तू बिल्कुल नहीं समझता अक्लू , इतना रात तक कहां भटक रहा था ? आप काहे नहीं सोए बाबूजी मैं थोड़ा काम से गया था । मैं सोने ही वाला था ,कि तुम्हारी दादी खाँसने लगी ,उसे ही पानी देने गया ,तो तू नदारद था।
तेरा लंगोटिया रघु के साथ घूमता होगा है, न?
हां बाबूजी वो बता रहा था , मुंबई में बहुत काम है ,उसके सेठजी उसे बहुत मानते हैं , हां —हां जानता हूँ।
तुझे मैं नहीं भेज सकता ,तेरी दादी और तेरे सिवाय कोई नहीं है मेरा … अच्छा हाथ मुंह धो लो ,खाना निकल देता हूं , अक्लु को पता था, आज भी खाना के नाम पर बाबूजी मोटी —मोटी रोटियां और चाय देंगे , खामोशी से थाली लेकर खाने लगा।
आज सुबह से अकलू घर पर था ,उसे अच्छा नहीं लग रहा था ,सिर भारी सा हो रहा था , इसलिए कंपनी का सामान
पहुंचाने नहीं गया । रघु जब से मुंबई से आया था ,ऐसा कभी नहीं हुआ कि सुबह में इससे न मिले । दोनों के घर के पास बड़ा सा चबूतरा है ,जहां दिनभर बैठक होती ।
वो घर आकर देखा अकलू का तो बुखार से बदन तप रहा था , रघु ने बिना देर किए अपनी बाइक से डॉक्टर के पास ले गया , अकलु के बाबूजी भी घबरा गए ,सारे जांच के बाद उसे मलेरिया बताया गया, रघु सबसे पहले अपने पैसे निकाले , उसका उचित इलाज करवाया ,दिन रात सेवा की , अपने घर से खाना लाता, एक महीने के बाद आज रघु को वापस मुंबई जाना था , अक्लू रोता हुआ उससे लिपट गया ।
रघु मेरे भाई तेरा मैं ऋण कभी नहीं उतार पाऊंगा ,
ऋण कैसा मेरे यार दोस्ती में कोई कर्ज नहीं होता ,कहकर
उसे गले से लगा लिया।
स्वरचित , अप्रकाशित # मुहावरे प्रतियोगिता
सिम्मी नाथ