“ माँ माँ कहाँ हो ?” ये सवाल हम अकसर बचपन में करते जब उठने के बाद माँ को पास नहीं पाते तो माँ को खोजते हुए पूरे घर में घूम जाते और वो हमेशा अपनी एक ही जगह पर हमें मिलती थी..
साल दर साल हम बड़े होते गए पर नहीं बदला था तो सुबह सुबह माँ को खोजना और उनका अपनी पसंदीदा जगह पर मिलना।
राशि आज बहुत दिनों बाद मायके के लिए निकली थी सरप्राइज़ देने के चक्कर में किसी को बताया ही नहीं था … वो भी बेटे के साथ अकेले निकल पड़ी थी…दिल्ली से पटना तक का सफ़र यूँ तो हवाई जहाज़ में लंबा नहीं होता पर दो साल बाद माँ से मिलने जा रही थी तो ये दूरियाँ उसे ज़्यादा ही लग रही थी ।
पूरे रास्ते वो बस माँ के बारे में ही सोचती रहीं…
अब तो भाई की भी शादी हो गई है थी भाई की पत्नी भानु माँ का पूरा ध्यान रखतीं थी। अब माँ की जगह बदल गई होगी … जाने अब वो अपना समय कहाँ व्यतीत करती होगी… अरे हाँ माँ तो बुनाई में भी महारत हासिल कर रखी है ज़रूर दिन भर ऊन काटा में उलझी रहती होगी .. नहीं तो सिलाई मशीन पर लगी रहती होगी… बचपन में हमारे कपड़े घर में ही सिल दिया करती थी…अब पोते पोतियों के सिला करती होगी… ।उसको तो कभी आराम करते नहीं देखीं हमेशा कुछ ना कुछ करती ही रहती है… हम उसके जैसे कभी नहीं बन पाएँगे ।
“ बस अब हम पहुँचने वाले हैं… फ़्लाइट लैण्ड करते मैं एक बार ड्राइवर को कॉल कर दूँगा..।” बेटे कुश ने कहा
“ अरे तुमने बता दिया क्या सबको..।” राशि घबरा कर अपनी सोच से बाहर निकलते पूछीं
“ अरे नहीं मम्मा… बस मामा जी को पता है घर में कोई भी नहीं जानता है ..पता है तुम नानी को सरप्राइज़ देने के चक्कर में हो..।” कुश हँसते हुए बोला
कुछ देर में एयरपोर्ट से निकल कर दोनों घर पहुँच गए… भाई तो अपने काम पर गया हुआ था अचानक बजे कॉलबेल से सब सोचने लगे कौन आया होगा… दरवाज़ा भानु ने खोला… वो ज़ोर से कुछ बोलती इससे पहले राशि ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया…
“माँ कहाँ है ” राशि ने धीरे से पूछा
“ मम्मी जी कहाँ होगी दी.. वो अपनी पसंद की जगह पर कुछ कर रही होगी ।”कहते हुए भानु हँस दी
राशि को आज इस बात पर ग़ुस्सा आ गया अभी भी माँ की जगह वही रह गई है… सधे कदमों से वो अपनी माँ को मिलने पहुँची.. माँ की पीठ राशि की ओर थी और माँ वो तो मस्त मग्न गुनगनाते हुए अपने हाथों का हुनर दिखा रही थी ।
राशि पीछे से जाकर माँ को पकड़ ली…
“अरे अरे… कौन है… कहकर जैसे ही पलटी बेटी को देख कर ख़ुशी के मारे चहकने लगी.. ,बिना बताए कैसे आ गई… अब समझूँ क्यों तेरा फोन बंद आ रहा था फ़्लाइट में होगी इसलिए…।” माँ ने कहा
“बेटा नया जगह कैसा है? (राशि का हमेशा ट्रांसफ़र होता रहता इसलिए नए नए जगह घुमती रहती )” माँ ने पूछा
“ माँ अच्छी जगह है… मैं तो कितनी नई जगह घूम आई पर तुम्हारी जगह मानो भगवान ने यही चुनकर रखी है अब तो भानु के हाथों में ये बागडोर दे दो.. कब तक इसमें ही मिलोगी मुझे? बचपन से यही वो जगह रही तुम्हारी जहां तुम मिलती हो…!” राशि माँ को हल्के ग़ुस्से और प्यार से बोली
“ बेटा जब तक हाथ पाँव सलामत है यही एक जगह है जहां मैं सब कुछ भूल कर पूरे मन से लगी रहती… अच्छा अब तू आ गई है तो बाहर चल मैं आती हूँ… देख ये बस होने वाला फिर बैठती हूँ तेरे पास।”कहकर माँ चूल्हे पर रखे कद्दू के हलवे को चलाने में व्यस्त हो गई ।
इतने में भानु चाय बना कर बाहर ले जाने लगी और बोली,“ चलिए मम्मी जी चाय पी लीजिए..।”
अपना कप हाथ में लेकर माँ ने कहा,“ ये छोड़ कर जा नहीं सकती … यही पी लूँगी तुम दोनों बैठो।”
“ रहने दो माँ मैं यही तुम्हारे पास पी लेती हूँ बातें भी करती रहूँगी…।” राशि ने कहा
“ मेरी नानी की फेवरट चाय और उनकी पसंदीदा जगह एक तस्वीर तो बनती हैं….. स्माइल प्लीज़ !” हँसते हुए कुश ने कहा और एक तस्वीर खींच ली
हलवा तैयार कर बाउल में लेकर आती हुई माँ के चेहरे पर जरा भी थकान नहीं दिख रहा था… “एक हम हैं थोड़े में ही थक जाते हैं ।” राशि ने मन ही मन सोचा
“ माँ अब तो अपनी रसोई भानु के हवाले कर दो… अरे हम सब चाहते तुम आराम करो…। पर तुम तो रसोई से बाहर ही नहीं आती ।” राशि ने कहा
तभी भाई घर आया और राशि की बात सुनकर बोला,“ दीदी कोई फ़ायदा नही बोलने का… एक तो वो जगह माँ को पहले से ही बहुत पसंद दूसरी बात ये है कि इसे अपने हाथों के स्वाद की इतनी आदत है कि वो दूसरों के हाथों का खाना पसंद नहीं करती .. आख़िरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरी बीबी को भी रसोई से छुट्टी मिल जाती हैं… “भाई ने भानु को छेड़ते हुए कहा
“ अच्छा ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा… क्यों मम्मी जी मैं रसोई में नहीं जाती क्या ?”भानु रुआंसी हो बोली
“ मेरी बहू को ऐसे मत बोलो.. वो तो मुझे वो जगह पसंद इस लिए मैं लगी रहती फिर नई नई रेसिपी बनाने के अपने शौक को जिन्दा भी तो रखना है मुझे ।” माँ ने कहा
तभी पाँच साल का भतीजा अंशु आया और बोला ,“ मुझे जलेबी खाना … पर मम्मा आप मत बनाना आपको नहीं आता …दादी आप अच्छा बनाती है आप ही बनाना।”
“ लो अब ये लाट साहब को भी दादी के हाथ का खाना ….अब माँ की जगह बोलो भला कौन ले सकता है।” राशि ने कहा
“माँ सच में तुमने ना सबकी आदत ख़राब कर दी है…” राशि ने कहा
“ बेटा ये तो मेरे लिए गर्व की बात है ना आज के बच्चों को भी मेरे हाथ का खाना पसंद है देखो नाती नातिन..को भी जब आते मुझे ही बोलते हैं ये बनाओ वो बनाओ और मैं ख़ुशी ख़ुशी बनाती भी हूँ… क्यों मुझे बुढ़ापे का तमगा लगा कर कमरे में रखना चाहते मेरे लिए मेरी यही जगह सही है जहां मेरा मन भी लगता और मेरे बच्चों का पेट भी भरता।” माँ ख़ुशी से बोली
“ ठीक है माँ अब तुम दस दिनों तक नई नई रेसिपी ट्राई करो हम खायेंगे ।”राशि सहित भाई ने कहा
दूसरे दिन सब सो रहे थे राशि को जल्दी उठने की आदत थी उठ कर बग़ल में देखी जहां माँ सो रही थी… वो जगह ख़ाली थी.. माँ कहाँ गई? आज भी वो वहीं मिलेगी… सोचते हुए रसोई की तरफ़ गई देखी भानु चाय बना रही है और माँ आज पहली बार सोफे पर बैठ कर मेरा इंतज़ार कर रही है…
“ वाह माँ आज पहली बार तुम्हें रसोई से बाहर देख रही हूँ… !” हँसते हुए राशि ने कहा
“ तो तेरी माँ बहू के आने के बाद से चाय तो खुद से बना कर नहीं ही पिएँगी…., आख़िर सास जो हूँ बहू से भी सेवा करवाती हूँ ।” हँसते हुए माँ ने कहा
राशि,भाई और भानु माँ की बात सुनकर हँस दिए।
“ पर माँ एक बात तो सही है, जैसे रसोई आपके बिना अधूरा है वैसे आप भी रसोई में जाए बिना रह नहीं सकती , हमें तो लगता आपके लिए सबसे सही जगह यहीं है….।” भाई माँ को छेड़ते हुए बोला
“ हाँ ये तो सच है जब तक हाथ पैर सलामत हैं मेरी जगह वो रहने देना…! “माँ ने मायूस होकर कहा
“ क्या हुआ मायूस क्यों हो रही..।?” राशि ने पूछा
“ बेटा वो रत्ना की बहू अपनी सास को रसोई में जाने नहीं देती बेचारी का जो मन करता वो बना भी नहीं पाती कह रही थी तेरा सही है बेटा बहू रोकते टोकते नहीं इसलिए जब तक हाथ पैर सलामत हैं काम करते रहना चाहिए ।” माँ ने कहा
“ हाँ मम्मी जी मुझे भी अच्छा लगता आप अपने हिसाब से जैसे रहना चाहे रहे करें.. क्योंकि आपकी ख़ुशी ही हमारे लिए मायने रखती है ।” भानु ने कहा
राशि अब खुश थी ये सोच कर की माँ ख़ुशी से रसोई के काम करना चाहती है…. वो बेकार ही सोच रही थी अब माँ को अपनी जगह छोड़ देनी चाहिए ।
आपको क्या लगता है बहू के आ जाने के बाद सास को रसोई में काम नहीं करना चाहिए?….
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश