जब से सुमन की शादी तय हुई है सरिता उसके पीछे पड़ गई थी कि इतने बड़े घर में तेरा ब्याह हो रहा है मुझे डर लग रहा है कि तुम वहाँ कैसे रह पाओगी ।
सुमन- माँ वे भी इनसान ही हैं और अच्छे लोग हैं आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे मैं किसी जंगल में जा रही हूँ।
सरिता- शादी के पहले सब ऐसे ही अच्छे होने का नाटक करते हैं परंतु बाद में अपना असली रंग दिखाते हैं।
सुमन- माँ आजकल जमाना बदल गया है सास बहुओं को सताने वाला जमाना नहीं है इसलिए आप बेकार में ही घबरा रही हैं।
हाँ हाँ मैं नहीं कहती हूँ कि वे तुम्हें मारेंगे पीटेंगे ।
तुम दोनों की छोटी छोटी खुशियाँ उनके कारण खराब हो जाएंगी जैसे तुम दोनों को घूमने जाना हैं या मूवी देखने जाना है तो देवर नंनंद भी साथ आएंगे। तुम दोनों को एकांत में बैठने का एक दूसरे से प्यार करने का मौका नहीं मिलेगा बैठेंगे तो भी ऐसे लगेगा जैसे पब्लिक में सिनेमा का रोमांटिक सीन शूट कर रहे हैं। ननद की शादी देवर की पढ़ाई
सास ससुर की बीमारियों का इलाज करवाते हुए तुम्हारे अपने बच्चे उनकी देखभाल और उन्हें सेटिल करते करते तुम दोनों के बाल सफेद हो जाएँगे।
सुमन- आपने ही तो पसंद किया है । आप तो उनके परिवार की तारीफ़ करते नहीं थकतीं थीं। अब शादी के नज़दीक आते आते आपके मन में ऐसे विचार क्यों आ रहे हैं ।
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सरिता- मैंने सोचा था कि सास ससुर और बच्चे दूसरे शहर में रहते हैं तो तुम अकेली अपने पति के साथ खुश रहोगी एक दो साल अलग रहेंगे तो अपना पैसा जमा कर सकते थे । लेकिन तेरा होने वाला पति भी बेवकूफ निकला है जो उन सबको अपने पास बुला लिया है यह कहकर कि पिताजी आप रिटायर हो गए हैं अब हम साथ ही रहेंगे। बेटे ने बुलाया कि नहीं तुम्हारे सास ससुर भी अपने बच्चों को लेकर उसके पास चले भी गए हैं ।
ऐसा क्या हुआ है माँ मेरी फ़िक्र मत करो । वैसे भी मैं छोटी बहन मृदुला के समान नादान नहीं हूँ । मैं अपने आप को सँभाल सकती हूँ ।
सुमन तू कुछ भी बोल मुझे तेरी फ़िक्र हो रही है मेरी आँखों से नींद उड़ गई है । मैं तुझे तुम्हारी बुआ की कुछ बातें बताती हूँ ।
मृदुला माँ आप अपने कारनामों को बताइए बुआ की क्यों?
अरे बिटिया तुम्हारे दादा दादी ने मुझे ऐसा अवसर ही नहीं दिया था । और वैसे भी तुम चुपचाप बाहर जाओ और सुमन सुन तुम्हारी बुआ ने अपने ससुराल जाते ही क्या क्या कांड किया है बताती हूँ । उनमें से कुछ नुस्ख़े तुम भी अपना सकती हो । उसी समय मृदुला ने आकर कहा कि माँ दीदी को पाठ नंबर एक पढ़ा रही हो ।
सरिता ने उसे डाँट लगाई और सुमन की तरफ मुड़कर कहा ।
पहली बात जैसे ही सास ने उसे छत पर के सूखे हुए कपड़े लाने के लिए भेजती थी तो हमेशा सास की साड़ी को ही फाड़ देती थी और आकर आँखों में आँसू भरकर कहती थी कि सासु माँ मुझे मालूम ही नहीं चला कि आपकी साड़ी कैसे फट गई है आइंदा से मैं ध्यान रखूँगी ।
यह एक बार नहीं बार-बार होता था और वे जानती थी कि बहू ने किया है पर आँखों में आँसू भरकर माफी माँगी तो क्या करतीं थीं इसलिए चुप हो जाती थी।
सास तो सास ससुर को भी उसने नहीं छोड़ा उनका पेपर छिपा दिया करती थी या फिर चश्मा छिपा देती थीं क्योंकि वे पूरा दिन पेपर लेकर बैठे रहते थे । यह उसे अच्छा नहीं लगता था । इस तरह से उन्हें तंग करके उसका मन नहीं भरा तो घर से बाहर निकालने के लिए एक तरकीब निकाली ।
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मृदुला – वाह माँ यह दीदी के लिए दूसरा पाठ है । उसकी बातों को अनसुना करते हुए कहा कि तेरी बुआ पति के ऑफिस जाते समय प्यार से उन्हें खाना परोसती थी और उनके साथ ही खुद भी खाना खा लेती थी। बची हुई सब्ज़ी दाल में नमक मिर्च मिला कर टेबल पर रख देती थी बिचारे सास ससुर उस खाने को खा नहीं पाते थे उन्हें बी पी और शुगर की बीमारियाँ थीं ।
इस तरह से उसकी शादी के हुए एक साल के अंदर ही अपने सास ससुर को घर से भगा दिया था । तुम्हारी बुआ ने आग नहीं लगाई थी सिर्फ़ धुंआ किया था और सास ससुर से छुटकारा पा लिया था ।
मृदुला- माँ आपकी माँ ने भी आपको ऐसी ही पट्टी पढ़ाई थी ।
सरिता- हँसकर बोली मैं तो खुश नसीब थी क्योंकि तुम्हारे पापा सबसे छोटे थे और घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ ख़त्म हो चुकी थी ।
मैं तुम दोनों के लिए भी ऐसा ही रिश्ता लाना चाहती थी पर इसकी क़िस्मत देखो कि इसका होने वाला पति घर का बड़ा बेटा निकला ।
वह पढ़ा लिखा है अच्छी नौकरी करता है उसका पैकेज अच्छा है दिखने में सुंदर है और दूसरे शहर में नौकरी करता है । इसलिए मैंने हाँ कहा था । सोचा एक दो साल में अपना घर कार बैंक बैलेंस सब जमा कर लेगी ।
यहाँ तो सब उलटा ही नज़र आ रहा है। एक बात बताऊँ सुमन जो भी काम तुम कर रही हो उसकी भनक तुम्हारे घर में किसी को नहीं लगनी चाहिए। इस तरह के सलाह अपनी बेटी को देते समय सरिता सही गलत का फर्क भूल गई थी। कहते हैं समय किसी के लिए रुकता नहीं है। वही हमें सही गलत का फर्क सिखा देता है।
जब सरिता से उसके बेटे राजीव ने बताया था कि उसने उसकी सह उद्योगी संध्या से कल कोर्ट मेरेज कर ली है । यह सुनकर उसके तो होश ही उड़ गए थे।
जब वह उस लडक़ी को घर लेकर आया था तब ही उसे शंका हो गई थी कि इन दोनों के बीच कुछ है । ये दोनों सिर्फ़ सहउद्योगी नहीं हैं । उस लड़की के जाते ही राजीव को वार्निंग भी दी थी कि तेरी शादी तो मेरी सहेली की बेटी सुंदरी से ही होगी वह कम पढ़ी लिखी है तो क्या हुआ संस्कारी है घर के काम काज में निपुण है। उस समय तो राजीव ने कुछ कहा नहीं वहाँ से चला गया था । उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि राजीव ऐसा कुछ कर देगा ।
उसने राजीव को बहुत ही प्यार से पाल पोसकर बड़ा किया था। उसने बचपन से राजीव को अपने तरीके से पाला था । राजीव कपड़े भी मेरी ही के पसंद का पहनता था। मेरा हर निर्णय उसके लिए सर आँखों पर था मैं सोचती थी कि मेरा बेटा मेरी ही बात ही मानेगा । मुझे उस पर कितना भरोसा था ।
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मैंने कहाँ गलती कर दिया है कि वह बगावत कर बैठा । रात भर उसकी आँखों से नींद ग़ायब हो गई थी । राजीव दूसरे दिन ऑफिस जाते समय मुझसे कह रहा था कि माँ आज अच्छा दिन है इसलिए संध्या के माता पिता संध्या को लेकर हमारे घर आ रहे हैं जब वे आएँ तो आप मुझे फोन कर दीजिए मैं आजाऊँगा।
मेरा दिल धक से रह गया येलो मैंने तो इसके बारे में सोचा ही नहीं था मरता क्या न करता । बेटियों की सहायता से मैंने पूरे घर की सफाई की थी ।
सुमन ने जैसे ही घर के बाहर कार के रुकने की आवाज सुनी तो जल्दी से उसने बाहर का दरवाजा खोला।
संध्या अपने माता पिता के साथ अंदर आती है और मेरे पैर छूकर आशीर्वाद लेती है बरबस ही मैंने मेरे हाथ उसके सर पर फेर दिया था ।
संध्या की माँ मालती मेरा हाथ पकड़कर कहने लगी कि देखिए बच्चों से गलती हुई है यह मैं मानती हूँ पर हमें तो अपना बड़प्पन दिखाना है और उन्हें माफ़ करना है क्योंकि हम उनसे बड़े हैं उनका भला चाहने वाले हैं ।
मेरे मुँह से कुछ भी नहीं निकल रहा था मैं चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी मैं शायद अभी भी शॉक में थी । मालती ही बोलती जा रही थी कि मैंने अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दिए हैं वह आपके घर को अच्छे से सँभाल लेगी । आपको कभी भी शिकायत का मौका नहीं देगी ।
संध्या भी मेरे पास बैठकर कहती है कि माँ आप राजीव की ही नहीं बल्कि मेरी भी माँ हैं ।
मैं सुमन और मृदुला दोनों का ख़्याल रखूँगी । मैंने उसकी बातों को ध्यान से सुना और सोच रही थी कि चाहे तो संध्या मेरे बेटे को लेकर अलग रह सकती है पर वह मुझे मनाने की कोशिश कर रही है । उसी समय राजीव भी ऑफिस से आ गया था मैंने मालती से कहा कि चलिए खाना बन गया है परोस देती हूँ ।
संध्या ने कहा कि माँ मैं कुछ मीठा बना देती हूँ और झट से रसोई में ऐसे गई जैसे आते ही उसने घर को सँभाला हो । उसने साबूदाने की खीर बनाई थी । सब खाने की टेबल पर बैठ कर खाना खाते हुए व्यंजनों की तारीफ़ कर रहे थे । मैं उन सबकी बातों को सुन रही थी और सोच रही थी कि संध्या कितनी मिलनसार है आते ही सबको अपना लिया है ।
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अचानक मृदुला ने कहा कि माँ भाभी की माँ अच्छी टीचर नहीं हैं उन्होंने भाभी को पाठ अच्छे से नहीं पढ़ाया है । आपने दीदी को सिखाया था कि दाल और सब्ज़ी में नमक और मिर्च ज़्यादा डाल देना परंतु भाभी को सीख नहीं मिली इसलिए उन्होंने मीठे को मीठे के समान ही बनाया है ।
वहाँ बैठे हुए लोगों को उसकी बातें समझ में नहीं आईं परन्तु सरिता समझ गई थी और उसकी आँखें शर्म से झुक गईं थीं और मन ही मन सोच लिया था कि सुमन को कहूँगी कि मैंने जो भी सिखाया है डिलीट का बटन दबाकर सब डिलीट कर दें और अपने परिवार के सदस्यों को अपना कर सुकून की ज़िंदगी जी ले।
के कामेश्वरी