मैं नहीं सहूँगी – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 ” बस आलोक..खबरदार जो तूने अलका पर हाथ उठाया..क्रोध में तू ये भी भूल गया कि वो तेरे बेटे की माँ है..तेरे सुख के लिये वो दिन-रात खटती है और तू उसी पर…।” बेटे का हाथ रोकते हुए आनंदी लगभग चीखते हुए बोली।तब आलोक भी उन पर चीखा,” आज मेरा हाथ तो रोक लिया..उस वक्त अपने पति का हाथ क्यों नहीं रोका था जब…।” हाथ झटकता हुआ वो बाहर निकल गया और आनंदी सन्न रह गई।

        महज़ सोलह बरस की आयु में आनंदी का विवाह हो गया था।ससुराल में उसके ससुर नहीं थे, सास थी और एक ब्याहता ननद मालती जो तीज़-त्योहारों पर आया-जाया करती थी।पति भुवन अपने पिता के आढ़त की दुकान संभालता था।

     भुवन स्वभाव से बहुत गुस्सैल था।बात-बात पर गालियाँ देना या खाने की थाली फेंक देना उसकी आदत थी।आनंदी अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करती कि घर में शांति बनी रहे लेकिन..।एक दिन उसने सास से पति के गुस्से का कारण पूछा तो वो हँसते हुए बोली,” कुछ नहीं बहू..इसके पिता भी ऐसे ही थे लेकिन भुवन और मालती के पैदा होने के बाद तो हमें याद ही नहीं कि कभी..।दोनों बच्चों से बहुत प्यार करते थे तुम्हारे ससुर।अब तुम्हारी गोद भी भर जाये तो देखना कैसे भुवन गऊ बन जायेगा।” उनकी बात सुनकर आनंदी को तसल्ली हो गई।दो साल बाद वो एक बेटे की माँ बनी तो उसे उम्मीद जगी कि अब सब ठीक हो जायेगा।

       समय बीतते भुवन का गुस्सा तो कम नहीं हुआ बल्कि अब तो उसे बच्चे के रोने पर भी आपत्ति होने लगी थी।कभी-कभी आनंदी स्वयं से कहती कि अब नहीं सहूँगी लेकिन फिर वो उम्मीद का दामन पकड़कर अपने बेटे का पालन-पोषण करने में पति के अत्याचार को भूल जाती।इसी बीच उसकी सास चल बसी।उस दरम्यान भुवन बहुत शांत रहा तब मालती बोली,” देखिये भाभी..भईया ने गुस्सा करना छोड़ दिया है।माँ ने आपको कहा था ना..।” आनंदी ने कोई ज़वाब नहीं दिया था क्योंकि इतने सालों के अनुभव से वो इतना तो समझ चुकी थी कि कभी-कभी समंदर का शांत होना किसी बड़े तूफ़ान के आने का संकेत होता है।

      कुछ समय बाद भुवन का व्यवहार पहले जैसा ही हो गया।एक दिन वो दुकान से आकर बाथरूम चला गया।आनंदी ने सोचा कि अभी तो थोड़ा समय है, तब तक में मैं आलोक के कपड़े बदल देती हूँ , फिर उनके लिये रोटियाँ सेंक दूँगी।वो बेटे के शर्ट का बटन बंद कर ही रही थी कि तभी भुवन आ गया।टेबल पर थाली लगी थी लेकिन रोटी न देखकर उसका पारा चढ़ गया।आनंदी कुछ कहती तब तक तो भुवन का हाथ

आनंदी के गाल पर छप चुका था।वो सकते में थी, पिता की आवाज़ से सहमकर आलोक रोने लगा तो उसे होश आया।बस उस दिन के बाद से आनंदी पर भुवन की ज़ुबान के साथ-साथ हाथ भी चलने लगा।उसने कई बार सोचा कि भुवन को छोड़ कर मायके भाई-भाभी के पास चली जाये लेकिन फिर यह संतोष कर लिया कि कम से कम बेटे के सिर पर पिता का साया तो है।बस अपनी #औलाद के मोह के कारण वो सहती चली गई।

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      पिता के उग्र व्यवहार से आलोक थोड़ा सहमा-सहमा सा रहता था।कभी-कभी तो उसे गुस्सा भी आता था।एक दिन वो स्कूल से आकर कमरे में बैठा अपना होमवर्क कर रहा था, तभी उसे हाॅल में पिता की गरजती आवाज़ सुनाई दी।वो तुरंत कमरे से बाहर निकला।उसने देखा कि भुवन गालियाँ दे रहा था और आनंदी फ़र्श पर गिरे प्लेट-कटोरियों को समेट रही थी।बस वो एक डंडा लेकर अपने पिता के सामने आया और बोला,” माँ को मारोगे तो मैं भी आपको मारुँगा।” भुवन ने बेटे को गुस्से-से देखा और कमरे में चला गया।उस दिन बेटे को अपने लिये खड़े देखकर आनंदी को बहुत खुशी हुई थी।

      समय बीतते भुवन अस्वस्थ रहने लगा।एक दिन दुकान से आकर उसने उल्टी की..आनंदी उसके लिये पानी लेने गई तब तक में..।

    अब आनंदी को बेटे के साथ-साथ आढ़त का काम भी संभालना पड़ा।आलोक जब सयाना हो गया तब उसने माँ को आराम करने को कहा और स्वयं दुकान पर बैठ गया।

    कुछ समय बाद आनंदी ने पास के गाँव के एक सुशील लड़की के साथ उसका विवाह कर दिया।साल भर बाद बाद वो एक पोते की दादी भी बन गई।अब उसका समय पोते के साथ खेलने और भजन-कीर्तन करने में बीतने लगा। 

     यूँ तो आलोक कम ही गुस्सा करता था लेकिन इधर कुछ दिनों से आनंदी ने उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन देखा।बात-बात पर वो अलका से उलझ जाता।उसने सोचा, दुकान की कोई प्राॅब्लम होगी..अपने आप ठीक हो जायेगा।अब आज बहू उसकी शर्ट में बटन टाँकना भूल गई तो वो ज़ोर-से उसपर चीखा।अलका ने इतना ही कहा कि आप दूसरा बुशर्ट पहन लिया।बस इतनी-सी बात पर आलोक ने उस पर हाथ उठाना चाहा जिसे आनंदी ने तुरंत रोक दिया।तब आलोक ने उसे जो कहा उससे उसका कलेज़ा छलनी हो गया था।

      तभी अलका आई और सास के हाथ पर अपना हाथ रखा तो आनंदी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।उसने बहू के सामने अपने अतीत को खोलकर रख दिया।वो बोली कि बहू..एक गलती मुझसे हो गई।जब आलोक मेरे लिये अपने पिता को डंडा दिखाया था, मुझे तभी उसे रोकना चाहिए था।उसे समझाना चाहिए था कि किसी के भी साथ दुर्व्यवहार करना गलत है लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया।वही हिंसा की भावना आज सामने आ रही है।उसने एक लंबी साँस भरी,फिर बोली,” बहू..मेरा समय तो बीत गया लेकिन अब फिर से वही सब..बिल्कुल नहीं।” फिर उसने अलका के कान में कुछ कहा जिसे सुनकर वो मुस्कुराने लगी।

      शाम को आलोक आया, मुँह-हाथ धोकर पत्नी पर चिल्लाया,” अलका..खाना दो..।”  बेटे को गोद में उठाये अलका तमतमाते हुए आई और अपने अँगूठे के साथ वाली ऊँगली दिखाते हुए बोली,” सुनिये जी…मुझे आनंदी देवी मत समझियेगा..#औलाद के मोह के कारण वो सब सह गई लेकिन मैं नहीं सहूँगी।मेरे दो-दो चाचा वकील हैं..घरेलू-हिंसा के आरोप में कोर्ट के इतने चक्कर लगवाऊँगी कि आपको नानी याद आ जायेगी..फिर अपने इज़्जत-सम्मान की ढ़ोलकी बजाते रहना।”

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 “थोड़ी सी ज़मीन, थोड़ा सा आसमां” – कविता भड़ाना

    जो पुरुष हिंसा करता है वो ऊपर से भले ताकतवर दिखे लेकिन भीतर से वो बहुत कमज़ोर होता है।आलोक भी ऐसा ही था।वो अलका की धमकी से डर गया।उसी समय आनंदी आई और बेटे को समझाने लगी,” देख बेटा..पत्नी पर गुस्सा उतारना या उसके साथ हिंसात्मक व्यवहार करना उचित नहीं है।आज की लड़कियाँ पढ़ी-लिखी हैं..पुलिस-कचहरी के चक्कर में हमें फँसा देगी तो पुरखों का मान-सम्मान सब…।”

  ” नहीं-नहीं माँ..ऐसा कुछ नहीं होगा..मैं अलका को साॅरी बोल दूँगा..सब ठीक हो जायेगा..।” 

   ” तू सच बोल रहा है ना..फिर कभी बहू…।”

  ” कभी नहीं माँ..आपकी कसम…।” 

     तभी अलका आई और बोली,” तो पकड़िये अपने लाडले को..मैं आपके लिये पराँठे बनाने जा रही हूँ..।” 

   ” माँ को दे दो…।” आलोक बोला तो आनंदी बोली,” मैं कीर्तन में जा रही हूँ..अब तुम अपना परिवार संभालो…।” बेटे-बहू को एकांत देकर आनंदी मंदिर चली गई।अलका खाना परोसने लगी तब आलोक उसका हाथ रोककर बोला,” अलका..सारे पराँठे बना लो..आज हम दोनों साथ बैठकर खायेंगे और मुन्ना को भी खिलाएँगे..।”  ” ठीक है..।” अलका मुस्कुराई और मन ही मन अपनी सास को धन्यवाद देकर तवे पर पराँठे सेंकने लगी।

                               विभा गुप्ता 

                           स्वरचित, बैंगलुरु 

# औलाद के मोह के कारण वो सब सह गई

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