मै भी तो एक बेटी हूं – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

अरे रश्मि बेटा आज भी इतनी जल्दी उठ गई, आज तो रविवार है , आराम से उठ जाती। रोज़ तो पांच बजे उठती हो बच्चों के स्कूल की वजह से, रश्मि की सास आशा जी बोली

मम्मी आपको और पापाजी को उठते ही चाय और गर्म पानी चाहिए इसलिए मैं उठ गई । आज सर्दी भी बहुत है तो फिर आपको दिक्कत भी होगी ना

 आप आराम से बैठिए चाय और पानी मैं ले आती हूं

 थोड़ी देर में रश्मि चाय और पानी लेकर आती है और सास ससुर जी के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेती हैं

 आशा जी_ सदा सुहागन रहो, तेरा भाई खूब तरक्की करे और जिस भी आशीर्वाद की जरूरत होती वो ही आशीर्वाद आशा जी रश्मि को देती।

 रश्मि के सास ससुर बहुत खुश थे रश्मि से ..

हालांकि ये वो ही आशा जी थी जो कुछ सालों पहले रश्मि के खिलाफ़ थी उनके इकलौते बेटे ने लव मेरिज करके घर की इज्जत जो मिट्टी में मिला दी थी।

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       रश्मि और उसके पति आलोक की लव मैरिज थी जिसके खिलाफ आशा जी शुरू से थी पर अपने इकलौते बेटे के आगे उनकी एक न चली और रश्मि उनके घर की बहु बनकर आ गई।

 पर आशा जी ने तो बेटे के लिए अपनी पसंद की एक समान बिरादरी की लड़की पसंद की हुई थी और उनका मानना था कि जानी पहचानी लड़की आएगी तो घर और घर वालों की इज्जत बख़ूबी करेगी। इसी डर के चलते वो रश्मि को कभी  दिल से नहीं अपना पाई थी

        उनका व्यवहार उसके प्रति अच्छा नही था। बात बात में उसको ताने देना , उसके चरित्र पर उंगली उठाना उनका रोज का काम था पर रश्मि हमेशा घर की इज्जत को लेकर फिक्रमंद थी तो कभी पलट कर जवाब नहीं दिया।

  लेकिन एक बार की घटना ने आशा जी को बिलकुल बदल दिया

               एक बार रश्मि की ननद अपने मायके छुट्टियों में रहने आई थी। रश्मि सुबह जल्दी उठती सास ससुर और अपनी चाय  बनाती फिर नहा धोकर ही अपनी ननद और बच्चों की चाय बनाती और उनको आराम से उठाती ।  लेकिन आशा जी को सुबह देर तक सोना कतई पसंद  नहीं था  चाहे उनकी बेटी ही  क्यों न हो 

पर रश्मि  उन्हें सोने देती ये कहकर कि “मम्मी सोने दीजिए ना , एक मायके में ही तो वो अच्छे से नींद पूरी कर अपने हिसाब से रह सकती हैं नही तो ससुराल में तो कितने ही काम होते हैं करने के लिए। दिन कम पड़ जाता है पर काम कम नही होते । सोने दीजिए मम्मी” 

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          आशा जी मन ही मन बहुत कुंठित होती रश्मि की इस सोच पर और  साथ  में सोचती दाल में जरूर कुछ काला है तभी ये इतना साइड ले रही है अपनी ननद की। क्या पता 

मेरी बेटी को मेरे ख़िलाफ़ करना चाहती हो या इसका काम इसको पसंद नही आता या मेरे घर में अपना हुकुम चलाना चाहती है। मीठी मीठी बातों में फंसाकर मेरी बेटी को अपनी ओर करना चाहती है और चाहते हुए भी उससे दो मीठे बोल नही बोलती।

           कभी कभी जब आशा जी ,उनके पति,आलोक और उसकी बहन साथ बैठते तो रश्मि थोड़ी देर उनके साथ बैठकर अपने कमरे में चली जाती ये सोचकर कि बहन ,भाई, मां, बेटी की आपस की बातें भी तो होती है जो वो आपस मे करना चाहते हों पर तब भी आशा जी सोचती_ कर रही होगी अपनी मां से मेरी बुराई तभी तो बीच से ही उठकर चली गई और आलोक के कान भी भर देती कभी कभार

           पर  आलोक कभी  अपनी मां के कहने में आकर रश्मि को गलत नही  समझता वो कभी उसके खिलाफ़ नही गया क्योंकि वो रश्मि को बहुत अच्छे से जानता था। दोनों पति पत्नी में बहुत अच्छी आपसी समझ थी।

एक दिन आशा जी ने ऐसे ही आलोक के कान रश्मि के खिलाफ़ भर दिए ताकि आलोक रश्मि से लड़ाई करे और उस को रश्मि से छुटकारा मिल जाए और उनके कमरे के बाहर कान लगाकर खड़ी हो गई सुनने के लिए

             आलोक_   रश्मि जब से मेरी बहन आई है तुम तो बस उन्ही की भाभी बनकर रह गई हो । तुम भूल ही गई तुम मेरी पत्नी भी हो। दिन भर उन्ही की सेवा में लगी रहती हो मुझे तो टाइम ही नही देती हो और उसको अपनी बाहों में भर लिया। बाहर आशा जी को कुछ समझ नहीं आया वो क्या सोच रही थी और क्या हो गया( चीखने चिल्लाने की आवाज़ आने के बजाय हंसने खिलखिलाने की आवाजें  आ रही थी)

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              रश्मि_   आलोक ऐसा नहीं है ।पर मैं आपकी पत्नी होने के साथ साथ किसी की बेटी भी हूं। मुझे पता है एक बेटी जब अपने मायके आती है और उसको उसकी भाभी से भरपूर स्नेह और दुलार और इज्जत मिलती  है तो उसके मां पापा को कितनी खुशी होती है। मायके में आकर अपने परिवार से एक लड़की को उसके बचपन जैसा प्यार मिले

तो वो अपने आपको कभी पराया महसूस नहीं करती इसलिए मैं दीदी को अपने सर आंखों पर बिठाकर रखना चाहती हूं ताकि मम्मी पापा को भी लगे कि हमारे बाद उनकी बेटी का सुख दुख बांटने वाला कोई है, वो अकेली नहीं है। आखिर ये घर मेरा है तो घर की और घर वालों की इज्जत करना भी तो मेरा दायित्व है।

              आलोक_ रश्मि दाद देता हूं मैं तुम्हारी सोच की। मम्मी का व्यवहार देखा है मैने तुम्हारे प्रति.. कितना रूखा है पर फिर भी तुम सबके बारे में इतना सोचती हो, धन्य हो गया मैं तो ऐसी पत्नी पाकर और आलोक उसे प्यार से चूम लेता है।

               उधर बाहर आशा जी जो सब बाते सुन रही थी उनके आंखो में पछतावे के आंसू थे वो आत्म ग्लानि से भर गई और अपने कमरे में जाकर अपने पति को सारी बाते बताई तो वो भी बहुत दुखी और उसकी सोच पर शर्मिंदा थे।

बोले घर की इज्जत तुम मिट्टी में मिला देती अगर आलोक समझदारी नहीं दिखाता 

शुक्र करो भगवान का जो बैठे बिठाए ऐसी लड़की तुम्हारे घर की बहु बन गई जो आते ही परिवार में घुल मिल गई।

हां जी आप सही कह रहे हो मै कल ही अपनी गलती की माफी मांगूंगी अपनी बहु … नहीं, नहीं बेटी से

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और कहकर दोनों पति पत्नी खुश हो गए

                अगले दिन…… सुबह

                आशा जी का व्यवहार रश्मि के प्रति बहुत बदला हुआ था और उसको, रश्मि और आलोक दोनो ही नोटिस कर रहे थे। सोचकर बहुत खुश थे पर अचंभित भी आखिर मां अचानक से इतना बदल क्यों गई। तभी आशा जी आई और रश्मि से क्षमा मांगते हुए बोली

                मुझे माफ कर दो रश्मि बेटा । मै तुम्हारे बारे मे कितना गलत सोचती थी पर तुम्हारी सोच ने मुझे ही गलत साबित कर दिया।।मैने कल तुम्हारी और आलोक की सारी बाते सुन ली तब मुझे एहसास हुआ। 

मैं हमेशा तुम्हारे खिलाफ़ थी और यही सोचती थी कि 

      कि तुमने मेरे बेटे से शादी सिर्फ पैसों के लिए की है और तुम कभी भी हमे इस घर से बेदखल कर दोगी।

                रश्मि …अरे मां आपने ऐसा कैसे सोच लिया। आपसे ऐसा व्यवहार करने से पहले मैं दस बार अपने मम्मी पापा के बारे में सोचती हूं, कल को मेरी भाभी भी मेरे मम्मी पापा के साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी तो मुझे कैसा महसूस होगा यही सोचकर मैं आपसे कुछ भी बुरा करने का सोच भी नही सकती।

मै भी तो एक बेटी हूं, अपने मां पापा का ध्यान रखना जानती हूं तो आपका क्यों नही। और मेरे पापा हमेशा कहते हैं बेटी तो दो कुल का नाम रोशन करती है इसलिए जब मैं आलोक की पत्नी बन एक अच्छी बहु साबित होऊंगी तो अपने मां पापा के लिए एक लायक बेटी भी तो बनूंगी।

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                सच बेटे तेरी जैसी बहु पाकर तो मैं धन्य हो गई और कह कर आशा जी ने उसको गले लगा लिया तब का दिन और आज का दिन आशा जी जो अपनी बहु के खिलाफ़ थी उसको बेटी सा प्यार करने लगी

                दिन गुजरते गए और रश्मि और आशा जी का रिश्ता मजबूत होता गया और जब रश्मि मां बनने वाली थी तब आशा जी ने उसकी बहुत देखभाल की पर डिलीवरी के लिए उसको उसके मायके भेजना उचित समझा , बोली

                “आलोक, रश्मि  को उसके मायके छोड़ आ , अब उसके पूरे महीने लग चुके हैं तो कभी भी हॉस्पिटल जाना पड़ सकता है।”

तभी अचानक रश्मि के ससुर जी बोले

                 अरे मेरी पत्नी को क्या हुआ अचानक , बहु को मायके क्यों भेज रही हो? क्या गुस्ताख़ी कर दी मेरी बहु ने अब

                  अरे आपकी पत्नी होने के साथ साथ मैं किसी की बेटी भी हूं और इन दिनों एक बेटी जो बाते और अपनी तकलीफ अपनी मां से शेयर कर सकती है वो किसी और से नही। बचपन से जिस मां ने उसे पाल पोस कर बड़ा किया वो ही उसकी आदतों, पसंद, नापसंद का ख्याल रख उसको इन परिस्थितियों में तन और मन दोनों से खुश रख सकती है।

                   जैसे मैं अपने मायके गई, ऋतु आपकी बेटी आपके घर आई वैसे ही रश्मि भी अपनी मां के पास ही जायेगी न, आशा जी बोली

                    और रश्मि ने मायके में अपने बेटे को जन्म दिया।

समाचार सुनते ही आशा जी दौड़ी चली गई । अपनी बहु और पोते को देख फूली नही समा रही थी।

                       दोस्तों अक्सर देखने सुनने में आता है कि सास और बहु की एक दूसरे से नही बनती तो दोनों एक दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र रचती हैं या अपने पतियों के कान भरती हैं और अच्छे खासे हंसते खेलते परिवार में  तनाव और गुस्सा घर कर जाता है और कभी कभार तो ये खिलाफत इतनी बढ़ जाती है कि घर टूटने के कगार तक आ पहुंचता है।

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पर यदि पति पत्नी का रिश्ता प्यार और विश्वास पर टिका होता है तो गलत फहमी के अवसर कम हो जाते हैं और समस्याएं बढ़ने के बजाय आराम से हल की जा सकती हैं।

जिस समझदारी का परिचय रश्मि और आलोक ने दिया वो काबिले तारीफ था ..नही तो उनका घर भी कब का बिखर  गया होता और घर की इज्जत मिट्टी में मिलती सो अलग

                        कहते हैं बेटी दो कुलों का नाम रोशन करती है.. एक पत्नी और बहु बन अपने ससुराल का तो ससुराल में अपने मधुर व्यवहार और वाणी से सबका मन जीत  अपने मायके का। सास बहू में थोड़ी अनबन तो चलती है पर एक दूसरे के खिलाफ मतभेदों को मनभेदों में बदलने से पहले आवश्यक कदम उठाने भी जरूरी होने चाहिए ताकि परिवार बिखरने से बच सके।

 

कहानी को सिर्फ कहानी की तरह पढ़ें अन्यथा न लें। मेरे विचारों से सहमत हैं तो मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूलें

धन्यवाद

निशा जैन

दिल्ली

# घर की इज्जत

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