जागृति एक विधवा महिला थी। कुछ वर्ष पहले एक दुर्घटना में उसके पति की मृत्यु हो गई थी। उस समय से उसकी जिन्दगी में सन्नाटा छा गया था। उसकी जिन्दगी मरूभूमि की तरह बंजर हो गई थी। उसके जीने का एक मात्र सहारा उसकी इकलौती संतान उर्वशी ही थी।उसकी वजह से ही उसके जीवन का एकाकीपन दूर हो रहा था।
वह शिक्षिका थी। उसके वेतन से ही उर्वशी शिक्षा-दीक्षा प्राप्त तो कर ही रही थी, उनकी परवरिश भी हो रही थी।
देखते-देखते उर्वशी की शादी की उम्र भी हो गई। जागृति को उसकी शादी करने की चिंता सताने लगी। वैसे उर्वशी स्नातक उत्तीर्ण हो चुकी थी। वह खूबसूरत भी थी। उसके तीखे नैन-नक्श और आकर्षक मुस्कान लोगों को अपनी ओर खींच लेने में सक्षम थे।
जब समाज में उसकी शादी की चर्चाएं होने लगी तो अगुओं का निरंतर आना शुरू हो गया।
शादी के मकसद से आने वाले लोग उसके व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हो जाते कि पहली नजर में ही उर्वशी को पसंद कर लेते, किन्तु इतने से ही लड़को के अभिभावक थोड़े ही संतुष्ट होते। उनके साथ आई महिलाएं उसकी देह की जांँच-पड़ताल करती तो कुछ कमी उसमें पाते ही उर्वशी से शादी करने से इन्कार कर देती।
अपनी बेटी के दोष को वह जानती थी इस लिए वह मौन रह जाती थी। यही सिलसिला चलता रहा लम्बे समय तक। अगुए और लड़को के रिश्तेदार आते रहे उर्वशी को रिजेक्ट करते रहे। फिर भी अपनी बेटी की देह में जो दोष था उसको उनके सामने स्वीकार करते हुए उनसे शादी करने की विनती करती रही। लेकिन कोई भी रिश्ता जोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ।
जागृति परेशान रहने लगी। वह अपनी व्यथा और अपनी बेटी की कमियों को उजागर भी नहीं कर सकती थी। वह अन्दर ही अन्दर चिन्ता में घुलने लगी। उसके सामने बहुत बड़ी उलझन थी। उसके आगे खाई थी तो पीछे बहुत बड़ा गढ्ढा भी था। उसकी रातों की नींद हराम हो गई थी। जब वह उर्वशी की शादी के मुद्दे पर सोचने लगती
तो उसके परिणाम उसके अंतस को दहला देते।उसे लगता कि वह अपने मुंँह से अपनी बेटी की कमी का बखान करेगी तो शादी तो निश्चित ही नहीं होगी उल्टे समाज में उसकी बेटी के संबंध में तरह-तरह की अफवाहें फैल जाएगी।
अगर किसी तरह से झांसा देकर शादी कर भी दी जाए तो सच्चाई उजागर होने पर उसे तानों-उलाहनों और प्रताड़ना का सौगात तो मिलेगी ही, हो सकता है लड़का तलाक भी दे दे।
इसी उधेड़-बुन में समय निकलता जा रहा था और उसकी शादी भी टलती जा रही थी।उर्वशी भी ऊब गई थी अगुओं के सामने अपना प्रदर्शन करते-करते और उनके साथ आए स्त्रियों द्वारा शारीरिक जांँच-पड़ताल के कार्यक्रम से।
इसी क्रम में अचानक एक दिन डॉक्टर विश्वास अपने मित्र डाॅक्टर सुशांत के साथ उसके यहाँ आये। हाल ही में विश्वास ने डाॅक्टरी की पढ़ाई समाप्त की थी। वह अनाथ था। उसकी पढ़ाई मेडिकल कालेज के स्काॅलरशीप और एक संपन्न सज्जन पुरुष की आर्थिक सहायता की बदौलत संपन्न हुई थी। उसकी बहाली भी एक हौस्पीटल में हो गई थी। सुशांत भी उसी हौस्पीटल में शादीशुदा डाॅक्टर था।
जागृति उसके स्वागत-सत्कार में फुर्ती से जुट गई।
जब लड़की दिखाने की बारी आई तो नकारात्मक जवाब मिलने की परिकल्पना ने उसको व्यथित कर दिया।
जागृति ने सोचा था कि किसी को अंधेरे में रखकर, वास्तविकताओं की जानकारी नहीं देकर किसी लड़के से अपनी बेटी की शादी करना अच्छी बात नहीं है, किन्तु उसे लगने लगा कि कहीं उसके इस कदम से उसकी बेटी अविवाहित न रह जाए। उसकी उम्र भी तेजी से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में उसने फैसला किया कि इस बार वह उर्वशी की कमी को छिपा लेगी।
जब डाॅक्टर विश्वास ने लड़की को देखा तो कुछ पल तक एक टक देखता ही रह गया। फिर उसने उसकी पढ़ाई-लिखाई, घरेलू काम और हौबी से संबंधित प्रश्नों को पूछा। सुशांत ने भी पेंटिग, संगीत आदि से संबंधित सवालों को पूछा।
जब उर्वशी और उसकी मांँ किचन के काम से कुछ समय के लिए हटी तो दोनो मित्रों ने विचार-विमर्श करके इस रिश्ते को ओ. के. करने का निर्णय ले लिया।
फिर जब काफी लेकर उर्वशी अपनी मांँ के साथ आई तो विश्वास ने शादी के लिए शुभ मुहूर्त किसी पंडित से निकलवाने की राय दी।
उसके ऐसा कहते ही जागृति का चेहरा खुशी से दमकने लगा। लेकिन कुछ पल बाद ही उसके चेहरे पर अवसाद की लकीरें उभर आई।
डाॅक्टर विश्वास उर्वशी से अपनापन के साथ हंँस-हंँस कर बातचीत करने लगा। उर्वशी भी दोनों से दिल खोलकर वार्ता करने लगी।
विश्वास ने द्दढ़ निश्चय कर लिया कि वह हर हाल में उर्वशी को ही अपना जीवन-साथी बनाएगा।उसने इस शादी पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाने के निमित वह जागृति की ओर चरणस्पर्श करने के लिए आगे बढ़ा
तो जागृति के दिल में विचार पनपने लगा कि वह अपनी बेटी की शादी के लोभ में वह बहुत बड़ा अनर्थ करने जा रही है। किसी भी आदमी को अंधेरे में रखकर, सच्चाई को छिपाना उसके साथ अन्याय ही हुआ। # मैं बेटी के मोह में सही गलत का फर्क भूलकर जो कदम उठाने जा रही हूँ वह पाप है, अपराध है।
ऐसी सोच ने उसके अंतस्तल को उद्वेलित कर दिया। ऐसी परिस्थिति में डाॅक्टर ने जब जागृति का चरणस्पर्श किया तब उसको आशीर्वाद देने के बाद उसने विनम्रता से कहा, ” बाबू!… माफ करना!.. मैं एक जानकारी शादी की बात आगे बढ़ाने के पहले देना
चाहती हूँ… बाद में मुझे मत कहिएगा कि आपने धोखा दिया… उर्वशी की गर्दन पर ल्युकोडर्मा(सफेद दाग) है।… मैं आपको दिखा देता हूँ। यह दाग अक्सर उसके जूड़े से ढका रहता है। मैंने इलाज भी करवाया किन्तु ठीक नहीं हुआ। “
उसने बगल में खड़ी उर्वशी के जूड़े को हटाकर गर्दन पर फैले हुए दाग को दिखा दिया।
डाॅक्टर विश्वास उस सफेद दाग को देखकर कुछ पल तक गंभीर होकर सोचता रहा। फिर जागृति और उर्वशी से थोड़ा दूर हटकर डाॅक्टर सुशांत के साथ विचार-विमर्श करने लगा।
दोनों मांँ-बेटी के चेहरे पर निराशा की लकीरें उभर आई थी।
फिर उनके पास आकर विश्वास ने कहा, ” वास्तव में आप देवी हैं… पूज्यनीय हैं, आप सच्ची मांँ हैं।… कोई दूसरी होती तो चर्चा तक नहीं करती इस रोग के बारे में, दिखाना तो बहुत दूर की बात होती… घबराइये नहीं, यह बीमारी असाध्य नहीं है। इसका इलाज है और औपरेशन से भी यह ठीक हो सकता है।… वैसे मैं चर्मरोग का विशेषज्ञ भी हूँ।… डांँट वरी!… ठीक हो जाएगा… एक बात का ध्यान रखिएगा, इस बात को फैलाइएगा नहीं , गुप्त ही रखिए तो सभी के हक में अच्छा होगा।”
पल-भर ठहरकर उसने पुनः कहा, ” चिन्ता नहीं करें मैं उर्वशी के साथ शादी करने के लिए तैयार हूँ। रोग ठीक करने की जिम्मेवारी मुझ पर छोड़ दीजिए
डाॅक्टर विश्वास का अप्रत्याशित जवाब सुनकर जागृति और उर्वशी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)
08-01-2025
वाक्य कहानी प्रतियोगिता
#मैं बेटी के मोह में सही-गलत का फर्क भूल गई थी।