अरे आ गया मेरा लाल नानी के घर से….. माया ने अपने पोते आरव को प्यार से पुचकारते हुए कहा…. । हाँ आ गया दादी ….पर अब वहाँ कभी नहीं जाऊंगा ….मुंह बनाते हुए आरव ने दादी के गले लगते हुए कहा…।
अरे क्या हो गया मेरे लाल को ….?? क्यों गुस्सा हो गया नानी के घर से…? माया ने कारण जानने की जिज्ञासा जाहिर की…।
” मामी मुझे डांटती हैं ” …..आरव ने बिना संकोच के स्पष्ट शब्दों में कह दिया…..। ऐसा तूने क्या कर दिया जो उसने हमारे पोते को डांट लगा दी…!
कुछ नहीं दादी …वो मुझे हर बात पर सिर्फ समझाती ही रहती थीं…. ऐसा नहीं वैसा करो …यहां नहीं वहां बैठो … ये ठीक नहीं वो ठीक नहीं…. मैं तो मामी से तंग आ गया था…. मुझे वो अच्छी नहीं लगती…।
और एक दिन तो मुझे मामी ने इतने जोर से डाँटा कि मैं रोने ही लगा था दादी …..अब मैं वहां कभी नहीं जाऊंगा …..! दादी का प्यार पाकर आरव ने और बढ़ा चढ़ाकर आपबीती बताई… ।
पहले तो तृषा बातें सुनती रही और चुप थी …..पर आरव की बड़बोली और फिजूल की बातों को सासू मां के द्वारा बेवजह तूल देने पर तृषा ने आरव को डांटते हुए कहा… और तुमने अपनी करतूत दादी को नहीं बताई…. तुम वहां कैसे और कितना बदतमीजी करते थे….।
तुम क्या मामी के घर नहीं जाओगे आरव…. तुम्हें लेकर तो मैं ही वहां कभी नहीं जाऊंगी…. जब तक तुम समझदार नहीं बन जाते….।
अरे बच्चा है बहू… बच्चे शरारत नहीं करेंगे तो कौन करेगा…? और मृदुला (आरव की मामी ) को समझना चाहिए ….कुछ दिन के लिए ही तो जाता है उनके घर …..! फिर अपने घर का लाडला है आरव….। सासू मां ने आरव की वकालत करनी शुरू कर दी….।
सासू मां को मामी के द्वारा आरव पर किया गया व्यवहार ” अपमान ” जनक लगा वो कैसे बर्दाश्त करती कि जब उनका लाडला पोता अपने मामी के घर से दुखी होकर लौटा हो….
नहीं सासु मां अब नहीं ….जरूरत से ज्यादा लाड़ प्यार ने आरव को बिगाड़ दिया है …..मेरी तो बिल्कुल सुनता ही नहीं …मेरे आंख दिखाने का भी कोई फायदा नहीं ….किसी का कोई डर ही नहीं है इसे…।
वो तो एक भाभी ही थी …जिनसे थोड़ा बहुत डरता था और शांत हो जाता था ….उन्होंने बहुत समझाना चाहा था इसे…. पर उस दिन तो इसने अति ही कर दिया था …तब भाभी ने जोर से कहा था …चुप एकदम चुप… हो जाइए….।
सुनना चाहेंगी सासू मां …किस बात पर जिद पकड़ लिया था….! सुमित (भैया का लड़का ) का जैकेट जो कि काफी महंगा था.. इसे बस वही चाहिए था…. देखते साथ ऐसा करने लगा मुझे अभी चाहिए…. ये वाला ही चाहिए…. सुमित के बर्थडे पर बड़े प्यार से भैया द्वारा गिफ्ट था वो जैकेट…. और सुमित को भी उतना ही पसंद था….
. पर इसके जिद और बदतमीजी के आगे सुमित बेचारा अपना जैकेट इसे दे दिया …और कोने में जाकर रोने लगा …वो भी तो बच्चा ही है ना सासु मां …..और भाभी ने भी बहुत समझाया …कल दूसरा जैकेट मंगवा दूंगी आरव बेटा ….पर नहीं मुझे तो अभी ये ही चाहिए….।
और सासू मां भैया कोई भी सामान घर में अपने बच्चों के लिए नहीं ला सकते थे जब तक इसके लिए ना लाएं…।
और भाभी को मैंने ही कहा था मुझसे बिल्कुल नहीं डरता है आप इसे डरा धमकाकर शांत कीजिए….।
यही होता है सासू मां …जब किसी बात के लिए मैं इसे डांटती हूं …तुरंत बाबा दादी का प्यार मिल जाता है….! उस चीज के गलत सही के समझने का इसे मौका ही नहीं मिल पाता है…..और मेरी बात का तो इस पर बिल्कुल असर ही नहीं होता है ….। आरव के जिद्दी स्वभाव से परेशान तृषा के आंखों में आंसू थे…।
माया आरव के जिद्दी स्वभाव और बिगड़ैल रवैया से परिचित तो थी ही… क्योंकि कुछ हद तक जिम्मेदार वह स्वयं ही थी….! फिर भी बहू के मायके की बात थी तो पीछे कैसे रहती…
उन्होंने तपाक से कहा ….बच्चों में ये सब तो होता ही रहता है …कुछ ही दिनों की तो बात थी… वो भी झेल नहीं पाए ….अपनी ननद के बच्चों को…. हम लोग रोज कैसे रहते हैं आरव के साथ…??
अरे सासु मां आप क्या बोल रही हैं हमने ही लाड प्यार में बिगाड़ा है तो भूगतेगा कौन…?
वो तो भला हो भाभी का …जिन्होंने मुझे बहुत सारी और बहुत अच्छी-अच्छी बातें बताई..जिससे आरव के स्वभाव में सुधार करने में मदद होगी …..उन्होंने आरव के भले के लिए ही सख्त व्यवहार किया था…!
सासू मां …अब देखिए ना , भाभी ने बिना बताए… आरव के लिए वो जैकेट मेरे बैग में डाल ही दिया है….।
क्या…?? मामी ने वो जैकेट मुझे दे दिया है…??? आरव के आंखों में चमक साफ दिखाई दे रहा था…. हां आरव… क्योंकि सुमित तुम्हारे जैसा बदतमीज और स्वार्थी नहीं है …
अपनी मम्मी की बात मानना वो जानता है… और तुम उसके भाई हो तो उसने ही त्याग करना उचित समझा…. क्योंकि वो समझ गया कि…. तुम्हारा दिल इतना बड़ा है ही नहीं …..। लो पहनो जैकेट और खुश हो जाओ….तृषा ने आरव को जैकेट देते हुए गुस्सा जाहिर की.. ।
सासू मां को इसकी चिंता बिल्कुल नहीं थी कि …आरव ज्यादा लाड़ प्यार में बिगड़ रहा है….. उन्हें तो बस इस बात का डर था कि…..आरव के बिगड़ने की जिम्मेदारी कहीं उनके ऊपर ना आ जाए …..अतएव उन्होंने धीरे से आरव को समझाया….
ठीक है लल्ला इस बार ऐसा हो गया आगे से ऐसा नहीं करना….।
दादी का समर्थन ना मिलने पर आरव को भी लगा कि ….अब तो मेरी सुनने वाला कोई नहीं है ….कोई सपोर्ट न मिलने पर आरव ने कहा …..मम्मी आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा….।
मामी और सुमित से भी सॉरी कहूंगा… सच में सुमित भैया बहुत अच्छे हैं , और मामी भी …आखिर उन्होंने मुझे ये जैकेट दे ही दिया ….!
बस मम्मी …एक बार पहन के मैं उन्हें वापस लौटा दूंगा… इस बार आरव को भी अपनी गलती समझ में आ रही थी…।
साथियों, बच्चों में बचपन से ही कुछ संस्कार और कुछ अच्छी आदतें डालनी चाहिए…! जिससे कहीं भी जाने पर उन्हें व किसी और को भी कोई परेशानी ना हो…। मायके हो या कहीं और…
जब अपने बच्चों की प्रशंसा होती है तो मन खुशी से गदगद हो जाता है …अपने लालन पालन पर गर्व होता है… पर कहीं भी बच्चों के चलते या उनकी जिद्दी स्वभाव और बड़बोले व्यवहार के चलते थोड़ी सी भी उपेक्षा झेलनी पड़ती है तो स्वत: ही अपमान महसूस होता है…!
मेरे विचार पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा….
साप्ताहिक प्रतियोगिता : # अपमान
( स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित, अप्रकाशित रचना)
संध्या त्रिपाठी