आजकल मिसिज गुप्ता के घर में खूब रौनक लगी है। अमेरिका से उनके बेटा- बहू और बेटी- दामाद बच्चों संग छुट्टियां मनाने उनके पास आए हुए हैं। सन्नाटा लीलकर उनका घर बोलने लगा है। चारों ओर चहल-पहल मची हुई है।
समय को जैसे पंख लग गए हैं। कभी खरीददारी, कभी पिक्चर, कभी पिकनिक, कभी परिजनों को मिलना और कुछ न हो तो ताश के पत्ते लेकर बैठ जाना ,कुल मिलाकर अकेलेपन की काली अमावस की रात के बाद वे सबके साथ मिलकर उत्सव मना रही हैं।
कल उनकी बेटी ने अपनी कुछ सहेलियों को घर पर बुलाया था।मिसिज गुप्ता भी उन सब से अच्छी तरह परिचित हैं । वे सब अपनी मस्ती में थीं। उनके कहकहों से सारा घर खिलखिला उठा था। कुछ समय बाद वे उनके लिए नाश्ता लेकर गईं तो उनकी बेटी ने उन्हें भी गपशप के लिए वहीं बैठा लिया ।
तभी उन्हें अपनी बातों में शामिल करते हुए उसकी एक सहेली ब़ोली,
“आंटी जी ! आजकल आप तो फेसबुक पर बहुत एक्टिव रहती हैं।”
“अरे! मेरी ममा हैं ही बहुत स्मार्ट !पता है कितनी जल्दी इन्होंने इंटरनेट पर काम करना सीख लिया है।अब तो मेरे साथ वाट्सअप पर खूब जल्दी -जल्दी चैटिंग कर लेती हैं और ई- मेल से भी लम्बे -लम्बे ख़त लिखती हैं। अब तो हमें आपसी दूरी भी महसूस नहीं होती है।”, किसी और के बोलने से पहले ही गर्व से भरी उनकी बेटी ने बातचीत का छोर संभाल लिया था।
“हां, बिल्कुल सही कहा तूने। मेरी ममा के साथ भी ऐसा ही है।बड़े शौक से रोज नई-नई फोटो खींच कर मुझे भेजती हैं।”, उसकी दूसरी सहेली ने हंसते हुए कहा।
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“मुझे तो लगता है कि हमारी मम्मियां हमारे से ज्यादा स्मार्ट हैं। जिस टैक्नोलॉजी को उन्होंने पहले कभी देखा तक नहीं ,उसे भी उन्होंने इतनी जल्दी सीख लिया।”, एक और सहेली ने कहा था।
और वे अपनी इस ‘मजबूरी’ में सीखने’ की कला पर केवल मंद -मंद मुस्कुरा रही थीं। इन बच्चों को क्या पता कि इस उम्र में ये सब सीखना उनकी चाहत और शौक से कहीं अधिक मजबूरी है, वरना उनकी तो उंगलियां और गर्दन भी टाइप करते – करते दर्द करने लगती हैं। बार -बार उठ कर उन्हें आंखों में अपनी दवाई डालनी पड़ती है।
अब उनकी पीढ़ी के लोगों के पास अपने बच्चों से सम्पर्क बनाए रखने का यही साधन तो बचा है, नहीं तो, इन बच्चों के पंछियों के समान उड़ान भर कर दूर निकल जाने पर,कोरी यादों के सहारे कब तक जीआ जा सकता है ?
विशेष: अति महत्वाकांक्षा की रेस में दौड़ती आधुनिक पीढ़ी से बढ़ते हुए फासलों को कम करने के लिए आज के प्रौढ़ वर्ग ने नई तकनीक के सहज संभव उपायों को सीख कर संपर्क बनाए रखने का रास्ता ढूंढ निकाला है। लेकिन यह सब उनके लिए इतना सरल नहीं है। इसी पीड़ा को व्यक्त करती है यह लघुकथा।
उनका फेसबुक, व्हाट्सएप पर सक्रिय रहना बच्चों के लिए चाहे गर्व का विषय हो, किंतु असली कारण तो कुछ और भी है ही!
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।