लगातार टेलीफोन घनघना रहा था।
अपने अपने मोबाइल होने के कारण घर का पीएनटी फोन बाहर रख दिया था और आज समय सुबह 4:00 बजे ही बचते हुए यह किसी प्रबल आशंका की तरफ सूचित कर रहा था।
घुटने के दर्द के कारण सुशीला देवी को उठने में दिक्कत हो रही थी तो उन्होंने पास में सोते पति अशोक का कंधा हिलाते हुए उठाने की कोशिश की।
” देखो इतनी सवेरे कहां से फोन आया है… कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।” हमेशा अव्यक्त भय से भरी सुशीलादेवी को इस समय आये फोन की घंटी खतरे की घंटी लग रही थी।
अशोक जब तक उठ पाते तब तक फोन कट चुका था पर वह दोबारा बजने लगा।
बाहर जा अशोक ने लपक कर फोन रिसीव करा। पीछे धीरे-धीरे सुशीला देवी भी आ चुकी थी।
बात सुनते सुनते अचानक अशोक के हाथ से रिसीवर गिर गया और वह धम्म से जमीन पर गिर पड़े।
उनकी स्थिति देखकर घबराई सुशीला देवी तेजी से उनके पास गई और उन्हें उठाते हुए बोली, “क्या हुआ?”
“आकृति”
“आकृति …क्या हुआ आकृति को।” अपनी बेटी का नाम सुनकर घबराई सुशीला ने जब अशोक का कंधा झकझोर कर पूछा तब बड़ी मुश्किल से अशोक के मुख से शब्द निकले,” आकृति बुरी तरह से जल गई है… सिविल अस्पताल ले जाई गई है… तुरंत ही चलना होगा।”
सुशीला देवी बेतहाशा रोने लगी ।अपनी बेटी की यह खबर उन्हें अंदर तक हिला गई थी। अभी कल ही तो है उससे मिलकर आई थी।
अशोक ने जल्दी ही कार बाहर निकाल ली और दोनों लोग अब आकृति की ससुराल के शहर वाले सिविल अस्पताल की तरफ बढ़ रहे थे।
रास्ता लगभग दो घंटे का था पर सुशीला देवी को एक-एक पल काटना मुश्किल था।
उनकी एकमात्र पुत्री आकृति जिसका स्मरण आते ही उन्हें दुख और सुख दोनों की अनुभूति साथ ही होती थी, आज जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही थी।
यही तो कहती थी वह हमेशा…. “देखना जब मैं मर जाऊंगी तब तुम लोगों की अकल ठिकाने आएगी।”
विवाह के सालों बाद हुई उनकी एकमात्र पुत्री उनकी बेहद लाड़ प्यार के कारण बेहद नकचढी और जिद्दी हो गई थी।
हर सोची हुई चीज को पाना उसका जुनून बन गया था और उसकी इस आदत को हवा दी उसके हर तरह से सुविधा संपन्न वातावरण ने।
जहां अशोक की गिनती शहर के धनाढ्य व्यापारियों में होती थी तो फिर वह एकमात्र पुत्री की इच्छा को कैसे ना पूरी करते ।
जैसे-जैसे आकृति बड़ी होती गई उसकी ज़िद जुनून में बदलती गई। मां सुशीला देवी अक्सर उसे समझाने की कोशिश करती लेकिन वह उन्हें झिड़क देती और उसके इस व्यवहार को साथ मिलता उसके पिता अशोक का।
अपने इसी व्यवहार के चलते शादी की उम्र तक पहुंच जाने पर जब सुशीला देवी ने अशोक से इस विषय में बात करी तो अशोक का कहना था कि उनकी लाडली बेटी जिसको भी पसंद करेगी वह सहर्ष उसका विवाह उससे करा देंगे।
व्यवहार में जिद्दी और पढ़ाई में फिसड्डी आकृति को अपने विद्यालय के मेधावी छात्र नवीन में शुरू से दिलचस्पी थी और जब नवीन ने यूनिवर्सिटी टाप किया तो उसने ठान लिया कि वह नवीन से ही शादी करेंगी।
सुशीला देवी इस रिश्ते से सहमत नहीं थी क्योंकि वह जानती थी कि मध्यमवर्गीय नवीन के परिवार से उनकी बिगड़ैल आकृति सामंजस्य नहीं बिठा पाएगी लेकिन अशोक ने यह कहकर हामी भर दी कि वह नवीन को सब सुख सुविधा उपलब्ध करा देंगे।
सरल स्वभाव के नवीन के परिवार में सिर्फ उसकी मां और एक बड़ी शादीशुदा बहन थी ।
शुरू से ही संघर्ष में जीवन बिताया हुआ नवीन पैसे का महत्व समझता था।
विवाह के बाद आकृति के साथ शुरू में तो सबकुछ सही रहा लेकिन फिर आकृति ने अपने स्वभाव की छटा परिवार में दिखानी शुरू कर दी।
वह अक्सर नवीन की मां से झगड़ा करती और उन्हें भला-बुरा कहती ।
नवीन को अपनी मां के विरुद्ध एक भी अपशब्द सुनना गवारा नहीं था तो वह अक्सर आकृति को चेतावनी देता कि अगर वह अपने इन हरकतों से बाज नहीं आएगी तो वह इस विषय पर गंभीरता से सोचेगा।
ज़िद्दी आकृति को उसकी मां सुशीला देवी ने भी अपना व्यवहार सुधारने की कई बार चेतावनी दी तो उसने उनको यह कह कर डराया देखना जब वह मर जाएगी तो उन दोनों को पछताना पड़ेगा।
ऐसे ही एक बार जब घर आई अपनी सहेलियों के मध्य उसने अपनी सास की हंसी उड़ा कर उन्हें सबके सामने बेइज्जत किया तो नवीन से ना रहा गया। उसने तुरंत अशोक को फोन करके आकृति को अपने साथ ले जाने को कहा।
अशोक और सुशीला देवी आकृति के ससुराल पहुंचे और इस बार आकृति को अशोक का साथ भी नहीं मिला था ।
जब अशोक ने आकृति को बुरी तरह से चिल्लाया और इस तरह का व्यवहार भविष्य में ना करने की चेतावनी दी तो उस समय तो आकृति कुछ नहीं बोली थी लेकिन उन लोगों के आते ही उसने सबक सिखाने के लिए कमरा बंद करके अपने ऊपर केरोसिन डालकर आग लगा ली थी।
जब तक सुशीला और अशोक सिविल अस्पताल पहुंच पाते 90% जल चुकी आकृति में दम तोड़ दिया था।
घर पर मिले आकृति के सुसाइड लेटर के अनुसार पुलिस ने नवीन और उसकी मां को गिरफ्तार कर लिया था।
अस्पताल पहुंचकर जहां सुशीला देवी बेसुध हुई जा रही थी।
वहीं अशोक विचार शून्य अस्पताल के पेपरों पर साइन करने में व्यस्त थे।
आकृति की बॉडी पोस्टमार्टम के लिए जा चुकी थी तब अशोक ने सुशीला से कहा, “तुम यहां बैठो… मैं पुलिस स्टेशन होकर आता हूं। पुलिस को बयान देकर नवीन और उसकी मां को छुड़वाना है…. अपनी जिंदगी भर की गलत परवरिश का यही पश्चाताप का निवारण होगा।”
डा. शुभ्रा वार्ष्णेय