साथ क्या अंकिता एडजस्ट कर पाएगी?

अंकिता की माँ ने अपने दिल की उलझन बेटी के सामने खोलते हुए कहा -” बेटी!आरव पर अपने परिवार की जिम्मेदारी है।उसकी आर्थिक स्थिति भी अभी मजबूत  नहीं है और ग्रामीण पृष्ठभूमि  है अलग।अगर तुम इन सब बातों से एडजस्ट कर सकोगी ,तो हमें कोई दिक्कत नहीं है।”

जब किसी के साथ  मन का रिश्ता जुड़ जाता है,तो उसे इन बातों की परवाह कहाँ होती है!अंकिता ने अपनी माँ को जबाव देते हुए कहा -” अरे मम्मी!मैं खुद इतना अच्छा कमाती हूँ,तो मुझे आरव के परिवार की आर्थिक मदद करने से कोई  ऐतराज नहीं है!”

आखिरकार  दोनों के परिवार की रजामंदी से दोनों का एंगेजमेंट धूम-धाम से हो जाता है।शादी की तारीख छः महीने बाद  निकलती है।इस बीच दोनों साथ-साथ घूमते हैं,एक-दूसरे के बारे में अधिक-से-अधिक जानते समझते हैं।छः महीने बाद  अंकिता की शादी आलीशान ढ़ंग से होती है।दोनों अपने मन के मीत से मन का रिश्ता जुड़ने से काफी खुश थे।

शादी के बाद अंकिता को कुलदेवी की पूजा करने के लिए ससुराल गाँव में जाना है।अंकिता गाँव जाने से घबड़ा रही थी।आरव ने उसे तसल्ली देते हुए  कहा -” घबड़ाओ मत।मैं हूँ न!”

गाँव पहुँचने के उबड़-खाबड़ रास्ते और गर्मी से अंकिता काफी परेशान हो चुकी थी।ससुराल  पहुँचने पर  रस्म-रीति निभाते-निभाते अंकिता परेशान  हो चुकी थी।उसके बाद आरव उसे कमरे में लेकर  आता है।उसी समय गाँव की औरतें दुल्हन देखने आ जाती हैं।बार-बार औरतों का दुल्हन देखने आने का सिलसिला जारी था।

एक तो गर्मी,उसपर से सिर पर घूंघट डालने से परेशान होकर  अंकिता कहती है -” आरव!ये क्या है?दुल्हन देखने का एक समय निश्चित करवाओ।दिनभर लोग मुझे देखने आते रहते हैं।मैं कोई तमाशा हूँ क्या?मुझे भी थकान होती है।”

आरव  अंकिता की परेशानी समझकर चुपचाप उसकी बातें सुनकर लेता है।

अगले दिन घर में पूजा हो रही थी।उसकी सास  कहती है -” बहू! आँगन में गाँव के लोग आए हुए हैं,घूंघट में बाहर निकलना।”

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अंकिता भारी साड़ी,चूड़ी, बिन्दी में गर्मी के मौसम में खुद को काफी असहज महसूस कर रही थी,वह गुस्से में पूजा में बाहर नहीं निकलती है।उसकी सास अंकिता को वही पारंपरिक बहू समझ रही थी,इस कारण अंकिता के व्यवहार से दुखी हो जाती हैं और आरव से शिकायत करती हैं।माँ को दुखी देखकर आरव भी दुखी हो जाता है।

कुछ दिन ससुराल में बिताकर अंकिता आरव के साथ वापस नौकरी पर बेंगलोर आ जाती है।यहाँ आने पर माँ की बातों को लेकर  आरव अंकिता से झगड़ा करता है।अंकिता भी  कहाँ चुप रहनेवाली थी। दोनों में काफी बहस हो गई। उस समय  दोनों को ऐसा महसूस हो रहा था मानो उनके दाम्पत्य-जीवन  में भोर की सुनहली किरणों के बाद  अचानक से सूर्य की दोपहरी-सा प्रचंड ताप प्रारंभ हो गया है।

अगले दिन दोनों  एक-दूसरे को मनाकर बीस दिनों के लिए हनीमून पर न्यूजीलैंड चले जाते हैं।न्यूजीलैंड की खुबसूरत वादियों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगता है।मन का रिश्ता प्रगाढ़ होने लगता है।न्यूजीलैंड की बर्फ से ढ़की चोटियाँ,जगमगाते हुए कोर्ब्स,तटीय ग्लेशियर, फेजर्ड,वर्षावन और  मछलियों से भरी नदियाँ ऐसे खजाने थे,जो उनके रोमांस के पलों को यादगार बना रहे थे।दिनभर घूमने के कारण थकी हुई

अंकिता होटल में आकर आराम  करने लगती है,तभी आरव के माता-पिता का फोन आ जाता है।आरव उनसे बात कर लेता है।उसके माता-पिता अंकिता से बात कराने को कहते हैं।अंकिता थकी हुई होने के कारण अगले दिन बात करने को कहती है।इसी बात पर फिर से दोनों में काफी झगड़ा होता है।शादी के कुछ दिनों बाद से ही दोनों छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं,फिर कुछ देर में एक-दूसरे को मना भी लेते हैं।

हनीमून से वापस आकर दोनों अपनी नौकरी ज्वाइन कर लेते हैं।धीरे-धीरे उनकी गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर सरकने लगती है।एक दिन रविवार को दोनों अच्छे मूड में थे,उसी समय अंकिता ने यूरोप मेंअच्छी नौकरी का ऑफर देखकर पूछा -” आरव! मैं इस नौकरी के लिए  आवेदन कर दूँ?”

आरव -” हाँ!कर दो।मैं भी तुम्हारे बहाने  विदेश में नौकरी के लिए आवेदन कर सकूँगा।”

अंकिता यूरोप के एम्सटर्डम शहर में नौकरी के लिए आवेदन कर देती है।उसी समय नौकरी के सिलसिले में आरव अमेरिका चला जाता है।अमेरिका जैसे देश से आरव काफी प्रभावित होता है।वहाँ से वापस आने पर आरव का मन बदल जाता है।आरव अंकिता से कहता है -” तुम यूरोप की नौकरी का ऑफर छोड़ दो।अब हम यूरोप नहीं अमेरिका में नौकरी करेंगे।”

अंकिता का अपना स्वतंत्र अस्तित्व था।उसने आरव की बात न मानते हुए कहा -” मेरी भी अपनी व्यक्तिगत सोच है।ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारे हाथ की कठपुतली हूँ कि जो तुम कहोगे,वही मैं करूँगी।”

बात-बात पर दोनों के अहं टकराने लगते हैं।बच्चों की तरह छोटी-छोटी बातों पर लड़ बैठते हैं।यहाँ तक कि शादी के छः महीने बाद से ही दोनों एक-दूसरे को तलाक की धमकियाँ देने लगते हैं।इसी बीच अंकिता का यूरोप की नौकरी का ऑफर आ जाता है और वह दृढ़ मन से वहाँ जाने का निर्णय करती है। भरे मन से आरव उसे एयरपोर्ट छोड़ने आता है।अंकिता भी भरे नयनों से उससे गले लगकर विदा हो जाती है।अंकिता के जाने के कुछ समय बाद  ही कोरोना महामारी के कारण  पूरे विश्व में लाॅकडाउन लग गया।

एक-दूसरे से अलग होते ही दोनों का दिल खाली-खाली सा लगने  लगता है। कुर्सी  पर बैठे-बैठे आरव अंकिता के बारे में मन में सोचता है-“शादी से पहले जब मेरे कंधे का ऑपरेशन हुआ था,तो घर में कुछ दोस्त उसके साथ रहते थे,परन्तु रविवार होने के कारण सभी उसे छोड़कर पिकनिक पर चले गए।

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छुट्टी के कारण मेड भी नहीं आई थी परन्तु मेरे एक फोन पर अंकिता दौड़ी चली आई थी।उसने पहले उसे सहारा देकर बैठाया था।खाना बनाना नहीं जानने पर भी उसने खिचड़ी बनाकर उसे खिलाई थी।शाम में सूप और रात का खाना जैसे-तैसे बनाकर उसे खिलाया था।जमाने  की परवाह न करते हुए रातभर उसके साथ रही थी।उसके साथ तो मन का रिश्ता उसी समय से जुड़ चुका था।”

उसी समय उसका दोस्त नीरज आता है।उसे उदास देखकर पूछता है-” क्या अंकिता की याद आ रही है?उसके साथ रहने पर तो हमेशा लड़ते ही रहते थे।अब चैन से रहो।”

आरव अपने दोस्त से कहता है -“तुम सच कहते हो।अंकिता तो आरंभ से ही ऐसी ही थी।मैं ही पागल था जो उसको समझ न सका।बेवजह उससे लड़ने लगता था।सचमुच उसकी बहुत याद आ रही है।”

नीरज  चुटकी लेते हुए कहता है-“अभी  अब कैसे मिलोगे?अभी तो लाॅकडाउन के कारण सभी अन्तरराष्ट्रीय उड़ानें बंद है।थोड़ी सब्र कर लो मेरे यार!”

आरव लाॅकडाउन खुलने के इंतजार  में यूरोप में ही नौकरी ढ़ूंढ़ने की कोशिश करता है।

अंकिता को भी यूरोप में लाॅकडाउन के कारण अकेले काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यूरोप में सारा काम उसे खुद अकेले करना पड़ता है।थककर बिस्तर पर लेटे-लेटे सोचती है-“आरव अगर साथ में रहता,तो मुझे कोई काम नहीं करने देता।वह खुद चाय नहीं पीता है,परन्तु मुझे बनाकर पिलाता है।मुझे वह कितना प्यार करता है!मैं ही पागल थी ,जो उससे छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करती थी।”

सोचते-सोचते उसकी आँखों से आँसुओं के सैलाब बहने लगते हैं।अब दोनों को अपनी-अपनी गलती का एहसास हो जाता है।दोनों फोन पर एक-दूसरे से झगड़ा न करने की कसमें खाते हैं।दोनों को समझ में आ जाता है कि उनका मन का रिश्ता अटूट है।दोनों लाॅकडाउन खुलने का बेसब्री से इंतजार करने लगते हैं।संयोग से आरव की भी नौकरी यूरोप में लग जाती है और लाॅकडाउन भी खुल जाता है।आरव के यूरोप पहुँचते ही एयरपोर्ट पर ही अंकिता उसके गले लगकर कहती है -” हमारा मन का रिश्ता अटूट है।हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।”

दोनों एक-दूसरे को देखकर सुखद भविष्य  की कल्पना कर मुस्करा उठते   हैं।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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