” मजबूरी बनाम समझौता ” – अनिता गुप्ता

कोख में होती हलचल को महसूस  करती नमिता उदास बैठी विचारों की दुनिया में खोई हुई थी। ज्यों – ज्यों समय निकलता जा रहा था , उसका अपने अजन्मे बच्चे से मोह बढ़ता जा रहा था।…… और बढ़े भी क्यों ना, वो अपने खून से जो सींच रही थी।

कितना आसान लगा था, उसे जब उसकी दोस्त ने उसे अपनी कोख को किराए पर देकर पैसे जुटाने की सलाह दी थी। क्योंकि वो भी तो कितनी कोशिशों के बाद भी अपनी मां के ऑपरेशन के लिए पांच लाख रुपयों का इंतजाम नहीं कर पाई थी।

तब उसकी दोस्त नेहा एक कपल रोहित और रिया को लेकर आई थी, उसके पास…

” नमिता ! ये रोहित और रिया हैं और इनको एक सरोगेट मदर चाहिए। क्योंकि रिया का गर्भाशय बहुत छोटा है और उसमें बच्चे का पूर्ण विकास नहीं हो सकता है। इसके लिए ये दस लाख रुपए देने को तैयार हैं, साथ ही प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली सभी खर्चों को भी ये ही उठाएंगे। तुम चाहो तो सरोगेट मदर बन सकती हो, इससे तुम्हारी आर्थिक समस्या का समाधान हो जाएगा।”

” लेकिन इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? ” तेईस वर्षीय नमिता ने पूछा।

” तुम्हें  जेस्टेशनल सरोगेट मदर बनना है,इसमें डॉक्टर रोहित के शुक्राणुओं और मेरे अंडाणुओं को मिलाकर तुम्हारे गर्भाशय में प्रत्यारोपित देंगी । इस में तुम्हें सिर्फ बच्चे को जन्म देना है। इसमें तुम्हारा बच्चे से किसी भी तरह से जेनेटिकली संबंध नहीं होगा। बच्चे की जैविक मां मैं ही होऊंगी और बच्चे पर सिर्फ हमारा अधिकार होगा। अगर तुम्हें ये सब मंजूर हो तो तुम सरोगेट मदर बन सकती हो। जिससे तुम अपनी मां का ऑपरेशन अच्छे से करवा सकती हो और उसके बाद भी तुम्हारे पास अपने को सैटल करने के लिए रुपए बच जाएंगे।

और हां जो भी निर्णय लो सोच – समझ कर लेना।” रिया ने कहा।

कुछ दिन सोचने के बाद नमिता ने सरोगेट मदर बनने के लिए हां कर दिया।

कुछ समय बाद रोहित और रिया के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब में कराके  नमिता के यूटेरस में ट्रांसप्लांट कर दिया।



शुरू में होने वाली परेशानियों से नमिता को लगता कि ये ना जाने कौनसी मुसीबत ले ली है, लेकिन मां के सफल ऑपरेशन और अच्छे होते स्वास्थ्य से उसे हिम्मत मिलती।

पांचवें महीने में रिया ने अपने यहां रहने का प्रस्ताव दिया नमिता को तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।क्योंकि अब बच्चे का बढ़ता आकर पेट से भी पता लगने लगा था और नमिता ने अपनी मां को इस बारे में नहीं बताया था। साथ ही उसे ये भी डर था कि कहीं मोहल्ले वाले भी बातें न करने लगे।

अब नमिता भी भावनात्मक रूप से बच्चे से जुड़ने लगी थी। पेट में होने वाली हर एक हलचल उसे मातृवता का अहसास कराती और अपने अजन्मे बच्चे के लिए ममता का सरोवर फूट पड़ता। लेकिन जैसे ही उसे सरोगेसी समझौते की याद आती, वो उदास हो उठती।

इधर रिया नमिता का बहुत ध्यान रखती। समय – समय पर फल, पौष्टिक आहार , जूस ,दूध,कैल्शियम, आयरन देती। डॉक्टर की हर बात फॉलो करती, जिससे नमिता एक स्वथ्य बच्चे को जन्म दे।

आज नमिता का सातवां महीना शुरू हो हो गया था, जिसके लिए रिया ने नमिता की गोद भराई रखी थी। क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि बच्चे के किसी भी काम में कोई कमी ना रह जाए।

रिया गोद भराई के लिए नमिता को बुलाने आई तो उसे उदास देख बोली,

” नमिता ! ऐसे मुंह लटकाकर क्यों बैठी हो ? तुम्हें पता है ना, तुम्हारी उदासी बच्चे के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगी। अब खुश हो जाओ और पूजा के लिए चलो, पंडितजी आ गए हैं।”

नमिता ये सोचते हुए चलने के लिए उठ खड़ी हुई कि,

” कैसी विडंबना है, डिलिवरी का पास आता टाइम मुझे दुखी करता जा रहा है और रिया की खुशी बढ़ाता जा रहा है।” 

#समझौता

अनिता गुप्ता 

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