मधु स्मृति –  बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

  भाई, इस घर से बाबूजी की यादे जुड़ी हैं, इसको मत बेचो,कुछ तो सोचो,बाबूजी की आत्मा को कितना कष्ट होगा।

         भैय्या, बाबूजी के प्रति मेरा भी आप जितना ही लगाव और श्रद्धा है।पर वे अब इस दुनिया मे नही है और मैं अमेरिका में रहने लगा हूँ,अब आप ही बताओ मेरे हिस्से के मकान का क्या उपयोग?आप भावुकता से नही प्रैक्टिकल होकर विचार करो।अभी मुझे ग्राहक भी मिल रहा है।

        अपने कस्बे में मधुकर जी ने  छोटे से स्तर पर परचून की दुकान खोली थी।मृदु व्यवहार और मेहनत से मधुकर जी फुटकर व्यापारी से थोक व्यापारी हो चुके थे।मधुकर जी के दो ही बेटे थे- पंकज और देवेश।मधुकर जी ने जब अपना स्वयं के घर का निर्माण शुरू किया तो इस तरह नक्शा बनवाया कि दोनो बेटो के एक जैसे पोर्शन हो,और उन्होंने ऐसा ही घर बनवाया।बाहर पत्थर की नाम प्लेट लगी थी मधुकर अग्रवाल।

        मधुकर जी के दोनो बेटो में बड़े बेटे पंकज का रुझान व्यापार की ओर था सो उसने पिता के साथ ही उनके व्यापार में हाथ बटाना प्रारम्भ कर दिया,इससे मधुकर जी को भी सहूलियत हो गयी,दो अन्य हाथों का सहयोग मिल गया। छोटा बेटा देवेश पढ़ाई लिखाई में होनहार था,सो उसने अपनी शिक्षा पूरी होने पर जॉब लाइन चुनी।मधुकर जी को इसमें कोई एतराज नही था।बल्कि उन्हें संतोष था कि एक बेटा उनकी विरासत संभालेगा तो दूसरा अपनी नौकरी में कीर्तिमान स्थापित करेगा।

       समय व्यतीत हुआ,बुजुर्ग मधुकर जी बीमार रहने लगे थे।उनके पास पंकज तो था,पर उन्हें देवेश की याद आती रहती।अब जब वह नौकरी कर रहा था तो अपने पिता के पास तो रह नही सकता था।दीवाली पर देवेश घर आया तो मधुकर जी के बूढ़े चेहरे पर मुस्कान तो आँखों मे आंसू छलक आये।

उन्होंने दोनो बेटो को पास बुलाया और बोले देखो बच्चो मेरी उम्र अब पूरी हो चली है,मैं चाहता हूं तुम दोनो जिंदगी भर ऐसे ही स्नेह सूत्र में बंधे रहो।कोशिश करना हर दीवाली पर ऐसे ही हमेशा एक साथ अवश्य ही इसी घर मे मिलना।इस घर मे बच्चो तुम्हारी माँ का वास है,वह यही कही हमारे पास ही रहती है,उसे भी शांति मिलेगी।

     पंकज और देवेश ने अपने पिता के हाथों को दबाकर उन्हें आश्वासन दिया,फिर उनके सामने ही दोनो बेटे एक दूसरे के गले मिले।मधुकर जी की तो मानो आत्मा ही तृप्त हो गयी।अगली दीवाली पर जब दोनो भी अपने इसी घर मे मिले तब मधुकर जी नही थे,तो दोनो भाइयो ने अपने माता पिता दोनो के फोटो साथ रखे।कुछ वर्ष ऐसे ही व्यतीत हो गये।देवेश की नौकरी अमेरिका में लग गयी,अब उसका हर दीवाली पर आना संभव नही रह गया था,पर वीडियो कॉल से दोनो भाई पूजन के समय अवश्य जुड़ते थे।

       इधर अब देवेश दो वर्षों से दीपावली पर नही जुड़ पा रहा था,अति व्यस्तता के कारण।पंकज का आग्रह तो रहता,पर किया ही क्या जा सकता था?अचानक पंकज को देवेश ने सूचना दी कि वह 10 दिनों के लिये भारत आ रहा है।सुनकर पंकज की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा।कई वर्षों बाद देवेश को रूबरू देख पायेगा।उसकी सुविधाओं पर घर मे खूब विचार विमर्श होने लगा,सब उत्साहित थे।पंकज का बेटा मोनू तो अपने चाचा से मिलने को बेहद आतुर था।

       देवेश अमेरिका से आया तो घर मे प्रसन्नता छा गयी पर वह प्रसन्नता उस क्षण हवा हो गयी जब देवेश ने कहा भैय्या मैं अपना पोर्शन बेच रहा हूँ,मेरा पता नही मैं भारत आ भी पाऊंगा या नही।पंकज हक्का बक्का रह गया।उसने कहा भी कि भाई बाबूजी कह गये थे इस घर मे मां बसती है।

पर देवेश नही माना तब पंकज ने प्रस्ताव दिया कि यह घर देवेश तू ऐसे ही रहने दे, किसी पराये को मत दे,तुझे जो भी पैसा मिल रहा हो वो मैं तुझे दे दूंगा,बस इतनी मेहरबानी कर देना भाई कि कुछ रुपयों की कमी रह जाये तो उसकी कुछ मोहलत दे देना।देवेश बोला कोई बात नही भैय्या जब आपको सहुलियत हो दे देना।मैं कल आपके नाम घर कर देता हूँ,पंकज बोला नही नही उसकी जरूरत नही,अरे ये घर तेरा भी तो  है रे।

       पंकज के घर मे शहनाई वादन हो रहा था,वंदन वार सजे थे,खूब चहल पहल थी,आज पंकज के बेटे मोनू की शादी जो थी।पूरा घर जगमग था।तभी एक कार घर के सामने आकर रुकी और उसमें से देवेश अपनी पत्नी के साथ उतरा, वह मोनू की शादी में शामिल होने आया था,उसे देख सब उसकी ओर लपक लिये, वर्षों बाद देवेश को देख रहे थे।

पंकज ने तो देवेश को कसकर अपने से चिपटा लिया,फिर उसका हाथ पकड़कर अंदर ले जाने लगा।दरवाजे के पास जाकर देवेश के पावँ ठिठक गये,उसने देखा कि बाहर पत्थर की दो नाम पट्टिका लगी थी,एक पट्टिका दरवाजे के ऊपर बीच में लगी थी जिस पर लिखा था *मधु स्मृति* तथा दूसरी पट्टिका दरवाजे की साइड में लगी थी जिस पर नाम लिखे थे- *पंकज- देवेश* ।

      देवेश के कानों में वर्षों पूर्व कहे बड़े भाई पंकज के शब्द गूंज रहे थे भाई ये घर तुम्हारा भी तो है।अपने हाथों से अपने आंसू पोछता देवेश आज अपने घर मे प्रवेश कर रहा था।

   बालेश्वर गुप्ता, पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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