मैं तुम्हें तुम्हारा हक लौटना चाहता हूँ – संगीता अग्रवाल 

“बिंदिया  तुम यहाँ ” अचानक दीपेश  की आवाज़ सुन बिंदिया  रुक गई.

” हम्म् मैं यहाँ एक पार्लर चलाती हूँ, पर तुम यहाँ कैसे? “

” मैं ऑफिस के काम से आया था.. पर तुम्हें यहाँ आने की क्या जरूरत पड़ी और पार्लर का काम कब सीखा? “

“जरूरत सब सिखा देती है दीपेश  खैर मुझे देर हो रही है.. ” बिंदिया  ने चलते हुए कहा.

” रुको थोडी देर ” दीपेश  बोला.

” मुझे काम है दीपेश .. “

” ठीक है शाम को कॉफी कैफे मे मिलना… ” दीपेश  ने कहा.

” नही दीपेश  मैं नही आऊँगी ” बिंदिया  ने इंकार किया और जाने लगी वहाँ से.

” मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा बिंदिया .. और जानता हूँ तुम आओगी.”

ये हैं बिंदिया  और दीपेश  जो कभी पति – पत्नी थे.. पर आज से दो साल पहले दोनो का तलाक हो गया था, तलाक का कारण था बिंदिया  को उसके पिता ने पसंद किया जो उसकी माँ और उसकी पसंद नही बन पाई दीपेश  के पिता की शादी के चार महीने बाद मौत हो गई तो दीपेश  और उसकी माँ ने तलाक लेने को बिंदिया  पर झूठे इलज़ाम लगाए .  तलाक के बाद दिल्ली की बिंदिया  मसूरी के एक छोटे से इलाके मे आगई थी खुद की पहचान बनाने…

शाम को…




” मुझे पता था बिंदिया  तुम जरूर आओगी ” दीपेश  खुश होते हुए बोला.

” बोलो क्या बात करना चाहते हो.. ” बिंदिया  ने पूछा.

” बैठो तो बताओ क्या लोगी.. ” दीपेश  ने बिंदिया  का हाथ पकड़ते हुए कहा.

” आप अपनी बात बोलिये ” बिंदिया  हाथ छुड़ाते बोली..

” बिंदिया  मेरी जिंदगी मे वापिस आजाओ, मैं वायदा करता हूँ तुम्हें हर खुशी दूँगा.”

” क्यों तुमने शादी नही की सुरुचि से “

” वो मेरे लायक नही थी ये मैने तुम्हारे जाने बाद जाना.. .  इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारा हक लौटना चाहता हूँ.”

” दीपेश  क्या तुम मुझे मेरे दो साल लौटा दोगे,  जो कोर्ट मे तुमने चीख चीख कर मुझे बदचलन बोल जो मेरा अपमान किया वो लौटा दोगे, तुम्हारी वजह से मेरे मायके वालो को जो सहना पडा वो बदल सकता.. यहाँ तक की मेरे पापा को तुम लौटा दोगे जो लोगों के ताने ना सुन सके और आत्महत्या कर चुके… ” बिंदिया  गुस्से मे रो पड़ी.

” क्या…..?? ये कब हुआ.. “

” छोड़ो इन बातों को.. “

” मुझे माफ कर दो बिंदिया  मैं उस वक़्त गलत था.. अपनी गलती पर बहुत पछताया भी पर हिम्मत नही हुई तुम्हारे सामने आने की.. आज जो मिली हो तो … “

” नही दीपेश  वो बिंदिया  कबकी मर चुकी है अब जो बिंदिया  है ये एक मजबूत औरत है जो हर परिस्थिति का सामना अकेले कर सकती इसे किसी मर्द के सहारे की जरूरत नही..

और.. कुछ गलतियाँ ऐसी होती है जिनकी कभी माफ़ी नही होती… ” बिंदिया  ये बोल वहाँ से चल दी पीछे दीपेश  पछतावे के आँसू लिए इस नई बिंदिया  को देखता रहा….

दोस्तों आपको भले ये कहानी फिल्मी लगे.. पर इसे लिखने का मकसद यही है कि औरत अबला नही है.. वो तो ऐसी शक्ति है जो कुछ भी कर सकती.. उस पर उंगली उठाने से पहले आदमी को सौ बार सोचना चाहिए…. वहीं औरतों को भी अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और अगर किसी औरत के साथ गलत हो तो मजबूती से आवाज़ उठानी चाहिए…

ये रचना स्वरचित है अगर किसी परिस्थिति मे कोई अंश किसी की कहानी से मिलता है तो आप मुझे सूचित कर सकते है जिससे मैं वो अंश हटा लूँ 🙏🙏

धन्यवाद

आपकी

संगीता अग्रवाल 

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