मैं नहीं चाहती की छोटी छोटी बातें कोई बड़ा रूप ले ले और रिश्ते बिखर जाए… – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

सुबह सुबह सूरज की किरणों ने अपने रंग बिखेरने शुरू कर दिए थे।

अलसाई आंखो को लगा लेट हो गई।

चल उठ स्वयं को ही आदेश देती हुए

 नीलिमा  ने उठ कर गर्म पानी का सेवन करते हुए

खिड़की से पर्दा हटाया।

अचानक घड़ी की तरफ नज़र गई।

ओह लेट हो गई।

गुप्ता जी तो आ गए होंगे।

और दस मिनिट बाद कदम स्वत ही गार्डन की उस बैंच पर बढ़ चले जहां गुप्ता जी बैठे किसी का इंतजार कर रहे थे।

सॉरी सॉरी वो आंख ही नही खुली।

नीलिमा ने अपने शब्दो को सफाई का रूप देते हुए गुप्ता जी के सामने परोसते हुए कहा।

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गुप्ता जी मुस्कुराए और बोले ” हा,तो ये समझ लो चिंताएं

छु मंतर होने लगी है”

दोनो हस पड़ते है।

चलो थोड़ा टहल लेते है।

मॉर्निंग वॉक भी हो जाएंगी और बात चीत भी।

नीलिमा बोली ” हा,हा,क्यों नही।

गुप्ता जी ने अपने अमूल्य जीवन के लगभग 75 वर्ष पूरे कर लिए थे।

दोनो हाथ पीछे बांधते हुए चले जा रहे थे

उस फुटपाथ पर जिसका छोर एक निश्चित चाल के बाद पुनः उसी दिशा में मुड़ रहा था।

एकाएक रुक गए

नीलिमा जी बोली ” क्या हुआ एनी प्रोब्लम?

नो नो वो तो….

बोल कर चुप हो गए।

नीलिमा जी ने अपने चश्मे  को नाक पर रखा और ऊपर से गुप्ता जी को घूर कर देखा फिर बोली ” कुछ तो है देखिए जब में हताश थी

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परेशान थी तब आपने ही कहा था ” अपने मन की बात किसी को बताने से मन हल्का हो जाता है फिर मैं तो आपका रिश्तेदार भी नही हूं।”

रिश्तेदारों को बताने में तो डर लगता है पर मुझे कह सकती है।”

भगवान ने सबको एक जीवन दिया है और साथ में एक कलम भी जिससे आप अपनी जिंदगी में कैसे भी रंग भर सकते है।

वो अलग बात है की आपने अपना जीवन परंपराओं की डोर में बांध लिया और एक मात्र कठपुतली सा जीवन जीने लगे है।

जिसकी डोर इस समाज के हाथ मै है।”

कहिए हुबहु यही शब्द कहे थे ना?

गुप्ता जी बोले ” हा बिलकुल लगता है आपने तो ऐसे के ऐसे रट लिए”

नीलिमा जी मुस्कुरा कर बोली ” अब बात को जलेबी की तरह मत घुमाइए और अपना मन हल्का कर लीजिए”

गुप्ता जी थोड़ी देर बिलकुल चुप हो गए।

नीलिमा जी ने फिर कुरेदा ” जानते है गुप्ता जी पुरुष अधिकतर हर्ट अटैक से क्यों मरते है?

वे अपने मन की बात शेयर नही करते है।

कही ना कही दूसरो की डोर अपने हाथ में रखना चाहते है।

नाचना चाहते वो भी किसी को कठपुतली की तरह।

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पर गुप्ता जी जमाना बदल गया है।

कठपुतलीया भी अब अपनी मर्जी से ही नाचती है।

इसीलिए डोर को स्वच्छंद छोड़ दीजिए।”

गुप्ता जी बोले ” कठपुतलियो को स्वच्छंद छोड़ कर ही तो गलती कर दी।

अब वो मेरी डोर पकड़ने लगी है।

मुझे बताने लगी है की मुझे क्या करना है क्या नही?”

गुप्ता जी की आवाज में रोष झलक रहा था।

नीलिमा जी ने गुप्ता जी का हाथ पकड़ कर उन्हे पास की बेंच पर बैठाया और बोली ” चलिए साफ साफ बताइए क्या हुआ?

गुप्ता जी ने अपना हाथ छुड़ाया और सहम कर थोड़ा दूर खिसक गए।

और बोले ” नीलिमा जी कल बड़े बेटे अंकुर का फोन आया था कह रहा था पापा इंडिया से शर्मा अंकल का फोन आया है कह रहे थे ” अपने पापा को समझा लो इस उम्र में नीलिमा जी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे है आस पास का वातावरण दूषित होता है”

फिर गुप्ता जी ने अपने जैकेट की जेब से रुमाल निकाला और नम आखों को पोछने लगे।

नीलिमा जी एकदम शांत होकर बात सुन रही थी।

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गुप्ता जी अगर हम अपने बच्चो के भविष्य को सुनहरा मोड़ देने के लिए उन्हें बाहर नही भेजते तो क्या ये नोबत आती?

अरे माना ये हमारा फर्ज था पर उनका फर्ज?

खैर उनका क्या दोष?

आजकल मीडिया भी तो बस एक ही रिश्ते को आकर्षण का केंद्र बना कर रखती है तो फिर चरवाहे को तो सब हरा हरा ही दिखेगा ना?

गुप्ता जी कही ना कही हमने ही गलती की है

बच्चो को परवरिश में।

और फिर अपने अतीत पर जमी धूल की परते हटाने लगी

जब जॉय पांच साल का था तब अवि मेरे आंचल में आ गई थी।

मन आसमां में उड़ने लगा था।

सपनो को परिकाष्ठा तो असीम सिरे पर थी।

ना कुछ सुनता था ना दिखता था।

बस एक ही ललक थी की बच्चो के भविष्य में कोई कमी नही छोड़ेंगे।

और किया भी वही।

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बच्चो को अच्छी एजुकेशन मिले इसीलिए सयुक्त परिवार छोड़ कर स्मार्ट सिटी में आ गए।

उनके पापा ( रोहित कानूनगो) मल्टीनेशनल कंपनी में थे।

इसीलिए शहर की नामी स्कूल में एडमिशन करवा दिया।

भागते रहे,खुश होते रहे यह सोच कर जो हमे नही मिला वो हम अपने बच्चो को दे रहे है।

अपनी सुनहरी पतंग को डोर छोड़ पाश्चात्य की परंपराओं से रंगी डोर बच्चो के हाथो में थमा दी थी।

दोनो बच्चो को बाहर ( रशिया) से एमबीबीएस करवा दी।

समाज में इज्जत के तो वारे न्यारे थे।

हर कोई कहता नही थकता था की कानूनगो जी ने अपने बच्चो को बहुत बढ़िया तैयार कर दिया।

और सारा श्रेय अपने आप ही मेरी झोली में आ पहुंचता।

फिर एक दिन अचानक से एक एक्सीडेंट में ये चल बसे।

फिर भी मैंने हिम्मत नही हारी।

दोनो बच्चे अमेरिका में सेटल होना चाहते थे।

तो किया।

दोनो ने तो जिद्द भी की थी

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की आप साथ चलो पर मैं अपनी जमी नही छोड़ना चाहती थी।

पर खुश थी।

पर जैसे जैसे समय बीता बच्चो ने दूरियां बना ली।

अब वो अपनी लाइफ में सेटल होने लगे।

फोन पर ही दोनो ने अपने विवाह की सूचना दे दी थी।

शुरू शुरू में वाट्सअप ग्रुप भी बना जिसमे पुत्र,पुत्र वधू

बेटी जवाई सब जुड़े थे।

पर धीरे धीरे उन्होंने अपनी बात बतानी छोड़ दी।

वक्त का हवाला देकर सप्ताह,महीना वर्ष में बदल गए।

वो अपने हाल में खुश थे।

और मैं ये सोच कर की बोया पेड़ बबूल का तो नीम कहा से होय।”

 

गुप्ता जी बोले ये कहानी केवल आपकी मेरी नही है बहुत से 

पेरेंट्स की है जिसने अपनी मूल जड़ को छोड़ कर पाश्चात्य

संस्कृति की आग में अपने बच्चो को झोंक दिया।

और खुद पर ही ताली बजा कर खुश हो लिए।

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अब अकेले रहने की सजा भुगत रहे है।

तभी नीलिमा जी चहकी और बोली ” गुप्ता जी आप कह रहे थे की ईश्वर ने हमें जीवन दिया है तो कलम भी दी है।”

हा तो,?

गुप्ता जी ने तुरंत प्रश्न किया?

जब हमने बच्चो के जीवन को पाश्चात्य संस्कृति के रंगों में रंग दिया  पर अपनी संस्कृति के मोती पिरोना भूल गए पर उनकी विचार शैली तो बदली होंगी ना?

क्यों ना हम ही एक दूसरे का सहारा बन जाए।

कम से कम बुढ़ापे में अकेले पन  का दंश तो नही झेलना पड़ेगा।

हमे तो बस वक्त काटना है।

तो उसके लिए हम फिर एक गलती कर बैठे?

फिर अपनी संस्कृति पर एक दाग लगा दे।

नीलिमा जी हम साथ साथ ही है।

पर उसके लिए हमे अपने रिश्ते को किसी नाम की जरूरत नही है।

हमे तो अपने हुनर को जगा कर फिर से अपने मन को जिंदा करना है।

तभी मोबाइल की रिंगटोन ने दोनो के वार्तालाप में व्यवधान

डाल दिया।

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नीलिमा जी ने फोन रिसीव किया ” अरे चिया तू रियली बहुत मिस कर रही थी।

तुम लोग तो मम्मा को भूल ही गए।

फिर स्वरो में गंभीरता आ गई और बोली ” जो कभी मम्मी बिना एक कदम नहीं चलते …”

नीलिमा जी फफक पड़ी थी।

उधर से आवाज आई ” ओह मम्मा आप फिर से शुरू हो गई

आपको पता है ना की आज का जमाना कितना फास्ट है

फिर वक्त भी कहा मिलता है?

मैं तो ये कह रही थी की भैया भाभी वहा आ रहे है।

शायद मेरा भी आना हो जाए।

सच?

नीलिमा जी ने चौक कर एक हाथ से आसुओं को पोछते हुए कहा।

हा,मम्मा हम सोच रहे है अब इंडिया में रहना तो है नही तो

क्यों ना मकान बेच कर हम यही रह जाए।

भैया ने सुरेश अंकल से बात कर ली है वो अपना मकान खरीदने को तैयार भी हो गए।

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बोले ” कागजात तैयार रखूंगा तुम तो अपनी मम्मी से बात कर लेना ताकि कागजात समय से बन जाए।

तुम्हारा वक्त भी बच जायेगा।

इसीलिए मैंने सोचा आपको बता दू 

आप भी अकेली होती हो,।

आपको यही फ्लैट दिला देंगे।

 

नीलिमा जी ने कुछ जवाब नही दिया।

 

और फोन काट दिया।

फिर विचारो के उधेड़बुन में खो गई।

गुप्ता जी ने धीरे से पूछा ” सब ठीक तो है ना?”

नीलिमा जी बोली ने हा में गर्दन हिला दी।

पर उदास आखें सब कुछ बया करने को तैयार बैठी थी।

नीलिमा ;” मैं नहीं चाहती छोटी बात कोई बड़ा रूप ले ले और बचे कूचे रिश्ते बिखर जाए लेकिन…

कहते कहते चुप हो गई।

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फिर कुछ रुक कर बोली पर … ये तो तय है कि बच्चों को बड़ों की परवाह नहीं रही।

 

गुप्ता जी बोले ” शायद आप ठीक ही कह रही थी जब बच्चो को हमारी परवाह नही रही तो फिर अब हमे भी ठोस कदम उठा ही लेना चाहिए।

कम से कम एक दूसरे के विश्वास से हम बची कूची जिंदगी तो आराम से निकाल लेंगे।

नीलिमा जी बिना बोले घर की तरफ मुड़ गई थी।

एक माह बाद नीलिमा जी के बच्चे आ गए थे।

बच्चो की किलकारियों के मध्य भी नीलिमा जी का मन बुझा बुझा सा था।

तभी उनका उनकी आत्मा से साक्षात्कार हुआ।

अपनी जड़ों को छोड़ वृक्ष कैसे मजबूत टीका रह सकता है।

बच्चो में समझ नही है।

पर तुमने भी अपने घुटने टेक दिए।

जब वो जिद्द कर सकते है तो तुम भी जिद्द कर इन जड़ों को बचा लो।

नीलिमा जी बोली ” जब नया पौधा अमेरिका में लग गया तो उसमे भी तो फूल आ ही जायेंगे।

फिर इन जड़ों ….का?

इनमे संस्कार है इस वतन की खुशबू है 

विश्वास है।

फिर तुम रह पाओंगी उस पराए माहोल में।

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वहा भी तुम्हे अलग ही रहना है

तो यहां क्या प्रोब्लम है?

यहां अपने सगे संबंधी है।

माना कोई किसी से मिलता नही है।

पर फिर भी सब अपने लगते है।

और वहा…,…. तो सब बेगाना सा

अचानक सुरेश भाई की आवाज से नीलिमा जी फिर वही खड़ी हो गई।

भाभी जी कागजात तैयार है

ये लीजिए आपके दस्तखत कर दीजिए।

नीलिमा जी मुस्कुरा कर बोली ” सुरेश भाई एक तरफ भाभी कह रहे है दूसरी तरफ भाभी को ही बेघर कर रहे है।”

माफी चाहती हू पर ये घर अब नही बिकेंगा।

मेरी अंतिम श्वास के बाद क्या होंगा में नही जानती पर फिलहाल तो सॉरी।

दोनो बच्चे एकदम सकपका गए और बोले” मम्मी ये क्या कह रही है?”

नीलिमा जी ने हाथो को बांधते हुए कहा ” हा,में घर नहीबैच रही हु।”.

तो आप यहां अकेली रहेंगी?

चिया तुरंत मुंह बिगाड़ते हुए बोली।

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नही मैं अकेली नहीं रहूंगी मेरे जैसे और भी कई लोग है जो

अपने बच्चो को बाहर भेज कर बहुत खुश थे।

और उन्हें भी यही सजा मिल रही है।

तो अब मैं ऐसे सभी बुजुर्गो का सहारा बनूगी उन्हे अपने घर मे रखूंगी।

सब साथ रहे तो मैं भी आराम से रह सकती हू।

तभी गुप्ता जी आ गए।

नीलिमा जी ने उनकी तरफ देखा और बोली” क्यों गुप्ता जी

आप मेरा साथ देंगे।

और उनकी तरफ हाथ बढ़ा दिया।

गुप्ता जी ने नीलिमा जी का हाथ पकड़ा और बोले “

मैं आपके हर फैसले आपके साथ हु।

पीछे से सुरेश भाई चिढ़ कर बोले” देखा आ गई ना सच्चाई सामने अब तुम लोग अपनी आखों से देखो और कानो से

सुनो .

नीलिमा जी बोली ” अब इस उम्र में जब अपने बच्चे साथ छोड़ देंगे।

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तो किसी ना किसी को तो सहारा बनाना ही पेडेगा ना?

मैं और गुप्ता जी एक दूसरे का सहारा बनेंगे।

नीलिमा जी के इतना कहते ही सुरेश भाई हस पड़े और अपने स्वरों में तंज को घोलते हुए बोले ” हा,हा,देखा बच्चो इस उम्र में भी प्यार परवान चढ़ रहा है इसीलिए तुम्हारे साथ जाने को तैयार नहीं है।”

तभी नीलिमा जी की पुत्र वधू बोली ” माफ कीजिएगा अंकल

आप हमारे घर में दखलंदाजी ना करे तो बेहतर होंगा।”

और आप जिस प्यार की बात कर रहे है ना वो अब प्यार नही

बुढ़ापे का सहारा ढूंढ रहे है।

क्योंकि हम इनका सहारा नही बन पा रहे है।

मेरी मम्मी भी इसी दौर से गुजरी थी और घूट घूट कर मर गई।

पर मैं मम्मी जी के साथ हु।

मम्मी जी कहा गलत है?

अपने परिवार रूपी वृक्ष की जड़े कोई हिलाना नही चाहता

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और फिर इन लोगो ने हमे पढ़ा लिखा कर बाहर भेजा तो इनकी जिम्मेदारी भी हमारी ही है ना?

और अगर हम इस जिम्मेदारी से पीछे हट रहे है तो इन्हे अपने जीवन में रंग भरने का हक है।

अंकल जी मैं आपका सम्मान करती हु।

जो परिस्थिति मम्मी जी के साथ है उसी से शायद आप भी जूझ रहे है।

जमाने के साथ बदल जाने में ही समझदारी है।

नीलिमा की पुत्रवधु ऋषिता के बोलते ही घर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा।

गुप्ता जी बोले ” बच्चो ये हमारी संस्कृति के खिलाफ है इसीलिए जो तुम सोच रहे हो ऐसा भी नहीं है।

हम एक ही घर में साथ साथ रहेंगे जैसे और हम उम्र भी हमारे साथ रहेंगे।

एक दूसरे का सहारा बनकर।

ये वृद्ध आश्रम नही बनेगा ये ,,” ये हमारा घर होंगा “

जहां हम अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जी पाएंगे।

इसमें बच्चो की मर्जी नही चलेंगी।

क्यों नीलिमा जी ?

जी गुप्ता जी आप सही कह रहे है।

ऋषिता ने अपने हेसबेंड मयंक की ओर देखा।

मयंक बोला ” मम्मा मैं आप सब के लिए इस हमारे घर में पूरी सुविधाएं उपलब्ध करवा दूंगा।

जिम, गेम्स और अपने अपने हुनर को पुनः तराशने को फूल

सामग्री।

पर इसमें एक कमरा हमारा भी होंगा।

कभी हम इस वृक्ष की छाया में रहना चाहे तो?

नीलिमा जी ने अपनी बच्चो को गले लगा लिया।

दीपा माथुर

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