ममता – पूजा गीत : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : डॉक्टर स्मिता तेज-तेज क़दमों से अपने पति डॉक्टर सुबोध के केबिन में जा रही थीं। सुबोध अपने केबिन में एक स्टॉफ के साथ  चर्चा में थे कि तभी स्मिता लगभग गिरते पड़ते वहाँ पहुंची। सुबोध इमरजेंसी समझ कर अपने स्टॉफ को बाहर जाने के लिए कहा और अपनी पत्नी के पास जाकर इशारे से पूछा ‘क्या हुआ’?

स्मिता रोते हुए बोली, सुबु! लोरी भाभी और भैया न्यू बोर्न बेबी को साथ नहीं ले जाना चाहते। बहुत गुस्से में हैं। क्या मैं, मेरा मतलब हम उस बच्चे को ले लें? प्लीज सुबु। सुबोध के हामी भरते ही स्मिता उनके गले लग गयी और बेजार रोने लगी।

दरअसल ये कहानी है डॉक्टर स्मिता और डॉक्टर सुबोध की। जहाँ एक ओर स्मिता बहुत अच्छी गायनेकोलॉजिस्ट हैं तो वहीं सुबोध चाइल्ड स्पेशलिस्ट हैं। उनकी शादी को लगभग 8 वर्ष हो गए हैं पर कोई संतान नहीं है। शादी के दूसरे वर्ष में स्मिता माँ बनने वाली थी पर एक गंभीर समस्या की वजह से उनकी बच्चेदानी निकालनी पड़ी थी।

तबसे जब  भी वो किसी महिला की डिलीवरी करवाती थीं उनके ह्रदय में एक हुक-सी उठती थी। यही हाल कमोबेश उनके पति का भी था। जब भी बच्चे उनके पास ईलाज के लिए आते वो बड़े प्यार से सँभालते थे। ऐसा नहीं है कि दोनों ने बच्चा अडॉप्ट करने का नहीं सोचा पर उनकी दादी सास ने कसम दिलाई थी कि बाहर का बच्चा घर में नहीं आना चाहिए।

सास की मृत्यु सुबोध की शादी से पहले ही हो चुकी थी, ससुर और दादी सास ही थे। सुबोध के बड़े भाई, भाभी अपने दो बच्चों के साथ अलग रहते थे। सभी दादी का बहुत मान करते थे। अब ऐसे में वो दोनों भी क्या करते! बस मन के किसी कोने में आस लिए हॉस्पिटल और मरीजों में खुद को व्यस्त किए हुए थे।

एक दिन स्मिता के पास उनकी जेठानी लोरी अपनी दूसरी प्रेगनेंसी में उनसे गर्भपात कराने आयीं। दरअसल जेठानी के 12 वर्ष के जुड़वाँ बेटा-बेटी थे। उनको पता भी नहीं चला कि वो प्रेग्नेंट हैं। जब स्मिता ने टेस्ट किया तो पता चला कि दूसरे ट्राईमेस्टर की शुरुआत है और अब एबॉर्शन नहीं हो सकता। मन मारकर लोरी ने ये बच्चा रहने दिया।

पर जब विसंगति टेस्ट कराया तो ऑटिस्म के कुछ लक्षण मिले। स्मिता ने स्पष्ट रूप से सब कुछ लोरी को बताया तो उसने हलके में लिया और प्रेगनेंसी जारी रखी। स्मिता ने भी ज्यादा कुछ कहा नहीं क्यूंकि यही जेठानी उसके माँ न बन पाने पर यदा-कदा बहुत कुछ सुनाती रहती थी।

लोरी का आठवां महीना शुरु ही हुआ था कि असहनीय पीड़ा हुई और कल रात स्मिता के हॉस्पिटल में डिलीवरी करानी पड़ी। रात तक तो सब ठीक था पर सुबह लोरी की माँ ने न जाने उलटी-सीधी पट्टी पढ़ाई कि अब वो बच्चे को साथ नहीं ले जाना चाहते। सुबोध की अपने पिता से फ़ोन पर कुछ बात हुई और कुछ देर में वो दादी को लेकर हॉस्पिटल आये।

उनके आते ही दोनों अपनी दादी के पास पहुंचे और उनकी गोद में सिर रखकर बोले, “दादी! हमने आठ वर्षों तक माता पिता न बन पाने का दुःख झेला है, आप और पापा भी दुःखी होते हैं। हमें कई बार अवसर मिला किसी बच्चे को अपनाने का पर आपकी कसम की वजह से हमने ऐसा कुछ नहीं किया। दादी, लोरी भाभी अपना बच्चा अपनाना नहीं चाहतीं।

उनके बच्चे में कुछ असामान्य लक्षण दिखे थे, हम मानते हैं, पर हम डॉक्टर हैं। उस बच्चे को सामान्य जीवन में लाने का प्रयास करते रहेंगे। फिर दादी, ये तो बाहर का बच्चा भी नहीं है, अपने घर का है। प्रेगनेंसी के दौरान एबॉर्शन इस स्थिति में किया जा सकता था, पर तब भाभी ने मना कर दिया। अब आप ही बताओ इस जीते-जागते बच्चे को कैसे छोड़ दें?

वैसे भी, आज पहली बार स्मिता ने मुझसे अपने लिए कुछ माँगा है, कैसे मना कर दूँ, बताओ? क्या इसको ये ख़ुशी ना दूँ? ये हमारा दुर्भाग्य ही है न कि एक गायनेकोलॉजिस्ट और पीडीअट्रिशन जो दिन रात बच्चों के बीच में रहते हैं, उनका अपना बच्चा नहीं है!

दादी ने उनके हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा,” डॉक्टर साहब, बातें ही करते रहोगे या मेरे परपोते का मुंह भी दिखाओगे? फिर घर जाकर मुझे तैयारी भी तो करनी है उसके स्वागत की। और बच्चों शायद इसीलिए ईश्वर ने तुम्हें इतने दिन इस सुख से वंचित रखा क्यूंकि तुमसे इतना नेक काम जो करवाना था।

यकीनन बहुत भाग्यशाली है वो बच्चा जिसे तुम माता-पिता के रूप में मिल रहे हो। खुश रहो, हमेशा खुश रहो।इतना कह के वो पापा के साथ चल दीं। इधर स्मिता और सुबोध एक-दूसरे के गले लग रोये जा रहे थे। आज स्मिता की ममता तो तृप्त होने जा ही रही थी सुबोध का वात्सल्य भी जग गया था। आज उनका बच्चा जो आया था उनके जीवन में!

पूजा गीत

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