एक छोटे से किराए के घर में, सरिता अपने नन्हे बेटे रवि के साथ रहती थी। दुनिया की नज़र में वो अकेली थी, पर रवि… रवि को बचपन से ही सब नाजायज कहकर बुलाते थे । यह शब्द उसके नन्हे कानों में ऐसे चुभता था जैसे कोई तीखा पत्थर। हर गली-नुक्कड़ पर, स्कूल में, बाज़ार में, फुसफुसाहटें उसका पीछा करती थीं । वो सुनता था , सभी लोग आपस में बातें करते ” अपने बच्चों को इससे दूर
रखो.” “ये गंदा है, इससे मत खेलो.” “ये नाजायज है.” रवि को पूरा मतलब तो नहीं पता था, पर उसे इतना ज़रूर समझ आ गया था कि ‘नाजायज’ एक बुरा शब्द है, और इसी की वजह से कोई बच्चा उसके साथ खेलना नहीं चाहता था । उसे अपने सहपाठियों के साथ खेलने से रोका जाता था ।
जब वो मुश्किल से चार या पाँच साल का रहा होगा, एक दिन स्कूल से लौटते हुए कुछ बच्चों ने उसे चिढ़ाया और खेल से बाहर कर दिया । रवि रोते-रोते घर आया, उसकी छोटी-छोटी आँखें आँसुओं से लाल थीं । उसने अपनी माँ की साड़ी का पल्लू कसकर पकड़ लिया और मासूमियत से पूछा, “माँ, ये नाजायज क्या है? सब मुझे ऐसे क्यों बोलते हैं ? इसका क्या मतलब है? कोई मेरे साथ क्यों नहीं खेलता, माँ? क्या मैं सच में गंदा हूँ?”
सरिता के कलेजे में जैसे किसी ने खंजर घोंप दिया । उसकी आँखों में उस पल बेबसी और दर्द के समंदर उमड़ आए, पर उसने अपने दर्द को छुपाकर, होठों पर एक फीकी-सी मुस्कान लाकर कहा, “नहीं बेटा, तुम बिल्कुल गंदे नहीं हो । तुम सबसे अच्छे बच्चे हो । ऐसा कुछ नहीं होता.” पर वो जानती थी कि यह जवाब बच्चे के अंदर उठते सवालों और उसके मासूम दिल के ज़ख्म को शांत नहीं कर पाएगा ।
रवि स्कूल जाने लगा, तो वहाँ भी कोई उसे चैन से नहीं रहने देता था । “ये तो नाजायज है! इसके पिता का कुछ पता नहीं है!” ये आवाज़ें उसे हर दिन डराती थीं, उसका आत्मविश्वास छीन लेती थीं । जब भी कोई माँ-बाप अपने बच्चों को उससे दूर रहने को कहते, तो रवि और भी अकेला महसूस करता ।
एक दिन, रवि इतना रोया कि उसकी हिचकियाँ बँध गईं । उसने अपनी माँ से लिपटकर कहा, “माँ, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा । सब मुझे चिढ़ाते हैं! सब कहते हैं मैं नाजायज हूँ, मैं नहीं हूँ ना माँ?” मां मैं बुरा बच्चा नहीं हूं , है ना मां।”
सरिता ने अपने बेटे के सूखे गालों पर अपना बीता हुआ दर्द देखा, वो अपमान देखा जो हर दिन उसे सहना पड़ता था । उसी पल उसने फैसला किया., चुपचाप, रातों-रात, सरिता अपने बेटे को लेकर उस शहर को छोड़ गई जहाँ उसकी बदनामी उसके बेटे का पीछा कर रही थी। उसने अपनी सारी बची-खुची हिम्मत बटोरी और एक नई सुबह की तलाश में निकल पड़ी, यह आस लिए कि शायद कहीं तो उसे और उसके बेटे को शांति मिलेगी ।
एक नए शहर में आकर सरिता ने खुद को एक विधवा बताया । उसने अपने अतीत को दफन कर दिया, जैसे ज़मीन में कोई दर्दनाक राज़ गाड़ दिया हो । उसे सिलाई का काम आता था, और उसी से वो लोगों के कपड़े सिलकर, दिन-रात मेहनत करके, अपना और अपने बेटे का पेट पालती थी । उसकी उंगलियों में सुई का हर टाँका उसके संघर्ष की कहानी कहता था ।
छोटे से किराए के घर में, जहाँ मुश्किल से वो दो लोग रह पाते थे, सरिता ने अपने बेटे को हर सुख देने की कोशिश की, पर वो जानती थी कि उसके माथे पर लगा ये दाग कभी मिट नहीं पाएगा ।
वो रवि को हमेशा समझाती, “बेटा, कभी किसी के सामने ‘नाजायज’ शब्द मत बोलना, कभी नहीं. ये सिर्फ़ एक बुरा सपना था, जो अब बीत चुका है , इसको हमेशा के लिए भूल जाओ।”
रवि ने अपनी माँ की बात मान ली, पर वो शब्द उसके दिल में कहीं गहरे तक बैठ गया था, एक ज़ख़्म की तरह जो कभी भरता नहीं था ।
रवि धीरे-धीरे बड़ा होने लगा । वो समझदार हो रहा था और उसे ‘नाजायज’ शब्द का असली, कड़वा मतलब समझ आने लगा था. उसके अंदर एक गुस्सा पनप रहा था – अपनी माँ पर, जिसने उसे कभी सच नहीं बताया; और उस अदृश्य पिता पर, जिसकी वजह से उसे यह सब झेलना पड़ा.
“क्यों माँ? क्यों मैं ऐसा हूँ? मुझे सच क्यों नहीं बताती तुम? मेरा पिता कौन था? तुम मुझे कभी क्यों नहीं बताती कि मेरा पिता कहाँ है? क्यों मुझे सब ‘नाजायज’ कहते थे बचपन में?” यह सवाल हमेशा उसके ज़हन में रहते , ये सारे सवाल उसे रात-रात भर सोने नहीं देते थे ।
एक दिन, अपनी माँ को कुछ हफ़्तों से लगातार अस्वस्थ देखकर, रवि ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने का निर्णय लिया । अस्पताल ले जाते समय, माँ की तबियत अचानक बहुत बिगड़ गई और उन्हें तुरंत भर्ती करना पड़ा. डॉक्टर ने बताया कि उनकी हालत गंभीर नहीं है, लेकिन कुछ दिनों के लिए निगरानी में रखना ज़रूरी है।
घर वापस आकर, रवि माँ के सामान में कुछ ढूँढ रहा था, तभी उसकी नज़र एक पुरानी, धूल जमी हुई डायरी पर पड़ी । उसने देखा था कि उसकी माँ कभी-कभी रात में चुपचाप कुछ लिखती थीं, पर कभी उसने पूछा नहीं था । अब, उस डायरी के पन्ने पलटने पर, उसे अपनी माँ की पूरी ज़िंदगी का दर्द और
धोखा एक-एक करके दिखाई देता है और शायद अपने हर सवाल का जवाब भी । डायरी के हर पन्ने पर माँ के आँसू, उनकी उम्मीदें और उनका अकेलापन महसूस हो रहा था। रवि ने पढ़ना शुरू किया:
सरिता की डायरी से कुछ अंश:
‘आज, 1 अगस्त…’ डायरी का पहला पन्ना कहता था, ‘मेरी ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आया. आज मेरी मुलाकात अमित से हुई. वह हमारे शहर के सबसे बड़े उद्योगपति का बेटा है, यह बात मुझे बाद में पता चली। अमित ने मुझसे दोस्ती की पहल की और धीरे-धीरे हमारी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं. वह मुझसे
घंटों बातें करता, मेरे सपनों के बारे में पूछता और मुझे महसूस कराता कि मैं कितनी खास हूँ. मैंने कभी नहीं सोचा था कि अमित जैसा लड़का मुझ जैसी साधारण लड़की में दिलचस्पी लेगा. मेरा दिल खुशी से झूम उठा था.’
रवि की आँखों में पानी भर आया, पर उसने पढ़ना जारी रखा. ‘हमारा प्यार गहराता जा रहा था. अमित ने कहा कि वह मुझसे शादी करना चाहता है, लेकिन उसके परिवार वाले हमारी शादी के लिए कभी नहीं मानेंगे क्योंकि मैं उनके परिवार जितनी हैसियत नहीं रखती हूं . उसने कहा कि वह अपने परिवार से मेरे बारे में बात कर चुका है और उन्होंने ‘ना’ कर दिया है, पर उसे इसकी परवाह नहीं. उसने
मुझसे कहा, ‘सरिता, मैं तुम्हारे लिए अपने परिवार से भी लड़ जाऊँगा. हमारा प्यार इतना सच्चा है कि कोई इसे रोक नहीं सकता.’ उसने मुझे विश्वास दिलाया कि वह मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. कुछ हफ़्तों बाद, अमित मुझे शहर से दूर अपने फ़ार्महाउस में ले आया और कहा, ‘अब यही हमारा घर है. हम यहीं रहेंगे और जल्दी ही मंदिर में शादी करेंगे.’ उसकी बातों में मैंने सच्चाई देखी है इसलिए मैंने उस पर आँख बंद करके भरोसा कर लिया.
मैं बहुत खुश हूं आज, इतनी खुशी मैंने कभी महसूस नहीं की.’
‘फ़ार्महाउस में रहते हुए कुछ दिन ही बीते है कि अमित का बर्ताव थोड़ा बदलने लगा है । कभी-कभी वह बिना बात के चिड़चिड़ा जाता है । मेरी किसी बात पर चिल्ला भी देता है । मुझे समझ नहीं आता है कि क्या ग़लती हुई । जब मैं पूछती हूं, तो वह बस कह देता है, ‘कुछ नहीं, काम का तनाव है.’ लेकिन अमित मुझसे बहुत प्यार करता है। रात को वह फिर मुझसे माफ़ी भी माँग लेता है । आज जब उसने
मुझे बिना किसी वजह के डांट दिया और मैं नाराज हो गई तो उसने मुझसे कहा, ‘अगर मैंने तुम्हें कुछ गलत बोल दिया हो तो माफ़ करना, सरिता.’ उसका यह प्यार देखकर मैं सारी बातें भूल जाती हूं। मैं खुद को समझाती हूं कि शायद मैं ही ज़्यादा सोच रही हूँ ।” हां मुझे लगता है मैं ही ज्यादा सोचने लगती हूं।
आज फिर अमित घर नहीं आया. उसने कहा कि वह अपने माँ-पापा से मिलने गया था, कुछ ज़रूरी काम था. मुझे थोड़ा अकेलापन लगता है. जब मैं कहती हूँ कि मुझे भी अपने साथ ले जाओ, तो तो वह कहता है कि ‘नहीं सरिता, अभी नहीं. माँ-पापा तुमसे मिलकर नाराज़ हो जाएँगे, तुम्हें देखकर उन्हें गुस्सा आएगा.’ मैं इंतज़ार कर रही हूँ कि कब वो दिन आएगा जब उसके परिवार वाले भी मुझे अपना लेंगे और हमारी शादी धूम-धाम से होगी.’
‘आज… आज का दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे काला दिन है. अमित के कुछ दोस्त फ़ार्महाउस पर आए थे. मैं रसोई में उनके लिए कुछ बनाने की तैयारी कर रही थी, और उनकी बातें मेरे कानों में पड़ रही थीं. अमित का एक दोस्त हँसकर बोला, ‘क्यों भाई अमित, ये शादी-वादी का क्या चक्कर है? कब तक चलने वाला है तेरा ये ड्रामा?’ और अमित… अमित हँसा, एक ठंडी, क्रूर हँसी. उसने कहा, ‘अरे यार,
मजबूरी में करनी पड़ी. ये सरिता ज़्यादा ही पुराने जमाने वाली सोच की थी एकदम बहनजी क़िस्म की. शादी से पहले हाथ भी नहीं लगाने देती थी. सोचा, एक बार मंदिर में शादी हो जाए, तो सब ठीक हो जाएगा. अब देख, जो मर्ज़ी करूँ, खुशी-खुशी मानती है. बस थोड़े दिन की बात है, फिर तो पीछा छूट जाएगा.’ और उन सबकी जहरीली हंसी मेरे कानों में सुनाई पड़ी । मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ ।
‘मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई. मेरी दुनिया उसी पल टूट गई. मुझे विश्वास नहीं हुआ कि जिस पर मैंने अपनी पूरी जिंदगी लुटा दी, वह ऐसा सोच भी सकता. मेरे दिल का एक-एक टुकड़ा बिखर गया. उस दिन से पहले, मैं अपनी बर्बादी के लिए तकदीर को दोष देती थी, लेकिन आज मुझे पता चला कि यह उसकी सोची-समझी साज़िश थी.’
‘दोस्तों के जाने के बाद, मैंने अमित से पूछा, ‘क्या तुमने सच में ऐसा कहा? क्या तुम मुझे सिर्फ़… इस्तेमाल कर रहे हो?’ मुझे लगा मैंने ही कुछ गलत सुन लिया है ।
उसने बिना किसी पछतावे के मेरी आँखों में देखा और हँसते हुए कहा, ‘हाँ सरिता. मुझे जो लड़की पसंद आती है, मुझे उसको अपना बनाना होता है. तुम मुझे अच्छी लगी थीं और तुम बहनजी टाइप की थीं, जो शादी से पहले कुछ नहीं करती. तुमने कहा था ना कि शादी के बाद सब कुछ करेंगे? तो इस वजह से मुझे तुमसे मंदिर में शादी करनी पड़ी. वैसे भी, हमारी शादी का कोई सबूत है नहीं, सिर्फ़ वो
पंडित और भगवान जानते हैं. मैं तो अपने माता-पिता की मर्जी से, अपने बराबर वाली लड़की से शादी करूंगा. तुम अगर ऐसे ही मेरे साथ रहना चाहती हो तो रह सकती हो, वरना अपनी मम्मी-पापा के पास वापस जा सकती हो.’ वैसे भी मुझे लगता है हम दोनों साथ में खुश हैं । यह सुनकर मेरे पैरों तले से जमीन ही निकल गई ।
आज मुझे पता चला कि मैं गर्भवती हूँ. यह सुनकर मुझे लगा शायद अमित बदल जाएगा. मैंने उसे बताया, पर वह हंसने लगा … बोहोत बेशर्मी से हँसा और बोला मुझे ये बच्चा नहीं चाहिए. तुम वैसे भी कौन हो मेरी ,पत्नी? ये कहकर जोर जोर से हंसने लगा । उसने आगे कहा, “इस बच्चे का गर्भपात
करा लो. मैं किसी बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लूंगा, मुझे सिर्फ मौज-मस्ती करनी थी. अगर तुम्हें मेरे साथ जिंदगी भर ऐसे ही मौज-मस्ती करनी है, तो ठीक है, वरना तुम यहां से निकल जाओ.” उसने मुझे घर से बाहर फेंक दिया, जैसे मैं कोई कूड़ा हूँ. मेरा शरीर ही नहीं, मेरी आत्मा भी काँप उठी थी.’
‘मैं अपने मायके गई, उम्मीद थी कि शायद मेरे माँ-बाप मुझे समझेंगे, मुझे सहारा देंगे. पर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया. ‘हमारी कोई ऐसी बेटी नहीं,’ उन्होंने कहा. ‘समाज में हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी तूने!’ मैं पूरी तरह अकेली पड़ गई, मेरे पेट में मेरा बच्चा पल रहा था और मैं बेसहारा थी. इस विशाल दुनिया में मेरा अपना कहने वाला कोई नहीं था. मैं उस शहर से भाग गई, जहाँ हर गली, हर चेहरा मुझे बदचलन कहता था.
उन दिनों की सर्दी, रातें जब मैं खुले आसमान के नीचे सोई, भूख से पेट में ऐंठन होती थी. मैं किसी ऐसे ठिकाने की तलाश में भटक रही थी जहाँ मैं और मेरा बच्चा सुरक्षित रह सकें. एक रात, मैं भूखी-प्यासी एक गली में बैठी रो रही थी, तभी पास के घर से एक दयालु बूढ़ी औरत निकली. उन्होंने मुझे देखा और उनका दिल पसीज गया. उन्होंने मुझे सहारा दिया, अपने घर ले गईं और मुझे खाना
खिलाया. उन्होंने मुझे अपने छोटे से कमरे में कुछ दिनों के लिए रहने की जगह दी, जब तक कि मैं बच्चे को जन्म न दे दूँ और थोड़ी ठीक न हो जाऊँ. मैंने उनसे कुछ काम करने की पेशकश की, पर उन्होंने कहा, ‘पहले अपनी सेहत और बच्चे का ख्याल रखो.’ उनके घर में ही रवि का जन्म हुआ. ये दुनिया कितनी बेरहम है, पर उस बूढ़ी माँ ने मुझे और मेरे रवि को एक नया जीवन दिया.’
‘इन दिनों, जब मैं अकेली बैठी रवि को दूध पिलाती हूँ, तो अपने अतीत के फैसले पर मुझे बहुत पछतावा होता है. मेरे ही कारण आज मेरे बच्चे को यह सब झेलना पड़ रहा है. काश! मैंने अपने माता-पिता की बात मानी होती, काश! मैं घर से भागी न होती, काश! मैंने अमित पर इतना विश्वास न किया होता. मैंने अपने ही हाथों अपने परिवार और अपने पिता का नाम मिट्टी में मिलाया है. यह मेरी ही
गलती थी. मेरे माता-पिता ने मुझे ठुकराया, यह उनका गुस्सा था, और शायद वे भी सही थे. आज रवि की आँखों में मैं वही अकेलापन देखती हूँ जो मैंने अपने जीवन में महसूस किया. मेरी एक ग़लती ने तीन जिंदगियां बर्बाद कर दीं – मेरी, मेरे बच्चे की और मेरे माँ-बाप की.’
डायरी पढ़कर रवि का खून खौल गया. उसकी आँखों में आँसू थे, पर ये दुख के नहीं, बल्कि बेइंतहा गुस्से और बदले के आँसू थे. “माँ ने इतना कुछ सहा! इतना दर्द! और मैंने अपनी माँ को गलत समझा!” उसने कसम खाई – “माँ के आँसुओं का हिसाब तो मैं लेकर रहूँगा. उस आदमी को उसके गुनाहों की सज़ा ज़रूर मिलेगी!” उसके अंदर अपने जैविक पिता को बर्बाद करने की आग जलने
लगी. उसने दिन-रात एक कर दिया, पढ़ाई में खुद को झोंक दिया. जी-तोड़ मेहनत की और काबिल बना. उसकी माँ की सिलाई से हुई कमाई से, उसने जैसे-तैसे उच्च शिक्षा प्राप्त की. उसका एकमात्र लक्ष्य था उस आदमी तक पहुँचना जिसने उसकी माँ की ज़िंदगी बर्बाद कर दी थी.
कुछ समय बाद, रवि को अपने पिता की कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका मिला, जिसकी उसने अपने पिता को भनक तक नहीं लगने दी. इंटर्नशिप के दौरान उसने अपने पिता की कंपनी की सारी गोपनीय जानकारी जुटाई – बड़े प्रोजेक्ट्स की डीटेल्स, प्रमुख क्लाइंट्स की सूची, वित्तीय कमजोरियाँ और उनके व्यापार के हर गुप्त पहलू. इस बीच, वह अपनी माँ को बताता रहा कि उसे एक अच्छी
नौकरी मिल गई है और वह जल्द ही उन्हें बेहतर जीवन देगा, लेकिन उसने कभी अपनी कंपनी का नाम नहीं बताया. कुछ महीनों बाद, उसने इंटर्नशिप खत्म होने के बाद, अपने पिता की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी कंपनी में पूर्णकालिक नौकरी हासिल कर ली. अपनी मेहनत और सूझबूझ से उसने जल्द ही कंपनी में एक खास मुकाम बना लिया.
एक दिन, रवि ने प्रतिद्वंद्वी कंपनी के मालिक के सामने यह प्रस्ताव रखा: “मैं आपको वह सारी जानकारी दूँगा जिससे आप अपने प्रतिद्वंदी की कंपनी को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं, लेकिन मेरी एक शर्त है. जब उनकी कंपनी पूरी तरह से खत्म हो जाए, तो उनका जो आलीशान बंगला है, उसे मेरे नाम पर करवा देना.” प्रतिद्वंद्वी कंपनी के मालिक ने बिना सोचे-समझे यह डील स्वीकार कर ली.
रवि ने अपनी जुटाई हुई गोपनीय जानकारी का इस्तेमाल करके अपने पिता के सारे बड़े प्रोजेक्ट्स उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी को दिलवा दिए, जिससे उसके पिता के व्यापार को भारी नुकसान हुआ. पिता को बैंक लोन चुकाने में दिक्कतें आने लगीं और उसकी इज्जत मिट्टी में मिलने लगी. कई महीनों के
संघर्ष के बाद, अंत में, उसे अपनी कंपनी के कुछ शेयर और आलीशान बंगला तक बेचना पड़ा, जो उसकी शान का प्रतीक था. रवि ने डील के तहत वह बंगला अपने नाम करवा लिया – वही बंगला जो कभी उसके पिता का था.
अब रवि अपनी मां को एक सरप्राइज देने के लिए तैयार था. उसने माँ का हाथ पकड़ा और एक टैक्सी में बैठाकर उस आलीशान बंगले की तरफ़ ले गया. माँ हैरान रह गईं, उनकी आँखें अविश्वास से फैल गईं, “बेटा, ये कहाँ ले आए? ये तो कोई राजा-महाराजा का महल लगता है!” रवि ने अपनी माँ का हाथ कसकर पकड़ा और उनकी आँखों में देखते हुए भावुक होकर बोला, “माँ, यह वो घर है जहाँ तुम्हें
रहना चाहिए था. यह वही आलीशान बंगला है जो कभी मेरे जैविक पिता का था, और आज से यह तुम्हारा घर है, हमारा घर.” फिर उसने सारी बात बताई – कैसे उसने अपने पिता को नुकसान पहुँचाया, कैसे उसके व्यापार को ठप्प कर दिया, और कैसे यह बंगला अब उनका है. उसकी आवाज़
में एक अजीब-सी जीत थी, जो सालों के दर्द को बयाँ कर रही थी, “माँ, मैंने तेरे आँसुओं का हिसाब बराबर कर दिया है! अब उसे भी आँसू बहाने होंगे, क्योंकि उसका बंगला और उसका गुरूर सब छिन गया है!”
पर रवि ने अपनी माँ की आँखों में खुशी नहीं, एक गहरी पीड़ा देखी. माँ ने भीगी आँखों से, काँपते होठों से कहा, “बेटा, तूने गलत किया… आखिर वह तेरा बाप ही तो है.” रवि को यह सुनकर झटका लगा. उसे विश्वास नहीं हुआ. उसका गुस्सा फिर से भड़क उठा. वह दर्द और गुस्से से बोला, “माँ! तुम ऐसे
आदमी की तरफदारी कर रही हो जिसने तुम्हें जिंदगी भर आँसू बहाने पर मजबूर किया? जिसकी वजह से सब लोगों ने मुझे हमेशा ‘नाजायज’ कहा? जिसकी वजह से मुझे कभी किसी का प्यार नहीं मिला? तुम कैसे उसके लिए ऐसा सोच सकती हो?” उसकी आवाज़ में बचपन का सारा दर्द, सारा अपमान गूँज रहा था.
माँ ने अपने बेटे का हाथ थाम लिया, उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, मुझे पता है कि तूने मेरी वजह से बहुत दुख सहे हैं. मुझे पता है कि उसने हमें कितना दर्द दिया है, कितना अपमान दिया है. लेकिन… वह जैसा भी था, वह मेरा पति था. मैंने उससे सच्चा प्यार किया था और मैं पता नहीं क्यों चाहकर भी उससे नफरत नहीं कर पाई. मेरे दिल का एक कोना आज भी उसके लिए धड़कता है.
आज भी उसका दुख देखकर मुझे दुख होगा. मैं चाहती हूँ वह अपनी जिंदगी में हमेशा खुश रहे… मुझे यह बदला नहीं चाहिए था, बेटा.” माँ की आवाज़ में एक ऐसी लाचारी और निःस्वार्थ प्रेम था जो रवि को अंदर तक भेद गई. उसे एहसास हुआ कि उसने जो किया, उससे माँ को और दुख ही मिला है, खुशी नहीं. वह माँ के प्रेम की गहराई को समझ नहीं पाया, पर उसकी पीड़ा को महसूस कर रहा था.
रवि की आँखों में अपनी माँ के प्रति अथाह प्रेम उमड़ आया. उसने भारी मन से कहा, “ठीक है माँ, अगर तुम्हें इतना ही दुख हो रहा है, तो मैं… मैं सब कुछ वापस कर दूँगा. मैं यह सब सिर्फ़ तुम्हारे लिए कर रहा हूँ क्योंकि तुम मेरी माँ हो! सिर्फ़ तुम्हारे और तुम्हारे लिए मैंने यह सब कुछ किया… और
तुम्हारे लिए ही मैं उसको वापस भी कर दूँगा ये जो भी चीज़ें हैं.” रवि ने एक पल रुककर, माँ की आँखों में देखा, और अपनी आवाज़ में सारी कड़वाहट और सच्चाई भरकर कहा, “लेकिन माँ, मैं उस आदमी को कभी माफ नहीं कर सकता. भले तुम उसको अपना पति मानो या तुम मुझसे प्यार करो… मैं सिर्फ़
तुम्हारे लिए यह सब कर रहा हूँ. लेकिन वह मेरा… मैं उसको कभी पसंद नहीं कर सकता, चाहे तुम कुछ भी कर लो.” उसकी आवाज़ में एक ऐसा दर्द था जो कभी नहीं भरने वाला था.
अगले दिन, रवि अपनी माँ के साथ उस जगह गया जहाँ उसका जैविक पिता अपनी पत्नी और उनके बेटा, रोहित, और बेटी, प्रिया के साथ मौजूद था. यह वह पल था जब सालों का दर्द, धोखा, और छुपा हुआ सच सबके सामने आने वाला था. रवि ने वहाँ सबकी मौजूदगी में अपने पिता से सीधे बात की. उसकी आवाज़ दृढ़ थी, पर उसमें सालों का सालों का दर्द छिपा था.
“आज मैं यहाँ इसलिए आया हूँ,” रवि ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी गंभीरता थी, “क्योंकि मेरी माँ ने मुझे ऐसा करने को कहा है. पर जो सच्चाई मैं अब तुम सबके सामने रखूँगा, वह तुम्हें जाननी ज़रूरी है.” उसने फिर अपने पिता के धोखे की पूरी कहानी सुनाई: कैसे उसने उसकी माँ को प्यार का झाँसा दिया, कैसे मंदिर में शादी की, कैसे गर्भवती होने पर भी बेदर्दी से छोड़ दिया, और कैसे उसे
बचपन से ‘नाजायज’ कहा गया. रवि ने अपनी दुखभरी दास्तान सुनाई, अपनी माँ के अकेले संघर्ष और अपने खुद के हर पल के दर्द को शब्दों में बयाँ किया. उसने बताया कि कैसे उसने अपनी माँ के आँसुओं का हिसाब बराबर करने के लिए अपने पिता को बर्बाद किया, और कैसे उसकी माँ की इच्छा पर वह सब कुछ वापस करने को तैयार है. “मैंने तुम्हारी कंपनी को नुकसान पहुँचाया,” रवि ने
कड़वाहट से कहा, “तुम्हें अपना बंगला छोड़ने पर मजबूर किया… और यह सब इसलिए किया ताकि तुम्हें भी उस दर्द का एहसास हो जो तुमने मेरी माँ को दिया.” फिर उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा, “लेकिन… मेरी माँ तुमसे प्यार करती है. वह नहीं चाहती कि मैं तुम्हें और नुकसान पहुँचाऊँ.” रवि ने एक पल रुककर कहा, “तो लो, वापस ले लो तुम यह सब.” उसकी आवाज़ में जीत नहीं, एक कड़वा त्याग था.
कमरे में सन्नाटा छा गया.
पिता की पत्नी, जो इतने सालों से उस व्यक्ति के साथ रह रही थी जिसे वह अपना जीवनसाथी मानती थी, का चेहरा पीला पड़ गया. उसकी आँखें अविश्वास और गुस्से से फैल गईं, जैसे उसकी पूरी दुनिया ढह गई हो. वह अपने पति की तरफ़ मुड़ी, उसके चेहरे पर ऐसी नफ़रत थी जो पहले कभी नहीं देखी गई थी. “मुझे पता था तुम दिल फेंक क़िस्म के रहे हो!” पत्नी ने ठंडी, काँपती आवाज़ में कहा, उसकी
आँखें अंगारे की तरह जल रही थीं, “तुम्हारी अय्याशियों की ख़बरें आती थीं, पर मैंने तुम्हें हमेशा माफ़ किया! मैंने सोचा, ये तो मर्दों का स्वभाव है. लेकिन तुमने… तुमने किसी के साथ इतना बड़ा अन्याय किया है? एक बेसहारा लड़की को धोका दिया और अपने ही बच्चे को दर-बदर भटकने दिया? तुम
इतने गिरे हुए हो, मुझे विश्वास नहीं होता! तुम इंसान नहीं, राक्षस हो!” उसकी आवाज़ में गुस्सा कम और गहरी निराशा ज़्यादा थी. वह जानती थी कि समाज में उसकी अपनी प्रतिष्ठा भी अब दाँव पर थी, अपने पति के इस घिनौने सच के कारण.
लेकिन सबसे बड़ा झटका पिता के अपने बच्चों – बेटे रोहित और बेटी प्रिया को लगा, जो उसकी शादी के बाद पैदा हुए थे और जिन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व था. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके पिता, जिन्हें वे अपना आदर्श मानते थे, ऐसे भी हो सकते हैं.
“नहीं! मेरे पिताजी ऐसा नहीं कर सकते!” रोहित चीख उठा, उसकी आवाज़ में दर्द और धोखा था. वह अपने पिता की तरफ़ बढ़ा, उसकी आँखों में आँसू थे. “यह सब सच है? आपने किसी को धोखा दिया? एक बच्चे को छोड़ दिया? आप ऐसे हो? आपने हमें इतने सालों तक झूठ में पाला?”
प्रिया, उसकी बहन, भी आँसू बहाने लगी. पिता के पास कोई जवाब नहीं था, वह शर्म से सिर झुकाए खड़ा था, उसकी आँखें खाली थीं, जैसे उसने सब कुछ खो दिया हो. उसके बच्चों की नज़रों में उसके प्रति जो सम्मान था, वह हमेशा के लिए टूट गया. प्रिया ने रोते हुए कहा, “हम ये बंगला वापस नहीं लेंगे!
हम उस चीज़ पर कैसे रह सकते हैं जो किसी और का दर्द है? आप हमारे पिता नहीं हो सकते! कल को अगर कोई मेरे साथ ऐसा कर जाए, तो मैं क्या करूँगी? मुझे आप पर यकीन नहीं होता!” उसकी आवाज़ में वो डर था कि पिता के कर्म उसके अपने भविष्य पर भी भारी पड़ सकते हैं.
रोहित, निराशा से सिर हिलाता है. “मैंने हमेशा आपको अपनी प्रेरणा माना, पिताजी. लेकिन आज आपने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी सीख दी है… कि एक आदमी कितना भी सफल क्यों न हो, अगर उसका ज़मीर मर जाए तो वो कुछ नहीं.” रोहित और प्रिया ने अपने पिता से मुँह फेर लिया. उन्होंने
अपने पिता से बात करना बंद कर दिया और कभी उन्हें माफ़ नहीं किया. पिता को अब उनके सम्मान और प्यार के बिना जीना था, जो किसी भी भौतिक नुकसान से कहीं ज़्यादा दर्दनाक था.
पिता, जिसे कभी अपने सम्मान और धन पर गर्व था, अब पूरी तरह से टूट गया था. उसे न केवल वित्तीय नुकसान हुआ था, बल्कि सबसे बड़ा दंड मिला था: अपने ही बच्चों की नज़रों में गिरना. उसकी पत्नी, भले ही सामाजिक मजबूरी में उसके साथ रहे, पर अब उसके दिल में उसके लिए कोई जगह
नहीं थी; उसका रिश्ता केवल एक समझौता बन गया था. उसके बच्चे, उस पर से विश्वास खो चुके थे और उससे बात करना बंद कर दिया था. वह अकेला पड़ गया था, अपने ही किए गए कर्मों के बोझ तले दबा हुआ, जिसका कोई निवारण नहीं था.
माँ के आँसुओं का हिसाब हो चुका था. बेटा अपनी माँ की खातिर एक बड़ा त्याग कर चुका था, लेकिन वह जानता था कि कुछ घाव कभी भरते नहीं, और कुछ यादें हमेशा चुभती रहती हैं. यह कहानी उस अनमोल प्रेम की थी जो माँ और बेटे को बांधे रखता है, और उस सत्य की जो देर-सबेर अपने रास्ते ढूँढ ही लेता है, भले ही उसकी कीमत कितनी भी क्यों न हो.
समाप्त