गरीब घर की बेटी धनाढ्य घर की बहू बन जाए तो उसकी किस्मत से बहुत लोग ईर्षा करते हैं। माता- पिता को छोड़ अपने भाई- बहन भी उसकी तकदीर पर हैरान रहते हैं। हेमा के साथ भी ऐसा ही हुआ। हेमा एक बहुत बड़े व्यापारी घर की बहू बन गयी। हेमा की शालीनता और उसका नम्र स्वभाव उसे एक हीरे व्यापारी की बहू बना दिया। हेमा का पति रमन अपने पिता के साथ ही व्यवसाय को सम्भालता था। दो बेटियों के बीच एकलौता बेटा था। न रमन के पिता ने लड़की की तलाश की और न ही हेमा के पिता ने कहीं लड़के की तलाश की। इसे संयोग ही कह सकते हैं या विधि का विधान।
एक बार हेमा अपने दोस्त के साथ काॅलेज से ही नाक की कील खरीदने उस दुकान पर आई हुई थी। उस दिन दुकान पर बड़ी भीड़ थी। अक्षय तृतीया के पूर्व संध्या पर लोग गहने पसंद करने आये होंगे। एक छोटा सा सामान लेने में समय लग रहा था। हेमा ने कई बार दोस्त से चलने को कहा लेकिन दोस्त को तो कील आज ही खरीदनी थी।
तभी हेमा की नजर एक बुर्के वाली महिला पर गयी जो एक खूबसूरत हीरे के सेट को काफी होशियार के साथ अपने ब्लाउज में छुपा रही थी। इतनी बड़ी दुकान, जो चारो तरफ से कैमरे की नजर में है फिर इस साहस को देखकर हेमा दंग रह गयी। हेमा उस महिला को इशारे से अलग बुलाकर इसे वापस करने की गुहार लगाई। उसे समझाया भी कई कैमरे हैं, लेकिन उस महिला ने अपने चेहरे को बुर्का में होने से बचने की बात कही और साथ ही इस राज को राज रखने के लिए रिश्वत भी देने को तैयार थी। हेमा ने इसका विरोध किया और बात मालिक तक पहुँच गयी। जेवर लेकर मालिक ने उसे पुलिस के हवाले करने वाला था , लेकिन हेमा ने निवेदन कर उसे माफी दिलवा दी।
इस घटना ने हीरे व्यापारी के दिल पर हथौड़ा की तरह बार किया। सम्पत्ति तो बहुत है पर घर में ऐसी लक्ष्मी आ जाए तो मेरे बेटे की किस्मत के साथ इस घर की किस्मत भी सँवर जायेगी। रमन के पिता ने रमन और उसकी माँ के साथ विचार-विमर्श कर हेमा के बारे में पता लगाया। संयोग से गोत्र, जाति और कुण्डली मिलान सबकुछ अनुकूल रहा और हेमा रमन की पत्नी बन गयी। हेमा के माता-पिता के लिए यह सपना सा लगा। उन्हें स्वयं बेटी की तकदीर पर विश्वास नहीं हो रहा था।
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अब हेमा के भाई- बहन महंगे-महंगे उपहार की उम्मीद करने लगे। हेमा लक्ष्मण रेखा के अन्दर ही रहकर अपने मायके वालों को करती रही। कुछ दिन बाद उसकी बड़ी बहन अपने बेटे को हेमा के पास पढ़ने के लिए भेज दिया। वह छोटे शहर में रहती थी और उसका पति भी किसी स्कूल में क्लर्क था। दसवीं पास कर शशी अपनी मौसी के पास रहने लगा। हेमा ने उसे बड़े प्यार से रखा। घर में भी सभी की सहमति रही। धीरे-धीरे शशी के रहन-सहन में बदलाव आने लगा। कभी महंगे जूते खरीदता है तो कभी कपड़े। एक बार कीमती मोबाइल देख हेमा ने पूछा-
” तुम्हारे पास इतने पैसे कहाँ से आए?”
हमेशा यही बोल देता था कि “पापा ने भेजा है।”
हेमा अपनी बहन से कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन कहीं बुरा न मान जाए सोचकर टाल देती थी।
इधर दुकान के काउंटर पर अक्सर कुछ पैसों का हिसाब गड़बड़ होने लगा। तब मैनेजर ने कैमरे को खंगालना शुरू किया। बात सामने आते ही सभी सकते में आ गये। जिस शशी को वो लोग घर का सदस्य मानते थे वही…….
बात हेमा तक पहुँच गयी। हेमा इसमें अपनी गलती भी मानने लगी। अतः उसने अपने पति से क्षमा मांगते हुए उसे माफ करने के साथ-साथ उसे छात्रावास में भेजने की गुजारिश की। छात्रावास का खर्च हेमा रमन को अदा करने की सिफारिश की। दीदी से रिश्ता भी बना रहेगा और शशी को एक मौका भी मिलेगा।
शशी अपने छात्रावास जाने के कारण को भलि- भाँति समझ गया। वह मौसी से अस्पष्ट रूप से ये भी कहा कि आगे कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा, लेकिन हेमा अपने ससुराल वालों को और मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। वह शशी को समझा- बुझाकर छात्रावास भेज दिया।———-
मौका मिलने पर भी जब कोई नहीं समझता है तो वह अपने सर्वनाश का स्वयं कारण बनता है।
एक दिन हेमा के चाचा ससुर की बेटी अपनी दोस्त की जन्मदिन की पार्टी मना कर रात ग्यारह बजे लौट रही थी। एक सुनसान मोड़ पर दो- तीन दानवों ने उसे हड़पने की कोशिश की। लड़की अपनी चतुराई और पेट्रोलिंग कर रहे पुलिस की मदद से बच गयी और दो पकड़े गये। तीसरा युवक भागने में कामयाब हो गया था। बाद में उन लोगों से पता चला कि भागने वाला युवक शशी था। हेमा ने अपने तरीके से पहले सच्चाई जानने की कोशिश की। फिर पुलिस ने भी साक्ष जुटा ही लिया।
इस बार सबसे दुखी और सबसे शर्मिंदगी हेमा को हो रही थी, लेकिन अब मौका देने का वक्त निकल चुका था। गलती चाहे शशी की उम्र की हो या हेमा की, लेकिन इस बार हेमा किसी भी कीमत पर माफ करने को तैयार नहीं थी। बहन ने अपनी छोटी बहन से बेटे के भविष्य की दुहाई देती हुई उसे माफ करने की गुहार लगाती ही रह गयी।
हेमा अन्दर- अन्दर अपने को भी गुनाहगार मानती रही और पश्चाताप की आग में झुलस रही थी। रमन ने अपनी सूझ- बुझ से हेमा को इस अन्तर द्वंद्व से बाहर निकाला।
#माफी
स्वरचित
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।