“ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा– चहुँओर हरियाली का श्रृंगार किये– कौसानी की एक अलग ही मनोरम छटा– जो देखता वो मनमुग्ध होजाता– अपने को ही विस्मृत कराने की कला थी –अद्भुत पर्वतीय प्रदेश कौसानी में।वहीं रहता था कामिनी का परिवार– पहाड़ों की शैली में रमा हुआ– वो ही पारम्परिक परिधान–
साज सज्जा सब वहीं के अनुरूप। परिवार संयुक्त था कामिनी का– उसके पति के अतिरिक्त उसके सास ससुर, देवर देवरानी,जेठ जिठानी,दादी सास — सब साथ रहते थे।कामिनी– तीखे नैन नक्श वाली गृहिणी थी।उसके चार बच्चे थे– एक लड़का और तीन लड़कियाँ– जिनको उसने बड़े लाड़ प्यार से पाला था।
उसके यहाँ खाना सब महिलायें मिलकर ही बनाती थीं।कोई ताजा मसाला पीसती तो उसकी महक पूरे घर भर में फैल जाती– फिर उसको भूनती तब जाकर स्वादिष्ट सब्जी तैयार होती। फिर जब खाना बन जाता तो सब खाने के लिए एक साथ ही बैठते–महिलायें, पुरुष और बच्चे सब– बड़े प्रेम से खाना खाते
और खाना बनाने वाली महिलाओं की प्रशंसा भी करते। सबका एक दूसरे से आंतरिक जुड़ाव था- सभी प्रेमी स्वभाव के थे उस परिवार में। कामिनी की बेटी बसुंधरा भी उसी की तरह खूबसूरत थी बल्कि उससे भी ज्यादा।अब वो कालेज जाने लगी थी अल्मोड़ा में और भी लड़कियाँ जाती थीं।जब सब निकलती तो कुछ मनचले आहें भरने लगते।
बी.ए के दूसरे साल में आगयी थी अब बसुंधरा।उसके साथ ही एक लड़का पढ़ता था अमर– वो भी एक पहाडी संभ्रांत परिवार का था। धीरे धीरे दोंनो एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने लगे।बसुंधरा सुन्दर होने के साथ-साथ और भी बहुत कामों में पारंगत थी। जब वो चित्रकारी करती
तो उसकी उंगलियाँ ऐसा लगता मानों कैनवास पर तैर रहीं हैं और थोड़ी ही देर में वो विलक्षण चित्र तैयार कर देती। अमर के शौक भी उसके साथ मेल खाते और शनै:शनै: उनका मन का रिश्ता जुड़ गया।अब कालेज आनेपर जब तक दोनों एक दूसरे को देख ना लेते तो उनको चैन नही आता। उनके प्यार के चर्चे होने लगे।एकबार कालेज में शकुंतला और दुष्यंत का नाटक खेला जाना था।
अब उसको लिए पात्रों को चयन करना था।सबने बसुंधरा और अमर का नाम सुझाया ।दोनों मान गए। जब नाटक का मंचन हुआ तो लगा कि वास्तव में शकुंतला और दुष्यंत ही हैं– प्रेम में सराबोर दो प्रेमी– आकंठ एक दूजे में डूबे हुए प्यार में– ऐसा गहन मन का रिश्ता जो शायद जन्मों जन्मों तक भी ना टूटे।
नाटक समाप्त होनेपर भी दोनों प्रेमी एक दूसरे के आगोश में समाये हुए– पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा– तब जाकर उन दो प्रेमियों की तंद्रा भंग हुयी– दोनों सकपका गये– लेकिन अब उनका प्यार सबके समक्ष खुल गया ।
कहते हैं ना कि इश्क और मुश्क छिपाये नही छिपता — जैसे कस्तूरी की तीव्र सुगंध अपने आप ही फैल जाती है ऐसे ही इश्क की महक भी दूर दूर दूरतक चली जाती है पवन के झोंकों की तरह।
अब बसुंधरा के परिवार में भी इस प्यार के चर्चे पहुँच गए ।बसुंधरा के परिवार में सब सुलझे हुए लोग थे।सबका एक दूसरे से मन का रिश्ता था।एक के मन की बात दूसरे तक पहुँच जाती थी।बसुंधरा के परिवार के बङे लोगों ने अमर के परिवार से मिलने का निश्चय किया।और एक दिन वे लोग
अमर के परिवार को खबर कर उसके यहाँ पहुँच गए। अमर के परिवार में उसकी दादी और दादा थे– उसके माता-पिता कार खाई में गिरने से मर गए थे– अमर इकलौती संतान था अपने माता-पिता की और अब दादा दादी के नैनों का तारा था– वो एक पल के लिए भी अमर को अपनी आँखों से ओझल नही होने देते।पैसा बहुत था– वो ऐसी लड़की चाह रहे थे जो उनके अमर का खूब ख्याल रखे और बड़ा परिवार हो जिससे कि अमर को प्यार देने वाले बहुत लोग मिल जाए– वे लोग अमर से मन का रिश्ता जोड़ें– ऊपरी दिखावा ना हो।
जब बसुंधरा के बुजुर्ग पहुंचे तो उन्होंने दादा-दादी के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया और अपनी बेटी के संबंध की बात करी।उन्होंने कहा कि, ” आप निश्चिंत रहें– अब से अमर हमारा बेटा और दामाद दोनो होगा–
उसे अपने माँ-बाप का प्यार भी मिलेगा– ये तो इन दोनों बच्चों के रिश्ते के साथ हमारा- आपका- अमर का मन का रिश्ता भी जुड़ जायेगा जो कि दिल से जुड़ा होगा,”– अमर के दादा दादी आज बहुत खुश थे क्योंकि उनके पोते को सास-ससुर के रूप में माता-पिता और सब भाई बहन भी मिलने वाले थे।
पारम्परिक पद्धति से दोनों विवाह बंधन में बंध गए। एक अटूट रिश्ता– मन का रिश्ता जुड़ गया– दो प्रेमी और दो परिवारों के मध्य।
” तोड़ने पर भी टूट नही सकते अप्रतिम मन के रिश्ते,
जब जुड़ जाते हैं तो खुशी का पारावार बन जाते ये मन के रिश्ते।।”
स्वरचित मौलिक
डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ