मै किसी पर कलंक नहीं लगा सकती। – अर्चना खंडेलवाल   : Moral Stories in Hindi

गीता जी आंगन में बैठकर सब्जियां साफ कर रही थी, तभी उनकी नजर अपने पैरों पर पड़ी तो देखा उनके एक पैर में पायल नहीं है, उनके होश उड़ गये, अभी परसों ही वो मायके से वापस आई थी, भतीजे की शादी थी तो लॉकर से ये मोटी, घुंघरू वाली खानदानी चांदी की पायल निकाली थी, अब ऐसे शादी ब्याह के अवसर पर ही तो ऐसे महंगे और पुराने खानदानी जेवर निकाले जाते हैं।

सब्जियों को एक तरफ करके वो एक-एक सीढ़ी ध्यान से चढ़ते हुए अपने कमरे की ओर गई, पर सीढीयो पर पायल नहीं मिली, कमरे में जाकर पलंग का चादर हटाया, ड्रेसिंग की हर दराज छान मारी, शादी से लेकर आई एक-एक कपड़ा खंगाल लिया, कहीं भी उनकी पायल नहीं मिली।

सासू मां ने कितने प्यार से उन्हें मुंह दिखाई में ये पायल दी थी, गीता जी इकलौती बहू थी, इकलौती बहू होने के नाते सासू मां के पास जो भी गहने थे, सब उनको ही मिले थे, ये गहने पाकर वो खुश थी, लेकिन पायल से उन्हें विशेष लगाव था।

जब भी वो ये पायल पहनती थी, तो उनके पति उस पायल की छमछम से उन पर मोहित रहते थे।

एक दिन उनके पैरों में दर्द हो रहा था, उन्होंने वो पायल उतारकर तेल की मालिश कर ली, और उसे वापस पहनना भुल गई, नीचे काम करवाने रसोई में चली गई।

जब शाम को उनके पति कमलेश जी दुकान से वापस आये तो कहने लगे, आज घर बहुत सूना-सूना लग रहा है।

वो अनजान थी कि कमलेश जी किसके बारे में बात कर रहे थे,वो तपाक से बोली, हां दोनों बेटे बाहर खेलने जो गये है।

मै बच्चों की नहीं अपनी पत्नी के पैरों से आती हुई मधुर धुन की बात कर रहा हूं, तुमने पायल फिर से नहीं पहनी?

बस उस दिन के बाद सालो तक पायल उनके पैरों में सजी, धीरे-धीरे समय बदला पायल भी महंगें जेवरों के साथ लॉकर में चली गई, लेकिन आज भी जब भी कहीं शादी ब्याह होता, या घर में कोई त्योहार होता तो वो लॉकर से पायल मंगवाना नहीं भुलती थी। 

दो बेटो का ब्याह कर दिया, मुंह दिखाई में बहूओं को खानदानी जेवरों में सब दिया, लेकिन पायल का जोड़ी उन्होंने अपने ही पास में रखी।

पुरानी यादों से निकलकर वो वर्तमान में वापस लौट आई, उनके माथे पर पसीने की बूंदे छलकने लगी, और वो ये सोचकर चिंतित हो गई कि आखिर उनकी पायल कहां गई?

उन्हें याद आया कि उस दिन भतीजे की हल्दी के वक्त उन्होंने भी नृत्य किया था, पर तब तो पायल नहीं खोई थी। शादी में बारात में नाचते समय भी पायल उनके पैरों में थी। वो अपने दिमाग पर जोर देने लगी।

शाम तक वो परेशान रही, तब तक उनके पति आ गये थे, उन्होंने अपनी परेशानी बताई तो वो भी सोचने लगे कि आखिर पायल कहां गई?

तुमने अपने भाईसाहब को फोन लगाया और घर पर ढूंढने को कहा? ये सुनते ही गीता जी चौंक गई, नहीं मै ऐसा नहीं कर सकती हूं, क्योंकि मै अपने मायके वालों पर कोई कलंक नहीं लगाना चाहती हूं।

अरे!! मै तुम्हारे भाईसाहब पर नहीं पर वहां पर जो नौकर रहते हैं, उनकी बात कर रहा हूं, उन्होंने ले ली होगी, वैसे भी पुरानी शुद्ध चांदी है, एक पायल बेचकर भी  नौकर को अच्छी- खासी रकम मिल गई होगी।

कमलेश जी ने उग्रता से कहा।

नहीं जी, दीनू काका उस घर में बरसों से है, और वहां सबकी सेवा कर रहे हैं, मायके की हर चीज प्यारी होती है और हर बेटी उसका सम्मान करती है, चाहे वो घर में काम करने वाला नौकर ही क्यों ना हो? मै उनके लिए ऐसा सोच भी नहीं सकती तो पूछने का तो सवाल ही नहीं उठता है, अगर पायल वहीं पर गिरती तो आगे होकर फोन आ जाता, हमें पूछने की जरूरत ही नहीं थी।

चोरी का इल्ज़ाम या कलंक लगाने में एक क्षण लगता है, पर वो निर्दोष के स्वाभिमान को चूर-चूर कर देता है, इसलिए मै ये कलंक दीनू काका पर नहीं लगा पाऊंगी।

ठीक है, मै तुम्हारी भावनाओं और तुम्हारे मायके वालो दोनों की दिल से इज्जत करता हूं, तुम फोन मत करना, अब आगे बताओ, क्या करना है? पायल तो बड़ी कीमती थी, और उससे भी ज्यादा ये मां ने तुम्हें मुंहदिखाई में दी थी।  कहीं हमारे घर के नौकरों ने तो नहीं ले ली? उन्होंने संशय जताते हुए कहा।

नहीं जी, मै हमारे घर के नौकरों पर भी ये बेबुनियाद कलंक नहीं लगा सकती हूं, उन्होंने भी बरसों हमारा नमक खाया है, एक पायल पर वो तो अपनी नीयत नहीं बिगाड़ेंगे, गीता जी विश्वास से बोली।

ठीक है, फिर हम इस मुद्दे को यही छोड़ देते हैं, जब मिलनी होगी तब मिल जायेगी अब रात बहुत हो गई है, ये कहकर कमलेश जी सोने चले गए।

तभी बड़े बेटे का शहर से  फोन आया, मां पायल मिली क्या?

मुझे लगता है, अपने घर के नौकरों ने चुरा ली होगी?

आप पूछताछ करके देखिए, मालूम चल जायेगा।

नहीं बेटा, मै ऐसे किसी पर बिना बात के कलंक नहीं लगा सकती, मै परेशान हूं पर मैंने अपना दिमाग और जबान दोनों संभालकर रखे हैं, मुझे विश्वास है पायल कहीं ना कही मिल ही जायेगी, तू चिंता मत कर, और उन्होंने फोन रख दिया।

छोटे बेटे का भी फोन आया, ‘आप कहो तो मैं पुलिस वालों को घर भेजता हूं, ये घर के नौकर दो-चार डंडे खायेंगे तो अपने आप अपना जुर्म कबूल कर लेंगे’।

तुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, तेरे पिता जी और मै संभाल लेंगे, तू आराम से सोजा, उन्होंने बेटे को समझा-बुझाकर फोन रख दिया।

गीता जी की आंखों में नींद नहीं थी, वो सारी रात सोचती रही ससुर जी ने तो ईमानदारी से पैसा कमाया था, तो पायल ऐसे ही कहीं नहीं जा सकती, मेरे ही पैरों से कहीं गिर गई होगी, भाग्य में होगी तो मिल जायेगी।

सुबह की खटपट से उनकी नींद खुली, बाहर शोर शराबा था, वो नीचे गई तो देखा उनका नया नौकर जो उनके पति की कार साफ करता था, उसके हाथ में पायल थी, जो उसे कार में सफाई करते वक्त मिली थी।

मालकिन, ये पायल कार की अगली सीट के नीचे गिरी थी, आपकी ही होगी, और उसने बड़ी सहजता से वो पायल उन्हें सौंप दी, उसे पाते ही गीता जी की आंखें खुशी के मारे चमक गई, और उन्होंने नये नौकर को नकद राशि ईनाम में दी।

तभी उन्हें याद आया, शादी से लौटने के बाद कार की सफाई ही नहीं करवाई थी, और दुकान पास मे थी तो कमलेश जी टहलते हुए ही आते-जाते थे। कल उन्होंने ही नये नौकर को कहा था कि कल सुबह कार साफ कर देना, क्यों कि उन्हें दोपहर को किसी रिश्तेदार की सगाई समारोह में जाना था।

देखो, मै ना कहती थी कि पायल मिलनी होगी तो मिल जायेगी, मायके फोन लगाकर पूछते तो ये झूठा कलंक दीनू काका सहन नहीं कर पाते, और हम जीवन भर उनसे शर्मिंदा रहते,  यहां के नौकरों पर कलंक लगाते तो उन पर से भी विश्वास खो देते, कलंक लगाना बहुत आसान है, लेकिन मिटाना बहुत ही मुश्किल है,

पायल कीमती थी, पर उससे ज्यादा कीमती हमारे यहां काम करने वालों का आत्म-सम्मान है, कमलेश जी ने ये सुनकर हामी मिलाई, पायल गीता जी के हाथों से लेकर उन्हें पहना दी और वो एक नई नवेली दूल्हन की तरह शरमा दी।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

#कलंक

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