ममत्व – बालेश्वर गुप्ता : Short Moral Stories in Hindi

  माधवी,मुझे लग रहा है आज माँ की तबियत ठीक नही है, वो अभी भी सो रही है।मेरी ऑफिस में बहुत ही जरूरी मीटिंग है।तुम मां को डॉक्टर को दिखा लाना।

    नही नही, रमेश आज मेरी किटी पार्टी है,मुझे उसमे जाना है।मैं डॉक्टर के पास नही जा सकती।

    माधवी माँ से ऊपर क्या किटी पार्टी हो सकती है?

     तुम्हारी तो माँ है, तुम ही कौनसे उन्हें डॉक्टर के पास ले जा रहे हो,मीटिंग का बहाना कर मुझ पर ही तो बला टाल रहे हो?

   क्या-बला?मां बला है?ओह?

       पिता के स्वर्गवासी हो जाने के बाद से ही माँ को रमेश अपने पास ही ले आया था। 70 वर्ष की उम्र में माँ उस कस्बे में अकेली कैसे रहती भला?वैसे भी रमेश अपनी माँ को बेहद प्यार करता था।सोचा था माँ साथ रहेगी तो कुछ सेवा वह माँ की कर लेगा।अब तक तो माँ ही करती आयी है।

      पर रमेश अपनी पत्नी माधवी के मनोभावों को समझ नही पाया था।शहर में नौकरी लग जाने पर रमेश शहर में रहने लगा था, शादी हुई तो स्वाभाविक रूप से पत्नी माधवी भी शहर में ही उसके पास रहती ही।माँ और पिताजी दोनो का मन अपने घर छोड़ने का नही था,सो वे रमेश के साथ रहने नही गये।तीज त्यौहार पर आना जाना होता था।

      अचानक ही हृदयाघात के कारण पिता जी का देहांत होने पर रमेश माँ को अपने साथ ले आया।कुछ दिन तो ठीक बीते,लेकिन रमेश ने महसूस किया कि माधवी माँ को उपेक्षित कर रही है। कई वर्षो से अकेली रहने के कारण शायद उसे अकेले ही रहने की आदत बन गयी थी।

माँ का अकस्मात आ जाना उसे अपनी स्वछंदता में बाधक प्रतीत हो रहा था। माँ के अधिकतर कार्यो का ध्यान रमेश को ही रखना पड़ता, माधवी निर्लिप्त रहती,मानो माँ उसकी कुछ लगती ही ना हो।

      उस दिन माधवी के अन्तर्विचार मुँह पर आ ही गये जब रमेश ने माँ को डॉक्टर को दिखा लाने के लिये माधवी से बोला तो माधवी कह ही बैठी कि तुम्हारी तो माँ है तुम डॉक्टर के पास क्यों नही ले जा रहे?

माधवी का ये वाक्य और माँ को बला कह देना रमेश को अंदर तक तोड़ गया।रमेश सपने में भी माधवी के इस रूप की कल्पना नही कर सकता था।पर प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता?

       रमेश ने अपनी बीमारी का बहाना कर ऑफिस से अवकाश लेकर माँ को डॉक्टर को दिखा कर आ गया।अंदर की टूटन ने रमेश को आत्मकेंद्रित कर दिया।अपने मन की घुटन को वह न अपनी पत्नी से कह पा रहा था और न ही माँ से।

       माँ के कार्यो और देखभाल हेतु रमेश ने एक नौकरानी 24 घंटो के लिये रख दी,जिससे उसे माधवी से कुछ कहना ही ना पड़े।

इससे माधवी और चिढ़ गयी।रमेश समझ ही नही पा रहा था,कि इस स्थिति में कैसे सामंजस्य स्थापित करे।माधवी को कभी कुछ समझाने का प्रयत्न करता भी तो उसे माधवी के व्यंग्य  ही सुनने को मिलते।

अपनी गृहस्थी के प्रति वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन रोबोट की भांति ही कर रहा था।परिवार में रमेश नितांत अकेला पड़ गया था।माधवी के साथ उसके सम्बन्ध मात्र औपचारिक रह गये थे।माधवी रमेश में आये परिवर्तन को  समझ तो रही थी,पर घर का वातावरण सामान्य हो जाये, इस दिशा में कोई प्रयास नही कर रही थी।

कारण भी स्पष्ट था,माधुरी इस तनाव का कारण जानती थी और वह माँ को स्वीकार करने को तैयार नही थी।ऐसे व्यवहार से रमेश और असामान्य होता जा रहा था।

      कंपनी के काम से रमेश को तीन दिन के लिये शहर से बाहर जाना पड़ गया, जिसे वह टाल नही सकता था।नौकरानी को माँ के बारे में पूरी हिदायते देकर रमेश  चला गया।

रमेश के जाने के तीसरे दिन ही एक घटना घट गयी,किसी कुरियर वाले के काल बेल बजने पर माधवी ने दरवाजा खोला तो कुरियर वाले ने ओटीपी मांगा, मोबाइल अंदर रखा था,उसे लेने जैसे ही माधवी अंदर गयी,कुरियर वाला अंदर आ गया और माधवी के मुहं को अपने हाथ से भींच लिया,ताकि आवाज न निकल सके।माधवी अंदर तक कांप गयी।

पता नही उस कुरियर वाले के मन मे क्या था?घर मे धन जेवर की लूट या उसकी इज्जत की लूट या दोनो।माधवी बेबस थी।नौकरानी भी कुछ सामान लेने बाजार गयी थी।बूढ़ी माँ थी बस घर मे।बीमार माँ क्या मदद करेगी,इस मुस्टंडे के सामने फिर मां को तो उसने सदैव ही बोझ समझा है, उनकी उपेक्षा ही की है।

सबकुछ माधवी कुछ ही क्षणों में सोच गयी।उधर कुरियर वाला आलमारी की चाबियां मांगने लगा।माधवी ने इशारे से उसे चाबियां देने की सहमति दे दी तथा उससे मुहँ से हाथ हटाने की गुहार भी करने लगी।उसने जैसे ही मुंह से हाथ हटाया माधवी बोली देखो तुम्हे जो लेना हो ले लो,पर मुझे हाथ मत लगाना।

बहुत ही घृणित मुद्रा में हंसते हुए बोला, अरे जाने मन पहले चाबियां तो दो,बाद में उसे भी सोचेंगे।अपना वाक्य वो पूरा भी नही कर पाया था कि एक चीख के साथ अपना सिर पकड़ कर बैठ गया,उसके सिर से खून बह रहा था।

बदहवास सी माधवी ने जब यह देखा तो वह बाहर की ओर भागी।लेकिन सामने तो दुर्गा बनी माँ खड़ी थी। उनके हाथ मे एक डंडा था जिससे उन्होंने उस बदमाश के सिर पर वार किया था।अचकचा कर माधवी माँ से चिपट कर जार जार रोने लगी।

माँ ने माधवी के सिर पर हाथ फिराया और बोली बेटी चिंता मत करना ,मैंने मोहल्ले वालों को भी बुला लिया है।पड़ोस से आये व्यक्तियों ने उस बदमाश को पकड़ पुलिस के हवाले कर दिया।

      माधवी आत्मग्लानि से सरोबार थी,पर माँ का कोई उलाहना था ही नही,उनकी आँखों मे तो प्यार भरा था और चेहरे पर था बहु को बचा लेने का सन्तोषी भाव।

रात्रि में रमेश अपने टूर से वापस घर आया तो वो आश्चर्य से देखता ही रह गया,माधवी माँ के कमरे में माँ सिर दबा रही थी और उनकी दवाई के बारे में पूछ रही थी।माँ अपनी उपेक्षा का उत्तर अपनी असीम ममता से दे चुकी थी।

         बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

स्वरचित,अप्रकाशित।

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