सुबह की हल्की धूप खिड़की से कमरे में झांक रही थी। अम्मा धीरे-धीरे रसोई में काम कर रही थीं, लेकिन उनके मन में एक तूफान चल रहा था। पिछले कुछ दिनों से घर का माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था। छोटे-मोटे विवाद अब बड़ी उलझनों का रूप ले चुके थे। और सबसे ज़्यादा परेशान थीं अम्मा, जो इस सबके बीच सबको एक साथ रखने की कोशिश कर रही थीं।
अम्मा की बेटी आर्या, जो अपने जीवन में काफी स्वतंत्र और सफल थी, इस समय घर आई हुई थी। आर्या का बचपन गाँव में गुज़रा था, लेकिन अब वो शहर में एक बड़ी कंपनी में काम करती थी। जब भी वो घर आती, अम्मा और उसका एक खास रिश्ता होता—दोनों के बीच एक अनकही समझ और गहरा स्नेह।
आर्या ने महसूस किया कि अम्मा पिछले कुछ दिनों से बेहद चुप-चुप सी थीं। आर्या को यह खामोशी परेशान कर रही थी। उसने अम्मा के पास जाकर धीरे से कहा, “अम्मा, कुछ बात है क्या? आप ठीक नहीं लग रही हैं।”
अम्मा ने उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और एक लंबी सांस लेकर कहा, “बेटा, ये परिवार का मामला है। छोटी-छोटी बातें हैं, लेकिन मैं नहीं चाहती ये छोटी सी बात कोई बड़ा रूप ले ले और सब रिश्ते बिखर जाएँ।”
आर्या ने अम्मा की आंखों में दर्द देखा। उसने तुरंत महसूस किया कि अम्मा के मन में बहुत कुछ है, जो वो बोल नहीं पा रही हैं। आर्या ने धीरे से पूछा, “क्या हुआ है, अम्मा? मुझे बताइए। शायद मैं कुछ मदद कर सकूं।”
अम्मा ने कुछ पल के लिए चुप्पी साधी, फिर बोलीं, “बेटा, तुम्हारे पापा और तुम्हारे चाचा के बीच पिछले दिनों से बात बिगड़ती जा रही है। दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े हैं। कोई भी एक-दूसरे को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है। और अब ये झगड़ा घर के बाकी लोगों तक पहुंचने लगा है। मुझे डर है कि कहीं ये बात हमारे परिवार को ही ना तोड़ दे।”
आर्या ने समझा कि बात सिर्फ विवाद की नहीं, बल्कि अम्मा की चिंता परिवार के बिखरने की थी। उसे पता था कि उसके पिता और चाचा, जो बचपन में एक-दूसरे के सबसे करीबी थे, अब एक मामूली सी जमीन के विवाद में उलझे हुए थे। और यही मामला अब सबको खींच रहा था।
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आर्या ने अम्मा को सांत्वना दी, “अम्मा, आप चिंता मत कीजिए। मैं इस बात को संभालने की कोशिश करूंगी। लेकिन हमें पहले शांत रहकर इसे समझना होगा। किसी को दोषी ठहराने से बात और बिगड़ सकती है।”
अम्मा ने हल्की मुस्कान दी और कहा, “तू हमेशा से ही समझदार रही है, आर्या।”
आर्या ने उसी दिन अपने पापा और चाचा से बात करने का निर्णय लिया। उसने दोनों को एक साथ बुलाया और उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह झगड़ा सिर्फ उनके बीच नहीं रह गया है। उसने कहा, “आप दोनों के बीच की ये लड़ाई अब पूरे परिवार को प्रभावित कर रही है। आप लोग सोचिए कि हमारे बच्चे इसको देखकर क्या सीख रहे हैं? हम सब एक साथ रहकर कितनी खुशियां बांट सकते हैं, लेकिन इस एक विवाद की वजह से सबकुछ टूटता जा रहा है।”
पापा और चाचा दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए। आर्या की बातों ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया। दोनों की आंखों में पश्चाताप की झलक दिखाई दी। पापा ने सबसे पहले आगे बढ़कर कहा, “शायद मैं ही ज़्यादा कठोर हो गया था। मुझे माफ कर दो।”
चाचा ने भी पापा के हाथ को पकड़ा और कहा, “नहीं, गलती दोनों की थी। लेकिन अब हम इसे और बढ़ने नहीं देंगे।”
अम्मा, जो बाहर खड़ी सबकुछ सुन रही थीं, उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने अंदर आकर आर्या को गले लगा लिया और कहा, “मैंने सही कहा था, ये छोटी सी बात थी। लेकिन अगर तुम ना होती, तो ये बड़ा रूप ले सकती थी।”
आर्या मुस्कुराई और कहा, “अम्मा, परिवार से बढ़कर कुछ नहीं होता। बस हमें सही वक्त पर सही कदम उठाना होता है।”
उस दिन के बाद घर का माहौल धीरे-धीरे सामान्य हो गया।
साइमा बानो