मैं किसी की मोहताज नहीं होना चाहती – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

हेलो , हां बेटा क्या कर रही हो मम्मी झाड़ू लगा रही हूं बेटा। क्या मम्मी जब भी आपको फोन करों तो कभी झाड़ू लगा रही हैं कभी पोंछा लगा रही है तो कभी कपड़े धो रही दिनभर काम ही काम कभी फुर्सत में बैठती है कि नहीं। मुझसे भी बात करने का समय नहीं मिलता। करती तो हूं बेटा तुमसे बात।अब मैं काम नहीं करूंगी घर का तो कौन करेगा ।

तेरे पापा तो कुछ करते नहीं । कितनी बार कहा तुम्हारे पापा से कि थोड़ी बहुत मदद कर दिया करें जो कर सकते हैं तो वो सुनते नहीं है बस दिनभर बैठे बैठे कभी इसको तो कभी उसको गालियां देते रहते हैं कि कोई फोन नहीं करता , बात नहीं करता मैं बोर हो जाता हूं बैठे बैठे। अरे पापा क्या काम करेंगे कभी किया है क्या कोई घर का काम ।आप बेकार में उनसे कहती हैं । हां हां वो तो सब ठीक है लेकिन समय पास करने के लिए कुछ तो करना होगा न ।

                खाली बैठे रहोगे तो कैसे समय कटेगा ।और काम करते रहो तो समय भी कट जाता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है । किसी के मोहताज तो नहीं रहते न कि कोई हमें कुछ करके देगा।और आजकल तो उम्मीद भी न करो किसी से कि मेरे लिए कुछ करेगा।नौकर चाकर लगाकर करवा तो लो लेकिन जब वो नहीं आती तो फिर नानी याद आ जाती है।

               और मेरी आदत बनी है काम करने की तभी तो इस उम्र में भी तुम और भाई जब घर आते हो तो सारी फरमाइशें पूरी कर पाते हैं। और मेरा समय भी कट जाता है और सेहत भी अच्छी रहती है।पर मां पहले तो अपने पास इतने पैसे नहीं थे कि नौकर रख सके ,तुम कितना खिजती थी कि सबके घर में नौकर है बस हम लोग ही नौकर नहीं रखा सकते।

तुम पापा से कितना लड़ती थी इस बात पर । हां सबके यहां देखती थी कि सारा काम नौकर कर जाता है और मैं नहीं रख सकती तो मुझे बहुत गुस्सा आता था।खास तौर से जब तुम्हारी ताई जी मुझे ताना मारती थी कि एक नौकर नहीं रख सकती ।और बोलती थी कि भाई मैं तो कोई काम नहीं करती हूं मेरा सारा काम खाना बनाने से लेकर बिस्तर के चादर बदलने तक सबकुछ नौकर कर जाता है ।एक दिन खाना बनाने वाली नहीं आती थी तो बाजार में जाकर खाती थी ।तब मुझे बड़ी जलन होती थी एक सब देखकर क्योंकि मैं नौकर नहीं रख सकती थी ।

              लेकिन मां अब तो मैं और भइया दोनों कमा रहे हैं अब तो कोई दिक्कत नहीं है अब तो आप एक नौकर रख ही सकती है, हां रख सकती हूं तो बर्तन धोने वाली रख ली है बस।और जब मैं बाहर बरामदे में झाडू लगाती हूं तो बाहर आमने-सामने वाली आंटी लोग कहती हैं कि अरे नंदिता तुम अभी भी झाड़ू पोंछे का काम खुद ही करती हो ,

हां भाभी जी , बहुत बढ़िया नंदिता वरना आज कल तो कोई नहीं करता।कम से कम तुम इन काम वालियों की मोहताज तो नहीं हो।एक बार खुद से काम करना छोड़ दो तो फिर होता नहीं है। फिर तो काम वालियों के ही मोहताज होकर रह जाते हैं हमलोग । फिर तो जैसा भी काम कर जाए मजबूरी में हमें कराना ही पड़ता है । हां वो तो है भाभी जी।

               और फिर बेटा तुमने ताई जी की हालत तो देखी है न । दिनभर आराम करने का नतीजा । कितना मोटापा बढ़ गया है और कितनी बिमारियों ने घेर रखा है उठ बैठ नहीं पाती।और अभी तो कुछ दिन पहले ब्रेन हेमरेज हो गया था तो आधे शरीर में लकवा मार गया अब और भी अपने काम को ही मोहताज हो गई है। बहुएं भी उनकी कैसे बेइज्जती करती है ।

अपना तक काम ंनहींकर पाती है।वो तो अब थोड़ी सी ठीक हो गई है अपना नहाना धोना कर लेती है ।और खाने के लिए कैसे तरसती रहती है । कुछ भी मन का नहीं मिलता ।जो कुछ भी ठंडा गर्म सामने आ गया बस खाना पड़ता है।कितने नखरे दिखलाती थी सब भूल गई।अब मुझसे फोन करके रोती है और कहती हैं नंदिता तुम ही अच्छी हो जो सब काम अपना खुद कर लेती है अपने मन का बना खा लेती हो किसी की मोहताज तो नहीं हो ।

          तो बेटा मुझे अब समझ आने लगा कि अपने को स्वस्थ और काम करने लायक बनाए रखना बहुत जरूरी है ।आपकी इज्जत किसी के सामने और खास तौर से बहुओं के सामने तभी तक है जब तक आप कुछ करने लायक हो। नहीं तो आपकी इज्जत तो ढेले भर की भी नहीं है।

पहले मैं लड़ती थी तेरे पापा से कि हमारे पास इतने पैसे भी नहीं है कि हम एक नौकर रख लें । लेकिन अब तो पापा कहते हैं कि भी मुझसे काम वाम की न कहा करो अब पैसों की कोई दिक्कत नहीं है तुम भी नौकर रख लो सबकाम को और आराम से पड़ी रहो । मैंने तेरे पापा से पूछा कि खाना वाली खाना बनाकर रख जाएगी तो आप खा लोगे।

तो वो बोलें आजतक कभी ठंडी रोटी खाई नहीं है अब कैसे खा लूंगा ।अब बताओ मुझे गरम करके देना ही होगा।तो इससे अच्छा खुद बना लो ।और सच पूछो तो खाना खुद ही बनाना चाहिए ‌।जो स्वाद खुद खाना बनाने में आता है वो किसी और से बनवाने में नहीं । आखिर देखना तो उनको भी पड़ेगा कि क्या बना रही है और कैसे बना रही है।

              इसलिए बेटा अपने आसपास और तुम्हारी ताई जी का हाल देखते हुए मैंने ये फैसला लिया कि तब-तक काम हो रहा है खुद करूंगी।चाहे जितना भी नौकर लगवा लो लेकिन घर के कामों में आपको खुद ही लगना पड़ता है तभी घर गृहस्थी अच्छे से चलती है।कम से कम मुझे ये तसल्ली है कि मैं किसी की मोहताज नहीं हूं। अरे मम्मी आपसे तो कोई जीत नहीं सकता जो ठीक लगे वो करों। क्या ही कहूं मैं।और मां बेटी हंस पड़ी खिलखिला कर और इस तरह मां बेटी का वार्तालाप समाप्त हुआ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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