Moral Stories in Hindi :
वसंता रसोई में खाना बना रही थी कि बेल बजी । उसने सोचा बच्चों को स्कूल बस में अभी चढ़ाकर आ रही हूँ विजय ऑफिस के लिए निकल गए हैं तो कौन हो सकता है सोचते हुए दरवाज़ा खोलती है तो सामने जिठानी नमिता जी खड़ी थी जल्दी से उनके पैर छूकर उन्हें अंदर बुलाया ।
उन्होंने भी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लिया । सासु माँ के बाथरूम में गिर जाने के कारण वे ठीक से चल नहीं पाती हैं साथ ही पिछले साल उन्हें पेरालेसेस हो गया था तो ठीक से बात नहीं कर पाती हैं जिससे उनकी बातें सब को समझ में नहीं आती हैं ।
जिठानी के पास जब सास कौशल्या रहतीं थीं तब वे तंदुरुस्त थी ससुर जी भी थे । वे जिठानी जी के बच्चों की देखभाल करतीं थीं । नमिता को अपने मायके के पैसों का बहुत घमंड था । इसलिए वह घर के काम खुद ना करते हुए सास से करातीं थीं । ससुर जी का देहांत होने के बाद वे छोटे बेटे विजय के पास आकर रहने लगी थी । जब से यहाँ आईं हैं वे बीमार ही रहतीं हैं। सास को भी बुरा लगता था कि मैं यहीं रह गई हूँ परंतु विजय को माँ से इतना प्यार था कि वह उन्हें कहीं नहीं जाने देना चाहता था ।
अपने घर में माँ को रखने के लिए वसंता को कोई तकलीफ़ नहीं थी । आज जब जिठानी की बातों को उसने सुना तो उसे बहुत ग़ुस्सा आया एक तो उन्हें अपने मायके और उनके द्वारा लाए दहेज का घमंड है साथ ही जब वे उसे गरीब होने का ताना देती हैं तो उसका खून खौल उठता है । और तो और अपने घर पर सास की कितनी अच्छी देखभाल की गई थी यह चटकारे लेकर सुनाती हैं । यह भी कह रही थी कि हम ग़रीबों को उन्हें ठीक से दवा दारू खाना पीना देते नहीं बन पड़ रहा है तो क्यों अपने पास रखकर एहसान जता रहे हो । किसी वृद्धाश्रम में भर्ती करा देते तो वे कम से कम सुकून की ज़िंदगी तो बिता लेती ।
जिठानी के जाते ही वह जिद पर अड़ गई थी कि इन्हें बड़े भाई के घर छोड़ कर आ जाओ । विजय समझाता रहा पर वसंता समझने को तैयार नहीं ।
विजय नहाने जा रहा था तो माँ अपने पैरों को को घसीटते हुए धीरे-धीरे चलते हुए उसके पास जाकर इशारा किया कि वसंता से लड़ाई मत कर मुझे वहाँ थोड़े दिन के लिए भेज दे ।
विजय ने माँ की बात मानते हुए उसने
कहा वसंता मुझे ऑफिस में बहुत सारा काम है । मैं बच्चों को सँभाल लेता हूँ तुम माँ को छोड़कर आ जाओगी क्या?
वसंता मान गई और जल्दी से तैयारी करने लगी थी । उसने देखा माँ अनमने मन से अपने सामन निकाल रहीं थीं । बुरा तो लग रहा था पर जिठानी को
याद कर ग़ुस्सा भी आ रहा था ।
उसे वह दिन याद आया जब जिठानी के घर से माँ आईं थीं । वे बहुत उदास रहतीं थीं । उसके बार बार पूछने पर उन्होंने बताया था कि वहाँ उनसे कोई बात नहीं करता था । उन्हें ही पूरे घर के काम करने पड़ते थे । नमिता किटी पार्टी में व्यस्त रहती थी । एक बार उसके बाथरूम में उसका बेटा नहा रहा था और उसे अपनी सहेली के साथ जल्दी से बाहर जाना था तो वह मेरे कमरे के बाथरूम में नहाने आ गई । वहाँ नहाने के बाद उसने ठीक से पानी नहीं डाली थी तो शेंपू की वजह से मैं गिर गई थी ।
मुझे वहाँ घर पर बिठाकर काम करना पड़ेगा उसे लगता था कि बिना काम किए मुफ़्त की रोटी नहीं तोड़नी चाहिए इसलिए तुम्हारे पास भेज दिया ।
वसंता अगर तुम्हें मेरी देखभाल करने में कोई तकलीफ़ महसूस हो रही है तो मुझे वृद्धाश्रम में भर्ती करा दो बेटा मैं वहाँ भी खुशी से रह लूँगी ।
वसंता ने उनका हाथ पकड़कर कहा था कि माँ आप यह कैसी बातें कर रही हैं मैं आपको कहीं नहीं जाने दूँगी । और आज!!!
उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर अपने पति विजय के साथ स्टेशन पहुँची । स्टेशन पर ट्रेन खड़ी थी लेकिन बोगियों के दरवाज़े अभी भी बंद थे । हम भी दरवाज़ा खुलने का इंतज़ार कर रहे थे ।
मैं तिरछी नज़र से सास की तरफ़ देख रही थी । उसी समय एक आवश्यक सूचना कहते हुए अनांउसमेंट सुनाई दी थी कि रास्ते में गूड्स ट्रेन के पटरी पर से नीचे उतर जाने के कारण वहाँ से जाने वाली सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है मैंने देखा सासु माँ ने एक गहरी साँस ली थी जैसे कम से कम एक दो दिन के लिए तो सुकून है ।
मुझसे विजय ने कहा कि अभी तो हम घर चलते हैं दो तीन दिन बाद फिर टिकट करा लेंगे । हम घर वापस आ गए थे बच्चे भी खुश हो रहे थे दादी आ गई कहते हुए कूद रहे थे । विजय तो बहुत ही ज़्यादा खुश थे क्योंकि उन्हें तो माँ को भेजना ही नहीं था ।
जब दो दिन बाद रेलवे ट्रैक क्लियर हो गया और ट्रेनें फिर से चलने लगी थी तो
उसने वसंता से कहा वसंता फिर से टिकट बुक करा देता हूँ । वसंता ने सासु माँ की तरफ़ देख कर कहा नहीं विजय जी माँ यहीं रहेंगी अपने साथ मैं इन्हें कहीं नहीं जाने दूँगी ।
उसकी बात सुनकर बच्चे तो बच्चे विजय भी थैंक्यू डियर थैंक्यू कहते हुए कूदने लगे थे ।
सासु माँ ने वसंता को पास बुलाकर उसके माथे को चूमते हुए उससे जब थैंक्यू कहा तो वसंता को अपने निर्णय पर गर्व महसूस हुआ । उसने सोच लिया था कि अब किसी की बातों को दिल से नहीं लगाऊँगी ।
के कामेश्वरी