मां की ममता – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

शादी को पाँच साल हो गए थे, पर  मीना को कोई बच्चा नहीं हुआ था। हर तरह का इलाज करवा कर हार मान चुकी थी। अब उसने अपनी तकदीर भगवान पर छोड़ दी थी।

इन्हीं दिनों उसके देवर की शादी हो गई। संयोग से देवरानी शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई और जुड़वां बेटों को जन्म दिया। घर में खुशी का माहौल था। सब लोग देवरानी को बहुत मान-सम्मान देने लगे। मीना को यह देखकर दुःख होता था, मगर वह चुप रहती थी।

वह अपनी देवरानी के बच्चों पर भी बहुत स्नेह लुटाती थी। बच्चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे। तभी परिवार ने महसूस किया कि एक बच्चा चलने-फिरने में असमर्थ है। डॉक्टर ने बताया कि वह बच्चा अपंग है। यह जानकर देवरानी का व्यवहार बदल गया। वह उस बच्चे से दूर रहने लगी और सारा प्यार सिर्फ दूसरे बेटे पर लुटाने लगी।

मीना को यह बहुत बुरा लगा। वह उस बच्चे पर और भी ज्यादा ममता बरसाने लगी। एक दिन देवरानी ने अपने पति से कह दिया –

“मैं इस बच्चे को नहीं रख सकती। इसे किसी अनाथालय में छोड़ देते हैं।”

मीना यह सुनकर सन्न रह गई। वह तुरंत देवरानी के कमरे में गई। आंचल फैलाकर बोली –

“अगर तुम इसे नहीं रख सकती, तो यह बच्चा मुझे दे दो। मैं इसे अपनी संतान की तरह पालूंगी। यह सुनकर देवरानी चौकं गई और फिर बोली सोच लीजिए फिर बाद में पछताएगा मत।

काफी सोच-विचार के बाद देवरानी राजी हो गई। कानूनी कागज तैयार हुए और बच्चा मीना की गोद में आ गया। मीना ने दिन-रात उसकी सेवा करनी शुरू कर दी। खुद अपने हाथों से उसका मालिश करती, दवाइयां देती और हौसला बढ़ाती।

धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। वर्षों की तपस्या काम आ गई भगवान ने उसकी सुन ली वह बच्चा एकदम स्वस्थ होकर चलने फिरने लगा सब कोई ने माना एक मां चाहे तो कुछ भी कर सकती है.।

रेनू अग्रवाल 

आंचल फैलाना

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